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शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

strcit law is requered for wastage of food in marrige and other function

शादियों में भोजन की बर्बादी पर पाबंदी 


हाल ही में एक उम्मीद बंधी है कि भारत में भी विवाह समारोह में होने वाले भव्य दिखावे और खाने की बर्बादी को रोकने के लिए कानून बन जाएगा। ऐसा कानून पाकिस्तान में कई साल से है व उसकी पहल वहां की सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर की थी। यही नहीं पाकिस्तान में इस पर कड़ाई से अमल भी हो रहा है। एक सर्वे के अनुसार, अकेले बंगलुरु शहर में हर साल शादियों में 943 टन पका हुआ खाना बर्बाद होता है। इस खाने से लगभग 2.6 करोड़ लोगों को एक समय का सामान्य भारतीय खाना खिलाया जा सकता है। दिल्ली में ऐसा कोई सर्वे हुआ नहीं, लेकिन यहां की शादियों में अन्न की बर्बादी बंगलूरु से कहीं बहुत ज्यादा ही होगी...


हाल ही में जम्मू-कश्मीर की सरकार ने अपने एक अभूतपूर्व फैसले में शादी समारोह में मेहमानों से लेकर व्यंजनों की संख्या तक सीमित कर दी। राय के खाद्य, जन-वितरण एवं उपभोक्ता मामलों के मंत्री जुल्फिकार अली के अनुसार शादियों एवं अन्य सामाजिक समारोहों में खाद्य पदार्थो की बर्बादी और दिखावा रोकने की गरज से किया गया यह फैसला एक अप्रैल से लागू होगा। राय में अब ऐसे समारोहों में डीजे और आतिशबाजी का इस्तेमाल नहीं किया जा सकेगा। इसके अलावा निमंत्रण कार्ड के साथ मिठाई-मेवे देने पर भी पाबंदी रहेगी। सरकार ने साफ कहा है कि लड़के की शादी में चार सौ और लड़की की शादी में पांच सौ से अधिक मेहमान शिरकत नहीं करेंगे। जन्मदिन अथवा अन्य छोटे कार्यक्रमों के लिए यह संख्या सौ रहेगी। मेहमानों को सिर्फ सात स}िजयां परोसी जा सकेंगी वे चाहे शाकाहारी हों अथवा मांसाहारी। मीठे व्यंजनों की गिनती भी दो ही रहेगी। यही नहीं, यदि प्लास्टिक की सामग्री का इस्तेमाल होगा तो समारोह के बाद उसका निबटान भी करना होगा। इस फैसले की अवहेलना करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई का प्रावधान किया गया है। आगामी विधानसभा सत्र में राय सरकार इस बाबत एक विधेयक भी लाएगी ताकि कानून बनाया जा सके।
हाल ही में एक उम्मीद बंधी है कि भारत में भी विवाह समारोह में होने वाले भव्य दिखावे और खाने की बर्बादी को रोकने के लिए कानून बन जाएगा। ऐसा कानून पाकिस्तान में कई साल से है व उसकी पहल वहां की सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर की थी। यही नहीं पाकिस्तान में इस पर कड़ाई से अमल भी हो रहा है। एक सर्वे के अनुसार, अकेले बंगलुरु शहर में हर साल शादियों में 943 टन पका हुआ खाना बर्बाद होता है। इस खाने से लगभग 2.6 करोड़ लोगों को एक समय का सामान्य भारतीय खाना खिलाया जा सकता है। दिल्ली में ऐसा कोई सर्वे हुआ नहीं, लेकिन यहां की शादियों में अन्न की बर्बादी बंगलूरु से कहीं बहुत ज्यादा ही होगी। अब यदि इस आंकड़े को देश के 29 राज्यों के 650 से अधिक जिलों के परिप्रेक्ष्य में देखें तो अंदाज लगाया जा सकता है कि अकेले विवाह समारोह में खाने की बर्बादी को रेाक कर पूरे देश के हर एक भूखे को सालभर भरपेट पौष्टिक भोजन मुहैया करवाया जा सकता है। इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल 23 करोड़ दाल, 12 करोड़ टन फल और 21 करोड़ टन सब्जियां वितरण प्रणाली में खामियों के चलते खराब हो जाती हैं। विश्व भूख सूचकांक में भारत का स्थान 67वां है और यह बेहद शर्मनाक बात है कि यहां हर चौथा व्यक्ति भूख से सोने को मजबूर है।
 जहां सामाजिक जलसों में परोसा जाने वाला आधे से ज्यादा भोजन कूड़ाघर का पेट भरता है, वहां ऐसे भी लोग हैं, जो अन्न के एक दाने के अभाव में दम तोड़ देते हैं। बंगाल के बंद हो गए चाय बागानों में आए रोज मजूदरों के भूख के कारण दम तोड़ने की बात हो या फिर महाराष्ट्र में अरबपति शिरडी मंदिर के पास ही मेलघाट में हर साल हजारों बच्चों की कुपोषण से मौत की खबर या फिर राजस्थान के बारां जिला हो या मध्य प्रदेश का शिवपुरी जिला, सहरिया आदिवासियों की बस्ती में पैदा होने वाले कुल बच्चे के अस्सी फीसदी के उचित खुराक न मिल पाने के कारण छोटे में ही मर जाने के वाकिये इस देश में हर रोज हो रहे हैं, लेकिन विज्ञापन में मुस्कुराते चेहरों, दमकती सुविधाओं के फेर में वास्तविकता से परे उन्मादित भारतवासी तक ऐसी खबरें या तो पहुंच नहीं रही हैं या उनकी संवेदनाओं को झकझोर नहीं रही हैं। देशभर के कस्बे-शहरों से आएरोज गरीबी, कर्ज व भुखमरी के कारण आत्महत्या की खबरें आती हंै, लेकिन वे किसी अखबार की छोटी सी खबर बन कर समाप्त हो जाती है।

इन दिनों बुंदेलखंड की आधी ग्रामीण आबादी सूखे से हताश हो कर पेट पालने के लिए अपने घर-गांव से पलायन कर चुकी है।भूख से मौत या पलायन, वह भी उस देश में जहां खाद्य और पोषण सुरक्षा की कई योजनाएं अरबों रूपए की सब्सिडी पर चल रही हैं, जहां मध्यान्ह भोजन योजना के तहत हर दिन 12 करोड़ बच्चों को दिन का भरपेट भोजन देने का दावा हो, जहां हर हाथ को काम व हर पेट को भोजन के नाम पर हर दिन करोड़ों का सरकारी फंड खर्च होता हो, दर्शाता है कि योजनाओं व हितग्राहियों के बीच अभी भी पर्याप्त दूरी है। वैसे भारत में हर साल पांच साल से कम उम्र के 10 लाख बच्चों के भूख या कुपोषण से मरने के आंकड़े संयुक्त राष्ट्र संगठन ने जारी किए हैं। ऐसे में नवरात्र पर गुजरात के गांधीनगर जिले के एक गांव में माता की पूजा के नाम पर 16 करोड़ रुपए दाम के साढ़े पांच लाख किलो शुद्ध घी को सड़क पर बहाने, मध्य प्रदेश में एक राजनीतिक दल के महासम्मेलन के बाद नगर निगम के सात ट्रकों में भर कर पूड़ी व सब्जी कूड़ेदान में फेंकने की घटनाएं बेहद दुभाग्यपूर्ण व शर्मनाक प्रतीत होती हैं।शादियों में फिजूलखर्ची व धन की बर्बादी के खिलाफ कानून बनाने का विचार यूपीए शासन में राष्ट्रीय सलाहकार समिति के सामने भी आया था। यूपीए के तत्कालीन खाद्य मंत्री केवी थामस ने 2011 में ऐसे समारोहों में हजारों टन पका हुआ भोजन नष्ट होने को देखते हुए कानून बनाने के लिए पहल करने तक की घोषणा कर डाली थी। इस पर लगाम कसने के लिए शादियों में मेहमानों की संख्या को नियंत्रित करने से लेकर कई तरह की बातें भी उस कानून में शामिल थीं। मगर मेहमानों की संख्या को कानूनी रूप से नियंत्रित करने के संभावित विरोध को देखते उस पर आगे बढ़ने से सरकार डर गई थी। एक बार फिर शादियों में भोजन की बर्बादी और दिखावा रोकने के लिए कानून बनाने की पहल करने संबंधी निजी बिल को कानून मंत्रालय ने राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी की मंजूरी के लिए उनके पास भेज दिया है। राष्ट्रपति की हरी झंडी मिलने के बाद लोकसभा में यह निजी विधेयक चर्चा के लिए आ सकेगा। बिहार से कांग्रेस की सांसद रंजीत रंजन ने शादियों में खाने की बर्बादी रोकने के साथ विवाह का पंजीकरण कानूनी रूप से अनिवार्य बनाने के लिए बीते साल इस निजी विधेयक को लोकसभा में पेश करने का प्रस्ताव रखा है। इस बिल के प्रारूप को वैधानिक मानकों पर परखने के बाद इसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति के पास बीते हफ्ते भेज दिया है। यदि राष्ट्रपति से इसकी मंजूरी मिल जाती है और निजी विधेयक के तौर पर यह सदन में पारित भी हो जाता है तो यह कानून का रूप नहीं ले सकेगा। सरकार जब तक ऐसा कोई बिल नहीं लाती, तब तक इस दिशा में कोई कानून नहीं बन सकता। इस दिशा में कैसे आगे बढ़ें, इसके लिए हम पाकिस्तान से काफी सीख सकते हैं। असल में जनवरी-2015 में एक जनहित याचिका पर फैसला सुनाते हुए पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने शादी-विवाह में दिखावे को रोकने के आदेश दिए थे। इसके आधार पर पहले पांजा और उसके बाद सिंध राज्य की विधान सभाओं ने बाकायदा विधेयक पारित किए। पाकिस्तान में कानून है कि शादी या अन्य समारोह में एक से ज्यादा मुख्य व्यंजन नहीं परोसे जा सकते। यह सुप्रीम कोर्ट ने बता दिया है कि एक करी, चावल, नान या रोटी, एक किस्म की सलाद और दही या रायता से ज्यादा परोसना गैरकानूनी है। विभिन्न राज्यों में पारित कानून में रात में दस बजे के बाद विवाह समारोह पर पाबंदी, घर के बाहर, पार्क या गली में बिजली के बल्बों की सजावट और हर तरह की आतिशबाजी के साथ-साथ दहेज के सामान की जाहिरा नुमाइश पर भी पाबंदी है। कानून का उल्लंघन करने पर एक महीने की सजा और पचास हजार से दो लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है। हालांकि पाकिस्तान में शुरुआत में जमींदार वर्ग के लोगों ने इसका विरोध किया, कुछ लोग अदालत भी गए, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने अपने पूर्व के आदेश में किसी भी तरह की तब्दीली से इनकार कर दिया। दूसरी तरफ , आम लोगों ने इस कानून का खुलकर स्वागत किया। वहां प्रशासन ने इस कानून को लागू करवाने का जिम्मा बारात घरों, बैंक्वेट, फार्म हाउस आदि पर डाल रखा है। और यदि कहीं कानून टूटता पाया गया तो इस संस्थान के मालियों पर सबसे पहले कार्यवाही होती है। पिछले साल पाकिस्तान की केंद्रीय सरकार के एक मंत्री भी इस कानून की चपेट में आ चुके हैं। सनद रहे, पाकिस्तान में भले ही यह कानून सख्ती से लागू है, लेकिन वहां इसकी काट भी ढूंढ ली गई है। अब रुतबेदार लोग शादी के कार्ड के साथ आलीशान रेस्त्रां के कूपन बांटते हैं, रिश्तेदार शादी में आते हैं और फिर उन्हें रेस्त्रां में भेज दिया जाता है, जहां वे आलीशान भोजन करते हैं। हालांकि, इतना होने पर भी खाने की बर्बादी काफी कुछ रुकी है। यह भी जानना जरूरी है कि सन् 1966 में असम की विधानसभा ने कुछ ऐसा ही एक विधेयक पारित किया था, जिसमें छोटे समारोह में 25 और विवाह में अधिकतम 100 लोगों को ही भोजन के लिए बुलाने का प्रावधान था। दुर्भाग्य से वह कानून कहीं लाल बस्ते में गुम हो गया। याद रहे हम जितना अन्न बर्बाद करते हैं, उतना ही जल भी बर्बाद होता है, उतनी ही जमीन की उर्वरा क्षमता भी प्रभावित होती है।

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