देश की छवि खराब करती घटनाएं
|
Add caption |
यह साजिशन है या संयोग, लेकिन
उत्तर प्रदेश में बीते कुछ दिनों से जो कुछ हो रहा है, उससे राज्य के हालात
के कारण भारत की छवि पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विषम असर पड़ रहा है।
विडंबना है कि सत्ताधारी दल से जुडे़ कुछ लोग हालात संभालने के बजाय ऐसे
बयान दे रहे हैं, जो जनाक्रोश भड़का रहे हैं, भीड़ तंत्र को बढ़ावा दे रहे
हैं और प्रशासन की राह में रोड़े अटका रहे हैं। राजधानी दिल्ली से सटा
ग्रेटर नोएडा सैकड़ों की संख्या में उच्च तकनीकी संस्थानों के लिए मशहूर है।
बेहद सुदर, शांत और सुरम्य इस नव विकसित शहर की आबादी का बड़ा हिस्सा बाहर
से आए छात्रों का है और यह यहां की अर्थव्यवस्था का भी आधार है। बाहर से आए
यानी देश और दुनिया दोनों के। यहां यदा-कदा छात्रों के बीच टकराव या झगड़े
भी होते रहते हैं, लेकिन कभी महज रंग या नस्ल को ले कर हिंसा नहीं हुई,
जैसी कि गत सोमवार को हुई।हुआ यूं कि सोमवार को 17 साल के मनीष नामक
स्थानीय युवक की मौत हो गई। उनके परिवारजनों क कहना था कि मनीष को अंतिम
बार अफ्रीकी छात्रों के साथ देखा गया था। उन लोगों का मानना है कि अफ्रीकी
छात्र ड्रग्स का ध्ंाधा करते हैं और मनीष की मौत का कारण नशे की ज्यादा
मात्रा थी।
हालांकि यह बात सच है कि दिल्ली एनसीआर में कई अफ्रीकी मूल के
लोग नशे के कारोबार या ऑनलाइन फ्राड आदि में लिप्त हैं व कई एक पकड़े भी गए
हैं। लेकिन कुछ लोगों के इस अपराध में शामिल होने और इसकी सजा उन सभी लोगों
को देने के लिए भीड़-तंत्र को उकसाने को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता।
सोमवार की शाम और मंगलवार को आसपास के गांवों के युवक लाठी-डंडे लेकर सड़क
पर थे और जो कोई भी अफ्रीकी मिलता, उसे निमर्मता से पीट रहे थे। कुछ को मॉल
के भीतर इस तरह पीटा गया कि उसके सीसीटीवी फुटेज देखे नहीं जा सकते। घंटों
यह तमाशा चलता रहा और प्रशासन नदारद था। जब यह बात दिल्ली तक पहुंची,
नाइजीरिया के दूतावास ने अपना गुस्सा दिखाया और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज
ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बात की, तब कहीं पुलिस
सड़क पर आई। कुछ मुकदमे दर्ज हुए, कुछ पकड़े गए। फ्लेग मार्च भी हुआ, लेकिन
अफ्रीकी युवकों के आदमी का मांस खाने, सभी काले लोगों के अपराधी होने जैसी
अफवाहें सोशल मीडिया से गुना-गुना वजनी होकर घूमती रहीं और इससे लोगों का
गुस्सा और बढ़ता रहा।
|
Add caption |
इस बीच मंगलवार को यह बात भी पोस्टमार्टम से सामने आ
गई कि मनीष की मौत नशे के करण नहीं हुई थी। इसके बावजूद सत्ताधारी दल से
जुड़ी एक महिला नेत्री सहित कई लोगों ने फेसबुक पर ट्वीटर पर दर्ज किया कि
सारे अफ्रीकी नशे के कारोबार में लिप्त होते हैं, अत: इन्हें देश से निकाल
देना चाहिए। जब पुलिस अपनी मुस्तैदी के किस्सों का बखान कर रही थी, तभी
बुधवार की सुबह नालेज पार्क, ग्रेटर नोएडा में ही आटो रिक्शा से अपने कॉलेज
जा रही एक केन्या की छात्रा के साथ कोई 10-12 लंपटों ने मारपीट की, उसे
सड़क पर लथेड़-लथेड़ कर अपमानित किया। बाद में लड़की को अस्पताल में भर्ती करना
पड़ा, इस बीच अफ्रीकी संघ और नाइजीरिया दूतावास के वरिष्ठ अफसर ग्रेटर
नोएडा में ही डेरा डाले हुए हैं। उधर, अफ्रीकी छात्र संगठन ने भी सोशल
मीडिया पर अपने लोगों के साथ मारपीट के कई लाइव वीडियो अपलोड किए हैं और इस
पर केन्या, यूगांडा, मोजांबिक, कांगो जैसे दशों में भारतीयों के खिलाफ
गुस्सा बढ़ रहा है। पूरी घटना से भारत की छवि अफ्रीकी संघ में बेहद धूमिल
हुई है। जान लें कि अफ्रीकी संघ में 54 दश हैं और इसका गठन 10 जुलाई, 2002
को हुआ था। व्यापार, निवेश, आतंकवाद, खाद्या सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन,
समुद्री सुरक्षा, सहित कई मुद्दों पर यह पूरा संघ भारत का करीबी सहयोगी है।
पहले सन् 2008 और उसके बाद 2015 में भारत-अफ्रीकी शिखर सम्मेलन दिल्ली में
हो चुका है। भारत सरकार द्वारा किए गए कई समझौतों में से एक अफ्रीकी
छात्रों को पचास हजार छात्रवृत्तियां देना भी शामिल हैं और इसी अनुबंध के
तहत अफ्रीकी छात्र हमारे यहां पढ़ने आते हैं। असल में उनके प्रवेश के चलते
कई भारतीय निजी संस्थाओं को आर्थिक संबल भी मिलता है। दक्षिण अफ्रीका में
टाटा, महेंद्रा, रैनबेक्सी, सिपला साहित कई भारतीय कंपनियों के कारखाने
हैं। ब्रिटेन और चीन के बाद जंजानिया हमारा सबसे बड़ा निवेशक हैं। केन्या
में 1966 में बिड़ला ने अपना व्यापार फैलाया। आज वहां रिलायंस, एस्सार,
भारती एयरटेल सहित कई कंपनियां काम कर रही हैं। पूरे अफ्रीका में हमारा
हजारों करोड़ का निवेश हैं और कई लाख भारतीय वहां बसे हैं। यह आंकड़े बानगी
हैं कि अफ्रीका से यदि हमारे संबंधों में खटास आती हैं तो इसका असर कितना
विपरीत होगा। सनद रहे संयुक्त राष्ट्र में भी अफ्रीकी देश हर समय भारत के
साथ खड़े रहते हैं। उत्तर प्रदेश में रोमियो-विरोधी अभियान के नाम पर युवाओं
को उत्पीड़ित करने और अवैध बूचड़खाने बंद करने की खबरें अंतरराष्ट्रीय
मीडिया में उत्तर प्रदेश सरकार की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगा रही हैं।
इसी बीच नोएडा में एक अंतरराष्ट्रीय मोबाइल कंपनी के उत्पादन यूनिट में
राष्ट्रवाद के नाम पर जो हंगामा हुआ, उससे समूचे प्रदेश में कार्यरत विदेशी
कंपनियां सहम गई हैं। हुआ यूं कि ओप्पो कंपनी के सेक्टर-63 स्थित कारखाने
के कैंटीन में चीनी अफ्रसर निरीक्षण करने आया। जान लें कि कंपनी के
कर्मचारियों ने गत 26 जनवरी को यहां बड़ा आयोजन किया था और आज भी इसके
कार्यालय की छत पर तिरंगा लहराता है। चीनी अफसर ने देखा कि कैंटीन की
दीवारों पर गंदे पड़ गए तिरंगे के पोस्टर लगे हैं, उसने उन्हें निकाल दिया
और कचरा पेटी में डाल दिया। इस बात को कंपनी में ही यूनियन बनाने का प्रयास
कर रहे, एक विचारधारा विशेष के लोगों ने राष्ट्रध्वज के अपमान का मसला बना
कर हंगामा शुरू कर दिया। 48 घंटे ेतक कंपनी के दरवाजे में गालियां बकने,
वालों का हंगामा चलता रहा। कुछ लोग उस होटल में मारापीट करने पहुंच गए,
जहां उक्त चीनी अफसर ठहरा था। इस मसले पर भी चीनी दूतावास ने भारत के विदेश
मंत्रालय को अपने लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करने की ताकीद दी। यहां पर
चीनी अफसर का समर्थन तो नहीं किया जा सकता, लेकिन यह भी तय है कि उसका
कृत्य भारतीय ध्वज को जानबूझ कर अपमानित करने का नहीं था। ऐसे तो प्लास्टिक
के झंडे हमारी सड़कों पर बेपरवाही से पड़े दिख जाते हैं। यह स्वीकार करना
होगा कि उत्तर प्रदेश के नए मुख्यमंत्री के कई क्रांतिकारी कदमों, उनकी सतत
निगरानी और काम करने की क्षमता के बावजूद उनको लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
आशंकाएं हैं। ऐसे में कतिपय लंपट किस्म के लोगों को राष्ट्रवाद के नाम पर
हंगामा करना आशंकाओं को बलवति बनाता है। हालांकि इसमें स्थानीय प्रशासन और
पुलिस की गैरजिम्मेदाराना हरकत और गैरसंवेदनशील नजरिया ज्यादा जिम्मेदार
है, लेकिन इसका खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ सकता है। महज झंडे उठाने,
नारे लगाने या उन्माद फैलाने का नाम नहीं है राष्ट्रवाद, उसके लिए अपने
अधिकार से ज्यादा कर्तव्यों के प्रति जिम्मेदार होना, कानून पर भरोसा करना
ज्यादा जरूरी है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें