आज के "हिंदुस्तान" के सम्पादकीय पेज पर , ऐसी कहानी जिसका पालन सभी राज्यों, विभागों और व्यक्तियों को करना चाहिए
एक शहर जिसने कचरे के खिलाफ मुहिम छेड़ दी
‘कन्नन’ का अर्थ है श्रीकृष्ण और ‘उर’ यानी स्थान। केरल के दक्षिण-पूर्व में तटीय शहर कन्नूर देश का ऐसा पहला शहर बन गया है, जहां से प्लास्टिक कचरा पूरी तरह विदा हो गया है। केरल के पिछले स्थापना दिवस एक नवंबर को जिले ने ‘सुंदर गांव-सुंदर भूमि’ का संकल्प लिया और पांच महीने में यह मूर्त रूप में आ भी गया। यह तो बानगी है, राज्य भर में ‘हरित केरलम्’ परियोजना के तहत कचरा कम करने के कई ऐसे उपाय प्रारंभ किए गए हैं, जो अनुकरणीय हैं।
समृद्ध अतीत और सर्वधर्म समभाव के प्रतीक कन्नूर ने जब तय किया कि जिले को देश का पहला प्लास्टिक-मुक्त जिला बनाना है, तो इसके लिए प्रशासन से ज्यादा समाज के अन्य वर्गों को साथ लिया गया। बाजार, रेस्तरां, स्कूल, एनजीओ, राजनीतिक दल एकजुट हुए। पूरे जिले को छोटे-छोटे क्लस्टर में बांटा गया, फिर समाज के हर वर्ग, खासकर बच्चों ने इंच-इंच भूमि से प्लास्टिक का एक-एक कतरा बीना, उसे ठीक से पैक किया गया और नगर निकाय ने उसे ठिकाने लगाने की जिम्मेदारी निभाई।
साथ ही जिले में हर तरह की पॉलीथिन थैली, डिस्पोजेबल बर्तन, व अन्य प्लास्टिक पैकिंग पर पांबदी लगा दी गई। कन्नूर के नेशनल इंस्टीट्यूट और फैशन टेक्नोलॉजी के छात्रों ने सहकारी समितियों के साथ मिलकर बहुत कम दाम पर आकर्षक व टिकाऊ थैले बाजार में डाल दिए। सभी व्यापारिक संगठनों, मॉल आदि ने इन थैलों को रखना शुरू किया और आज पूरे जिले में कोई भी पन्नी नहीं मांगता है। रेस्तरां व होटलों ने खाना पैक कराने वालों को घर से टिफिन लाने पर रियायत देनी शुरू कर दी है। घर पर सप्लाई भी स्टील के बर्तनों में की जा रही है, जो ग्राहक के घर जाकर खाली कर लिए जाते हैं।
नेशनल एनवायर्नमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट, नागपुर के मुताबिक, देश में हर साल करीब 44 लाख टन खतरनाक कचरा निकल रहा है। हमारे देश में औसतन प्रति व्यक्ति 20 से 60 ग्राम कचरा हर दिन निकालता है। इसमें से आधे से अधिक कागज, लकड़ी या पुट्ठा होता है, जबकि 22 फीसदी कूड़ा घरेलू कचरा होता है। कचरे का निपटान पूरे देश के लिए समस्या बनता जा रहा है। दिल्ली के नगर निगम कई-कई सौ किलोमीटर दूर तक दूसरे राज्यों में कचरे का डंपिंग ग्राउंड तलाश रहे हैं। इतने कचरे को एकत्र करना, फिर उसे दूर तक ढोकर ले जाना महंगा और जटिल काम है। सरकार भी मानती है कि देश के कुल कूड़े का महज पांच प्रतिशत का ईमानदारी से निपटान हो पाता है।
अनुमान है कि पूरे देश में हर रोज चार करोड़ दूध की थैलियां और दो करोड़ पानी की बोतलें कूड़े में फेंकी जाती हैं। मेकअप के सामान, घर में भी डिस्पोजेबल बरतनों के प्रचलन, बाजार से सामान लाते समय पॉलीथिन की थैलियां लेना, हर छोटी-बड़ी चीज की पैकिंग, ऐसे न जाने कितने तरीके हैं, जिनसे हम कूड़ा-कबाड़ा बढ़ा रहे हैं। घर में सफाई और खुशबू के नाम पर बढ़ रहे साबुन व अन्य रसायनों के चलन ने भी अलग किस्म के कचरे को बढ़ाया है। केरल ने इस विकराल समस्या को समझा और पूरे राज्य में कचरा कम करने के लिए कुछ कदम उठाए। सबसे ज्यादा सफल रहा है डिस्पोजेबल बॉल पेन के स्थान पर इंक पेन के इस्तेमाल का अभियान। सरकार ने पाया कि हर दिन लाखों की संख्या में रिफिल और एक समय इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक पेन राज्य के कचरे में इजाफा कर रहे हैं।
सो, आदेश निकालकर सभी सरकारी दफ्तरों में बॉल प्वॉइंट वाले पेनों पर पांबदी लगा दी गई। अब सरकारी खरीद में केवल इंक पेन खरीदे व इस्तेमाल किए जा रहे हैं। कई जिलों में एक दिन में पांच लाख तक बेकार प्लास्टिक पेन एकत्र हुए। इस बीच इंक पेन और स्याही पर भी छूट दी जा रही है। अनुमान है कि योजना सफल हुई , तो हर रोज 50 लाख पेन का कचरा पर्यावरण में मिलने से रह जाएगा। सरकार ने कार्यालयों में पैक्ड पानी की बोतलों के स्थान पर स्टील के बर्तनों में पानी, सरकारी आयोजनों में फ्लेक्स बैनर और गुलदस्ते के फूलों को पन्नी में लपेटने पर रोक लगा दी है। हर कार्यालय में कचरे को अलग-अलग करना, कंपोस्ट बनाना, कागज के कचरे को रिसाइकिल के लिए देने की योजनाएं जमीनी स्
तर पर बेहद कारगर रही हैं।
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