विकास से घुटता दिल्ली का दम
पंकज चतुर्वेदीयदि पश्चिमी विक्षोभ के असर के चलते हुई दो-तीन दिन की बरसात के कारण तापमान में आई कमी को अलग रख दे ंतो गत 50 दिनों से दिल्ली जमकर तप रही है। अकेले आसमान से आग नहीं बरस रही, असल में पूरा षहर एक तो राजस्थान की तरफ से आ रही रेतीली आंधी के चलते बारीक कणों से हलकान है तो साथ ही विकास की गतिविधियां परिवेश में इतना जहर घोल दे रही है जितना कि दो साल में कुल मिला कर नहीं होता है। बीते 17 साल में सबसे बुरे हालात है हवा के। तेज तापमान, वाहनों के धुंए और निर्माण की धूल के चलते वायुमंडल में ओजोन की मात्रा बढ़ना सबसे ज्यादा जानलेवा हो रहा है। इस विश्व पर्यावरण दिवस पर सबसे बड़ी चेतावनी सामने आई कि दिल्ली महानगर में वाहनों की संख्या एक करोड़ हो चुकी है। इसमें हर दिन बाहर से आने वाले पांच लाख वाहन, अवैध तरीके से या एक ही लाईसेंस पर चल रहे कई-कई व्यावसायिक वाहन, स्कूटर को रिक्शे में जोड़ कर बने अवैध वाहन आदि शामिल नहीं है। कुल मिला कर वाहनों का धुआं, फिर निर्माण कार्या के कारण हो रहे जाम के कारण उपजने वाला धुआं और उपर से धूल-मिट्टी। राजधानी की विडंबना है कि तपती धूप हो तो भी प्रदूषण बढ़ता है, बरसात हो तो जाम होता है व उससे भी हवा जहरीली होती है। ठंड हो तो भी धुंध के साथ धुंआ के साथ मिल कर हवा जहरीली ।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े बताते हैं कि मई महीने के 77 प्रतिशत दिनों के दौरान दिल्ली की हवा में ओजोन की मात्रा, मानक स्तर 100 माईक्रो ग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से अधिक रही। अप्रैल महीने के 52 फीसदी और फरवरी के 12 फीसद दिनों में यह मानक को पार की। जब वातावरण की गर्मी 40 डिगरी के पार हो जाती है। तो वाहनों, कारखानों आदि से निकले धुएं और धूल के कणो में मौजूद हाईड्रो कार्बन, नाईट्रोजन डाय आक्साईड जैसी प्रदूषक गैसें आपस में रासायनिक क्रिया करती है और उससे ओजोन गैस उपजती है। ओजोन की अधिक मात्रा सांस और दिल की सेहत बिगाड़ने का बड़ा कारक है।
कुछ ही दिनों पहले ही मे ंविश्व स्वास्थ संगठन ने दिल्ली को दुनिया का सबसे ज्यादा दूशित वायु वाले षहर के तौर पर चिन्हित किया है। इसके बावजूद यहां के निर्माण कार्य ना तो जन स्वास्थय की परवाह कर रहे हंे ना ही पर्यावरण कानूनों की। गत दो महीने से दिल्ली के लगभग बीच से निकलने वाले राश्ट्रीय राजमार्ग 24 के चौड़ीकरण का अनियोजित और बेतरतीब चौड़ीकरण दिल्ली के लिए जानलेवा बन रहा है। सनद रहे यह सड़क दिल्ली एनसीआर की एकतिहाई आबादी के दैनिक आवागमन के अलावा कई राज्यों को जोड़ने वाला ऐसा मार्ग है जो महानगर के लगभग बीच से गुजरता है। एक तो इसके कारण पहले से बनी सड़कें संकरी हो गई हैं, फिर बगैर वैकल्पिक व्यवस्था किए इस पर वाहन का बोझ डाल दिया गया। कालेखां से गाजीपुर तक का बामुश्किल नौ किलोमीटर का रास्ता पार करने में एक वाहन को एक घंटा लगा रहा है। उसके साथ ही खुदाई, मिक्सिंग प्लांट से उड़ रही धूल अलग है। ठीक इसी तरह के लगभग 35 निर्माण कार्य राजधानी में अलग-अलग स्थानों पर चल रहेें हैं जहां हर दिन कोई 65 करोड़ रूपए का ईंधन जल रहा है लेागों के घंटे बरबाद हो रहे हैं। इसके चलते दिल्ली की हवा में कितना जहर घुल गया है, इसका अंदाजा खौफ पैदा करने वालो आंकड़ों कों बांचने से ज्यादा डाक्टरों के एक ंसंगठन के उस बयान से लगाया जा सकता है जिसमें बताया गया है कि देश की राजधानी में 12 साल से कम उम्र के 15 लाख बच्चे ऐसे है, जो अपने खेलने-दौड़ने की उम्र में पैल चलने पर ही हांफ रहे हैं। इनमें से कई सौ का डाक्टर चेता चुके हैं कि यदि जिंदगी चाहते हो तो दिल्ली से दूर चले जाएं। दरअसल इस खतरे के मुख्य कारण 2.5 माइक्रो मीटर व्यास वाला धुएं में मौजूद एक पार्टिकल और वाहनों से निकलने वाली गैस नाइट्रोजन ऑक्साइड है, जिसके कारण वायु प्रदूषण से हुई मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है। इस खतरे का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वायु प्रदूषण करीब 25 फीसदी फेंफड़े के कैंसर की वजह है। इस खतरे पर काबू पा लेने से हर साल करीब 10 लाख लोगों की जिंदगियां बचाई जा सकेंगी ।
यह स्पश्ट हो चुका है कि दिल्ली में वायु प्रदूशण का बड़ा कारण यहां बढ़ रहे वाहन, ट्राफिक जाम और राजधानी से सटे जिलों में पर्यावरण के प्रति बरती जा रही कोताही है। हर दिन बाहर से आने वाले कोई अस्सी हजार ट्रक या बसें यहां के हालात को और गंभीर बना रहे हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि समस्या बेहद गंभीर है । सीआरआरआई की एक रपट के मुताबिक राजधानी के पीरागढी चौक से हर रोज 315554 वाहन गुजरते हैं और यहां जाम में 8260 किग्रा ईंधन की बर्बादी होती है। इससे निकलने वाला कार्बन 24119किग्रा होता है। कनाट प्लेस के कस्तूरबागांधी मार्ग पर प्रत्येक दिन 81042 मोटर वाहन गुजरते हैं व रेंगते हुए चलने के कारण 2226 किग्रा इंधन जाया करते हैं।। इससे निकला 6442 किग्रा कार्बन वातावरण को काला करता है। और यह हाल दिल्ली के चप्पे-चप्पे का है। यानि यहां सडकों पर हर रोज कई चालीस हजार लीटर इंधन महज जाम में फंस कर बर्बाद होता है। कहने को तो पार्टिकुलेट मैटर या पीएम के मानक तय हैं कि पीएम 2.5 की मात्रा हवा में 50पीपीएम और पीएम-10 की मात्रा 100 पीपीएम से ज्यादा नहीं होना चाहिए। लेकिन दिल्ली का कोई भी इलाका ऐसा नहीं है जहां यह मानक से कम से कम चार गुणा ज्यादा ना हो।
पीएम ज्यादा होने का अर्थ है कि आंखों मंे जलन, फैंफडे खराब होना, अस्थमा, कैंसर व दिल के रोग। जाहिर है कि यदि दिल्ली की संास थमने से बचाना है तो यहां ना केवल सड़कों पर वाहन कम करने होंगे, इसे आसपास के कम से कम सौ किलोमीटर के सभी षहर कस्बों में भी वही मानक लागू करने होंने जो दिल्ली षहर के लिए हों। अब करीबी षहरों की बात कौन करे जब दिल्ली में ही जगह-जगह चल रही ग्रामीण सेवा के नाम पर ओवर लोडेड वाहन, मेट्रो स्टेशनों तक लोगों को ढो ले जाने वाले दस-दस सवारी लादे तिपहिएं ,पुराने स्कूटरों को जुगाड के जरिये रिक्शे के तौर पर दौड़ाए जा रहे पूरी तरह गैरकानूनी वाहन हवा को जहरीला करने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। सनद रहे कि वाहन सीएजी से चले या फिर डीजल या पेट्रोल से, यदि उसमें क्षमता से ज्यादा वजन होगा तो उससे निकलने वाला धुआं जानलेवाा ही होगा। यदि दिल्ली को एक अरबन स्लम बनने से बचाना है तो इसमें कथित लोकप्रिय फैसलों से बचना होगा, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है यहां बढ़ रही आबादी को कम करना। सनद रहे कि इतनी बड़ी आबादी के लिए चाहे मेट्रो चलाना हो या पानी की व्यवस्था करना, हर काम में लग रही उर्जा का उत्पादन दिल्ली की हवा को विषैला बनाने की ओर एक कदम होता है। यही नहीं आज भी दिल्ली में जितने विकास कार्यों कारण जाम , ध्ूाल उड़ रही है वह यहां की सेहत ही खबरा कर रही है, भले ही इसे भविश्य के लिए कहा जा रहा हो। लेकिन उस अंजान भविश्य के लिए वर्तमान बड़ी भारी कीमत चुका रहा है।
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