एनजीओ के ‘धंघे’ पर अंकुश
पंकज चतुर्वेदीजरा पिछले साल नवंबर का महीना याद रखं, जब सरकार ने वित्तीय ईमानदारी और पारदर्श्शिता के लिए एक कड़ा और अप्रत्याशित कदम उठाते हुए पांच सौ और हजार के नोट पर पाबंदी लगा दी थी। नोटबंदी के साथ-साथ देश को कैशलेस बनाने की मुहिम शुरू की गई थीं , वहीं बेनामी संपत्ति को जब्त कर देश में बढ़ रहे अवैध रीयल स्टेट के कारोबार पर लगाम लगाई थी। उसी दौर में एक ऐसा कदम भी उठाया गया था जिसकी कम चर्चा हुई लेकिन उसकी मार गहरी हुई, वह था 20,000 एनजीओ यानि गैर सरकारी संगठनों का लाइसेंस रद्द कर देना। हालांकि देश के सामाजिक विकास में एनजीओ की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है, लेकिन यह भी सच है कि बहुत से एनजीओ के लिए उनकी संस्था और उसे मिलने वाला दान, समाज से ज्यादा स्वयं के फायदे का जरिया रहा है। कई एक एनजीओ गोपनीय तरीके से देश या सरकार विरोधी आंदोलनों को मदद देते रहे हैं। कई एनजीओ विदेश से मिले धन के दम पर धर्मांतरण जैसी गतिविधियों में भी लिप्त होते हैं। हाल ही में सरकार ने उसी दिशा में एक और कदम उठाते हुए अपने वित्तीय लेन-देन व व्यय का ब्यौरा ना देने वाले 1300 से अधिक एनजीओ को चेतावनी जारी की है।
भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने ऐसे 1927 गैरसरकारी स्वयंसेवी संगठनों (एनजीओ) को नोटिस जारी किए है जो अपने विदेशों से मिले दान के खर्च का विवरण दे पाने में विफल रहे हैं। विदेशी सहायता से संबंधित बैंक खातों का ब्यौरा नहीं दे रहे एनजीओ को मंत्रालय की ओर से नोटिस जारी कर कानूनी कारवाई करने की चेतावनी दी गई है । नियमानुसार किसी भी एनजीओ को एक ही बैंक खाते में विदेशी सहायता प्राप्त करनी होती है । इस खाते को प्रमाणित कराना भी अनिवार्य होता है । ऐसे सभी संगठनों का विदेशी सहायता नियमन कानून (एफसीआरए) के तहत भी पंजीकरण कराना जरूरी है । मंत्रालय ने 7 जून को 2025 एनजीओ को 15 दिन के भीतर अपने खाते प्रमाणित कराने को कहा था। इसका पालन करने में नाकाम रहे 1927 एनजीओ को फिर से चेतावनी जारी की गई है। मंत्रालय ने विदेशी सहायता प्राप्त कर रहे संगठनों से अपनी ऑडिट रिपोर्ट भी जमा कराने को कहा है । ऐसे सभी संगठनों को प्रत्येक वित्तीय वर्ष में एक अप्रैल से नौ महीने के भीतर आय व्यय के ब्यौरे के साथ ऑडिट रिपोर्ट देना अनिवार्य होता है.
याद ही होगा कि इस्लामिक प्रवचनकर्ता जाकिर नायक की स्वयं सेवी संस्था इस्लामिक रिसर्च फाउंडेशन(आईआरएफ) की जांच जब राश्ट्रीय जांच एजेंसी ने षुरू की थी तो उसके 78 बैंक खातों में संदिग्ध गतिविधियों पाई गई थीं। पता चला था कि समाज सेवा के लिए एकत्र किए गए पैसे का कोई सौ करोड़ रूप्ए जमीन-जायदाद के धंधे में लगा दिया गया था। र्प्यावरण केमुद्दों पर काम करने वाले अंतरराश्ट्रीय संगठन ग्रीन पीस इंडिया के विदेशी मदद लेने पर रोक का मसला भी चर्चा में रहा है। सरकार का आरोप है कि यह संगठन विेदश से पैसे ले कर ऐसे आंदोलनों में षामिल है जोकि देश की प्रगति में बाधक हैं।गुजरात दंगा पीड़ितों के लिए संघर्श कर रहीं तीस्ता सितलवाड और जावेद आंनद के एनजीओ पर पाबंदी में सियासती गंध भी चर्चा मं रहा है।
सनद रहे इस समय देश में लगभग 33,000 एनजीओ चल रहे थे जिसमें से सरकार ने 20,000 एनजीओ के लाइसेंस रद्द कर दिए है। इससे एनजीओ को एक कारोबार के रूप में चलाने वाले लोगों को बड़ा झटका लगा है। गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार फेरा नियमों का सख्ती से पालन सुनिश्चित करते हुए पिछले 3 साल में 10 हजार एनजीओ का पंजीकरण रद्द कर चुकी है। ये सभी संगठन फेरा के तहत अपने सालाना आय-व्यय के ब्योरे को सरकार को मुहैया कराने में नाकाम रहे जबकि फेरा के उल्लंघन के दोषी पाए गए 1,300 से अधिक एनजीओ के पंजीकरण का नवीनीकरण आवेदन खारिज कर दिया गया है। इसके अलावा करीब 6,000 एनजीओ को मंत्रालय ने कोर बैंकिंग सुविधा वाले बैंक खाते खुलवाने का निर्देश देते हुए इन्हें बैंक खातों का विवरण देने का निर्देश दिया है। मंत्रालय ने यह कार्रवाई उस रिपोर्ट के आधार पर की है, जिसमें कहा गया है कि अधिकांश संगठनों ने सहकारी या ऐसे सरकारी बैंकों में खाते खुलवाए हैं जिनमें इंटरनेट आधारित कोर बैंकिंग सुविधा नहीं है। रिपोर्ट यह भी बताती है कि वर्ष 2014 से लेकर 2016 तक एनजीओ ने विदेशों से 50944 करोड़ रुपये लिए। लगातार तीन वर्ष तक वित्तीय जानकारी ना देने के कारण वर्ष 2011 में 21 हजार और 2014 में 10343 एनजीओ को नोटिस जारी किए गए। सालभर की वित्तीय जानकारी और नोटिस का जवाब ना देने पर वर्ष 2012 में 4138 एनजीओ और 2015 में 10020 एनजीओ के लाइसेंस रद्द कर दिए गए।
ऐसा नहीं है कि सरकार केवल एनजीओ पर शिकंजा ही कस रही है, हाल ही में उनके लिए एक राहतभरी खबर भी है। विदेशी धन लेने वाली एनजीओ के लिए राहतभरी खबर है. विदेशी अभिदाय विनियमन अधिनियमन (एफसीआरए) के अतंर्गत आने वाले एनजीओ अब अपना पंजीकरण करा सकेंगे। इनमें वे संस्थाएं भी षािमल हैं जिनके लाईसेंस रद्द किए गए थे। उन्हें 14 जून तक का समय दिया गया था। वे ही एनजीओ संचालक इस योजना में हिस्सा बन पाए थे जिन्होंने वित्तीय वर्ष 2010-11 से लेकर 2014-15 तक का इनकम टैक्स रिटर्न बेवसाइट पर अपलोड किया था।
यह जान लें कि देश में हजारों एनजीओ बेहद सकारात्मक और परिणामकारी कार्य कर रहे हैं। ये सामाजिक उत्थान के साथ-साथ लोगों को रोजगार देने में भी अहम भूमिका निभा रहे हैं। कुछ संस्थाओं के काले कारनामों के चलते सभी संस्थआों को संदिग्ध नहीं माना जा सकता।
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