जहां पर आफत बन गई है प्याज की बंपर फसल
बुंदेलखंड के छतरपुर जिले का एक छोटा सा कस्बा है हरपालपुर, जिसका हर गली-मुहल्ला इन दिनों प्याज के सड़ने की बदबू से तंग है। लगभग 2,700 क्विंटल प्याज लेकर एक मालगाड़ी यहां के रेलवे स्टेशन पर आई और माल को खुले में उतार दिया गया। अगली ही रात जमकर पानी बरसा और दो दिन बाद तगड़ी धूप निकल आई। जिला प्रशासन के पास इस माल को गंतव्य तक पहुंचाने के लिए न तो समय था और न ही ट्रक व मजदूर। अफसरों ने कुछ ट्रकों को जबर्दस्ती जब्त भी किया, पर तब तक प्रकृति ने अपना खेल दिखा दिया। मध्य प्रदेश में ऐसे हालात लगभग सभी कृषि मंडियों, रेलवे स्टेशनों और गोदामों के हैं। सरकार आठ रुपये किलो प्याज खरीद रही है और सरकारी राशन की दुकानों पर तीन रुपये किलो बिकवा रही है। वहां भी खरीदार नहीं हैं। बरसात की झड़ी शुरू हो गई है और राज्य की बड़ी मंडियों में पांच सौ तक ट्रैक्टर-ट्रॉली की लाइनें लगी हैं। किसान का नंबर दो-तीन दिन में आता है और तब तक बरसात हो गइ, तो उसका माल सड़ जाता है। मंडी की भी तो सीमा है ।मध्य प्रदेश में किसानों ने खेत में प्याज के रूप में सोना बोया था। लेकिन जब बंपर फसल आई, तो सपने कांच की किरचों की तरह बिखर गए। एक महीने पहले फसल के वाजिब दाम की मांग को लेकर हुआ किसान आंदोलन हिंसक हो गया था और सरकार ने प्याज को आठ रुपये किलो खरीदने की घोषणा कर दी थी। 30 जून तक प्रदेश की विभिन्न मंडियों में लगभग सात लाख टन प्याज की खरीद हो चुकी है। राज्य में हर साल तकरीबन 32 लाख टन प्याज होता है और उनके भंडारण की क्षमता दस फीसदी से भी कम है।
यहां पैदा होने वाले प्याज की क्वालिटी ऐसी नहीं कि निर्यात हो सके। इसलिए वह केवल स्थानीय बाजार की मांग ही पूरी करता है। प्याज पर आधारित कोई खाद्य प्रसंस्करण कारखाने भी यहां नहीं हैं। पिछले साल भी राज्य सरकार ने किसान का प्याज छह रुपये किलो में खरीदा था और इसके चलते प्रदेश सरकार को कोई सौ करोड़ रुपये का घाटा हुआ था। इस बार एक तो किसान आंदोलन का दवाब है, दूसरा प्रदेश की विधानसभा के चुनाव को एक ही साल बचा है, ऐसे मौके पर कोई भी सरकार अलोकप्रिय होने का कोई खतरा नहीं लेना चाहेगी, सो जमकर प्याज की खरीद की जा रही है।
इसीलिए सरकार घाटा उठाकर भी प्याज खरीद रही है, लेकिन इसके बावजूद किसान संतुष्ट नहीं हैं। कहा गया था कि खरीदे गए प्याज के दाम का आधा तत्काल नगद मिलेगा और शेष धन बैंक के माध्यम से किसान के खाते में जाएगा। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा और किसान मजबूरी में मंडी की जगह स्थानीय व्यापारी को ही चार से पांच रुपये किलो अपने माल बेच रहा है।
इसके बावजूद राज्य सरकार के आंकड़े कह रहे हैं कि 11 जिलों- सीहोर, राजगढ़, इंदौर, झाबुआ, उज्जैन, देवास, रतलाम, शाजापुर, आगर-मालवा, शिवपुरी और रीवा में प्याज बुवाई के रकबे से कई गुणा ज्यादा प्याज मंडी में खरीद लिया गया। असल में, हो यह रहा है कि थोक व्यापारी खुले बाजार से या फिर पिछले साल वेयर हाउस में रखे प्याज को तीन रुपये किलो खरीद रहा है, एक रुपये किलो परिवहन और एक रुपये किलो रिश्वत लगाकर आठ रुपये में माल बेच रहा है और इस तरह उसे बगैर खेती किए ही तीन रुपये प्रति किलो का मुनाफा हो रहा है। अब इस मामले की जांच भी हो रही है, लेकिन किसान तो खुद को ठगा-सा ही महसूस कर रहा है।
यह मामला सिर्फ मध्य प्रदेश का नहीं है और न ही केवल प्याज का है। देश के अलग-अलग हिस्सों में हर साल टमाटर, आलू, मिर्ची या अंगूर और भी अन्य फसलों के साथ ऐसा होता रहता है। भरमार से बंटाधार की इस समस्या के निराकरण के लिए भंडारण की व्यवस्था को बढ़ाना तो जरूरी ही है, साथ ही जिला स्तर पर प्रसंस्करण कारखाने लगाने, सरकारी खरीदी केंद्र ग्राम स्तर पर स्थापित करने, किसान की फसल को निर्यात के लायक उन्नत बनाने के प्रयास अनिवार्य हैं। किसान को केवल उसके उत्पाद का वाजिब दाम ही नहीं चाहिए, वह यह भी चाहता है कि उसके उत्पादों का सड़ाकर या फेंककर निरादर न हो और उससे लोगों का पेट भरे।
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