केरल से सीखें कचरा कम करना
पंकज चतुर्वेदी
‘कन्नन’ का अर्थ है श्रीकृष्ण और ‘उर’ यानि स्थान। केरल के दक्षिणी-पूर्व में स्थित तटीय श हर कन्नूर, देश का ऐसा पहला श हर बन गया है जहां ना ता कोई प्लास्टिक कचरा बचा है और ना ही वहां किसी तरह के प्लास्टिक सामग्री को कचरे के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। केरल राज्य की स्थापना के दिवस एक नवंबर 2016 को जिले ने ‘ नलनाडु-नल्ला मन्नू’ अर्थात ‘सुंदर गांव-सुंदर भूमि’ का संकल्प लिया और पांच महीने में यह मूर्तरूप में आ भी गया। यह तो बानगी है, राज्यभर में ‘हरित केरलम’ परियेाजना के तहत कचरा कम करने के कई ऐसे उपाय प्रारंभ किए गए हैं जोकि देश के लिए अनुकरणीय मिसाल हैं।समृद्ध अतीत और सर्वधर्म समभाव के प्रतीक कन्नूर ने जब तय किया कि जिले को देश का पहला प्लास्टिक-मुक्त जिला बनाना है तो इसके लिए जिला प्रशासन से ज्यादा समाज के अन्य वर्ग को साथ लिया गया। बाजार, रेस्तरां, स्कूल, एनजीओ, राजनीतिक दल आदि एक जुट हुए। पूरे जिले को छोटे-छोटे क्लस्टर में बांटा गया, फिर समाज के हर वर्ग, खासकर बच्चों ने इंच-इंच भ्ूामि से प्लास्टिक का एक-एक कतरा बीना गया उसे ठीक से पैक किया गया और नगर निकायों ने उसे ठिकाने लगाने की जिम्मेदारी निभाई। इसके साथ ही जिले में हर तरह की पॉलीथिन थैली, डिस्पोजेबल बर्तन, व अन्य प्लासिटक पैकिंग पर पूर्ण पांबदी लगा दी गई। कन्नूर के नेशनल इंस्टीट्यूट और फेशन टेक्नलाजी के छात्रों ने इवीनाबु बुनकर सहकारी समिति और कल्लेतेरे ओद्योगिक बुनकर सहकारी समिति के साथ मिल कर बहुत कम दाम पर बेहद आकर्शक व टिकाऊ थैले बाजार में डाल दिए। सभी व्यापारिक संगठनों, मॉल आदि ने इन थैलों को रखना षुरू किया और आज पूरे जिले में कोई भी पन्नी नहीं मांगता है। खाने-पनीने वाले होटलों ने खाना पैक करवा कर ले जाने वालों को घर से टिफिन लाने पर छूट देना षुरू कर दिया और घर पर सप्लाई भी अब स्टील के बर्तनों में की जा रही है जो कि ग्राहक के घर जा कर खाली कर लिए जाते हैं।
नेशनल इनवायरनमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट, नागपुर के मुताबिक देश में हर साल 44 लाख टन खतरनाक कचरा निकल रहा है। हमारे देश में औसतन प्रति व्यक्ति 20 ग्राम से 60 ग्राम कचरा हर दिन निकलात है। इसमें से आधे से अधिक कागज, लकड़ी या पुट्ठा होता है, जबकि 22 फीसदी कूड़ा-कबाड़ा, घरेलू गंदगी होती है। कचरे का निबटान पूरे देश के लिए समस्या बनता जा रहा है। दिल्ली की नगर निगम कई-कई सौ किलोमीटर दूर तक दूसरे राज्यों में कचरे का डंपिंग ग्राउंड तलाश रही है। जरा सोचें कि इतने कचरे को एकत्र करना, फिर उसे दूर तक ढो कर ले जाना कितना महंगा व जटिल काम है। यह सरकार भी मानती है कि देश के कुल कूड़े का महज पांच प्रतिशत का ईमानदारी से निबटान हो पाता है।
असल में कचरे को बढ़ाने का काम समाज ने ही किया है। अभी कुछ साल पहले तक स्याही वाला पेन होता था, उसके बाद ऐसे बाल-पेन आए, जिनकी केवल रिफील बदलती थी। आज बाजार मे ंऐसे पेनों को बोलबाला है जो खतम होने पर फेंक दिए जाते हैं। देश की बढ़ती साक्षरता दर के साथ ऐसे पेनों का इस्तेमाल और उसका कचरा बढ़ता गया। जरा सोचें कि तीन दशक पहले एक व्यक्ति साल भर में बामुश्किल एक पेन खरीदता था और आज औसतन हर साल एक दर्जन पेनों की प्लास्टिक प्रति व्यक्ति बढ़ रही है। इसी तरह षेविंग-किट में पहले स्टील या उससे पहले पीतल का रेजर होता था, जिसमें केवल ब्लेड बदले जाते थे और आज हर हफ्ते कचरा बढ़ाने वाले ‘यूज एंड थ्रो’ वाले रेजर ही बाजार में मिलते हैं। हमरा बाथ्रूम और किचन तो कूड़े का बड़ा उत्पादनकर्ता बन गया है।
अभी कुछ साल पहले तक दूध भी कांच की बोतलों में आता था या फिर लोग अपने बर्तन ले कर डेयरी जाते थे। आज दूध तो ठीक ही है पीने का पानी भी कचरा बढ़ाने वाली बोतलों में मिल रहा है। अनुमान है कि पूरे देश में हर रोज चार करोड़ दूध की थैलियां और दो करोड़ पानी की बोतलें कूड़े में फैंकी जाती हैं। मेकअप का सामान, घर में होने वाली पार्टी में डिस्पोजेबल बरतनों का प्रचलन, बाजार से सामन लाते समय पोलीथीन की थैलियां लेना, हर छोटी-बड़ी चीज की पैकिंग ;ऐसे ही ना जाने कितने तरीके हैं, जिनसे हम कूड़ा-कबाड़ा बढ़ा रहे हैं। घरों में सफाई और खुशबू के नाम पर बढ़ रहे साबुन व अन्य रसायनों के चलन ने भी अलग किस्म के कचरे को बढ़ाया है।
केरल राज्य ने इस विकराल समस्या के समझा और पूरे राज्य में कचरा कम करने के कुछ कदम उठाए। इस दिशा में जारी दिशा-निर्देशों में सबसे ज्यादा सफल रहा है डिस्पोजेबल बॉल पेन के स्थान पर इंक पेन इस्तेमाल का अभियान। सरकार ने पाया कि हर दिन लाखेां रिफिल और एक समय इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक पेन राज्य के कचरे में इजाफा कर रहे हैं। सो, कार्यालयीन आदेश निकाल कर सभी सरकारी दफ्तरों में बॉल पाईंट वाले पेनों पर पांबदी लगा दी गई। अब सरकारी खरीद में केवल इंक पेन खरीदे व इस्तेमाल किए जा रहे हैं। राज्य के स्कूल, कालेजों और चौराहों पर कचरा बन गए बॉल पेनों के एकत्रीकरण के लिए डिब्बे लगाए गए हैं। कई जिलों में एक दिन में पांच लाख तक बेकार प्लास्टिक पेन एकत्र हुए। इस बीच इंक पेन और ष्याही पर भी छूट दी जा रही है। अनुमान है कि यदि पूरे राज्य में यह येाजना सफल हुई तो प्रति दिन पचास लाख प्लास्टिक पेन का कचरा र्प्यावरण में मिलने से रह जाएगा। इन एकत्र पेनों को वैज्ञानिक तरीके से निबटाया भी जा रहा है।
राज्य सरकार ने इसके अलावा कार्यालयों में पैक्ड पानी की बोतलों के स्थान पर स्टील के बर्तन में पानी, सरकारी आयोजनों में फ्लेक्स बैनर और गुलदस्ते के फूलों को पनी में लपेटने पर रेक लगा दी है। प्रत्येक कार्यालय में कचरे को अलग-अलग करना, कंपोस्ट बनाना, कागज के कचरे को रिसाईकिल के लिए देना और बिजली व इलेक्ट्रानिक कचरे को एक. कर प्रत्येक तीन महीने में वैज्ञानिक तरीके से उसको ठिकाने लगाने की योजनाएं जमीनी स्तर पर बेहद कारगर रही है।
कचरा कम करने के ये प्रयास देश के लिए अनुकरणीय है।। इनके साथ ही विभिन्न् आयोजनों में फ्लेक्स की जगह कपड़े या कागज के बैनर लगवाना, उपहार लेते-देते समय उस पर पैकिंग कागज का इस्तेमाल ना करना, प्लास्टिक कवर के स्थान पर पुनर्चक्रित कागज के फाईल कवर ही प्रयोग में लाना, कुछ ऐसे उपाय है जो कि किसी भी श हर या कस्बे को कम कचरा उपजाने के लिए प्रेरित कर सकते हैं।
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