समुद्री सीमा निर्धारित हो तो मछुआरों की जिंदगी बचे
पंकज चतुर्वेदी
हाल ही में पाकिस्तान ने भारत के 145 मछुआरे रिहा किए, 08 जनवरी को 146 और को रिहा करेगा। उधर बीते एक महीने के दौरान पाकिस्तान ने हमारे 55 मछुआरों को समु्रद से सीमा पार करने के आरोप में पकड़ लिया। पूर्व सेना अधिकारी कुलभूषण जाधव और उससे पहले सरबजीत की रिहाई, बेगुनाही पर तो सारी संसद, नेता, देश बोल रहा है, लेकिन सालों से दोनों तरफ के मुछआरों के गलती से सीमा पार करने पर पकड़े जाने और उन्नहे लंबे समय तक जेल में रहने पर कोई आवाज नहीं उठती। कुछ महीने पहले ही गुजरात का एक मछुआरा दरिया में तो गया था मछली पकड़ने, लेकिन लौटा तो उसके श्रीर पर गोलियां छिदी हुई थीं। उसे पाकिस्तान की समुद्री पुलिस ने गोलियां मारी थीं। ‘‘इब्राहीम हैदरी(कराची)का हनीफ जब पकड़ा गया था तो महज 16 साल का था, आज जब वह 23 साल बाद घर लौटा तो पीढ़ियां बदल गईं, उसकी भी उमर ढल गई। इसी गांव का हैदर अपने घर तो लौट आया, लेकिन वह अपने पिंड की जुबान ‘‘सिंधी’’ लगभग भूल चुका है, उसकी जगह वह हिंदी या गुजराती बोलता है। उसके अपने साथ के कई लोगों का इंतकाल हो गया और उसके आसपास अब नाती-पोते घूम रहे हैं जो पूछते हैं कि यह इंसान कौन है।’’
दोनों तरफ लगभग एक से किस्से हैं, दर्द हैं- गलती से नाव उस तरफ चली गई, उन्हें घुसपैठिया या जासूस बता दिया गया, सजा पूरी होने के बाद भी रिहाई नहीं, जेल का नारकीय जीवन, साथ के कैदियों द्वारा श्क से देखना, अधूरा पेट भोजन, मछली पकड़ने से तौबा....। पानी पर लकीरें खींचना नामुमकिन है, लेकिन कुछ लोग चाहते हैं कि हवा, पानी, भावनाएं सबकुछ बांट दिया जाए। एक दूसरे देश के मछुआरों को पकड़ कर वाहवाही लूटने का यह सिलसिला ना जाने कैसे सन 1987 में शुरू हुआ और तब से तुमने मेरे इतने पकड़े तो मैं भी तुम्हारे उससे ज्यादा पकडूंगा की तर्ज पर समुद्र में इंसानों का शिकार होने लगा।
भारत और पाकिस्तान में साझा अरब सागर के किनारे रहने वाले कोई 70 लाख परिवार सदियों से समुद्र से निकलने वाली मछलियों से अपना पेट पालते आए हैं। जैसे कि मछली को पता नहीं कि वह किस मुल्क की सीमा में घुस रही है, वैसे ही भारत और पाकिस्तान की सरकारें भी तय नहीं कर पा रही हैं कि आखिर समुद्र के असीम जल पर कैसे सीमा खींची जाए। कच्छ के रन के पास सर क्रीक विवाद सुलझने का नाम नहीं ले रहा है। असल में वहां पानी से हुए कटाव की जमीन को नापना लगभग असंभव है क्योंकि पानी से आए रोज जमीन कट रही है और वहां का भूगोल बदल रहा है। देानेां मुल्कों के बीच की कथित सीमा कोई 60 मील यानि लगभग 100 किलोमीटर में विस्तारित है। कई बार तूफान आ जाते हैं तो कई बार मछुआरों को अंदाज नहीं रहता कि वे किस दिशा में जा रहे हैं, परिणामस्वरूप वे एक दूसरे के सीमाई बलों द्वारा पकड़े जाते हैं। कई बार तो इनकी मौत भी हो जाती है व घर तक उसकी खबर नहीं पहुंचती।
जब से षहरी बंदरगाहों पर जहाजों की आवाजाही बढ़ी है तब से गोदी के कई-कई किलोमीटर तक तेल रिसने ,षहरी सीवर डालने व अन्य प्रदूशणों के कारण समु्रदी जीवों का जीवन खतरे में पड़ गया है। अब मछुआरों को मछली पकड़ने के लिए बस्तियों, आबादियों और बंदरगाहों से काफी दूर निकलना पड़ता है। जो खुले समु्रद में आए तो वहां सीमाओं को तलाशना लगभग असंभव होता है और वहीं देानेां देशों के बीच के कटु संबंध, षक और साजिशों की संभावनाओं के शिकार मछुआरे हो जाते है।। जब उन्हें पकड़ा जाता है तो सबसे पहले सीमा की पहरेदारी करने वाला तटरक्षक बल अपने तरीके से पूछताछ व जामा तलाशी करता है। चूंकि इस तरह पकड़ लिए गए लोगों को वापिस भेजना सरल नहीं है, सो इन्हें स्थानीय पुलिस को सौंप दिया जाता है। इन गरीब मछुआरों के पास पैसा-कौडी तो होता नहीं, सो ये ‘‘गुड वर्क’’ के निवाले बन जाते हैं। घुसपैठिये, जासूस, खबरी जैसे मुकदमें उन पर होते हैं। वे दूसरे तरफ की बोली-भाशा भी नहीं जानते, सो अदालत में क्या हो रहा है, उससे बेखबर होते हैं। कई बार इसी का फायदा उठा कर प्रोसिक्यूशन उनसे जज के सामने हां कहलवा देता है और वे अनजाने में ही देशद्रोह जैसे अरोप में पदोश बन जाते हैं। कई-कई सालों बाद उनके खत अपनों के पास पहुंचते हैं। फिर लिखा-पढ़ी का दौर चलता है।
सालों-दशकों बीत जाते हैं और जब दोनों देशेां की सरकारें एक-दूसरे के प्रति कुछ सदेच्छा दिखाना चाहती हैं तो कुछ मछुआरों को रिहा कर दिया जाता है। पदो महीने पहले रिहा हुए पाकिस्तान के मछुआरों के एक समूह में एक आठ साल का बच्चा अपने बाप के साथ रिहा नहीं हो पाया क्योंकि उसके कागज पूरे नहीं थे। वह बच्चा आज भी जामनगर की बच्चा जेल में है। ऐसे ही हाल ही में पाकिस्तान द्वारा रिहा किए गए 163 भारतीय मछुआरों के दल में एक दस साल का बच्चा भी है जिसने सौंगध खा ली कि वह भूखा मर जाएगा, लेकिन मछली पकड़ने को अपना व्यवसाय नहीं बनाएगा।
एक बात और यह विवाद केवल पाकिस्तान सीमा पर ही नहीं है, तमिलनाडु के मछुआरे अक्सर श्रीलंका के जल और फिर जेल में फंसते हैं, बांग्लादेश के साथ भी ऐसा ही होता है । तमिलनाउु में मछुआरों के लिए सभी राजनीतिक दल सक्रिय रहते हैं, बांग्लादेश सीमा पर ऐसा बहुत कम होता है, लेकिन पाकिस्तान-भारत के आपसी कटु रिश्तों का सबसे ज्यादा खामियाजा इन निरीह मछुआरों को ही झेलना पड़ता है।
यहां जानना जरूरी है कि दोनेां देशों के बीच सर क्रीक वाला सीमा विवाद भले ही ना सुलझे, लेकिन मछुआरों को इस जिल्ल्त से छुटकारा दिलाना कठिन नहीं है। एमआरडीसी यानि मेरीटाईम रिस्क रिडक्शन सेंटर की स्थापना कर इस प्रक्रिया को सरल किया जा सकता है। यदि दूसरे देश का कोई व्यक्ति किसी आपत्तिजनक वस्तुओं जैसे- हथियार, संचार उपकरण या अन्य खुफिया यंत्रों के बगैर मिलता है तो उसे तत्काल रिहा किया जाए। पकड़े गए लोगों की सूचना 24 घंटे में ही दूसरे देश को देना, दोनों तरफ माकूल कानूनी सहायत मुहैया करवा कर इस तनाव को दूर किया जा सकता है। वैसे संयुक्त राश्ट्र के समु्रदी सीमाई विवाद के कानूनों यूएनसीएलओ में वे सभी प्रावधान मौजूद हैं जिनसे मछुआरों के जीवन को नारकीय होने से बचाया जा सकता है। जरूरत तो बस उनके दिल से पालन करने की है। कसाब वाले मुंबई हमले व अन्य कुछ घटनाओं के बाद समुद्र के रास्तों पर संदेह होना लाजिमी है, लेकिन मछुआरों व घुसपैठियों में अंतर करना इतना भी कठिन नहीं है जितना जटिल एक दूसरे देश के जेल में समय काटना है।
पंकज चतुर्वेदी
हाल ही में पाकिस्तान ने भारत के 145 मछुआरे रिहा किए, 08 जनवरी को 146 और को रिहा करेगा। उधर बीते एक महीने के दौरान पाकिस्तान ने हमारे 55 मछुआरों को समु्रद से सीमा पार करने के आरोप में पकड़ लिया। पूर्व सेना अधिकारी कुलभूषण जाधव और उससे पहले सरबजीत की रिहाई, बेगुनाही पर तो सारी संसद, नेता, देश बोल रहा है, लेकिन सालों से दोनों तरफ के मुछआरों के गलती से सीमा पार करने पर पकड़े जाने और उन्नहे लंबे समय तक जेल में रहने पर कोई आवाज नहीं उठती। कुछ महीने पहले ही गुजरात का एक मछुआरा दरिया में तो गया था मछली पकड़ने, लेकिन लौटा तो उसके श्रीर पर गोलियां छिदी हुई थीं। उसे पाकिस्तान की समुद्री पुलिस ने गोलियां मारी थीं। ‘‘इब्राहीम हैदरी(कराची)का हनीफ जब पकड़ा गया था तो महज 16 साल का था, आज जब वह 23 साल बाद घर लौटा तो पीढ़ियां बदल गईं, उसकी भी उमर ढल गई। इसी गांव का हैदर अपने घर तो लौट आया, लेकिन वह अपने पिंड की जुबान ‘‘सिंधी’’ लगभग भूल चुका है, उसकी जगह वह हिंदी या गुजराती बोलता है। उसके अपने साथ के कई लोगों का इंतकाल हो गया और उसके आसपास अब नाती-पोते घूम रहे हैं जो पूछते हैं कि यह इंसान कौन है।’’
दोनों तरफ लगभग एक से किस्से हैं, दर्द हैं- गलती से नाव उस तरफ चली गई, उन्हें घुसपैठिया या जासूस बता दिया गया, सजा पूरी होने के बाद भी रिहाई नहीं, जेल का नारकीय जीवन, साथ के कैदियों द्वारा श्क से देखना, अधूरा पेट भोजन, मछली पकड़ने से तौबा....। पानी पर लकीरें खींचना नामुमकिन है, लेकिन कुछ लोग चाहते हैं कि हवा, पानी, भावनाएं सबकुछ बांट दिया जाए। एक दूसरे देश के मछुआरों को पकड़ कर वाहवाही लूटने का यह सिलसिला ना जाने कैसे सन 1987 में शुरू हुआ और तब से तुमने मेरे इतने पकड़े तो मैं भी तुम्हारे उससे ज्यादा पकडूंगा की तर्ज पर समुद्र में इंसानों का शिकार होने लगा।
भारत और पाकिस्तान में साझा अरब सागर के किनारे रहने वाले कोई 70 लाख परिवार सदियों से समुद्र से निकलने वाली मछलियों से अपना पेट पालते आए हैं। जैसे कि मछली को पता नहीं कि वह किस मुल्क की सीमा में घुस रही है, वैसे ही भारत और पाकिस्तान की सरकारें भी तय नहीं कर पा रही हैं कि आखिर समुद्र के असीम जल पर कैसे सीमा खींची जाए। कच्छ के रन के पास सर क्रीक विवाद सुलझने का नाम नहीं ले रहा है। असल में वहां पानी से हुए कटाव की जमीन को नापना लगभग असंभव है क्योंकि पानी से आए रोज जमीन कट रही है और वहां का भूगोल बदल रहा है। देानेां मुल्कों के बीच की कथित सीमा कोई 60 मील यानि लगभग 100 किलोमीटर में विस्तारित है। कई बार तूफान आ जाते हैं तो कई बार मछुआरों को अंदाज नहीं रहता कि वे किस दिशा में जा रहे हैं, परिणामस्वरूप वे एक दूसरे के सीमाई बलों द्वारा पकड़े जाते हैं। कई बार तो इनकी मौत भी हो जाती है व घर तक उसकी खबर नहीं पहुंचती।
जब से षहरी बंदरगाहों पर जहाजों की आवाजाही बढ़ी है तब से गोदी के कई-कई किलोमीटर तक तेल रिसने ,षहरी सीवर डालने व अन्य प्रदूशणों के कारण समु्रदी जीवों का जीवन खतरे में पड़ गया है। अब मछुआरों को मछली पकड़ने के लिए बस्तियों, आबादियों और बंदरगाहों से काफी दूर निकलना पड़ता है। जो खुले समु्रद में आए तो वहां सीमाओं को तलाशना लगभग असंभव होता है और वहीं देानेां देशों के बीच के कटु संबंध, षक और साजिशों की संभावनाओं के शिकार मछुआरे हो जाते है।। जब उन्हें पकड़ा जाता है तो सबसे पहले सीमा की पहरेदारी करने वाला तटरक्षक बल अपने तरीके से पूछताछ व जामा तलाशी करता है। चूंकि इस तरह पकड़ लिए गए लोगों को वापिस भेजना सरल नहीं है, सो इन्हें स्थानीय पुलिस को सौंप दिया जाता है। इन गरीब मछुआरों के पास पैसा-कौडी तो होता नहीं, सो ये ‘‘गुड वर्क’’ के निवाले बन जाते हैं। घुसपैठिये, जासूस, खबरी जैसे मुकदमें उन पर होते हैं। वे दूसरे तरफ की बोली-भाशा भी नहीं जानते, सो अदालत में क्या हो रहा है, उससे बेखबर होते हैं। कई बार इसी का फायदा उठा कर प्रोसिक्यूशन उनसे जज के सामने हां कहलवा देता है और वे अनजाने में ही देशद्रोह जैसे अरोप में पदोश बन जाते हैं। कई-कई सालों बाद उनके खत अपनों के पास पहुंचते हैं। फिर लिखा-पढ़ी का दौर चलता है।
सालों-दशकों बीत जाते हैं और जब दोनों देशेां की सरकारें एक-दूसरे के प्रति कुछ सदेच्छा दिखाना चाहती हैं तो कुछ मछुआरों को रिहा कर दिया जाता है। पदो महीने पहले रिहा हुए पाकिस्तान के मछुआरों के एक समूह में एक आठ साल का बच्चा अपने बाप के साथ रिहा नहीं हो पाया क्योंकि उसके कागज पूरे नहीं थे। वह बच्चा आज भी जामनगर की बच्चा जेल में है। ऐसे ही हाल ही में पाकिस्तान द्वारा रिहा किए गए 163 भारतीय मछुआरों के दल में एक दस साल का बच्चा भी है जिसने सौंगध खा ली कि वह भूखा मर जाएगा, लेकिन मछली पकड़ने को अपना व्यवसाय नहीं बनाएगा।
एक बात और यह विवाद केवल पाकिस्तान सीमा पर ही नहीं है, तमिलनाडु के मछुआरे अक्सर श्रीलंका के जल और फिर जेल में फंसते हैं, बांग्लादेश के साथ भी ऐसा ही होता है । तमिलनाउु में मछुआरों के लिए सभी राजनीतिक दल सक्रिय रहते हैं, बांग्लादेश सीमा पर ऐसा बहुत कम होता है, लेकिन पाकिस्तान-भारत के आपसी कटु रिश्तों का सबसे ज्यादा खामियाजा इन निरीह मछुआरों को ही झेलना पड़ता है।
यहां जानना जरूरी है कि दोनेां देशों के बीच सर क्रीक वाला सीमा विवाद भले ही ना सुलझे, लेकिन मछुआरों को इस जिल्ल्त से छुटकारा दिलाना कठिन नहीं है। एमआरडीसी यानि मेरीटाईम रिस्क रिडक्शन सेंटर की स्थापना कर इस प्रक्रिया को सरल किया जा सकता है। यदि दूसरे देश का कोई व्यक्ति किसी आपत्तिजनक वस्तुओं जैसे- हथियार, संचार उपकरण या अन्य खुफिया यंत्रों के बगैर मिलता है तो उसे तत्काल रिहा किया जाए। पकड़े गए लोगों की सूचना 24 घंटे में ही दूसरे देश को देना, दोनों तरफ माकूल कानूनी सहायत मुहैया करवा कर इस तनाव को दूर किया जा सकता है। वैसे संयुक्त राश्ट्र के समु्रदी सीमाई विवाद के कानूनों यूएनसीएलओ में वे सभी प्रावधान मौजूद हैं जिनसे मछुआरों के जीवन को नारकीय होने से बचाया जा सकता है। जरूरत तो बस उनके दिल से पालन करने की है। कसाब वाले मुंबई हमले व अन्य कुछ घटनाओं के बाद समुद्र के रास्तों पर संदेह होना लाजिमी है, लेकिन मछुआरों व घुसपैठियों में अंतर करना इतना भी कठिन नहीं है जितना जटिल एक दूसरे देश के जेल में समय काटना है।
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