मानव के अस्तित्व पर संकट की आहट
पंकज चतुर्वेदी
इस बार केरल बरसात में बह गया। पिछले साल चेन्नई में यही हुआ था और उससे पहले साल कश्मीर में। देश का बड़ा हिस्सा सूखा रहता है और किसी एक जगह सारा पानी बरस जाता है। इसी साल 18 फरवरी को गत पांच सालों में सबसे गर्म दिन कहा गया था। दरअसल, मौसम एक दशक से समाज को तंग कर रहा है। हाल ही में अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा ने भी कहा है कि फरवरी में तापमान में अप्रत्याशित वृद्धि ने पूर्व के महीनों के रिकार्ड को तोड़ दिया है। आज तापमान में वृद्धि के रिकार्ड टूटने जा रहे हैं। 1951 से 1980 की तुलना में धरती की सतह और समुद्र का तापमान फरवरी में 1.35 सेल्सियस अधिक रहा है।
बदलाव को समझने के लिए भारत के आदिग्रंथ महाभारत के एक हिस्से को बांचते हैं। करीब पांच हज़ार वर्ष पूर्व के ग्रंथ महाभारत में ‘वनपर्व’ में महाराजा युधिष्ठिर मार्कण्डेय ऋषि से विनम्रतापूर्वक पूछते हैं— ‘महामुने, आपने युगों के अन्त में होने वाले अनेक महाप्रलय के दृश्य देखे हैं, मैं आपके श्रीमुख से प्रलयकाल का निरूपण करने वाली कथा सुनना चाहता हूं।’ इसमें ऋषि जवाब देते हैं— ‘हे राजन! प्रलय काल में सुगंधित पदार्थ नासिका को उतने गंधयुक्त प्रतीत नहीं होंगे। रसीले पदार्थ स्वादिष्ट नहीं रह जाएंगे। वृक्षों पर फल और फूल बहुत कम हो जाएंगे और उन पर बैठने वाले पक्षियों की विविधता भी कम हो जाएगी। वर्षाऋतु में जल की वर्षा नहीं होगी। ऋतुएं अपने-अपने समय का परिपालन त्याग देंगी। वन्य जीव, पशु-पक्षी अपने प्राकृतिक निवास की बजाय नागरिकों के बनाए बगीचों और विहारों में भ्रमण करने लगेंगे। संपूर्ण दिशाओं में हानिकारक जन्तुओं और सर्पों का बाहुल्य हो जाएगा। वन-बाग और वृक्षों को लोग निर्दयतापूर्वक काट देंगे।’ कृषि और व्यापार पर टिप्पणी करते हुए मार्कण्डेय ऋषि कहते हैं— ‘भूमि में बोये हुए बीज ठीक प्रकार से नहीं उगेंगे। खेतों की उपजाऊ शक्ति समाप्त हो जाएगी। लोग तालाब-चरागाह, नदियों के तट की भूमि पर भी अतिक्रमण करेंगे। समाज खाद्यान्न के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाएगा।’
वे आगे कहते हैं— ‘हे राजन! एक स्थिति ऐसी भी आएगी कि जनपद जन-शून्य होने लगेंगे। चारों ओर प्रचण्ड तापमान संपूर्ण तालाबों, सरिताओं और नदियों के जल को सुखा देगा। लंबे काल तक पृथ्वी पर वर्षा होनी बंद हो जाएगी। प्रचण्ड तेज वाले सात सूर्य उदित होंगे और जो कुछ भी धरती पर शेष रहेगा, उसे वे भस्मीभूत कर देंगे।’
धरती की सतह का इस तरह गर्म होना चिंताजनक है और हालात मार्कण्डेय ऋषि द्वारा किए गये वर्णन की ही तरह हैं। तापमान के संतुलन बिगड़ने का अर्थ है हमारे अस्तित्व पर संकट। यह तो सभी जानते हैं कि 750 अरब टन कार्बन डाइआक्साइड वातावरण में मौजूद है। कार्बन की मात्रा बढ़ने का दुष्परिणाम है कि जलवायु परिवर्तन व धरती के गर्म होने जैसेे प्रकृतिनाशक बदलाव हम झेल रहे हैं। कार्बन की मात्रा में इजाफे से दुनिया पर तूफान, कीटों के प्रकोप, सुनामी या ज्वालामुखी जैसे खतरे मंडरा रहे हैं।
आज विश्व में अमेरिका सबसे ज्यादा 1,03,30,000 किलो टन कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जित करता है जो कि वहां की आबादी के अनुसार प्रति व्यक्ति 17.4 टन है। उसके बाद कनाडा प्रति व्यक्ति 15.7 टन, फिर रूस 12.6 टन है। भारत महज 20 लाख सत्तर हजार किलो टन या प्रति व्यक्ति महज 1.7 टन कार्बन डाइआक्साइड ही उत्सर्जित करता है। चूंकि भारत नदियों का देश है, वह भी अधिकांश ऐसी नदियां जो पहाड़ों पर बर्फ पिघलने से बनती हैं।
कार्बन उत्सर्जन की मात्रा कम करने के लिए हमें एक तो स्वच्छ ईंधन को बढ़ावा देना होगा। गरीब लोगों को बेहद कम दाम पर गैस उपलब्ध करवाना ही बड़ी चुनौती है। कार्बन उत्सर्जन घटाने में सबसे बड़ी बाधा वाहनों की बढ़ती संख्या, मिलावटी पेट्रो पदार्थों की बिक्री, घटिया सड़कें व ऑटो-पार्ट्स की बिक्री व छोटे कस्बों तक यातायात जाम होने की समस्या है। देश में बढ़ता कचरे का ढेर व उसके निपटान की माकूल व्यवस्था न होना भी कार्बन उत्सर्जन नियंत्रण की बड़ी बाधा है। साथ ही बड़े बांध, सिंचाई नहरों के कारण बढ़ते दल-दल भी कार्बन डाइआक्साइड पैदा करते हैं।
कार्बन की बढ़ती मात्रा से दुनिया के गर्म होने से उत्पन्न हालात से जूझना सारी दुनिया का फर्ज है, लेकिन भारत में मौजूद प्राकृतिक संसाधन व पारपंरिक ज्ञान इसका सबसे सटीक निदान है। छोटे तालाब, कुएं, पारंपरिक मिश्रित जंगल, खेती व परिवहन के पुराने साधन, कुटीर उद्योग का सशक्तीकरण कुछ ऐसे प्रयास हैं जो बगैर किसी मशीन या बड़ी तकनीक या फिर अर्थव्यवस्था को प्रभावित किए बगैर ही कार्बन पर नियंत्रण कर सकते हैं।
धरती के गर्म होने से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं ग्लेशियर। ग्लोबल वार्मिंग या धरती का गर्म होना, कार्बन उत्सर्जन, जलवायु परिवर्तन से जूझने के तरीके भी बताया जाना अनिवार्य है।
बदलाव को समझने के लिए भारत के आदिग्रंथ महाभारत के एक हिस्से को बांचते हैं। करीब पांच हज़ार वर्ष पूर्व के ग्रंथ महाभारत में ‘वनपर्व’ में महाराजा युधिष्ठिर मार्कण्डेय ऋषि से विनम्रतापूर्वक पूछते हैं— ‘महामुने, आपने युगों के अन्त में होने वाले अनेक महाप्रलय के दृश्य देखे हैं, मैं आपके श्रीमुख से प्रलयकाल का निरूपण करने वाली कथा सुनना चाहता हूं।’ इसमें ऋषि जवाब देते हैं— ‘हे राजन! प्रलय काल में सुगंधित पदार्थ नासिका को उतने गंधयुक्त प्रतीत नहीं होंगे। रसीले पदार्थ स्वादिष्ट नहीं रह जाएंगे। वृक्षों पर फल और फूल बहुत कम हो जाएंगे और उन पर बैठने वाले पक्षियों की विविधता भी कम हो जाएगी। वर्षाऋतु में जल की वर्षा नहीं होगी। ऋतुएं अपने-अपने समय का परिपालन त्याग देंगी। वन्य जीव, पशु-पक्षी अपने प्राकृतिक निवास की बजाय नागरिकों के बनाए बगीचों और विहारों में भ्रमण करने लगेंगे। संपूर्ण दिशाओं में हानिकारक जन्तुओं और सर्पों का बाहुल्य हो जाएगा। वन-बाग और वृक्षों को लोग निर्दयतापूर्वक काट देंगे।’ कृषि और व्यापार पर टिप्पणी करते हुए मार्कण्डेय ऋषि कहते हैं— ‘भूमि में बोये हुए बीज ठीक प्रकार से नहीं उगेंगे। खेतों की उपजाऊ शक्ति समाप्त हो जाएगी। लोग तालाब-चरागाह, नदियों के तट की भूमि पर भी अतिक्रमण करेंगे। समाज खाद्यान्न के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाएगा।’
वे आगे कहते हैं— ‘हे राजन! एक स्थिति ऐसी भी आएगी कि जनपद जन-शून्य होने लगेंगे। चारों ओर प्रचण्ड तापमान संपूर्ण तालाबों, सरिताओं और नदियों के जल को सुखा देगा। लंबे काल तक पृथ्वी पर वर्षा होनी बंद हो जाएगी। प्रचण्ड तेज वाले सात सूर्य उदित होंगे और जो कुछ भी धरती पर शेष रहेगा, उसे वे भस्मीभूत कर देंगे।’
धरती की सतह का इस तरह गर्म होना चिंताजनक है और हालात मार्कण्डेय ऋषि द्वारा किए गये वर्णन की ही तरह हैं। तापमान के संतुलन बिगड़ने का अर्थ है हमारे अस्तित्व पर संकट। यह तो सभी जानते हैं कि 750 अरब टन कार्बन डाइआक्साइड वातावरण में मौजूद है। कार्बन की मात्रा बढ़ने का दुष्परिणाम है कि जलवायु परिवर्तन व धरती के गर्म होने जैसेे प्रकृतिनाशक बदलाव हम झेल रहे हैं। कार्बन की मात्रा में इजाफे से दुनिया पर तूफान, कीटों के प्रकोप, सुनामी या ज्वालामुखी जैसे खतरे मंडरा रहे हैं।
आज विश्व में अमेरिका सबसे ज्यादा 1,03,30,000 किलो टन कार्बन डाइआक्साइड उत्सर्जित करता है जो कि वहां की आबादी के अनुसार प्रति व्यक्ति 17.4 टन है। उसके बाद कनाडा प्रति व्यक्ति 15.7 टन, फिर रूस 12.6 टन है। भारत महज 20 लाख सत्तर हजार किलो टन या प्रति व्यक्ति महज 1.7 टन कार्बन डाइआक्साइड ही उत्सर्जित करता है। चूंकि भारत नदियों का देश है, वह भी अधिकांश ऐसी नदियां जो पहाड़ों पर बर्फ पिघलने से बनती हैं।
कार्बन उत्सर्जन की मात्रा कम करने के लिए हमें एक तो स्वच्छ ईंधन को बढ़ावा देना होगा। गरीब लोगों को बेहद कम दाम पर गैस उपलब्ध करवाना ही बड़ी चुनौती है। कार्बन उत्सर्जन घटाने में सबसे बड़ी बाधा वाहनों की बढ़ती संख्या, मिलावटी पेट्रो पदार्थों की बिक्री, घटिया सड़कें व ऑटो-पार्ट्स की बिक्री व छोटे कस्बों तक यातायात जाम होने की समस्या है। देश में बढ़ता कचरे का ढेर व उसके निपटान की माकूल व्यवस्था न होना भी कार्बन उत्सर्जन नियंत्रण की बड़ी बाधा है। साथ ही बड़े बांध, सिंचाई नहरों के कारण बढ़ते दल-दल भी कार्बन डाइआक्साइड पैदा करते हैं।
कार्बन की बढ़ती मात्रा से दुनिया के गर्म होने से उत्पन्न हालात से जूझना सारी दुनिया का फर्ज है, लेकिन भारत में मौजूद प्राकृतिक संसाधन व पारपंरिक ज्ञान इसका सबसे सटीक निदान है। छोटे तालाब, कुएं, पारंपरिक मिश्रित जंगल, खेती व परिवहन के पुराने साधन, कुटीर उद्योग का सशक्तीकरण कुछ ऐसे प्रयास हैं जो बगैर किसी मशीन या बड़ी तकनीक या फिर अर्थव्यवस्था को प्रभावित किए बगैर ही कार्बन पर नियंत्रण कर सकते हैं।
धरती के गर्म होने से सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं ग्लेशियर। ग्लोबल वार्मिंग या धरती का गर्म होना, कार्बन उत्सर्जन, जलवायु परिवर्तन से जूझने के तरीके भी बताया जाना अनिवार्य है।
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