कहीं पूर्वोत्तर के लिए ‘जल-बम’ न बन जाए सियांग
पंकज चतुर्वेदी
अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू ने केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह को पत्र भेजकर अनुरोध किया है कि उनके राज्य की चीन से लगती सीमा पर स्थित सियांग नदी के चकित करने वाले व्यवहार का गंभीरता से अध्ययन किया जाए। सियांग नदी एक बार फिर उसके किनारे बसे लोगों में खौफ पैदा कर रही है। चीन ने पानी छोड़ने की चेतावनी क्या दी, अरुणाचल प्रदेश और असम में भारी बाढ़ का खतरा मंडराने लगा। आश्चर्य इस बात का है कि जहां गत एक सप्ताह से सियांग के किनारे बसे कई गांवों पर तबाही आई है तो सियांग घाटी के कई इलाकों मेंे सूखे का संकट है।
अरुणाचल प्रदेश की जीवन रेखा कहलाने वाली सियांग नदी एक बार फिर उसके किनारे बसे लोगों में खौफ पैदा कर रही है। चीन ने उसी तरफ से पानी छोड़ने की चेतावनी क्या दी, अरूणाचल प्रदेश और असम में भारी बाढ़ का खतरा मंडराने लगा। हालांकि यह चेतावनी भी तब जारी की गई जब बीते दो सप्ताह से सियांग नदी में हो रही कुछ असामान्य हरकतों पर भारत ने चीन के सामने सवाल खड़े किए। हालांकि फिलहाल नदी का जल स्तर खतरे के निशान से भी नीचे हैं लेकिन उसमें दो-दो मीटर ऊंची लहरें उठ रही है, जैसे कि समुद्र में ज्वार-भाटे के समय उठती हैं। पीढियों से इस नदी के सहारे अपना जीवन काट रहे पासीघाट इलाके के लोगों का कहना है कि नदी में ऐसी असामानरू ऊंची लहरें उन्होंने कभी देखी नहीं। इस समय इलाके का मौसम बेहद सामान्य है और ऐसे में तेज आवाज के साथ असामान्य रूप से उछलती लहरें केवल मेबो क्षेत्र को प्रभावित कर रही हैं । वहीं मेबो क्षेत्र से करीब 31 किलोमीटर आगे नामसिंग और इसके आसपास के इलाकों में नदी का प्रवाह बिल्कुल सामान्य है। याद करें पिछले साल भी अक्तूबर में इसी नदी का पानी पूरी तरह काला हो गया था।
सियांग नदी का उदभव पश्चिमी तिब्बत के कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील से दक्षिणपूर्व में स्थित तमलुंग त्सो (झील) से हैं। तिब्बत में अपने कोई 1600 किलोमीटर के रास्ते में इसेयरलुंग त्संगपो कहते हैं। भारत में दाखिल होने के बाद इस नदी को सियांग या दिहांग नाम से जाना जाता है । कोई 230 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद यह लोहित नदी से जुड़ती है। अरूणाचल के पासीघाट से 35 किलोमीटर नीचे उतर कर इसका जुड़ाव दिबांग नी से होता है। इसके बाद यह ब्रह्मपुत्र में परिवर्तित हो जाती है। बीते दो सप्ताह से सियांग नदी में उठ रहीं रहस्यमयी लहरों के कारण लोगों में भय है। आम लेागों मे ंयह धरणा है कि इसके पीछे चीन की ही साजिश है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि चीन अरूणाचल प्रदेश के बड़े हिस्से पर अपना दावा करता है और यहां वह आए रोज कुछ न कुछ हरकतें करता है। अंतरराश्ट्रीय नदियों के प्रवाह में गड़बड़ी कर वह भारत को परेशान करने की साजिशें करता रहा है।
14 अगस्त की रात से अचानक उठ रहीं भयंकर लहरेां के कारण बोरगुली, सिंगार, सेरम, नामसेंग आदि दर्जनों गांवों की नदी किनारे की हजारों हेक्टेयर जमीन पानी में समा गई व नदी का विस्तार आबादी की ओर हो गया। यही नहीं इससे पहले अपर सियांग, जोकि चीन के करीब है, के तुतिंग औरगेलियों गांव में मछली व मवेशी मरने की खबरें भी आई थीं। पिछले साल अक्तूबर में भी बेहद साफ और निर्मल जल वाली सियांग नदी का पानी बेहद मटमैला हो गया था। उसमें सीमेंट जैसी हजारों टन कीचड़ आई थी। नदी का कई सौ किलामीटर हिस्से का पानी एकदम काला हो गया था व पीने के लायक नहीं बचा था।, वहां मछलियां भी मर गई थीं। नदी के पानी में सीमेंट जसा पतला पदार्थ होने की बात जिला प्रशासन ने अपनी रिपोर्ट में कही थी। सनद रहे सियांग नदी के पानी से ही अरूधाचल प्रदेश की प्यास बुझती है। तब संसद में भी इस पर हल्ला हुआ था और चीन ने कहा था कि उसके इलाके में 6.4 ताकत का भूकंप आया था, संभवतया यह मिट्टी उसी के कारण नदी में आई होगी। हालांकि भूगर्भ वैज्ञानिकों के रिकार्ड में इस तरह का कोई भूकंप उस दौरान चीन में महसूस नहीं किया गया था। इसी साल जुलाई में विदेया राज्य मंत्री वी के सिंह ने संसद में सूचित किया था कि चीन के साथ द्विपक्षीय वार्ता में सियंग नदी का मसला उठाया गया था और भारत सरकार ने नदी के सीमावर्ती इलाकांें में जल-प्रवाह निरीक्षण के लिए विशेश व्यवस्था कर रही है।
इससे पहले सन 2012 में सियांग नदी रातों -रात अचानक सूख गई थी। तब सितंबर के दूसरे सप्ताह में पूर्वी सियांग जिले के पासीघाट शहर के लोगों ने पाया था । इससे पहले नौ जून 2000 को सियांग नदी का जल स्तर अचानक 30 मीटर उठ गया था और लगभग पूरा शहर डूब गया जिससे संपत्ति की व्यापक क्षति हुई थी. इसके अलावा तिब्बत में एक जलविद्युत बांध के ढह जाने से सात लोगों की मौत हो गयी थी।
सियांग नदी में यदि कोई गड़बड़ होती है तो अरूणाचल प्रदेश की बड़ी आबादी का जीवन संकट में आ जाता है। पीने का पानी, खेती, मछली पालन सभी कुछ इसी पर निर्भर हैं सबसे बड़ी बात सियंाग में प्रदूशण का सीधा असर ब्रह्मपुत्र जैसी विशाल नदी और उसके किनारे बसे सात राज्यों के जन-जीवन व अर्थ व्यवस्था पर पड़ता है। असम के लखीमपुर जिले में पिछले साल आई कीचड़ का असर आज देखा जा रहा है। वहां के पानी में आज भी आयरन की मात्रा सामान्य से बहुत अधिक पाई जा रही है।
तिब्बत राज्य में यारलुंग सांगपो नदी को शिनजियांग प्रांत के ताकलीमाकान की ओर मोड़ने के लिए चीन दुनिया की सबसे लंबी सुरंग के निर्माण की योजना पर काम कर रहा है। हालांकि सार्वजनिक तौर पर चीन ऐसी किसी योजना से इनकार करता रहा है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि चीन ने इस नदी को जगह-जगह रोक कर यूनान प्रांत में आठ जल विद्युत परियोजना प्रारंभ की हैं और कुल मिला कर इस नदी का सारा प्रवाह नियंत्रण चीन के हाथ में है। पिछले साल मई-2017 में चीन भारत के साथ सीमावर्ती नदियों की बाढ़ आदि के आंकड़े साझा करने से इंकार करचुका है। वह जो आंकड़े हमें दे रहा है वह हमारे कोई काम के ही नहीं हैं।
भले ही चीन सरकार के वायदों के आधार पर भारत सरकार भी यह इंकार करे कि चीन, अरूणाचल प्रदेश से सटी सीमा पर कोई खनन गतिविधि नहीं कर रहा है। लेकिन हांगकांग से प्रकाशित ‘‘साएथ चाईना मॉर्निंग पोस्ट’’ की एक ताजा रिपोर्ट बताती है कि चीन अरूणाचल प्रदेश से सटी सीमा पर भारी मात्रा में खनन कर रहा हीै क्योंकि उसे वहां चांदी व सोने के अयस्क के कोई 60 अरब डालर के भंडार मिले हैं। नदी में पानी गंदला होना या लहरें ऊंची होना जैसी अस्वाभावकि बातों का कारण चीन की ऐसी हरकतें भी हो सकता है। भारत सरकार को इस क्षेत्र में अपने खुफिया सूत्र विकसित कर चीन की जल-जंगल-जमीन से जुड़ी गतिविधियों पर नजर रखनी चाहिए, वरना जल-बम का असर परमाणु बम से भी भयंकर होगा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें