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बुधवार, 26 सितंबर 2018

Climate change is effecting nutritious value of agriculture product

कम होगी अनाज की पोषकता

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केरल में जल-प्लावन का ज्वार भले ही धीरे-धीरे छंट रहा हो, लेकिन उसके बाद वहां जो कुछ हो रहा है वह पूरे देश के लिए चेतावनी है। जैव विविधता के लिए जग-जाहिर वायनाड जिले में अचानक ही केंचूए और कई प्रकृति प्रेमी कीट गायब हो गए। पंपा, पेरियार, कबानी जैसी कई नदियों का जल-स्तर बहुत कम हो गया। इदुकी, वायनाड जिलों में कई सौ मीटर लंबी दरारें जमीन में आ गईं। यह बानगी है कि धरती के तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी और उसके गर्भ से उपजे जलवायु परिवर्तन का भीषण खतरा मंडरा रहा है। यह केवल असामयिक मौसम बदलाव या ऐसी ही प्राकृतिक आपदाओं तक सीमित नहीं रहने वाला। यह इंसान के भोजन, जलाशयों में पानी की शुद्धता, खाद्य पदार्थो की पौष्टिकता, प्रजनन क्षमता से ले कर जीवन के उन सभी पहलुओं पर विषम प्रभाव डालने लगा है, जिसके चलते प्रकृति का अस्तित्व और मानव का जीवन सांसत में है। 1अमेरिका की एक सालाना जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट 2017 में बताया गया है कि मौसम में बदलाव के कारण पानी को सुरक्षित रखने वाले जलाशयों में ऐसे शैवाल विकसित हो रहे हैं जो पानी की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे हैं। भारत में भी जलाशयों के प्राकृतिक स्वरूप में कई तरह का बदलाव देखा गया है। 1यह सर्वविदित है कि जलवायु परिवर्तन या तापमान बढ़ने का बड़ा कारण वातावरण में बढ़ रही कार्बन डाइऑक्साइड की मात्र है। कार्बन उत्सर्जन में बढ़ोतरी के कारण तमाम फसलों में पोषक तत्व घट रहे हैं। इससे 2050 तक दुनिया में 17.5 करोड़ लोगों में जिंक की कमी होगी और करीब 12.2 करोड़ लोग प्रोटीन की कमी से ग्रस्त होंगे। दरअसल 63 फीसद प्रोटीन, 81 फीसद लौह तत्व तथा 68 फीसद जिंक की आपूर्ति पेड़-पौधों से होती है। एक शोध में पाया गया कि अधिक कार्बन डाइऑक्साइड की मौजूदगी में उगाई गई फसलों में तीन तत्वों- जिंक, आयरन एवं प्रोटीन की कमी पाई गई है। यह रिपोर्ट भारत जैसे देशों के लिए अधिक डराती है क्योंकि हमारे यहां पहले से कुपोषण एक बड़ी समस्या है। यह पर्यावरण में कार्बन की मात्र बढ़ा रही है। इससे पैदा पर्यावरणीय संकट का कुप्रभाव है कि मरुस्थलीयकरण दुनिया के सामने बेहद चुपचाप, लेकिन खतरनाक तरीके से बढ़ रहा है। रेगिस्तान बनने का खतरा उन जगहों पर ज्यादा है, जहां पहले उपजाऊ जमीन थी और अंधाधुंध खेती या भूजल दोहन या सिंचाई के कारण उसकी उपज क्षमता खत्म हो गई। ऐसी जमीन धीरे-धीरे रेगिस्तान में तब्दील हो जाती है। यहां जानना जरूरी है कि धरती के महज सात फीसद इलाके में ही मरुस्थल है, लेकिन खेती में काम आने वाली लगभग 35 प्रतिशत जमीन ऐसी भी है जो शुष्क कहलाती है और यही खतरे का केंद्र है। 1भारत की कुल 328.73 मिलियन हेक्टेयर जमीन में से 105.19 मिलियन हेक्टेयर जमीन पर बंजर ने डेरा जमा लिया है, जबकि 82.18 मिलियन हेक्टेयर जमीन रेगिस्तान में बदल रही है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण कृषि पर मंडराते खतरों के प्रति सचेत करते हुए इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च इन एग्रोफॉरेस्ट्री के निदेशक डॉ. कुलूस टोपर ने भी अपनी रिपोर्ट में बताया है कि आने वाले दिन जलवायु परिवर्तन के भीषणतम उदाहरण होंगे जो कृषि उत्पादकता पर चोट, जल दबाव, बाढ़, चक्रवात व सूखे जैसी गंभीर दशाएं पैदा करेंगे। हकीकत यह है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण कृषि व्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ने से पूरी दुनिया में ‘खाद्यान्न संकट’ की विकरालता बढ़ जाएगी। ऐसे में खेती-किसानी की अर्थव्यवस्था पर आधारित भारते जैसे देशों के लिए विशाल आबादी का पेट भरना मळ्श्किल हो सकता है। 1जलवायु परिवर्तन की मार भारत में जल की उपलब्धता पर भी पड़ रही है। देश में बीते 40 सालों के दौरान बरसात के आंकड़े देखें तो पता चलता है कि इसमें निरंतर गिरावट आ रही है। 20वीं सदी के प्रारंभ में औसत वर्षा 141 सेंटीमीटर थी जो 1990 के दशक में कम होकर 119 सेंटीमीटर रह गई है। उत्तरी भारत में पेयजल का संकट भयावह होता जा रहा है। 1एक शोध अध्ययन में यह आशंका जताई गई है कि तापमान में दो डिग्री सेंटीग्रेड वृद्धि होने पर गेहूं की उत्पादकता में व्यापक कमी आएगी। आशंका है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से रबी की फसलों को अधिक नुकसान होगा। इसके अलावा वर्षा आधारित फसलों को अधिक नुकसान होगा, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण वर्षा की मात्र कम होगी, जिस कारण किसानों को सिंचाई हेतु जल उपलब्ध नहीं हो पाएगा।1जलवायु परिवर्तन का कुप्रभाव मिट्टी पर पड़ने के कारण उसकी उर्वरा क्षमता घटने, मवेशियों की दुग्ध क्षमता कम होने पर भी दिख रहा है। खाद्य सुरक्षा रिपोर्ट पर गौर करें तो वर्ष 2030 तक देश में जलवायु में हो रहे परिवर्तन से कई तरह की फसलों को उगाना मुश्किल हो जाएगा। भारत में जलवायु परिवर्तन के कुप्रभाव से खेती-किसानी चौपट होने की बात भारत के आर्थिक सर्वेक्षण 2018 में भी दर्ज है। हमारी अधिकांश खेती असिंचित होने के कारण कृषि विकास दर पर मौसम का असर पड़ रहा है। यदि तापमान एक डिग्री-सेल्सियस बढ़ता है तो खरीफ मौसम के दौरान किसानों की आय 6.2 फीसद कम कर देता है और असिंचित जिलों में रबी मौसम के दौरान छह फीसद की कमी करता है। इसी तरह यदि बरसात में औसतन 100 मिमी की कमी होने पर किसानों की आय में 15 फीसद और रबी के मौसम में सात फीसद की गिरावट होती है, जैसा कि सर्वेक्षण में कहा गया है।1यही नहीं ज्यादा बारिश के कारण प्रभावति होने वालों की संख्या भी छह गुणा बढ़ सकती है। अभी हर साल करीब 25 करोड़ लोग बाढ़ से प्रभावित होते हैं। जनसंख्या विस्फोट और पलायन के कारण उभरी आवासीय कमी ने नदी के रास्तों पर बस्तियां बसा दीं और अब बरसात होने पर नदी जब अपने भूले बिसरे रास्ते पर लौट आती है तो तबाही होती है। ठीक इसी तरह तापमान बढ़ने से ध्रुवीय क्षेत्र में तेजी से बर्फ पिघलने के कारण समुद्र के जल-स्तर में अचानक बढ़ोतरी का असर भी हमारे देश में तटीय इलाकों पर पड़ रहा है।

जलवायळ् परिवर्तन के असर से खेती के व्यापक तौर पर प्रभावित होने की आशंका जताई गई है, जिससे अनाज उत्पादन घट सकता है। साथ ही इसके अन्य दुष्प्रभाव भी हो सकते हैं

पंकज चतुर्वेदी 1स्वतंत्र टिप्पणीकार

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