My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

बुधवार, 26 सितंबर 2018

ANIMALS ARE ALSO ESSENTIAL FOR EARTH

जानवर भी जरुरी हैं जमीन पर  


पर्यावरण संकट का जो चरम रूप दिख रहा है, उसका कारण इंसान द्वारा नैसर्गिकता में उपजाया गया, असमान संतुलन ही है। परिणाम सामने है कि अब धरती पर अस्तित्व का संकट है। प्रकृति ने वन्य जीव-जंतुओं (Wildlife Prevention India) के रूप में हमें जो उपहार दिया है, उसे हम अपनी लालच के चलते खत्म करते जा रहे हैं। इसीलिए प्रकृति का संतुलन बिगड़ता जा रहा है।
राज एक्सप्रेस भोपाल २६-९-१८ 

अभी जुलाई माह में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा था कि जानवरों को भी इंसान की तरह जीने का हक है। वे भी सुरक्षा, स्वास्थ्य और क्रूरता के विरुद्ध इंसान जैसे ही अधिकार रखते हैं। हालांकि इस आदेश पर चर्चा कम हुई और राज्य सरकार ने गाय को राष्ट्रमाता घोषित कर दिया। असल में ऐसे आदेशों से न तो गाय बच सकती है और न ही अन्य जानवर। जब तक समाज के सभी वर्गो तक यह संदेश नहीं जाता कि प्रकृति ने धरती पर इंसान, वनस्पति और जीव-जंतुओं को जीने का समान अधिकार दिया है, तब तक उनके संरक्षण को इंसान अपना कर्तव्य नहीं मानेगा। यह सही है कि जीव-जंतु या वनस्पति अपने साथ हुए अन्याय का न तो प्रतिरोध कर सकते हैं और न ही अपना दर्द कह पाते हैं। परंतु इस भेदभाव का बदला खुद प्रकृति ने लेना शुरू कर दिया है। पर्यावरण संकट का जो चरम रूप दिख रहा है, उसका कारण इंसान द्वारा नैसर्गिकता में उपजाया गया, असमान संतुलन ही है। परिणाम सामने है कि अब धरती पर अस्तित्व का संकट है। समझना जरूरी है कि जिस दिन खाद्य श्रंखला टूट जाएगी धरती से जीवन की डोर भी टूट जाएगी।
jansandesh times UP
भारत में संसार का केवल 2.4 प्रतिशत भू-भाग है जिसके सात से आठ प्रतिशत भू-भाग पर भिन्न प्रजातियां पाई जाती हैं। प्रजातियों की संवृद्धि के मामले में भारत स्तनधारियों में 7वें, पक्षियों में 9वें और सरीसृप में 5वें स्थान पर है। कितना सधा हुआ खेल है प्रकृति का! मानव जीवन के लिए जल जरूरी है तो जल को संरक्षित करने के लिए नदी तालाब। नदी-तालाब में जल को स्वच्छ रखने के लिए मछली, कछुए और मेंढक अनिवार्य हैं। मछली उदर पूर्ति के लिए तो मेंढक ज्यादा उत्पात न करें इसके लिए सांप अनिवार्य हैं और सांप जब संकट बने तो उनके लिए मोर या नेवला। कायनात ने एक शानदार सहअस्तित्व व संतुलन का चक्र बनाया। तभी पूर्वज यूं ही सांप या बैल या सिंह या मयूर की पूजा नहीं करते थे, जंगल के विकास के लिए छोटे छोटे अदृश्य कीट भी उतने ही अनिवार्य हैं जितने इंसान। विडंबना है कि फसल की लालच में हम केंचुए व अन्य कृषि मित्र कीट को मार रहे हैं।
अब गिद्ध को ही लें, भले ही इसकी शक्ल सूरत अच्छी न हो, लेकिन हमारे पारिस्थितिकी तंत्र के लिए एक अनिवार्य पक्षी है। 90 के दशक की शुरुआत में भारतीय उपमहाद्वीप में करोड़ों की संख्या में गिद्ध थे, लेकिन अब उनमें से कुछ लाख ही बचे हैं। विशेषज्ञ बताते हैं कि उनकी संख्या हर साल आधी के दर से कम होती जा रही है। इसकी संख्या घटने लगी तो सरकार भी सतर्क हो गई-चंडीगढ़ के पास पिंजौर, बुंदेलखंड में ओरछा सहित देश के दर्जनों स्थानों पर अब गिद्धों के संरक्षण की बड़ी-बड़ी परियोजनाएं चल रही हैं। जान लें कि मृत पशु को खाकर अपने परिवेश को स्वच्छ करने के कार्य में गिद्ध का कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है। हुआ यूं कि इंसान ने अपनी लालच के चलते पालतू मवेशियों को दूध के लिए रासायनिक इंजेक्शन देना शुरू कर दिए। वहीं मवेशी के भोजन में खेती में इस्तेमाल कीटनाशकों व रासायनिक दवाओं का प्रभाव बढ़ गया। अब गिद्ध अपने स्वभाव के अनुसार जब ऐसे मरे हुए जानवरों को खाने आया तो वह खुद ही काल के गाल में समा गया।
janwani meerut 
आधुनिकता ने अकेले गिद्ध को ही नहीं, घर में मिलने वाली गौरेया से लेकर बाज, कठफोड़वा एवं कई अन्य पक्षियों के अस्तित्व पर संकट खड़ा कर दिया है। वास्तव में ये पक्षी जमीन पर मिलने वाले ऐसे कीड़ों व कीटों को अपना भोजन बनाते हैं जो खेती के लिए नुकसानदेह होते हैं। कौवा, मोर, टटहिरी, उकाब व बगुला सहित कई पक्षी जहां पर्यावरण को शुद्ध रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। वहीं मानव जीवन के उपयोग में भी इनकी अहम भूमिका है। मिट्टी को उपजाऊ बनाने व सड़े-गले पत्ते खा कर शानदार मिट्टी उगलने वाले केंचुए की संख्या धरती के अस्तित्व के लिए संकट है। प्रकृति के बिगड़ते संतुलन के पीछे लोग अंधाधुंध कीटनाशक दवाइयों का प्रयोग मान रहे हैं। कीड़े-मकौड़े व मक्खियों की बढ़ रही आबादी के चलते इन मांसाहारी पक्षियों की मानव जीवन में कमी खल रही है। यदि इसी प्रकार पक्षियों की संख्या घटती गई तो आने वाले समय में मनुष्य को भारी परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।

मोर राष्ट्रीय पक्षी है। यह सांप सहित कई जनघातक कीट-पतंगों की संख्या को नियंत्रित करने में प्रकृति का अनिवार्य तत्व है। ये खेतों में बोए गए बीजों को खाते हैं। चूंकि बीजों को रासायनिक दवाओं में भिगोया जा रहा है, सो इनकी मृत्यु हो जाती है। यही नहीं दानेदार फसलों को सूंडी से बचाने के लिए किसान उस पर कीटनाशक छिड़कता है और जैसे ही मोर या अन्य पक्षी ने उसे चुगा, वह मारा जाता है। सांप को किसानों का मित्र कहा जाता है। सांप संकेतक प्रजाति है, इसका मतलब यह होता है कि आबोहवा बदलने पर सबसे पहले वही प्रभावित होते हैं। इस लिहाज से तो उनकी मौजूदगी हमारी मौजूदगी को सुनिश्चित करती है। हम सांपों के महत्व को कम महसूस करते हैं और उसे डरावना प्राणी मानते हैं, जबकि सच्चाई यही है कि उनके बगैर हम कीटों और चूहों से परेशान हो जाएंगे। यह भी जान लें कि ‘सांप तभी आक्रामक होते हैं, जब उनके साथ छेड़छाड़ किया जाए या हमला किया जाए। वे हमेशा आक्रमण करने की जगह भागने की कोशिश करते हैं।’ मेंढकों का इतनी तेजी से सफाया करने के भयंकर परिणाम सामने आए हैं। इसकी खुराक हैं वे कीड़े-मकोड़े, मच्छर तथा पतंगे, जो हमारी फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। अब हुआ यह कि मेंढकों की संख्या बेहद घट जाने से प्रकृति का संतुलन बिगड़ गया। पहले मेंढक बहुत से कीड़ों को खा जाया करते थे, किंतु अब कीट-पतंगों की संख्या बढ़ गई और वे फसलों को भारी नुकसान पहुंचाने लगे हैं।
दूसरी ओर सांपों के लिए भी कठिनाई उत्पन्न हो गई। सांपों का मुख्य भोजन हैं मेंढक और चूहे। मेंढक समाप्त होने से सांपों का भोजन कम हो गया तो वे भी कम हो गए। सांप कम होने का परिणाम यह निकला कि चूहों की संख्या में वृद्धि हो गई। वे चूहे अनाज की फसलों को चट करने लगे। इस तरह मेंढकों को मारने से फसलों को कीड़ों और चूहों से पहुंचने वाली हानि बहुत बढ़ गई। मेंढक कम होने पर वे मक्खी-मच्छर भी बढ़ गए, जो पानी वाली जगहों में पैदा होते हैं और मनुष्यों को काटते हैं या बीमारियां देते हैं। कौआ भारतीय लोक परंपरा में यूं ही आदरणीय नहीं बन गया। हमारे पूर्वज जानते थे कि इंसान की बस्ती में कौए का रहना स्वास्थ्य एवं अन्य कारणों से कितना महत्वपूण है। कौए अगर विलुप्त हो जाते हैं तो इंसान की जिंदगी पर इसका बुरा असर पड़ेगा क्योंकि कौए इंसान को अनेक बीमारी एवं प्रदूषण से बचाते हैं। टीबी से ग्रस्त रोगी के खखार में टीबी के जीवाणु होते हैं, जो रोगी द्वारा बाहर फेंकते ही कौए उसे तुरंत खा जाते हैं, जिससे जीवाणु फैल नहीं पाते। ठीक इसी तरह वे किसी मवेशी के मरने पर उसकी लाश से उत्पन्न कीड़े-मकोड़े को सफाचट कर जाते हैं। शहरी भोजन में रासायनिक तत्व तथा पेड़ों की अंधाधुंध कटाई के कारण कौए भी समाज से विमुख होते जा रहे हैं। इंसानी जिंदगी में कौओं के महत्व को हमारे पुरखों ने बहुत पहले ही समझ लिया था। यही वजह थी कि आम आदमी की जिंदगी में तमाम किस्से कौओं से जोड़कर देखे जाते रहे हैं।
कुल मिलाकर, प्रकृति में हर जीव-जंतु का एक चक्र है। जैसे कि जंगल में यदि हिरण जरूरी है तो शेर भी। यह सच है कि शेर का भोजन हिरण है लेकिन प्राकृतिक संतुलन का यही चक्र है। यदि जंगल में हिरण की संख्या बढ़ जाए तो वहां अंधाधुंध चराई से हरियाली का संकट खड़ा हो जाएगा, इसीलिए इस संतुलन को बनाए रखने के लिए शेर भी जरूरी हैं। इसी तरह हर जानवर, कीट, पक्षी धरती पर इंसान के अस्तित्व के लिए अनिवार्य हैं।
पंकज चतुर्वेदी (वरिष्ठ पत्रकार)

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