कहीं बड़ी ज्वाला न बन जाए दक्षिण चीन समुद्र का टकराव
पंकज चतुर्वेदी
साउथ चाइना सी में अमेरिकी और चीनी जहाज करीब-करीब आमने-सामने आ गए हैं। चीन ने पिछले साल यहां अपने यु़पोत उतारे थे और अमेरिका ने हाल ही में अपना समुद्री बेड़ा यहां भेज दिया है। आज हालात इतने खतरनाक हैं कि अमेरिका और चीन का युद्धपोत के बीच की दूरी महज 41 मीटर रह गई है। दोनों ही देशों ने एक दूसरे के ऊपर विवाद को भड़काने का आरोप लगाया है।अमेरिका ने चीनी नौसैनिक पोत पर आरोप लगाए हैं कि जब एक अमेरिकी युद्धपोत ने विवादित दक्षिण चीन सागर में प्रवेश किया था तो चीनी पोत ‘असुरक्षित एवं गैर पेशेवराना’ तरीके से अपनी गतिविधियां संचालित कर रहा था। चीन ने भी दक्षिण चीन सागर में उन द्वीपों और चट्टानों के पास से अमेरिकी युद्धपोत के गुजरने पर मंगलवार को कड़ा विरोध जताया है जिन पर वह अपना कब्जा बताता है। यहां जानना जरूरी है कि दक्षिणी चीन के समु्रद में सुलग रही आग काफी सालों से भड़कते-भड़कते बच रही है। यह भी जानना जरूरी है कि कोई 35 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले दक्षिणी चीन समुद्र क्षेत्र का नाम ही चीन पर है और उस पर चीन का कोई ना तो पारंपरिक हक है और ना ही वैधानिक। इस पर मुहर पिछले साल 2016 के जुलाई में अंतरराश्ट्रीय न्यायालय लगा चुका है कि इस समुद्र के संसाधन आदि पर चीन का कोई हक नहीं बनता है।
साउथ चाईना सी या दक्षिणी चीन समुद्र का जल क्षेत्र, कई एषियाई देषों जिनमें वियतनाम, फिलीपींस, मलेषिया आदि षामिल हैं, के चीन के साथ तनाव का कारण बना हुआ है। चीन ने इस इलाके के कुछ द्वीप पर लड़ाकू विमानों के लिए पट्टी बना लीं तो अमेरिका के भी कान खड़े हो गए। अमेरिका ने इस पर सख्त आपत्ति जतायी और इसके बाद से दोनों देशों को बीच रिश्तों में भारी तनाव आ गया। पिछले साल अमेरिका की नौ सेना के समु्रदी सर्वेक्षण विभाग द्वारा समु्रद के खारेपन और तापमान बाबत एक सर्वेक्षण हेतु इस समुद्री क्षेत्र में एक ड्रोन को पानी की गहराई में छोड़ा था। चीन को इसकी खबर मिली तो उसने अपनी नौसेना के जरिये उस ड्रोन को पानी से निकलवा कर जब्त कर लिया। चीन का कहना था कि इस ड्रोन के कारण वहंा से गुजर रहे जहाजों के संचार व मार्गदर्षक उपकरणों में व्यवधान हो रहा था, सो उसे जब्त कर लिया गया। हालांकि यह बात किसी के गले उतर नहीं रही है। विेदष नीति के माहिर लेाग जानते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव जीतते ही उनके द्वारा ताईवान के राश्ट्रपति तसाई इंग वेनमे से फोन पर बात करना चीन को नागवार गुजरा था। चीन का कहना है कि ताईवान पर उसका कब्जा है और उसने ताईवान को केवल प्रषासिनक स्वात्तता प्रदान की है। वहीं ट्रंप ने ताईवान की चीने से मुक्ति को ले कर कई जाहिर बयान दे दिए।
दक्षिणी चीन समुद्र दक्षिणी-पूर्वी एशिया से प्रशांत महासागर के पश्चिमी किनारे तक स्थित कई देशों से घिरा है। इनमें चीन, ताइवान, फिलीपीन्स, मलयेशिया, इंडोनेशिया और वियतनाम हैं। ये सभी देश इस समुद्र पर अपने-अपने दावे कर रहे हैं। 1947 में चीन ने नक्षे के जरिए इस पर अपना दावा पेश किया था। यह सीमांकन काफी व्यापक था और उसने लगभग पूरे इलाके को शामिल कर लिया। इसके बाद कई एशियाई देशों ने चीन के इस कदम से असहमति जताई। वियतनाम, फिलीपीन्स और मलयेशिया ने भी कई द्वीपों पर दावा किया। वियतनाम ने कहा कि उसके पास जो नक्षा है उसमें पार्सेल और स्प्रैटली आइलैंड्स प्राचीन काल से उसका हिस्सा है। इसी तरह ताइवान ने भी दावा किया। 17 साल से फिलीपींस कूटनीतिक प्रयासों के जरिये चीन से दक्षिण चीन सागर विवाद सुलझा लेना चाहता था. बात बनी नहीं, तो फिलिपींस ने 2013 में हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण ‘पीसीए’ का दरवाजा खटखटाया. न्यायाधिकरण ने 12 जुलाई 2016 को संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून के अनुच्छेद-258 को आधार बना कर फैसला दिया कि ‘नाइन डैश लाइन’ की परिधि में आनेवाले जल क्षेत्र पर चीन कोई ऐतिहासिक दावेदारी नहीं कर सकता. इस फैसले से बाकी देशों को भी राहत मिली है.
असल में यह समुद्र क्षेत्र दुनिया का महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग है। इस इलाके से हर साल कम से कम पांच सौ अरब डॉलर के सामान की आवाजाही होती है। यहां तेल और गैस का विशाल भंडार है। यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी के अनुमान के मुताबिक यहां 11 बिलियन बैरल्स ऑइल और 190 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस संरक्षित है। 1982 के यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी के मुताबिक कोई भी देष अपने समुद्री तटों से 200 नॉटिकल मील की दूरी तक समुद्री संसाधनों- मछली, तेल, गैस आदि पर दावा कर सकता है। इस संधि को चीन, वियतनाम, फिलीपीन्स और मलयेशिया ने तो माना लेकिन अमेरकिा ने इस पर दस्तखत नहीं किए। वैेसे तो दक्षिणी समु्रद पर अमेरिका का ना तो कोई दवा है और ना ही इसकी सीमा उससे कहीं लगती है। लेकिन वह इस महत्वपूर्ण मार्ग व उर्जा के भंडार पर निगाह तो रखता ही है और उसकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा कोई है तो वह है चीन। गौरतलब है कि इस इलाके के उर्जा संसाधनों पर भारत की भी रूचि है। वियेतनाम तो भारत को बाकायदा यहां गैस व तेल की खोज के लिए आमंत्रित भी कर चुका है। सन 2011 में ओएनजीसी विदेश लिमिटेड ने जब वियतनाम में तेल की खोज आरंभ की, तो चीन काफी रोष में था. मई, 2014 में चीन ने पारासेल आइलैंड के पास तेल दोहन वाले रिग खड़े कर दिये, जिससे कई दुर्घटनाएं हुईं. चीन कई बार अमेरिका को धमका चुका है कि वह दक्षिण चीन सागर से दूर रहे. चीन ने इन दिनों कहना शुरू किया है कि भारत यदि वियतनाम में तेल की खोज कर सकता है, तो पाक अधिकृत कश्मीर में हमारे प्रोजेक्ट क्यों नहीं लग सकते। वहीं इसी साल जुलाई में इस इलाके में अमेरिकी जेट उड़ने को ले कर चीन व अमेरिका में गंभीर टकराव हो चुका हे। अमेरिका वहां चीन के दखल को गैरकानूनी कहता है तो चीन वहां अमेरिका की सनय गतिविधियों को नापसंद कर रहा है।
साउथ चाइना सी पर बढ़ते विवाद के बीच चीन को चुनौती देते हुए अमेरिकी वायुसेना के दो लड़ाकू विमानों ने विवादित क्षेत्र के ऊपर से उड़ान भरा। अमेरिकी ने चीन के दावों को खारिज करते हुए कहा है उसे अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र मानने पर जोर दिया। अमेरिकी वायुसेना के विमानों ने गुआम से दक्षिणी चीन सागर पर उड़ान भरी।
अमेरिका, साउथ चाइना सी क्षेत्र में चीन द्वारा सैन्य सुविधाओं के निर्माण की हमेशा से आलोचना करता आया है। उसका मानना है कि पेइचिंग इसका इस्तेमाल अपनी रणनीतिक पहुंच बढ़ाने के लिए कर सकता है। वहीं तेल व गैस के लिए अरब देषों पर उसकी निर्भरता का आधार भी कमजोर होता जा रहा हे। एक तो तेल भ्ंाडार वाले अरब का बड़ा हिस्सा घरेलू हिंसा की चपेट में है, दूसरा घरेलू दवाब के चलते उस क्षेत्र में वह अब लंबे समय तक सेना रख नहीं पाएगा। ऐसे हालात में उसे तेल व गैस के नए भंडार चाहिए। जाहिर है कि इसके लिए वह अपने पुराने दुष्मन वियेतनाम से भी हाथ मिला सकता है। वहीं ताईवान, फिलीपींस आदि चीन के हाथो ंसे अपनी मुक्ति के लिए अमेरिका की षरण में जा सकते हैं। ऐसे में दक्षिणी समु्रद का इलाका टकरव, युद्ध और नए वैष्विक धु्रवीकरण का केंद भी बन सकता है।
चूंकि चीन को किसी भी सूरत में साउथ चाइना सी पर से अपना दावा और कब्जे को छोड़ना ही पड़ेगा, सो वह अमेरिका जैसे ताकतवर देश के साथ सैन्य टकराव की बात कर रहा है। इससे एक तो अपने नागरिकों को वह अपनी ताकत पनर विष्वास दिलाना चाहता है, दूसरा परमाणु संपन्न और दुनिया की दो बड़ी सैनय ताकतों के टकराव के चलते विष्व युद्ध के भय को फैला कर वह साउथ चाईना सी क्षेत्र में अपना कुछ हिस्सा बताना चाहता है।
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