एक दिन की आतिशबाजी हमेशा की परेशानियां
सुप्रीम कोर्ट ने जब आतिशबाजी चलाने के कायदे-कानून तय किए थे, तभी पता चल गया था कि इसकी धज्जियां उड़ेंगी ही। लेकिन धन-समृद्धि की देवी लक्ष्मी को अपने घर आमंत्रित कर जब दिल्ली और उसके आसपास के दो सौ किलोमीटर के दायरे में रहने वाले तीन करोड़ से ज्यादा लोग जब अगली सुबह उठे, तो घने दमघोंटू धुएं की गहरी चादर चारों ओर छाई थी। दीपावली की अगली सुबह केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने आंकड़े जारी करके दिल्ली की औसत वायु गुणवत्ता एक्यूआई(एवरेज एयर क्वालिटी इंडेक्स) को 329 मापा, जो बहुत घातक स्तर का माना जाता है। सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी ऐंड वेदर फॉरकास्टिंग ऐंड रिसर्च यानी सफर का कहना था कि दिल्ली-एनसीआर के हालात एक्यूआई के मापदंड से कहीं अधिक खराब हैं। यह बात इसलिए भी सच लगती है, क्योंकि मध्य दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट के करीब, मेजर ध्यानचंद स्टेडियम के पास और दिल्ली की सीमा से सटे आनंद विहार पर हवा की गुणवत्ता थी 999, यानी आपातकाल से भी कई गुना ज्यादा। चाणक्यपुरी जैसे हरियाली वाले इलाके की हवा 459 स्तर पर जहरीली थी।
आतिशबाजी चलाने वालों ने कानून व सुप्रीम कोर्ट की परवाह नहीं की और पूरे देश में हवा इतनी जहर हो गई कि 68 करोड़ लोगों की जिंदगी तीन साल कम हो गई। अकेले दिल्ली में 300 से ज्यादा जगहों पर आग लगी। पूरे देश में आतिशबाजी के कारण लगी आग की घटनाओं की संख्या हजारों में है। इसका आंकड़ा रखने की कोई व्यवस्था ही नहीं है कि कितने लोग आतिशबाजी के धुएं से हुई घुटन के कारण अस्पताल गए। अब राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के जिलों के हालात यह हैं कि कानूनन सरकारी सलाह जारी की जाती सकती है कि जरूरी न हो, तो घर से न निकलें। फेफड़ों को जहर से भरकर अस्थमा व कैंसर जैसी बीमारी देने वाले पीएम यानी पार्टिक्युलेट मैटर अर्थात हवा में मौजूद छोटे कणों की निर्धारित सीमा 60 से 100 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर है, जबकि दीपावली से पहले ही यह सीमा 900 के पार तक हो गई थी। ठीक यही हाल न केवल देश के अन्य महानगरों के हैं, बल्कि प्रदेशों की राजधानी व मंझोले शहरों के भी हैं। चूंकि हरियाणा-पंजाब में खेतों में पराली जल ही रही है, साथ ही हर जगह विकास के नाम पर हो रहे अनियोजित निर्माण, धूल के कारण हवा को दूषित कर रहे हैं, तिस पर मौसम का मिजाज। सनद रहे कि पटाखे जलाने से निकले धुएं में सल्फर डाई-ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाई-ऑक्साइड, कार्बन मोनो-ऑक्साइड, शीशा, आर्सेनिक, बेंजीन, अमोनिया जैसे कई जहर सांसों के जरिए शरीर में घुलते हैं। इनका कुप्रभाव परिवेश में मौजूद पशु-पक्षियों पर भी होता है। यही नहीं, इससे उपजा करोड़ों टन कचरे का निपटान भी बड़ी समस्या है। यदि इसे जलाया जाए, तो भयानक वायु प्रदूषण होता है। यदि इसके कागज वाले हिस्से को रिसाइकिल किया जाए, तो भी जहर घर, प्रकृति में आता है। और यदि इसे डंपिंग में यूं ही पड़ा रहने दिया जाए, तो इसके विषैले कण जमीन में जज्ब होकर भूजल व जमीन को स्थाई व लाइलाज स्तर पर जहरीला कर देते हैं। आतिशबाजी से उपजे शोर के घातक परिणाम तो हर साल बच्चे, बूढ़े व बीमार लोग भुगतते ही हैं। दिल्ली के दिलशाद गार्डन में मानसिक रोगों को बड़ा चिकित्सालय है। यह निर्देश है कि यहां दिन में 50 और रात में 40 डेसीबल से ज्यादा का शोर न हो। लेकिन यह आंकड़ा सरकारी मॉनिटरिंग एजेंसी का है कि दीपावली के पहले से यहां शोर का स्तर 83 से 105 डेसीबल के बीच था। दिल्ली के अन्य इलाकों में तो यह 175 डेसीबल तक को पार गया है।
हालात बता रहे हैं कि यदि सब कुछ ऐसा ही चलता रहा, तो दिल्ली राजधानी क्षेत्र धीरे-धीरे मौत के भंवर में बदलने लग सकता है। इससे कोई भी नहीं बच पाएगा। बड़े-बड़े अस्पताल हों या सरकारी चिकित्सालय, दीपावली की रात से जिस तरह मरीजों से भरे हुए हैं, यह चेतावनी है कि कुछ देर का पाखंड मानवता के लिए खतरा बनता जा रहा है और कानून का पालन न करके हम अपनी मौत खुद ही बुला रहे हैं।एक दिन की आतिशबाजी हमेशा की परेशानियां
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