My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

गुरुवार, 15 नवंबर 2018

your house is also in grip of air pollution

कहीं घर में ही तो नहीं घुटता हैं दम?
पंकज चतुर्वेदी


अक्तूबर महीने के आखिरी सप्ताह से ही मध्यभारत की  हवा जहरीली होने पर विमर्श होने लगा था। सुप्रीम कोर्ट ने आतिशबाजी चलाने पर सीमित रोक लगाई, इसके बावजूद हवा का जहर बरकरार है। सलाह दी जा रही है कि जरूरी न हो तो घर से न निकलें, लेकिन यह तथ्य है कि अब हमारे घर के भीतर भी प्रदूषण जानलेवा किस्म से घर कर रहा है। अब हालत इतने खराब हैं कि बामुश्किल एक महीने के बच्चे को जब निमोनिया हुआ तो पता चला कि उनके घर के भीतर ही उसके जीवाणु थे।, बच्चे का घर से बाहर जाने का सवाल नहीं उठता, घर भी एक पॉश कॉलोनी में है। फिर भी उसे निमोनिया हो गया।’’ पढ़े-लिखे माता-पिता पहले तो डाक्टरों की क्षमता पर ही प्रश्न चिन्ह खड़े करते रहे कि हम तो बच्चे को बहुत सहेज कर रखते हैं, हमारा  घर सभी सुख-सुविधाओं से संपन्न है, उसे निमोनिया कैसे हो सकता है? बड़े-बड़े नामीगिरामी डाक्टररों की पूरी फौज लगी बच्चे को बचाने में लेकिन मां का मन फंसा था कि आखिर यह हुआ कैसे?। घर में कोई बीड़ी-सिगरेट पीता नहीं है कि छोटे कण बच्चे की सांस तक पहुंचें। उन लोगां ने अपने यहां मच्छरमार कायॅल लगना कभी का बंद कर रखा था,। ।

 कई संभावनओं  और सवालों के बाद पता चला कि उनके घर के पिछले हिस्से में निर्माण कार्य चलरहा था। जिस तरफ रेत-सीमेंट का काम था, वहीं उस कमरे का एयरकंडीशनर लगा था और उसका एयर फिल्टर साफ नहीं था। यह तो महज बानगी है कि हम घर से बाहर जिस तरह प्रदूषण से जूझ रहे हैं, घर के भीतर भी जाने-अनजाने में हम ऐसी जीवन शैल अपनाएं हुए हैं जोकि ना केवल हमारे लिए, बल्कि समूचे वातावरण में प्रदूषण का कारक बने हुए हैं।

प्रदूषण का नाम लेते ही हम वाहनों या कारखानों से निकलने वाले काले धुएं की बात करने लगते हैं लेकिन सावधान होना जरूरी है कि घर के भीतर कां प्रदूषण यानी इनडोर पॉल्यूशन  बाहरी की तुलना में और भी घातक है। दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता और बेंगलुरू जैसे शहरों में तो इसकी स्थिति और खराब है। यहां जनसंख्या घनत्व ज्यादा है, आवास बेहद सटे हुए हैं, हरियाली कम है । खासतौर पर बच्चों के मामले में तो यह और खतरनाक होता जा रहा है। पिछले साल पटेल चेस्ट इंस्टिट्यूट के डिपार्टमेंट ऑफ रेस्पेरेटरी मेडिसिन के डॉक्टर राजकुमार द्वारा किए गए एक शोध में दावा किया गया है कि घर के अंदर बढ़ते प्रदूषण के कारण लगातार अस्थमा के मरीज बढ़ रहे हैं। सबसे ज्यादा बच्चे दमे की चपेट में आ रहे हैं।

घर के भीतर के प्रदूषण में राजधानी दिल्ली के हालात बहुत ही गंभीर पाए गए। कुछ जगह तो घर के अंदर का प्रदूषण इस खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है कि वहां के 14 प्रतिशत से भी अधिक बच्चे अस्थमा के रोगी बन चुके हैं। शोध के अनुसार सबसे खतरनाक स्थिति शाहदरा की पाई गई। यहां 394 बच्चों में से 14.2 प्रतिशत अस्थमा के शिकार पाए गए। खराब स्थिति के मामले में दूसरे नंबर पर शहजादाबाग रहा। यहां 437 में से 9.6 प्रतिशत बच्चों को अस्थमा का रोगी पाया गया। वहीं, अशोक विहार में कुल 441 बच्चे हैं, जिनमें से 7.5 प्रतिशत अस्थमा के रोगी हो गए हैं। जनकपुरी में कुल 400 बच्चे हैं, जिनमें से 8.3 प्रतिशत अस्थमा के रोगी हो गए हैं। निजामुद्दीन में कुल 350 बच्चे हैं, जिनमें से 8.3 प्रतिशत अस्थमा के रोगी हो गए हैं। इसी तरह सीरी फोर्ट में 387 बच्चों में से 6.2 प्रतिशत अस्थमा के रोगी हो गए हैं। लेकिन जैसे- जैसे गांव की ओर बढ़े तो ,मामले घटते गए। दौलतपुरा में 325 बच्चों में से 4.6 प्रतिशत तो जगतपुरी में 370 बच्चों में से मात्र 3.2 को अस्थमा की शिकायत पाई गई। शोध में यह चेतावनी भी सामने आई कि औद्योगिक क्षेत्र वाले घरों में तो 11.8 प्रतिशत बच्चे अस्थमा का शिकार हो चुके हैं। वहीं आवासीय क्षेत्रों के 7.5 प्रतिशत बच्चे अस्थमा के मरीज मिले। इस मामले गांवों की स्थिति बेहतर है। ग्रामीण क्षेत्रों में मात्र 3.9 प्रतिशत बच्चे इस रोग से पीड़ित मिले। सनद रहे कि छोटे बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग अपा अधिकांश समय घर पर ही बिताते हैं, अतः घर के भीतर का प्रदूषण उनके लिए ज्यादा जानलेवा है।
डॉक्टर राजकुमार ने शोध में 3104 बच्चों को शामिल किया जिनमें 60.3 प्रतिशत लड़के थे और 39.7 प्रतिशत लड़कियां थीं। बच्चों को अस्थमा की शिकायत तो नहीं, यह जांचने के लिए विशेष तौर पर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, अमेरिकन थोरासिक काउंसिल और द इंटरनेशनल स्टडी ऑफ अस्थमा एंड एलर्जी इन चाइल्डहुड द्वारा तैयार किए सवाल पूछे गए।

असल में हमने भौतिक सुखों के लिए जो कुछ भी सामान जोड़ा है उसमें से बहुत सा समूचे परिवेश के लिए खतरा बना है। किसी ऐसे बुजुर्ग से मिले जिनकी आयु साठ साल के आसपास हो और उनसे जानें कि उनके जवानी के दिनों में हर दिन घर से कितना कूड़ा निकलता था । आपको जानकर आश्चर्य होगा कि जितना कूड़ा हम एक दिन में आज घर से बाहर फैंक रहे हैं उतना वे दस दिन ेमं भी नहीं करते थे। आज पैकिंग सामग्री, पेन से ले कर रेजर तक सबकुछ डिस्पोजबल है और जाने-अनजाने में हम इनका इस्तेमाल कर कूड़े को बढ़ाते हैं। माईक्रोवब जैसे विबजली उपकरण्ण अधिक इस्तेमाल करने पर बहुत गंभीर बीमारियों का कारक बनते हैं, वहीं नए किस्म के कारपेट, फर्नीचर, परदे सभी कुछ बारिक धूल कणों का संग्रह स्थल बन रहे हैं और यही कण इंसान की सांस की गति में व्यवधान पैदा करते हैं। सफाई, सुगंध, कीटनाशकों के इस्तेमाल भले ही तात्कालिक आनंद देते हों,े लेकिन इनका फैंफड़ों प बहुत गंभीर असर होता है।
वैसे घर को निरापद बनाना आपके ही हाथों में है। आमतौर पर सुबह आपको कई ऐसे लेाग मिल जाएंगे जो दूसरों की क्यारी से फूल तोड़ते होते हैं। उनसे पूछे तो कहेंगे कि भगवान को चढ़ाने का ले रहे हैं। जर सोचें कि यदि भगवान ने ही फूल बनाए हैं तो वे उनका क्या करेंगे। असल में इस परंपरा के पीछे कारण ही यही था कि लोग अपने घर में फूलदार पौधे लगाएं, जो सुदर भी दिखें व पर्यावरण को भी सहेजे। विडंबना है कि हम अपने घर-आंगन की जमीन पर तो सीमेंट लगा कि निरापद बना दते हैं जिससे उस पर कोई पौधा ना उगे, लेकिन दूसरे की क्यारी के फूल से भगवान को खुश करने का प्रयास करते है।
घर में कम से कम कीटनाशक का इस्तेमाल करें- ना तो पौधों में ना ही कमरों में। असल में ये कीटनाशक हानिकारक कीडों की क्षमता बढ़ा देते हें, वहीं इनकी फिराक में कई ऐसेसूक्ष्म जीवाणु मर जाते हैं जो कि प्रकृति के संरक्षक होते हैं। घर में पौघे जरूर लगाएं लेकिन उनको घर के भीतर लगाने से परहेज करें। क्योंकि रात में जब घर बंद होता है तो इन पौधों से निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड गैस सेहत के लिए नुकसानदेह साबित होगा। घर के भीतर की धूल साफ करने का काम नियमित रूप से करना चाहिए। यदि घर में पालतू जानवर है तो उसकी सफाई का भी ध्यान रखें। घर में मच्छर-कॉकरोच मारने के लिए जहरीले कैमिकल न छिड़कें। घर के अंदर धूम्रपान न करें।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

How will the country's 10 crore population reduce?

                                    कैसे   कम होगी देश की दस करोड आबादी ? पंकज चतुर्वेदी   हालांकि   झारखंड की कोई भी सीमा   बांग्...