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शनिवार, 23 मार्च 2019

Global terrorist is meaningless if we are capable to kill them

ग्लोबल टैररिस्ट घोषित करने के बजाए उन्हें मारो 
पंकज चतुर्वेदी


पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मसूद अज़हर को ग्लोबल आतंकी घोषित करने का प्रस्ताव चीन के रोड़े के चलते फिर रद्द हो गया। सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य चीन ने अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन के ज़रिए लाए जा रहे प्रस्ताव में अड़ंगा लगा दिया। चीन इस बात पर अड़ा है कि आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद और मसूद अजहर का आपस में कोई लिंक नहीं है। चीन की दलील है कि पहले भी मसूद के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले। हमारे देश में इसे बड़ा मुददा बना लिया, कुछ लोग चीन के उत्पादों के आर्थिक बहिष्कार करने लिए हुंकारे मारने लगे।  यहां जानना जरूरी है कि संयुक्त राष्ट्र में पहले से ही वैश्विक आतंकी घोषित हाफिज सईद या दाउद इब्राहिम पर हम या दुनिया कोई ऐसा प्रहार कर नहीं पाई है जिससे यह लगे कि संयुक्त राष्ट्र में इस कवायद करने से कुछ हांसिल होता है। जब भारत दिखा चुका है कि वह अतंकियों को मारने के लिए दूसरे देश के भीतर घुस कर बम बरसा सकता है तो संयुक्त राष्ट्रकी पूरी कवायद भी बेमानी है।फ वैसे भी यूएन यानी संयुक्त राष्ट्र एक अप्रांसगिक और गैर व्याहवारिक संस्था बन चुका है। अभी भारत ने बालाकोट में घुस कर बम गिराए तो यूएन ने कौन सा दखल कर लिया ?

एक सशक्त देश और सवा अरब के लोकतंत्र वाले देश को यह जान लेना चाहिए कि यदि मसूद अजहर को  ग्लोबल टेरोरिस्ट घोषित भी कर दिया होता तो उसका कुछ नहीं बिगड़ता , जब तक पाकिस्तान की इच्छाशक्ति उस पर कार्यवाही करने की ना हो।  क्या आपको याद है कि इससे पहले हाफीज सईद , लश्कर ए तैयबा के संस्थापक को 10 दिसम्बर 2008 को ग्लोबल टेरोरिस्ट घोषित किया जा चुका है , उस पर अमेरिका ने दस लाख डोलर का इनाम भी रखा था । 26/11 के बम्बई हमले के तत्काल बाद संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका ने उसे गोल्बल टेररिस्ट घोषित कर दिया था, यदि किसी को ग्लोबल टेररिस्ट घोषित करवा देना कोई कूटनीतिक और अंतर्राष्ट्रीय सफलता है तो जाहिर है कि उस समय के सरकार इसमें सफल रही थी, जबकि अभी दुनिया में डंका पीटने का दावा करने वाले अपने सबसे बड़े व्यापारी दोस्त चीन से ही हार गए । इससे पहले संयुक्त राष्ट्र में दाउद इब्राहिम कासकर को भी बैóिक आतंकी घोषित किया जा चुका है। यूनए का डॉजियर कहता है कि दाउद के पास रावलपिंडी और कराची से जारी कई पासपोर्ट हैं और वह नूराबाद,कराची के पहाड़ी इलाके में शानदार बंगले में रहता है। विडंबना है कि हम दाउद का एक ताजा फोटो भी नहीं पा सके भले ही वह दुनिया के लिए आतंकी हो।
इसी तरह ग्लोबल आतंकी घोषित किए गए हाफीज सईद को लें , वह पाकिस्तान में सरेआम घूमता है ,वह राजनीतिक दल ‘‘मिल्ली मुस्लिम पार्टी’’ बना कर पाकिस्तान में चुनाव लड़ता है , वह स्कूल, कालेज, मदरसे चलाता है, बड़े-बड़े सियासतदान उससे मिलते हैं, वह जम कर जलसे- सभाएं करता हैं । यह वैश्विक आतंकी पाकिस्तान के उर्दू अखबार डेली दुनिया’ में कश्मीर पर नियमित कॉलम लिखता हैं। पाकिस्तान ने जैश-ए-मोहम्मद को 2002 में गैरकानूनी घोषित किया था। हालांकि वह संगठन अब भी पाकिस्तान में सक्रिय है। अमेरिका ने दिसम्बर 2001 में जैश को एक विदेशी आतंकवादी संगठन घोषित किया था ।’’ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों के तहत पाकिस्तान को प्रतिबंधित संगठन और आतंकी ं को पनाह और समर्थन नहीं देने की अपनी जिम्मेदारियां निभानी चाहिए और ऐसे संगठनों में शामिल लोगों और संगठनों के वित्त पोषण स्रोतों, अन्य वित्तीय संपत्तियों और आर्थिक संसाधनों को तुरंत जब्त करना था। हम सभी जानते हैं कि पाकिस्तान ने ऐसा कुछ नहीं किया और यूएन उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाया। यही नहीं इतना होने पर भी भारत ने पाकिस्तान को मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा(जो अभी पिछले महीने ही समाप्त हुआ) दिया हुआ था। हम उनसे जम कर तिजारत भी कर रहे हैं।
 मसूद अजहर  को  ग्लोबल आतंकी ना घोषित हो पाने के लिए चीन ही नहीं अपने ही अतीत को कोसने वाले यह भूल जाते हैं कि इंटरपोल ने भले ही हाफिज मोहम्मद सईद के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी कर रखा हो, मगर पिछले 11 सालों से वह उसे पकड़ नहीं पाया है। अमेरिका ने उस पर एक करोड़ डॉलर का इनाम रखा है, मगर इस एलान के 11 साल बाद भी उसका बाल बांका नहीं हुआ। अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोपीय संघ, रूस और ऑस्ट्रेलिया ने उसके संगठन लश्कर-ए-तैयबा को प्रतिबंधित कर रखा है, मगर उसके बारूदी और नापाक कारनामे अब भी जारी हैं।
हाफिज मोहम्मद सईद अकेला नहीं है, जिसे पाकिस्तान ने पनाह दी है और भी आतंकी सरगना हैं। संयुक्त राष्ट्र की आतंकी सूची में पाकिस्तान से 139 नाम हैं। यूएन यह मानता है कि ओसामा बिन लादेन का सबसे करीबी एमन अल जवाहिरी आज भी पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर है। जान लें कि जब तक अमेरिका नहीं चाहता तब तक कोई भी आतंकी पाकिस्तान में आराम से रहता-घूमता है। 11 सयाल पहले आतंकी घेाषित हाफिज सईद का इतिहास ज्यादा काला और घिनौना है लेकिन वह पाकिस्तान में मजे से रह रहा है। 
हाफिज सईद 1948 में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के सरगोधा में पैदा हुआ था. इस लिहाज से उसकी उम्र 69 साल है। तीस साल पहले 1987 में उसने अब्दुल्लाह आजम और जफर इकबाल के साथ मिल कर लश्कर-ए-तैयबा नाम से आतंकी संगठन बनाया था। वह तभी से भारत के खिलाफ साजिश रच रहा है और आतंकी वारदातों को अंजाम दे रहा है और उसे पाकिस्तानी सेना और आईएसआई पूरा समर्थन देते हैं।
मौलाना मसूद अजहर ने साल 2000 में हरकत-उल मुजाहिद्दीन से अलग होकर जैश ए-मोहम्मद बनाया. उसमें हरकत-उल-मुजाहिद्दीन के भी कई आतंकी शामिल हुए थे। इसी जैश ए-मोहम्मद ने भारतीय संसद पर हमला किया था और इसका मास्टर माइंड हाफिज सईद था। इसने 13 दिसंबर 2001 को भारतीय संसद पर हमला कराया था। तब पाकिस्तान ने उसे 21 दिसंबर 2001 को हिरासत में लिया, मगर महज चार माह बाद ही 31 मार्च 2002 को उसे रिहा कर दिया गया। करीब चार साल बाद 2006 में उसने मुंबई ट्रेन में धमाका कराया. पाकिस्तान ने उसे फिर 9 अगस्त 2006 को गिरफ्तार किया, मगर इस बार भी ज्यादा दिन उसे जेल में नहीं रख सका। लाहौर हाइकोर्ट में पाकिस्तानी सरकार उसकी गिरफतारी की ठोस वजह नहीं बता सका और महज 19 दिन बाद 28 अगस्त 2006 को उसे रिहा कर दिया गया। एक बात और लश्कर, हिजबुल, हरकत , ये सभी संगठन यूएन की सूची में आतंकी संगठन हैं लेकिन इनके बैंक खाते, गतिविधियां अलग-अलग नाम से पाकिस्तान में हैं।
हम केवल लफ्फाजी, नारों की दुनिया में जीते हैं , दसों साल से घोषित एक भी वैश्विक आतंकी को तो हम पकड़ नहीं पाए या उसका शिकार नहीं कर पाए , रामदेव जैसे बाबाओं का महंगा सामान बिकवाने के लिए चीन के खिलाफ दुष्प्रचार में पिचकारी पर गुस्सा निकाल रहे हैं, एक बात और चीन का जो माल हमारे देश में आता है, उस पर तो हमारे व्यापारी कि पूंजी लग चुकी, उस पर चीन अपना मुनाफ़ा खा चुका, ऐसे में इस माल के बहिष्कार का अर्थ अपने ही व्यापारी का नुक्सान करना है और यह सब कुछ कथित व्यापारी बाबाओं पर हो रहा है । क्यों न सवाल पूछा जाए कि जो पहले से ग्लोबल टेरोरिस्ट घोषित है उसकी मौत सुनिश्चित करने को क्या किया गया ?
चीन से अब माल आये ही न, इसके लिए सरकार आयात डयूटी  बढ़ाने, डंपिंग टैक्स लगाने और स्थानीय उद्योग को प्रोत्साहित करने के लिए क्या कर रहे हैं ? सरदार पटेल की प्रतिमा हो या देश भर में चल रहे ई रिक्शा(इसकी स्प्प्लाई चीन से एक केन्द्रीय मंत्री की कम्पनी की ही है ) या फिर योग दिवस की चटाईयां--- उन्हें थोक में चीन से मंगवा कर थोक में माल काटते समय देश-प्रेम कहीं गुम जाता है। आम भारतीय बाजिब दाम में पर्व-त्यौहार मना सकें , उस समय स्वदेशी प्रेम का प्रोपेगंडा करने वाले आखिर उस समय क्यों नहीं विरोध करते, सरदार पटेल के प्रतिमा बनने चीन जाती है।

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