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i16 करोड़ लोग पीने के साफ पानी से दूर, हर साल 3.7 करोड़ बीमार
पंकज चतुर्वेदी (जल संकट पर 4 किताबें लिख चुके हैं)
पंकज चतुर्वेदी (जल संकट पर 4 किताबें लिख चुके हैं)
गर्मी चरम पर है और जल संकट भी। दुनिया में जनसंख्या के मामले में हमारी हिस्सेदारी 16% है लेकिन हमें दुनिया में उपलब्ध कुल पानी का 4% ही मिल पाता है। 2018 में सरकार की ऑडिट रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार की सभी योजनाएं प्रति व्यक्ति 4 बाल्टी साफ पानी प्रति दिन उपलब्ध कराने के निर्धारित लक्ष्य से आधे से कम यानी दो बाल्टी भी उपलब्ध नहीं करा पा रही हैं। भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट के मुताबिक सन 2017 तक साफ पानी उपलब्ध कराने के लिए कुल राशि 89,956 करोड़ रु. का 90% खर्च हो चुका है। इसके बावजूद आज भी करीब 3.77 करोड़ लोग हर साल दूषित पानी के इस्तेमाल से बीमार पड़ते हैं। हर साल बारिश से कुल 4 हजार घन किमी पानी िमलता है, जबकि धरातल या उपयोग लायक भूजल 1869 घन किमी है। इसमें से महज 1122 घन किमी पानी ही काम आता है। भारत में औसतन 110 सेंटीमीटर बारिश होती है जो कि दुनिया के ज्यादातर देशों से बहुत ज्यादा है। आंकड़ों के आधार पर हम पानी के मामले में पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा समृद्ध जरूर हैं, लेकिन 85% बारिश का पानी समुद्र की ओर बह जाता है और बारिश के कुल पानी का महज 15% ही संचित कर पाते हैं।
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पानी बर्बादी में हम लोग पीछे नहीं हैं। दिल्ली, मुंबई और चेन्नई जैसे महानगरों में पाइपलाइनों के वॉल्व की खराबी के कारण 17 से 44 प्रतिशत पानी प्रतिदिन बेकार बह जाता है। मुंबई में रोज गाड़ियां धोने में ही 50 लाख लीटर पानी खर्च हो जाता है। खास बात यह है कि देश के करीब 85 फीसदी ग्रामीण इलाकों में रहने वाली आबादी पानी की जरूरतों के लिए भूजल पर निर्भर है। यह संसद में बताया गया है कि करीब 6.6 करोड़ लोग अत्यधिक फ्लोराइड वाले पानी की वजह से बीमारियों से जूझ रहे हैं।
यह आंकड़ा भी चौंकाने वाला है कि देश का भाैगोलिक क्षेत्रफल और नदियों के जलग्रहण का क्षेत्र करीब करीब बराबर है। भारत का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 32.80 लाख वर्ग किलोमीटर है, जबकि सभी नदियों का सम्मिलित जलग्रहण क्षेत्र 32.7 लाख वर्गमीटर है। भारतीय नदियों के मार्ग से हर साल 1913.6 अरब घनमीटर पानी बहता है जो सारी दुनिया की कुल नदियों का 4.445 प्रतिशत है। बिहार की 90 प्रतिशत नदियों में पानी नहीं बचा। पिछले तीन दशक में राज्य की 250 नदियां लुप्त हो चुकी हैं। अभी कुछ दशक पहले तक राज्य की बड़ी नदियां- कमला, बलान, घाघरा आदि कई-कई धाराओं में बहती थीं जो आज खत्म हो गईं हैं। झारखंड के हालात कुछ अलग नहीं हैं, यहां भी 141 नदियां लुप्त हो चुकी हैं।
सन 2009 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने देश में कुल दूषित नदियों की संख्या 121 पाई थी, जो अब 275 हो चुकी है। यही नहीं आठ साल पहले नदियों के कुल 150 हिस्सों में प्रदूषण पाया गया था जो अब 302 हो गया है। बोर्ड ने 29 राज्यों व छह केंद्र शासित प्रदेशों की कुल 445 नदियों पर अध्ययन किया, जिनमें से 225 का जल बेहद खराब हालत में मिला। इन नदियों के किनारे बसे शहरों 650 के 302 स्थानों पर 62 हजार एमएलडी सीवर का गंदा पानी नदियों में गिरता है। भारत में प्रदूषित नदियों के बहाव का इलाका 12,363 किलोमीटर मापा गया है। इनमें से 1,145 किलोमीटर का क्षेत्र बेहद दूषित श्रेणी का है।
दिल्ली में यमुना इसमें शीर्ष पर है, इसके बाद महाराष्ट्र का नंबर आता है जहां 43 नदियां मरने की कगार पर हैं। असम में 28, मध्यप्रदेश में 21, गुजरात में 17, कर्नाटक में 15, केरल में 13, बंगाल में 17, उप्र में 13, मणिपुर और उड़ीसा में 12-12, मेघालय में दस और कश्मीर में नौ नदियां अपने अस्तित्व के लिए तड़प रही हैं। (जैसा कि पंकज चतुर्वेदी ने शरद पांडे को बताया)
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