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सोमवार, 2 सितंबर 2019

No one is accepting NRC in Assam

असम में एनआरसी की कवायद बेनतीजा साबित हुई, AGP ने दी भाजपा सरकार से अलग होने की धमकी


[ पंकज चतुर्वेदी ]: असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजंस यानी एनआरसी के अंतिम प्रारूप में कई चौंकाने वाली बातें सामने आई हैं। इसमें महज 19 लाख 6 हजार 657 लोग बाहर हुए हैं, जबकि इसकी हिमायत करने वाले बड़े-बड़े आंकड़ों का दावा कर रहे थे। बाहर हुए नामों में हिंदू भी बड़ी संख्या में हैं। वर्ष 1947 में पूर्वी बंगाल में हिंदू आबादी 25.4 फीसद थी जो अब घटकर बमुश्किल 10 प्रतिशत रह गई है। जाहिर है कि इनकी बड़ी संख्या ने भारत का रुख किया होगा। इस अंतिम सूची से फिलहाल कोई भी पक्ष संतुष्ट नहीं है। मामले को सुप्रीम कोर्ट तक ले जाने वाली संस्था को कंप्यूटर सॉफ्टवेयर पर संदेह है तो इसे जन आंदोलन बनाने वाले अखिल असम छात्र संगठन और अन्य संगठन इतने कम आंकड़े पर सशंकित हैं। यहां तक कि राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा सरकार भी इससे संतुष्ट नहीं है।
एनआरसी की पूरी प्रक्रिया में खामियां
इससे जुड़े कई उदाहरणों से स्पष्ट है कि एनआरसी की पूरी प्रक्रिया में कहीं न कहीं खामी तो है। न जाने कितने नेता, सशस्त्र बलों के अफसर, वकील, पत्रकार और आम आदमी इसके शिकार हुए हैं। मेघालय के राज्यपाल रहे रंजीत सिंह मुसाहारी के बेटे भारतीय सेना में कर्नल स्तर के अधिकारी रहे। उनका बेटा इस समय रिजर्व बैंक में वरिष्ठ अधिकारी है। उसके पास भारतीय पासपोर्ट भी है। उसके पास नागरिकता साबित करने का नोटिस आया तो सारे कागज जमा करा दिए, लेकिन अंतिम सूची में उसका नाम नदारद है। एआइयूडीएफ के मौजूदा विधायक अनंत कुमार मालो के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। ऐसे अंतहीन उदाहरण हैं।
असम गण परिषद ने दी सरकार से अलग होने की धमकी
असम की बिगड़ती जनसांख्यिकी के बीच यह मामला 2009 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एनआरसी का काम शुरू हुआ तो जाहिर है कि घुसपैठियों को डर सताया होगा। असल तनाव तब शुरू हुआ जब राज्य सरकार ने नागरिकता कानून संशोधन विधेयक विधानसभा में पेश किया। इस कानून के तहत बांग्लादेश से अवैध तरीके से आए हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता दिए जाने का प्रावधान है। यही नहीं घुसपैठियों की पहचान का आधार 1971 की जगह 2014 किया जा रहा है। जाहिर है कि इससे अवैध घुसपैठियों की पहचान का असल मकसद भटक जाएगा। राज्य सरकार के सहयोगी दल असम गण परिषद ने इसे असम समझौते की मूल भावना के विपरीत बताते हुए सरकार से अलग होने की धमकी भी दे दी।
बांग्लादेश से सटी जल सीमा सुरक्षित नहीं
यह एक विडंबना ही है कि बांग्लादेश से सटी हमारी 170 किमी की जमीनी और 92 किमी की जल सीमा लगभग खुली पड़ी है। इसी का फायदा उठाकर बांग्लादेशी बेखौफ यहां आते रहे और बसते रहे। हमारा कानून इतना लचर है कि अगर अदालत किसी व्यक्ति को अवैध प्रवासी घोषित कर देती है तो बांग्लादेश सरकार यह कहकर उसे लेने से इन्कार कर देती है कि भारत के साथ उसका ऐसा कोई द्विपक्षीय समझौता नहीं हैं। असम में बाहरी घुसपैठ कोई नई नहीं, बल्कि एक सदी पुरानी समस्या है।
असम में बांग्लादेशियों की बड़ी तादाद
शुरुआत में कहा गया कि असम की तमाम बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने में मदद कर ये घुसपैठिये देश का भला कर रहे हैं, लेकिन आज हालात बहुत बिगड़ चुके हैं। इनके कारण राज्य में संसाधनों का टोटा तो पड़ ही रहा है, वहां की पारंपरिक संस्कृति, संगीत, लोकाचार आदि सभी प्रभावित हो रहा है। स्थिति की भयावहता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लगभग आठ साल पहले असम के राज्यपाल रहे पूर्व सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल एसके सिन्हा ने राष्ट्रपति को भेजी एक रिपोर्ट में साफ लिखा था कि राज्य में बांग्लादेशियों की इतनी बड़ी तादाद बसी है कि उसे तलाशना और फिर वापस भेजने के लायक हमारे पास मशीनरी नहीं है। वह सही साबित हो रहे हैैं।
फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में अपील करने का रास्ता खुला
यह राहत की बात है कि एनआरसी के अंतिम मसौदे से बाहर हुए लोग फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में अपील कर सकते हैैं। इससे पहले पिछले साल जुलाई में जारी हुई एनआरसी सूची में 3.29 करोड़ लोगों में से 40.37 लाख लोगों के नाम नहीं शामिल थे। अंतिम सूची में उन लोगों के नाम शामिल किए गए हैं जो 25 मार्च 1971 से पहले असम के नागरिक हैं या उनके पूर्वज राज्य में रहते आए हैं। भले ही अब राज्य सरकार संयम रखने की दुहाई दे रही हो, लेकिन राज्य में अनिश्चितता का माहौल है। इसे दूर करना होगा।
एनआरसी को अंतिम रूप देने में लगे थे 62 हजार कर्मचारी
एनआरसी को अंतिम रूप देने में 62 हजार कर्मचारी दिन-रात लगे रहे। सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में 2015 से यह कार्य शुरू हुआ। पहला रजिस्ट्रेशन 2015 में किया गया था। इसके बाद 2018 तक तीन साल में राज्य के 3.29 करोड़ लोगों ने अपनी नागरिकता साबित करने के लिए 6.5 करोड़ दस्तावेज सरकार के पास जमा कराए थे। इन दस्तावेजों का वजन करीब 500 ट्रकों के वजन के बराबर था। इस काम को संपन्न कराने के लिए केंद्र ने कुल 1,288.13 करोड़ रुपये जारी किए जिसमें 1,243.53 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।
असम देश का इकलौता राज्य है जहां नागरिकता रजिस्टर बना है
असम देश का इकलौता राज्य है जहां नागरिकता रजिस्टर बना है। देश के दूसरे हिस्सों में भी ऐसी कवायद की दलीलें दी जा रही हैं, लेकिन असम में तो इसकी सफलता संदिग्ध दिख रही है। इस मामले में पक्षकार संस्था एपीडब्ल्यू की मांग थी कि इस सूची को फिर से सत्यापित करने के लिए व्यक्तिगत रूप से लोगों को देखा जाए, जिसे कोर्ट ठुकरा चुका है। अब सूची से बाहर हुए लोगों के सामने अपनी नागरिकता बहाल करने के लिए सभी विकल्पों को तलाशना होगा। एनआरसी में नाम न होने पर अपील के लिए समय सीमा को अब 60 से बढ़ाकर 120 दिन कर दिया गया है। यानी 31 दिसंबर, 2019 अपील के लिए अंतिम तिथि होगी।
एनआरसी के विवादों के निपटारे के लिए 1,000 ट्रिब्यूनल्स
गृह मंत्रालय के आदेश के तहत 1,000 ट्रिब्यूनल्स का गठन एनआरसी के विवादों के निपटारे के लिए किया गया है। यदि कोई व्यक्ति ट्रिब्यूनल में केस हार जाता है तो फिर उसके पास हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प होगा। इसके बाद भी विदेशी घोषित लोगों को हिरासत में लेकर बांग्लादेश के सामने हमें यह सिद्ध करना होगा कि ये अवैध प्रवासी बांग्लादेश से ही हमारे यहां आए हैं। असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल का कहना है कि गलत ढंग से सूची में शामिल हुए विदेशी लोगों और बाहर हुए भारतीयों को लेकर केंद्र सरकार कोई विधेयक भी ला सकती है। हालांकि सरकार की ओर से यह कदम एनआरसी के प्रकाशन के बाद ही उठाया जाएगा।

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