My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

सोमवार, 4 नवंबर 2019

there-will-be-no-difference-from-even-and-odd-plan-of-few-daysi-when-delhi-has-air-pollution-throughout-year-

चंद दिनों की सम-विषम योजना से क्या फर्क पडे़गा जब दिल्ली में पूरे साल वायु प्रदूषण का प्रकोप रहता है


इस बार दीपावली के पहले दिल्ली और उसके आसपास घना स्मॉग छाते ही पंजाब और हरियाणा की सरकारों को कठघरे में खड़ा कर दिया गया कि वे पराली जलाने पर रोक नहीं लगा सकीं, लेकिन हम इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि दिल्ली-एनसीआर में बारिश के चंद दिनों को छोड़कर पूरे साल वायु प्रदूषण का प्रकोप रहता है। गर्मी में फेफड़ों में जहर भरने का दोष राजस्थान-पाकिस्तान से आने वाली धूल भरी हवाओं को दे दिया जाता है तो ठंड में पराली जलाने को। बीते एक दशक से हर साल सर्दियों के मौसम में दिल्ली और उत्तर भारत के अन्य शहरों के वायु प्रदूषण की चर्चा होती है। जब यह चर्चा जोर पकड़ती है तो कभी सड़कों पर पानी छिड़क दिया जाता है तो कभी सम-विषम योजना को अमल में ले आया जाता है। इसके अलावा कंस्ट्रक्शन यानी निर्माण कार्य रुकवाने जैसे काम भी किए जाते हैैं।
दिल्ली की हवा खराब करने में सबसे बड़ा योगदान धूल और मिट्टी है
दिल्ली में हवा के साथ जहरीले कण घुलने में सबसे बड़ा योगदान (23 फीसदी) धूल और मिट्टी के कणों का है। 17 प्रतिशत हिस्सा वाहनों के उत्सर्जन का है। जनरेटर जैसे उपकरणों का उत्सर्जन 16 प्रतिशत है। इसके अलावा औद्योगिक उत्सर्जन सात प्रतिशत और पराली या अन्य जैव पदार्थों को जलाने से निकले धुएं का हिस्सा करीब 12 प्रतिशत होता है।
पंजाब-हरियाणा में धान की बेहिसाब खेती होने से पराली भी अधिक जलती है
इस मौसम में स्वच्छ वायु की खलनायक पराली है, लेकिन केवल वही नहीं। यह अच्छा है कि अब सरकार पराली को खेत में ही जज्ब करने के उपकरण बेच रही है और उसके लिए सब्सिडी भी दे रही है, लेकिन किसान के पास अगली फसल की बोआई के लिए समय कम होता है सो वे पराली जलाने में अपना भला देखते हैं। हरियाणा-पंजाब सदियों से कृषि प्रधान प्रदेश रहे हैं फिर पराली की समस्या हाल के समय में ही क्यों उभरी है? इस सवाल का जवाब उस प्रवृत्ति में छिपा है जिसके तहत रेगिस्तान से सटे पंजाब-हरियाणा में धान की बेहिसाब खेती होने लगी। एक तो भाखड़ा नंगल बांध ने खूब पानी दिया, फिर उपज अच्छी हुई तो किसान ने भूगर्भ का जल जमकर उलीचा। फिर सरकार ने किसानों को बिजली मुफ्त कर दी और जमीन से पानी निकालने पर कोई रोक नहीं रही। इसके अलावा जितना भी धान उगाओ, उसकी सरकारी खरीद की गारंटी।
किसानों को धान की जगह फल-सब्जी उगाने को तैयार करें
इस समय देश में चावल का 110.28 लाख मीट्रिक टन और धान का 237.28 लाख मीट्रिक टन सुरक्षित स्टॉक रखा हुआ है, जबकि हमारे यहां चावल की सालाना मांग इससे एक चौथाई भी नहीं है। क्या ऐसे हालात में धान की खेती को हतोत्साहित करने की जरूरत नहीं है? जो धान जमीन का पानी पी जाता है, जिस धान की खेती में लगाए गए रसायन से जमीन और जल स्रोत जहरीले होते हैैं उस धान की जगह किसानों को फल-सब्जी उगाने को क्यों नहीं तैयार किया जाता?
हरियाणा ने दिया धान की जगह मक्के की खेती करने वालों को निशुल्क बीज 
इस साल हरियाणा सरकार ने पानी बचाने के इरादे से धान की जगह मक्के की खेती करने वालों को निशुल्क बीज और पांच हजार रुपया अनुदान की जो घोषणा की वह सराहनीय है, लेकिन बात तब बनेगी जब पंजाब सरकार भी ऐसी कोई योजना लाएगी। इसका कोई मतलब नहीं कि हरियाणा और पंजाब के किसान पानी की ज्यादा खपत वाली धान की खेती करें।
हरियाणा और पंजाब में एक किलो धान पैदा करने में 5389 लीटर पानी की खपत होती है
हरियाणा और पंजाब में एक किलो धान पैदा करने में 5389 लीटर पानी की खपत होती है। वहीं बंगाल में एक किलो धान उगाने के लिए केवल 2713 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। साल 2014-15 में भारत ने करीब 37 लाख टन बासमती चावल का निर्यात किया। 37 लाख टन बासमती चावल उगाने के लिए 10 खरब लीटर पानी खर्च हुआ। इसे आप ऐसे भी बोल सकते हैं कि भारत ने 37 लाख टन बासमती चावल के साथ 10 खरब लीटर पानी भी दूसरे देश को भेज दिया जबकि पैसे केवल चावल के मिले। यही चावल वायु प्रदूषण का भी कारण बना है।
प्रदूषण का मर्ज दूर करने के लिए वाहनों की संख्या कम करना, आबादी को नियंत्रित करना जरूरी है
भले ही दिल्ली में वातावरण के जहरीले होने पर इमरजेंसी घोषित कर दी गई हो और पंजाब-हरियाणा में पराली जलाने वाले किसानों पर कार्रवाई की गई हो, लेकिन हम इसकी अनदेखी नहीं कर सकते कि दिल्ली में जगह-जगह पर लगने वाले जाम को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए। जब तक दिल्ली में वाहनों की संख्या कम करने और यहां की आबादी को नियंत्रित करने के कड़े कदम नहीं उठाए जाएंगे तब तक प्रदूषण का मर्ज दूर नहीं होने वाला। दिल्ली में वाहनों की सम-विषम योजना भले ही तात्कालिक कुछ राहत दे दे, लेकिन इसका कोई दूरगामी असर नहीं होने वाला।
सरकार दिल्ली में घुटते दम पर चिंतित तो है, लेकिन गंभीरता नहीं है
दो साल पहले जब एनजीटी ने कड़ाई से यानी-बगैर दोपहिया या महिलाओं को छूट दिए सम-विषम लागू करने का निर्देश दिया था तो दिल्ली सरकार ने ही अपने कदम खींच लिए थे। एनजीटी के तत्कालीन अध्यक्ष स्वतंत्र कुमार की पीठ ने दिल्ली यातायात पुलिस से कहा था कि यातायात धीमा होने या फिर लाल बत्ती पर वाहनों के अटकने से हर रोज तीन लाख लीटर ईंधन जाया होता है, जिससे दिल्ली की हवा दूषित होती है। समाज और सरकार दिल्ली में घुटते दम पर चिंता तो जाहिर कर रही, लेकिन एनजीटी के उक्त निष्कर्ष पर गंभीरता नहीं दिखा रही है।
सड़कों पर न सिर्फ वाहन कम करने होंगे, बल्कि जाम की समस्या से भी पार पाना होगा
यदि दिल्ली और साथ ही उत्तर भारत के एक बड़े इलाके को रहने लायक बनाना है तो न केवल सड़कों पर वाहन कम करने होंगे, बल्कि जाम की समस्या से भी पार पाना होगा। सनद रहे कि वाहन सीएनजी से चले या फिर डीजल या पेट्रोल से, यदि उसमें क्षमता से ज्यादा वजन होगा तो उससे निकलने वाला धुआं जानलेवा ही होगा। यदि दिल्ली को एक अरबन स्लम बनने से बचाना है तो कथित लोकप्रिय फैसलों से बचना होगा।
वायु प्रदूषण तो साल भर रहता है, कुछ दिन की सम-विषम योजना से क्या फर्क पडे़गा?
जब वायु प्रदूषण की त्रासदी साल के करीब 340 दिनों की है तो फिर पांच-दस दिन की सम-विषम योजना से क्या फर्क पडे़गा? राजधानी क्षेत्र में साठ फीसद वाहन दोपहिया हैं, लेकिन वे सम-विषम योजना से बाहर हैैं। आल इंडिया परमिट वाले और ओला-उबर जैसी कंपनियों के डीजल वाहन भी इस पाबंदी में चलते ही हैं। जाहिर है कि महज 25 फीसदी लोग ही इसके तहत सड़कों पर अपनी कार लेकर नहीं आ पाएंगे। नए मापदंड वाले वाहन यदि पहले गियर में रेंगते हैं तो उनसे सल्फर डाई आक्साईड और कार्बन मोनो आक्साईड की बेहिसाब मात्रा उत्सर्जित होती है। साफ है कि हरियाणा और पंजाब में पराली जलना रुकना ही चाहिए, लेकिन इसी के साथ दिल्ली वालों को खुद द्वारा उत्सर्जित प्रदूषण पर लगाम लगानी होगी।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Have to get into the habit of holding water

  पानी को पकडने की आदत डालना होगी पंकज चतुर्वेदी इस बार भी अनुमान है कि मानसून की कृपा देश   पर बनी रहेगी , ऐसा बीते दो साल भी हुआ उसके ...