जहरीले गाजियाबाद के निदान के बगैर दिल्ली नहीं होगी निरापद
पंकज चतुर्वेदी
राजधानी दिल्ली में बढ़ती मध्य वर्ग और निम्न मध्य वर्ग की आबादी को आसरा देने के चक्कर में गाजियाबाद का विस्तार देष के सबसे तेजी से विस्तार पाने वाले महानगरों में हो गया। प्रति किलोमीटर 3954 व्यक्ति की घनी आबादी वाले महानगर की दिल्ली से सटी सीमाएं बहुमंजिला या एक से एक सटी झुग्गियों से पटी हैं। जान कर आष्चर्य होगा कि बीते 365 दिनों में महज पांच दिन इस षहर की आवोहवा सांस लेने लायक रही। अभी दिल्ली में वायु प्रदूशण बढ़ने और स्मॉग के कारण धुंध दिख रही है सो लोगों को याद आ रही है कि गाजियाबाद की 28 लाख से ज्यादा आबादी हर दिन इतनी ही जहरीली हवा को अपने फैंफडों में सोख रही है। यह सच है कि दिल्ली की सीमा के करीब होने के कारण कुछ दषक पहले इसका विकास औद्योगिक षहर के रूप में किया गया था। फिर बिजली, सड़क अपराध जैसी मूलभूत दिक्कतों के चलते यहां के उद्योग भी सिकुड़ते गए। दिल्ली में सीलिंग के बाद कुछ कल कारखाने यहां आए भी लेकिन कुछ ही दिनों में थक हार गए। इसके बावजूद सारे जिले के छोटे-बड़े कस्बे जिंस की ंरगाई, ईंट भट्टा, प्लास्टिक के सामान जैसी सैंकड़ों छोटी -छोटी इकाईयों से आच्छादित हैं जिनसे निकलने वाले प्रदूशण को कुछ पण से नजरअंदाज किया जाता रहा है।
दिल्ली का आनंद विहार राजधानी का सबसे दूशित इलाका कई सालों से है। कारण भी यही है कि यह उप्र के कोषाम्बी से षून्य किलोमीटर पर सटा है और सड़के के दूसरी तरफ डीजल बसों, बेपरवाह स्थानीय परिवहन वाहनों के अलावा भूशण स्टील, सहित कई बड़े कारखाने हैं। भले ही दिल्ली में भारी वाहनों के आवागमन का समय तय हो लेकिन कोषाम्बी की तरफ चौबीसों घंटे ट्रक चल सकते हैं। फिलहाल कोई ऐसी तकनीकी आई नहीं है कि जो वायू प्रदूशण को भौगोलिक सीमा में बांध सके तभी दिल्ली में भले ही सम-विशम हो या धूल पर पानी छिड.का जाए, कोषम्बी से उठा धुओं दिल्ली की सांस अवरूद्ध करेगा ही।
केंद्रीय प्रदूशण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े गवाह हैं कि दीपावली के बाद गाजियाबाद का वायु गुणवत्ता सूचकांक 396 से 482 के बीच रहा है। पीएम- 2.5 औसत मानकों से आठ गुणा ज्यादा 498 और पीएम-10 चार गुणा अधिक 465 के आसपास ही रहा है। 30 अक्तूबर के बाद को नाईट्रोजन डाय आक्साईड की हवा में मात्रा 174 को पार गई जिससे लोगों को आंखेां में जलन होने लगी। कहने को प्रषासन ने हालात बेकाबू होते देख भूरेलाल कमेटी की सिफारिष के अनुरूप ग्रेडेड रेस्पांस एक्षन प्लान अर्थात ग्रेप लागू करने की घोशणा भी कर दी लेकिन यहां दीपावली और उसके अगले दो दिनो तक देर रात तक जम कर आतिषबाजी चली लेकिन कहीं पुलिस या प्रषासन दखल देता नहीं दिखा। गाजियाबाद नगर निगम खुद एलीवेटेड रोड़ के नीचे हिंडन नदी के किनारे प्लास्टिक व अन्य कूड़ा डंप करता है। 28 अक्तूबर को ही इस कूड़े में आग लग गई व षहर का बड़ा हिस्सा इस जहरीले धुएं के गिरफ्त में आ गया। कोई आठ घंटे तक फायर ब्रिगेड पानी छिड़कती रही जब बात नहीं बनी तो जलते कूड़े को जेसीबी से हिंडन में डाल दिया गया। जान लें कि षहर से निकलने वाले 40 फीसदी कूड़े के सही तरीके से निस्तारण की व्यवस्था उपलब्ध नहीं है और यहां कूड़ा जलाना बेहद सामान्य बात है।
इस बात से प्रषासन व समाज पूरी तरह बेपरवाह है कि बढते वायु प्रदूशण के कारण गाजियाबाद के सरकारी अस्पताल में दीवाली के बाद सांस व अन्य बीमारियों के मरीजोें की संख्या तीस फीसदी बढ़ गई है। निजी अस्पतालों में जानेवालों को कोई रिकार्ड उपलब्ध ही नहीं है। गाजियाबाद की हवा को जानलेवा बनाने वाले मुख्य तत्व हैं - बड़े स्तर पर निर्माण कार्य व उसकी सामग्री का खुले में पड़ा होना,सड़कों की धूल, लापरवाह वाहन और यातायात जाम, कूड़े को जलाना, कारखानों का उत्सर्जन और ईंट भट्टा जैसी गतिविधियां। इस समय कुछ स्थानों पर पराली जलाने की भी घटनाएं होती हैं। जिस मेरठ एक्सप्रेस वे को तीन साल पहले 45 मिनिट में दिल्ली से मेरठ पहुंचने के मार्ग के नाम से उदघाटित किया गया था, वह रास्ता दिल्ली की सीमा समाप्त होते ही दम तोड़ देता है। गाजीपुर निकलते ही खोड़ा मकनपुर-इंदिरापुरम- क्रॉसिंग रिपब्लिक और उससे आगे तक सड़क निर्माण बगैर वैकल्पिक मार्ग बनाए चल रहा है और इसमें आठ से दस किलोमीटर का जाम तो हर दिन लगता ही है। कच्ची सड़की धूल पूरे आसमान को बदरंग कर देती है। हालांकि सरकार ने एनएचआई पर नब्बे लाख का जुर्माना भी किया है लेकिन एक तरफ 16 लेन की सड़क का काम जल्द पूरा करने का दवाब है तो दूसरी तरफ नेषनल हाईवे -9 का भारी यातायात। यहां उपज रहे ध्ूाल और धुएं ने बीते तीन साल से आसपास कई किलोमीटर तक रहने वालों का जीना दूभर कर दिया है। फिर नए बहुमंजिला इमारतों के कई सौ प्रोजक्ट भी यहां हैं। भले ही फिलहाल वहां काम रूक गया हो लेकिन भवन के भीतर पत्थर काटने, टाईल्स लगाने की मषीने , लकड़ी का काम आदि चल ही रहा हैं और इसका बुरादा तो हवा में ही घुलता है। यही नहीं इन भवनों के लिए लाई गई रेत-बालू खुल में ही है और थोड़ी भी हवा चलने पर इसके कण इंसान की सांस में घुलते हैं ।
गाजियाबाद में दिल्ली से आने के जितने भी रास्ते हैं- नंदनगरी -भोपुरा, लोनी, महराजपुर गेट, षालीमार गार्डन व कई अन्य-- हर जगह दिल्ली के कानूनों से मुक्त होने की निरंकुषता समने दिखती है। तीन सवारी वाले टीएसआर में आठ सवारी, ट्रक-बसों की मनमाना गति, सड़क-बाजार में बेतरतीब पार्किग और उसके साथ ही टूटी सड़कें व महीनों से धूल ना झाड़ी गई अच्छी सड़कें भी, सड़क के दोनो तरफ धूल-मिट्टी का अंबार ऐसे ही कई काक पूरे जिले के हर इलाके में है। जिनसे जाम लगता है, धूल उड़ती है और उसके प्रति बेपरवही भी रहती है। अपनी दुकानों से निकले कूड़े को माचिस दिखाना हो या कारखानों के अपषिश्ट को ठिकाने लगाना या फिर मेडिकल कचरे का निबटान और सूखे गिरे पत्तों की सफाई, इस षहर में इन सभी का सुलभ हल इनमें आग लगाना है। दीवाली से पहले जिला प्रषासन ने एक कंट्रोल रूम नंबर जारी कर कूड़े आदि में आग लगाने की षिकायत की अपील की लेकिन जों नंबर जारी किया गया था वह काम ही नहीं करता था, महीनों से भुगतान ना होने के कारण डिस्कनेक्ट था। यह बानगी है कि जिला प्रषासन प्रदूशण के प्रति कितना संजीदा है। गाजियाबाद और उससे सटे बागपत में ऐसे दर्जनों ईंट भट्टे हैं जो किसी भी पांबदी से बेपरवाह सालभर चलते हैं। चूंिक अब मणिपुर की जयंतिया पहाड़ियों के ‘‘रेट होल’’ से कोयला निकालना मुष्किल हो रहा है, साथ ही झारख्ंाड का कोयला महंगा पड़ता है सो ये भट्टे दिल्ली एनसीआर के कूड़े से निकले पानी की बोतलों, चप्पल-जूते व ऐसे ही तेज ज्वनषील पदार्थाें को खरीदते हैं और भट्टे में झोंक देते हैं। इस तरह भले ही उन्हें कम दाम पर ज्यादा उश्मा मिलती हो लेकिन इसे निकला धुआं लेागों में तपेदिक तक कर रहा है। इस तरह के कूड़े का पिरवहन और जलाने की सारी हरकतें बगैर प्रषासन की जानकारी के संभव नहीं होती लेकिन अभी गाजियाबाद का भले ही दम घुट रहा हो लेकिन अपने निजी फायदे के आगे पर्यावरण की सुरक्षा का मसला गौण ही माना जाता है।
दिल्ली में सभी किस्म के ‘‘भारत भाग्य विधाताओं का षासन है, वहां के लोगों को साफ हवा-पानी मिलना बेहज जरूरी है, लेकिन यह भी जान लें कि अपने पड़ोसी षहरों के परिवेष को षुद्ध रखे बगैर दिल्ली का दम घुटने से बचना संभव नहीं है। अब दिल्ली के स्कूल जहरीली हवा के कारण 4 नवंबर से षुरू वाहनों के सम-विशय संचालन से गाजियाबाद बेअसर है। एक बात और गाजियाबाद दिल्ली से करीब है सो उसके जहर होने पर कुछ चर्चा भी है तय है कि आपके कस्बे-षहर के हालात भी इससे बेहतर नहीं होंगे। कारण भी वही होंगे और हालात भी।
पंकज चतुर्वेदी
राजधानी दिल्ली में बढ़ती मध्य वर्ग और निम्न मध्य वर्ग की आबादी को आसरा देने के चक्कर में गाजियाबाद का विस्तार देष के सबसे तेजी से विस्तार पाने वाले महानगरों में हो गया। प्रति किलोमीटर 3954 व्यक्ति की घनी आबादी वाले महानगर की दिल्ली से सटी सीमाएं बहुमंजिला या एक से एक सटी झुग्गियों से पटी हैं। जान कर आष्चर्य होगा कि बीते 365 दिनों में महज पांच दिन इस षहर की आवोहवा सांस लेने लायक रही। अभी दिल्ली में वायु प्रदूशण बढ़ने और स्मॉग के कारण धुंध दिख रही है सो लोगों को याद आ रही है कि गाजियाबाद की 28 लाख से ज्यादा आबादी हर दिन इतनी ही जहरीली हवा को अपने फैंफडों में सोख रही है। यह सच है कि दिल्ली की सीमा के करीब होने के कारण कुछ दषक पहले इसका विकास औद्योगिक षहर के रूप में किया गया था। फिर बिजली, सड़क अपराध जैसी मूलभूत दिक्कतों के चलते यहां के उद्योग भी सिकुड़ते गए। दिल्ली में सीलिंग के बाद कुछ कल कारखाने यहां आए भी लेकिन कुछ ही दिनों में थक हार गए। इसके बावजूद सारे जिले के छोटे-बड़े कस्बे जिंस की ंरगाई, ईंट भट्टा, प्लास्टिक के सामान जैसी सैंकड़ों छोटी -छोटी इकाईयों से आच्छादित हैं जिनसे निकलने वाले प्रदूशण को कुछ पण से नजरअंदाज किया जाता रहा है।
दिल्ली का आनंद विहार राजधानी का सबसे दूशित इलाका कई सालों से है। कारण भी यही है कि यह उप्र के कोषाम्बी से षून्य किलोमीटर पर सटा है और सड़के के दूसरी तरफ डीजल बसों, बेपरवाह स्थानीय परिवहन वाहनों के अलावा भूशण स्टील, सहित कई बड़े कारखाने हैं। भले ही दिल्ली में भारी वाहनों के आवागमन का समय तय हो लेकिन कोषाम्बी की तरफ चौबीसों घंटे ट्रक चल सकते हैं। फिलहाल कोई ऐसी तकनीकी आई नहीं है कि जो वायू प्रदूशण को भौगोलिक सीमा में बांध सके तभी दिल्ली में भले ही सम-विशम हो या धूल पर पानी छिड.का जाए, कोषम्बी से उठा धुओं दिल्ली की सांस अवरूद्ध करेगा ही।
केंद्रीय प्रदूशण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़े गवाह हैं कि दीपावली के बाद गाजियाबाद का वायु गुणवत्ता सूचकांक 396 से 482 के बीच रहा है। पीएम- 2.5 औसत मानकों से आठ गुणा ज्यादा 498 और पीएम-10 चार गुणा अधिक 465 के आसपास ही रहा है। 30 अक्तूबर के बाद को नाईट्रोजन डाय आक्साईड की हवा में मात्रा 174 को पार गई जिससे लोगों को आंखेां में जलन होने लगी। कहने को प्रषासन ने हालात बेकाबू होते देख भूरेलाल कमेटी की सिफारिष के अनुरूप ग्रेडेड रेस्पांस एक्षन प्लान अर्थात ग्रेप लागू करने की घोशणा भी कर दी लेकिन यहां दीपावली और उसके अगले दो दिनो तक देर रात तक जम कर आतिषबाजी चली लेकिन कहीं पुलिस या प्रषासन दखल देता नहीं दिखा। गाजियाबाद नगर निगम खुद एलीवेटेड रोड़ के नीचे हिंडन नदी के किनारे प्लास्टिक व अन्य कूड़ा डंप करता है। 28 अक्तूबर को ही इस कूड़े में आग लग गई व षहर का बड़ा हिस्सा इस जहरीले धुएं के गिरफ्त में आ गया। कोई आठ घंटे तक फायर ब्रिगेड पानी छिड़कती रही जब बात नहीं बनी तो जलते कूड़े को जेसीबी से हिंडन में डाल दिया गया। जान लें कि षहर से निकलने वाले 40 फीसदी कूड़े के सही तरीके से निस्तारण की व्यवस्था उपलब्ध नहीं है और यहां कूड़ा जलाना बेहद सामान्य बात है।
इस बात से प्रषासन व समाज पूरी तरह बेपरवाह है कि बढते वायु प्रदूशण के कारण गाजियाबाद के सरकारी अस्पताल में दीवाली के बाद सांस व अन्य बीमारियों के मरीजोें की संख्या तीस फीसदी बढ़ गई है। निजी अस्पतालों में जानेवालों को कोई रिकार्ड उपलब्ध ही नहीं है। गाजियाबाद की हवा को जानलेवा बनाने वाले मुख्य तत्व हैं - बड़े स्तर पर निर्माण कार्य व उसकी सामग्री का खुले में पड़ा होना,सड़कों की धूल, लापरवाह वाहन और यातायात जाम, कूड़े को जलाना, कारखानों का उत्सर्जन और ईंट भट्टा जैसी गतिविधियां। इस समय कुछ स्थानों पर पराली जलाने की भी घटनाएं होती हैं। जिस मेरठ एक्सप्रेस वे को तीन साल पहले 45 मिनिट में दिल्ली से मेरठ पहुंचने के मार्ग के नाम से उदघाटित किया गया था, वह रास्ता दिल्ली की सीमा समाप्त होते ही दम तोड़ देता है। गाजीपुर निकलते ही खोड़ा मकनपुर-इंदिरापुरम- क्रॉसिंग रिपब्लिक और उससे आगे तक सड़क निर्माण बगैर वैकल्पिक मार्ग बनाए चल रहा है और इसमें आठ से दस किलोमीटर का जाम तो हर दिन लगता ही है। कच्ची सड़की धूल पूरे आसमान को बदरंग कर देती है। हालांकि सरकार ने एनएचआई पर नब्बे लाख का जुर्माना भी किया है लेकिन एक तरफ 16 लेन की सड़क का काम जल्द पूरा करने का दवाब है तो दूसरी तरफ नेषनल हाईवे -9 का भारी यातायात। यहां उपज रहे ध्ूाल और धुएं ने बीते तीन साल से आसपास कई किलोमीटर तक रहने वालों का जीना दूभर कर दिया है। फिर नए बहुमंजिला इमारतों के कई सौ प्रोजक्ट भी यहां हैं। भले ही फिलहाल वहां काम रूक गया हो लेकिन भवन के भीतर पत्थर काटने, टाईल्स लगाने की मषीने , लकड़ी का काम आदि चल ही रहा हैं और इसका बुरादा तो हवा में ही घुलता है। यही नहीं इन भवनों के लिए लाई गई रेत-बालू खुल में ही है और थोड़ी भी हवा चलने पर इसके कण इंसान की सांस में घुलते हैं ।
गाजियाबाद में दिल्ली से आने के जितने भी रास्ते हैं- नंदनगरी -भोपुरा, लोनी, महराजपुर गेट, षालीमार गार्डन व कई अन्य-- हर जगह दिल्ली के कानूनों से मुक्त होने की निरंकुषता समने दिखती है। तीन सवारी वाले टीएसआर में आठ सवारी, ट्रक-बसों की मनमाना गति, सड़क-बाजार में बेतरतीब पार्किग और उसके साथ ही टूटी सड़कें व महीनों से धूल ना झाड़ी गई अच्छी सड़कें भी, सड़क के दोनो तरफ धूल-मिट्टी का अंबार ऐसे ही कई काक पूरे जिले के हर इलाके में है। जिनसे जाम लगता है, धूल उड़ती है और उसके प्रति बेपरवही भी रहती है। अपनी दुकानों से निकले कूड़े को माचिस दिखाना हो या कारखानों के अपषिश्ट को ठिकाने लगाना या फिर मेडिकल कचरे का निबटान और सूखे गिरे पत्तों की सफाई, इस षहर में इन सभी का सुलभ हल इनमें आग लगाना है। दीवाली से पहले जिला प्रषासन ने एक कंट्रोल रूम नंबर जारी कर कूड़े आदि में आग लगाने की षिकायत की अपील की लेकिन जों नंबर जारी किया गया था वह काम ही नहीं करता था, महीनों से भुगतान ना होने के कारण डिस्कनेक्ट था। यह बानगी है कि जिला प्रषासन प्रदूशण के प्रति कितना संजीदा है। गाजियाबाद और उससे सटे बागपत में ऐसे दर्जनों ईंट भट्टे हैं जो किसी भी पांबदी से बेपरवाह सालभर चलते हैं। चूंिक अब मणिपुर की जयंतिया पहाड़ियों के ‘‘रेट होल’’ से कोयला निकालना मुष्किल हो रहा है, साथ ही झारख्ंाड का कोयला महंगा पड़ता है सो ये भट्टे दिल्ली एनसीआर के कूड़े से निकले पानी की बोतलों, चप्पल-जूते व ऐसे ही तेज ज्वनषील पदार्थाें को खरीदते हैं और भट्टे में झोंक देते हैं। इस तरह भले ही उन्हें कम दाम पर ज्यादा उश्मा मिलती हो लेकिन इसे निकला धुआं लेागों में तपेदिक तक कर रहा है। इस तरह के कूड़े का पिरवहन और जलाने की सारी हरकतें बगैर प्रषासन की जानकारी के संभव नहीं होती लेकिन अभी गाजियाबाद का भले ही दम घुट रहा हो लेकिन अपने निजी फायदे के आगे पर्यावरण की सुरक्षा का मसला गौण ही माना जाता है।
दिल्ली में सभी किस्म के ‘‘भारत भाग्य विधाताओं का षासन है, वहां के लोगों को साफ हवा-पानी मिलना बेहज जरूरी है, लेकिन यह भी जान लें कि अपने पड़ोसी षहरों के परिवेष को षुद्ध रखे बगैर दिल्ली का दम घुटने से बचना संभव नहीं है। अब दिल्ली के स्कूल जहरीली हवा के कारण 4 नवंबर से षुरू वाहनों के सम-विशय संचालन से गाजियाबाद बेअसर है। एक बात और गाजियाबाद दिल्ली से करीब है सो उसके जहर होने पर कुछ चर्चा भी है तय है कि आपके कस्बे-षहर के हालात भी इससे बेहतर नहीं होंगे। कारण भी वही होंगे और हालात भी।
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