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मंगलवार, 12 नवंबर 2019

E waste A big threat to ecology

ई-कचरे के तमाम खतरों से बेपरवाह क्यों हैं हम


जब जहरीले धुएं ने दिल्ली और उसके आस-पास लोगों की सांसों में सिहरन पैदा करना शुरू किया, तो प्रशासन भी जागा और राजधानी से सटे लोनी के सेवाग्राम में पुलिस ने 30 जगह छापा मारकर 100 क्विंटल से ज्यादा ई-कचरा जब्त किया। असल में इन सभी कारखानों में ई-कचरे को सरेआम जलाकर अपने काम की धातुएं निकालने का अवैध कारोबार होता था। इसके धुएं से पूरा इलाका परेशान था। प्रशासन हैरान था कि इतना सारा ई-कचरा आखिर यहां आया कैसे? अब पुलिस के पास ऐसा कोई स्थान नहीं है, जहां इस कचरे को सहेजकर रखा जा सके। डर है कि घूम-फिरकर आज नहीं, तो कल वहीं पहुंच जाएगा, जहां से आया है। यह ऐसा कूड़ा है, जिसके लिए जगह बनाने या रिसाइकिल करने की व्यवस्था हमने अभी तक की ही नहीं है। ॉ

एक अनुमान है कि इस साल के अंत तक कोई 33 लाख मीट्रिक टन ई-कचरा जमा हो जाएगा। यदि इसके सुरक्षित निपटारे के लिए अभी से काम नहीं किया गया, तो धरती, हवा और पानी में घुलने वाला इसका जहर जीना मुश्किल कर सकता है। कहते हैं न कि हर सुविधा या विकास की माकूल कीमत चुकानी होती है, लेकिन इस बात का पता नहीं था कि इतनी बड़ी कीमत चुकानी होगी। देश की कारोबारी राजधानी मुंबई से हर साल 1.20 लाख टन कचरा निकलता है, देश की राजनीतिक राजधानी भी बहुत पीछे नहीं है, यहां सालाना 98 हजार मीट्रिक टन ई-कचरा जमा हो जाता है और इसके बाद 92 हजार मीट्रिक टन ई-कचरे के साथ बेंगलुरु तीसरे नंबर पर है। दुर्भाग्य है कि इसमें से महज ढाई फीसदी कचरे का ही सही तरीके से निपटारा हो रहा है। बाकी कचरा इससे जुड़े अवैध कारोबार को आमंत्रित करता रहता है।

गैर-सरकारी संगठन ‘टॉक्सिक लिंक’ की ताजा रिपोर्ट पर भरोसा करें, तो दिल्ली में सीलमपुर, शास्त्री पार्क, तुर्कमान गेट, लोनी, सीमापुरी सहित कुल 15 ऐसे स्थान हैं, जहां पूरे देश का ई-कचरा पहुंचता है और वहां इसका गैर-वैज्ञानिक व अवैध तरीके से निस्तारण होता है। इसके लिए बड़े स्तर पर तेजाब का इस्तेमाल होता है, जो वायु प्रदूषण के साथ ही धरती को बंजर करता है और यमुना को जहरीला बनाता है।

पुराने टीवी और कंप्यूटर मॉनिटर की पिक्चर ट्यूब रिसाइकिल नहीं हो सकती। इसमें लेड, मरक्युरी, कैडमियम जैसे घातक पदार्थ होते हैं। इसके साथ ही हम अगर बैटरियों व मोबाइल फोन के कचरे को भी जोड़ लें, तो निकिल, कैडमियम और कोबाल्ट जैसे तत्व भी इस कचरे में अपनी भूमिका निभाने आ जाते हैं।
कैडमियम से फेफड़े प्रभावित होते हैं, जबकि कैडमियम के धुएं व धूल के कारण फेफड़े व किडनी, दोनों को गंभीर नुकसान पहुंचता है। एक कंप्यूटर का वजन लगभग 3.15 किलो ग्राम होता है। इसमें 1.90 किग्रा सीसा और 0.693 ग्राम पारा और 0.04936 ग्राम आर्सेनिक होता है। ये सारे पदार्थ जलाए जाने पर सीधे वातावरण में घुलते हैं। इनका अवशेष पर्यावरण के विनाश का कारण बनता है। इसमें से अधिकांश सामग्री गलती-सड़ती नहीं है और जमीन में जज्ब होकर मिट्टी की गुणवत्ता को प्रभावित करने के अलावा भूजल को जहरीला बनाने का काम करती है। इन रसायनों का एक अदृश्य भयानक सच यह है कि इसकी वजह से पूरी खाद्य शृंखला बिगड़ रही है। 

वैसे तो केंद्र सरकार ने 2012 में ई-कचरा (प्रबंधन और संचालन) कानून लागू किया है, लेकिन इसमें दिए गए दिशा-निर्देश का पालन होता कहीं दिखता नहीं है। मई 2015 में ही संसदीय समिति ने देश में ई-कचरे के चिंताजनक रफ्तार से बढ़ने की समस्या को देखते हुए इस पर लगाम लगाने के लिए विधायी तंत्र स्थापित करने की सिफारिश की थी, पर इस दिशा में ज्यादा प्रगति नहीं दिख रही। 

ऐसा नहीं कि ई-कचरा महज आफत है। झारखंड के जमशेदपुर स्थित राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला के धातु निष्कर्षण विभाग ने ई-कचरे में छिपे सोने को निकालने की सस्ती तकनीक खोजी है। इसके माध्यम से एक टन ई-कचरे से 350 ग्राम सोना निकाला जा सकता है। समाचार यह भी है कि अगले ओलंपिक में विजेता खिलाड़ियों को मिलने वाले मेडल भी ई-कचरे से बनाए जा रहे हैं। जरूरत यह है कि कूडे़ को गंभीरता से लिया जाए, उसके निस्तारण की गंभीरता को समझा जाए।
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