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शुक्रवार, 15 नवंबर 2019

memories of Guru Nanak In baghddad

बगदाद में गुम गई बाबा नानक की निषानियां
पंकज चतुर्वेदी 

पुराने बगदाद के वीरान व कबाड़ा ट्रेनों का जखीरा बने बगदाद-समारा रेल लाईन रेलवे स्टेशन  के करीब एक बड़े से शेख  मारूफ कब्रिस्तान में एक गुमनाम टूटा-फूटा सा कमरा कभी सिख धर्म के संस्थापक बाबा नानक देव की यादों का बड़ा खजाना हुआ करता था। लगातार युद्ध, तबाही, निरंकुशता के चलते  कभी पुरातन सभ्यता की निशानियों  के लिए मशहूर  इराक अब अपनी धरोहरों को लुटवा कर ठगा सा महसूस कर रहा है। सन 2003 में इराक में अमेरिकी फौजों के घुसने और सद्दाम हुसैन की सल्तनत के पतन के बाद देश  में जिन बेशकीमती एतिहासिक धरोहरों की लूट हुई उसमें बाबा नानक से जुड़ी वे निशानियां भी थीं जो अकेले सिख संगत की आस्था ही नहीं बल्कि विश्व  के धार्मिक- दार्षनिक इतिहास की महत्वपूर्ण कड़ी थी। इस स्थान पर सन 1974 में भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गंाधी के साथ सद्दाम हुसैन (तब उपराष्ट्रपति ) दर्शन  करने जाने के भी प्रमाण हैं।

यह सभी जानते है। कि बाबा नानक विश्व  की ऐसी विलक्ष्ण हस्ती थे, जिन्होंने दुनिया के धर्मों, निरंकार ईश्वर  खोज, जाति-पाति व अंध विश्वास  के अंत के इरादे से 24 साल तक दो उपमहाद्वीपों के 60 से अधिक श हरों की लगभग 28 हजार किलोमीटर पैदल यात्रा की। उनकी इन यात्राओं को उदासियां कहा जाता है और उनकी ये उदासियां चार हिस्सों में(कुछ सिख विद्वान पांच उदासी भी कहते हैं) विभक्त हैं। उनकी चौथी उदासी मुल्तान, सिंध से मक्का-मदीना, फिर इराक-ईरान होते हुए अफगानिस्तान के रास्ते आज के करतारपुर साहिब तक रही। इसी यात्रा में उनका अभिन्न साथी व रबाब से कई रागों की रचना करने वाले भाई मरदाना भी उनसे सदा के लिए जुदा हो गए थे। सनद रहे भाई मरदाना कोई बीस साल बाबा के साथ परछाई की तरह रहे और उनकी तीन वाणियां भी श्री गुरूग्रथ साहेब में संकलित हैं।
मक्का-मदीना की यात्रा के बाद श्री गुरूनानक देव भाई मरदाना के साथ इराक में हजरत अली की दरगाह ‘मशहर शरीफ’ के दर्षन करने के बाद बगदाद पहंुचे। यहा उन्होंने शहर के बाहर दजला या तिगरित नदी के पश्चिम  घाट पर एक कब्रिस्तान में अपना डेरा जमाया। गुरु नानक ने बगदाद (इराक) के भ्रमण में गौसेआजम शेख अब्दुल कादिर जीलानी (1077-1166 ई.) की दरगाह पर हाजिरी दी। ऐसा कहा जाता है कि यहां उनकी मुलाकात सूफी पीर बहलोल दाना से हुई। उनके बीच भारतीय दर्शन  व एकेश्वर पर विमर्ष हुआ। उसके बाद पीर दाना ने उन्हें विलक्षण व्यक्ति बताया। बगदाद में ही शेखे तरीकत शेख मआरुफ कररवी यानी बहलोल दाना की मजार पर चिल्ला अर्थात चालीस दिन साधना की।  इस स्थान पर तब पीर के मुरीदों ने एक पत्थर लगाया था जोकि अरबी और तुर्की  भाषा  में मिला-जुला था। इस पर लिखा था -
गुरू मुराद अल्दी हजरत रब-उल- माजिद, बाबा नानक फकीरूल टेक इमारते जरीद, यरीद इमदाद इद!वथ गुल्दी के तीरीखेने, यपदि नवाव अजरा यारा अबि मुरीद सईद, 917 हिजरी। यहां पर बाबा का जपजी साहब की गुटका, कुछ कपड़े व कई निशा नियां थीं। दुर्भाग्य है कि इतनी पवित्र और एतिहासिक महत्व की वस्तुएं सन 2003 में कतिपय लोग लूट कर ले गए।
हालांकि  इस स्थान पर कभी कोई बड़ी इमारत नहीं रही। बामुष्किल 650 वर्ग फुट का एक कमरा पहले विष्व युद्ध के दौरान इराक गई भारत की सिख रेजीमेंट के कुछ सिपाहियों ने बनाया था।  तब इराक की यात्रा करने वाले फाज् की चिकित्सा सेवा के कैप्टन  कृपाल सिंह द्वारा 15 अक्तूबर 1918 को लिखे गए एक खत में इस स्थान का उल्लेख है।  उन्होंने लिखा था कि बेहद षांत व गुमनाम इस स्थान के बारे में कुछ सिखों के अलावा और कोई नहीं जानता।  रिकार्ड गवाह है कि सन 1930 में भी सिख रेजीमेंट ने यहां का रखरखाव किया था।
‘बाबा नानक नबी अल ंिहंद’ के नाम से इराक में मषहूर इस स्थान पर सद्दाम हुसैन के समय गुरूद्वारा भी बनाया गया और गुजी के पारंपरिक कमरे को यथावत रखा गया। वहां सिख धर्म का ध्वज, लंगर आदि होते थे। इसके लिए सद्दम हुसैन ने ना केवल अनुमति दी थी, बल्कि सरकारी सहयोग भी किया था। युद्ध ने इराक के लोगों को और विष्व इतिहास को बहुत नुकसान पहुंचाया। सन 2008 में भी भारत सरकार ने बगदाद के गुरूद्वारे के लिए बातचीत की थी। लेकिन उसके बाद आईएसआईएस का आतंक षुरू हुआ। सन 2014 में आईएस ने मौसूल षहर पर कब्जा किया और उस लड़ाई में चले गोला बारूद ने यहां के गुरूद्वारे को लगभग नश्ट कर दिया। यह सुखद है कि आज भी बाबा का मूल कमरा बरकरार है। पहले यहां खाड़ी देषोंमें रहने वाले सिख परिवार आया करते थे, लंगर भी होते थे लेकिन आईएस के आगमन के बाद अय यहां कोई नहीं आता। इस स्मारक व गुरूद्वारे की देखभाल सदियों से मुस्लिम परिवार ही करता रहा है। ये परिवार गुरूमुखी पढ़ लेते हैं और श्री गुरूग्रंथ साहेब का पाठ भी करते हैं। ये नानक और बहलोल को अपना पीर मानते हैं।
गुरू नानक देव के प्रकाषोत्सव के 550वें साल में यह केवल सिख कौम के लिए नहीं सारी दुनिया में षंाति, एकता की चाहत रखने वालों के लिए जरूरी है कि गुरू नानक देव की यादों से जुड़ी हर इमारत, हर स्थान, हर वस्तु को सहेजें ताकि आने वाली पीढ़ी को सप्रमाण बताया जा सके कि एक इंसान ऐसा भी हुआ था, जो भाशा-धर्म- देष की विविधताओं को परे रख केवल अपनी वाणी और संगीत से दुनियाभर में घूमा और मानवता का संदेष दिया, जिनके आदर्षों पर स्थापित सिख धर्म को दुनियाभर के कोई ढाई करोड़ लोगों ने अपनाया । बाबा नानक की बगदाद की यात्रा इस बात का भी प्रमाण है कि उस काल का समाज धार्मिक मामलों में कट्टर ना हो कर विमर्ष पर भरोसा करता था तभी बाबा नानक द्वारा सुबह-सुबह सुमधुर संगीत के साथ बगदाद के लोगों को जगाने के बाद कुछ लोगों द्वारा संगीत  पर धार्मिक पाबंदी के आधार पर गुस्सा करने व बाबा नानक द्वारा इस पर स्पश्टीकरण के बाद उनका सम्मान करने की घटना हुई। बगदाद में महज गुरूद्वारे की जरूरत नहीं है, नानक देव की जो स्मृतियां लूट ली गईं उन्हें वापिस लाना ज्यादा जरूरी है।


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