My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

शनिवार, 14 मार्च 2020

why Nehru has to be remembered today too

आज का दौर और पंडित नेहरु

पंडित नेहरु वे भारतीय नेता थे जो आज़ादी की लडाई के दौरान और उसके बाद अपनी मृत्यु तक सत्ता में भी साम्प्रदायिकता , अंध विश्वास से लड़ते रहे- पार्टी के भीतर भी और बाहर भी . एक तरफ जिन्ना की सांप्रदायिक राजनीती थी तो उसके जवाब में कांग्रेस का बड़ा वर्ग हिन्दू राजनीति का पक्षधर था, . पंडित नेहरु हर कदम पर धार्मिकता, धर्म अन्धता और साम्प्रदायिकता के भेद को परिभाषित करते रहे , जान लें आज भी नेहरु कि मृत्यु के ५५ साल बाद संघ परिवार केवल नेहरु का गाली बकता है और दूसरी तरफ जमायत जैसे सांप्रदायिक संगठन सी ए ए/ एन आर सी आन्दोलन स्थल पर अम्बेडकर व् गांधी की चित्र तो लगाते हैं लेकिन नेहरु का नहीं . नेहरु के बारे में झूठी कहानियां गढ़ना , उनके फर्जी चित्र बनाना , उनके बारे में अ श्लील किस्से इलेक्रनिक माध्यम पर भेजना -- तनिक सोचें कि अपनी मृत्यु के पचपन साल बाद भी आखिर उनसे किसे खतरा है ? जो इस तरह की अभद्र हरकतों की साजिश होती है ?? असल में उन्हें नेहरु के विचार, नीति या मूल्यों से खतरा है जो कि सांप्रदायिक उभार से सत्ता पाने की जुगत में आड़े आता हैं .

इसमें कोई संशय नहीं होना चाहिए कि साम्प्रदायिक आधार पर विभाजित हुए देश में " सांप्रदायिक सद्भाव" की अवधारणा और सभी को साथ ले कर चलने की नीति और तरीके की खोज पंडित नेहरु ने ही की थी और उसी के सिद्धांत के चलते , उनकी सामाजिक उत्थान की अर्थ निति के कारण सांप्रदायिक लेकिन छद्म सांस्कृतिक संगठनो के गोद में पलते रहे राजनितिक दल चार सीट भी नहीं पाते थे .
मेरा नेहरु को पसंद करने का सबसे बड़ा कारण है कि वे राजनेता थे , लेकिन राजनीती में आदर्शवाद में उनकी गहन आस्था थी , उनकी दृष्टि दूरगामी थी और उनकी नीतियाँ वैश्विक . वे वेहद संयमित, संतुलित और आदर्श राष्ट्रवाद के पालनकर्ता थे , उनके लिए राष्ट्रीयता देश के लिए भावुकता से भरे सम्बन्ध थे, वे दयानंद, विवेकानन्द या अरविन्द के राष्ट्रवाद सम्बन्धी "धार्मिक राष्ट्रीयता" से परिपूर्ण दृष्टिकोण से सहमत नहीं थे . तभी संघ परिवार राष्ट्रीयता के नाम पर इन नेताओं की फोटो टांगता है , हालांकि देश के लिए उनके योगदान पर वे कुछ आपदाओं के समय नेकर पहने सामन ढ़ोने के कुछ फोटो के अलावा कुछ पेश कर नहीं पाते हैं , नेहरु का राष्ट्रवाद विशुद्ध भारतीय था , जबकि उनके सामने राष्ट्रवाद को हिन्दू धर्म से जोड़ने वाले चुनौती थे .
नेहरु का स्पष्ट कहना था कि भारत धर्म निरपेक्ष राज्य है न कि धर्म-हीन . सभी धर्म को आदर करना , सभी को उनकी पूजा पद्धति के लिए समान अवसर देना राज्य का कर्तव्य है .वे धर्म के वैज्ञानिक और स्वच्छ दृष्टिकोण के समर्थक थे, जबकि उनके सामने तब भी गाय-गंगा- गोबर को महज नारों या अंध-आस्था के लिए दुरूपयोग करने वाले खड़े थे .

नेहरु मन-वचन- कर्म से लोकतान्त्रिक थे ,उनका लोकतंत्र केवल राजनितिक नहीं था, सामजिक और आर्थिक क्षेत्र को भी उन्होंने लोकतंत्र की परिधि में पिरोया था , नेहरु जानते थे कि देश का ब्रितानी राज में स्सबसे ज्यादा नुक्सान सांप्रदायिक और जातीय विद्वेष के कारण उपजे संघर्षों के कारण हुआ और उसी के कारण कई बार आज़ादी हाथ में आने से चूक गयी . वे साफ़ कहते थे कि देश के लोगों के बीच एकता और सौहार्द को खोने का अर्थ-- देश को खोना है --
आज दिल्ली में संसद से पन्द्रह किलोमीटर दूर तीन दिन तक सांप्रदायिक दंगे होते हैं पचपन लोग मारे जाते हैं और सरकार में बैठे लोगों को न तो इसमें तन्त्र की असफलता दिख रही है और न ही ग्लानी है , कुछ हज़ार मुकदमे दर्ज करने या कई सौ गिरफ्तारी से अपनी जिम्मेदारियों से उऋण होने का भाव न तो लोकतंत्रात्मक है और न ही सांप्रदायिक सद्भाव.

पंडित नेहरु की खासियत थी -- नफरत विहीन व्यक्तित्व. वे न तो अपने विरोधी नेता से विद्वेष रखते थे और न ही पत्रकारों से, शंकर वारा उन पर व्यंग करने अले कार्टून बनाने का किस्सा तो सभी को पता ही है , उन्होंने श्यामा प्रसाद मुकर्जी को भी अपने पहले मंत्री मंडल में लेना पसंद किया , संसद में उनके क भी भाषण में किसी विपक्षी दल के प्रति निजी हमले का एक भी लफ्ज़ नहीं अहा , हालांकि चीन ने उनकी इसी आदत पर घाटा भी दिया उर कुछ कम्युनिस्टों ने भी.
आज नेहरु की सोच की जरूरत है -- जो ईतिहास की देश के सकारात्मक विकास में वैज्ञानिक व्याख्या कर सके, जो भाषा-, बयान और कृत्य में लोगों के बीच सांप्रदायिक सद्भाव को स्थापित कर सके, राजनीति में शुचिता, विद्वेश रहित माहौल पर भरोसा बना सके , सत्ता लुटने की प्रवृति से उबार सके .
जाहिर है कुछ लोगों को लगेगा कि आज तो जयंती है न पुन्य तिथि -- फिर नेहरु को क्यों याद किया जा रहा है ? कांग्रेस तो नेहरु को कभी का तिलांजली दे चुकी है .
तो जनाब - देश के सामने जब लोकतंत्र के प्रति अविश्वास का माहौल हो, जब साम्प्रदायिकता को एक आम अपराध की तरह गिना जा रहा हो, जब तंत्र के कुछ अंग संविधान मूल्यों के विपरीत काम कर रहे हों, जब लोकतंत्र के मूल तत्व - प्रतिरोध को कुचलने के इए राजतन्त्र अनैतिक तरीके अपना रहा हो -- तब उस आत्मा को याद रखना जरुरी है इसने आधुनिक भारत की मजबूत नीव रखी थी --- जनाब नया भवन तो बनाया जा सकता है लेकिन कुछ लोग असंख्य तल्ले वाली ईमारत की नीव ही खोदना चाहते हैं , तब नीव डालने वाले को याद करना ही होगा , ताकि ईमारत बची रहे .

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