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गुरुवार, 14 मई 2020

grasshopper conspiracy of Pakistan against India


पाकिस्तान की टिड्डा साजिश
पंकज चतुर्वेदी

हाल ही में उ.प्र,म.प्र सहित कई राज्य सरकारों ने जिला स्तर पर चेतावनी भेजी है कि किसी बड़े टिड्डी हमले से बचाव की तैयारी व इस मसले पर ग्रामीणों को जागरूक किया जाए। विदित हो राजस्थान के थार में पिछले साल बरसात के बाद ही पाकिस्तान की तरफ से टिड्डी हमले षुरू हो गए थे। अभी गर्मी षुरू होते ही भारत-पाकिस्तान की सीमा पर हजारों किलोमीटर में फैले रेगिस्तान में अंधड़ चलने लगे हैं और इस रेतीले बवंडर के साथ बह कर आ रहे टिड्डों के गिरोह भारत के लिए बड़ा संकट खड़ा कर रहे हैं। अंधड़ के साथ उड़ने से टिड्डी दल एक रात में सत्तर किलोमीटर तक सफर तय कर रहे है। और गुरूवार तक इनका व्यापक असर फलौदी तक हो चुका था। सुनते ही डर लगता है कि फसलों को  पलक झपकते ही चट करने वाले इन टिड्उों के गिरोह का फैलाव कोई चार वर्ग किलोमीटर हैं । यह जहां से गुजर रहा है, वहां आसमान नहीं दिखता और दिन में अंधेरा छा जाता है। यह बात सामने आ रही है कि पाकिस्तान जानबूझ कर ऐसी हरकतें कर रहा है जिससे टिड्डी दल भारत में नुकसान करें।


राजस्थान सरकार के दस्तावेज बताते हैं कि मई-2019 से फरवरी 2020 तक  पाकिस्तान से आए टिड्डी दल  ने सात जिलों में कोई एक हजार करोड़ का नुकसान किया है। बाडमेर में 22 हजार हैक्टर, जेसलमेर में 75 हजार , जोधपुर में 4500 हैक्टर खेतों सहित कुल 2.25 लाख हैक्टर की खड़ी फसल यह टिड्डी दल चबा चुके हैं। टिड्डी दल का इतना बड़ा हमला आखिरी बार 1993 में यानि 26 साल पहले हुआ था।
बीते साल आषाढ़ लगते ही राजस्थान के रेतीले शेखावटी में दो दिन धुंआधार बारिश  हुई जिसने रेगिस्तान में कई जगह नखलिस्तान बना दिया था। सूखी, उदास सी रहने वाली लूनी नदी लबालब हो गई । पानी मिलने से लोग बेहद खुश  थे और जम कर खेतों में मेहनत भी की गई।

सोमालिया जैसे उत्तर-पूर्वी अफ्रीकी देषों से ये टिड्डे बारास्ता यमन, सऊदी अरब और पाकिस्तान भारत पहुंचते रहे हैं । विश्व  स्वास्थ संगठन ने स्पष्ट चेतावनी दी है कि यदि ये कीट एक बार इलाके में घुस गए तो इनका प्रकोप कम से कम तीन साल जरूर रहेगा । अतीत गवाह है कि 1959 में ऐसे टिड्डों के बड़े दल ने बीकानेर की तरफ से धावा बोला था, जो 1961-62 तक टीकमगढ़(मध्यप्रदेश ) में तबाही मचाता रहा था । इसके बाद 1967- 68, 1991--92 में भी इनके हमले हो चुके हैं। अफ्रीकी देशों  में महामारी के तौर पर पनपे टिड्डी दलों के बढ़ने की खबरों में मद्देनजर हाल ही में राजस्थान सरकार ने अफसरों की मींटंग बुला कर इस समस्या ने निबटने के उपाय तत्काल करने के निर्देश दिए हैं ।

हमारी फसल और जंगलों के दुष्मन टिड्डे, वास्तव में मध्यम या बड़े आकार के वे साधारण टिड्डे(ग्रास होपर) हैं, जो हमें यदा कदा दिखलाई देते हैं । जब ये छुटपुट संख्या में होते हैं तो सामान्य रहते हैं, इसे इनकी एकाकी अवस्था कहते हैं । प्रकृति का अनुकूल वातावरण पा कर इनकी संख्या में अप्रत्याषित बढ़ौतरी हो जाती है और तब ये बेहद हानिकारक होते हैं। रेगिस्तानी टिड्डे इनकी सबसे खतरनाक प्रजाति हैं । इनकी पहचान पीले रंग और विषाल झुंड के कारण होती हैं। मादा टिड्डी का आकार नर से कुछ बड़ा होता हैं और यह पीछे से भारी होती हैं। तभी जहां नर टिड्डा एक सेकंड में 18 बार पंख फड्फड़ाता है,वहीं मादा की रफ्तार 16 बार होती हैं । गिगेरियस जाति के इस कीट के मानसून और रेत के घोरों में पनपने के आसार अधिक होते हैं ।

एक मादा हल्की नमी वाली रेतीली जमीन पर ं40 से 120 अंडे देती है और इसे एक तरह के तरल पदार्थ से ढंक देती हैं । कुछ देर में यह तरल सूख कर कड़ा हो जाता है और इस तरह यह अंडों के रक्षा कवच का काम करता हैं। सात से दस दिन में अंडे पक जाते हैं । बच्चा टिड्डा पांच बार रंग बदलता हैं । पहले इनका रंग काला होता है, इसके बाद हल्का पीला और लाल हो जाता हैं । पांचवी कैंचुली छूटने पर इनके रंग निकल आते हैं और रंग गुलाबी हो जाता हैं । पूर्ण वयस्क हाने पर इनका रंग पीला हो जाता हैं । इस तरह हर दो तीन हफ्ते में टिड्डी दल हजारों गुणा की गति से बढ़ता जाता हैं ।
यह टिड्डी दल दिन में तेज धूप की रोश नी होने के कारण बहुधा आकाश  में उड़ते रहते हैं और शाम ढलते ही पेड़-पौधों पर बैठ कर उन्हें चट कर जाते हैं । अगली सुबह सूरज उगने से पहले ही ये आगे उड़ जाते हैं । जब आकाश  में बादल हों तो ये कम उड़ते हैं, पर यह उनके प्रजनन का माकूल मौसम होता हैं । ताजा शोध  से पता चला है कि जब अकेली टिड्डी एक विषेश अवस्था में पहुंच जाती है तो उससे एक गंधयुक्त रसायन निकलता हैं । इसी रासायनिक संदेश  से टिड्डियां एकत्र होने लगती हैं और उनका घना झुंड बन जाता हैं । इस विशेष  रसायन को नष्ट  करने या उसके प्रभाव को रोकने की कोई युक्ति अभी तक नहीं खोजी जा सकी हैं ।
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वैसे तो भारत-पाकिस्तान के बीच टिड्डों को रोकने  के समझौते हैं और इसकी मीटिंग भी होती हैं, लेकिन इस बार साफ लगता है कि पाकिस्तान ने भारत में टिड्डी हमले को साजिश न अंजाम दिया है। संयुक्त राष्ट्र  के खाद्य और कृषि  संगठन(एफएओ ) ने पहले से ही चेता दिया थ कि इस बार टिड्डी हमला हो सकता है।  जनवरी-2020 में पाकिस्तान के रेगिस्तानी इलाकों में इनके गुलाबी पंख फड़फडा़ने लगे थे । समझौते के मुताबिक तो पाकिस्तान को उसी समय रासायनिक छिड्काव कर उन्हें मार डालना था लेकिन वह नियमित मीटिंग में झूठे वायदे करता रहा। यही नहीं अब पाकिस्तान चीन से 10 एयर ब्लास्ट स्प्रेयर ले रहा है। ये मशीन  ट्रक पर फिट की जा सकती हैं और ये बहुत ही तेज वेग से कीटनाशकों का छिड़काव करती हैं। यदि पाकिस्तान ने इन मशीनों  का इस्तेमाल अंधड़ के समय भारत की तरफ किया तो तेज गति के कारण टिड्डे कम मरेंगे और वे और ज्यादा तेज वेग से हमारे यहां घुसेंगे। वैसे टिड्डों के व्यवहार से अंदाज लगाया जा सकता है कि उनका प्रकोप आने वाले साल में जुलाई-अगस्त तक चरम पर होगा । यदि राजस्थान और उससे सटे पाकिस्तान सीमा पर टिड्डी दलों के भीतर घुसते ही सघन हवाई छिड़काव किया जाए, साथ ही रेत के धौरों में अंडफली नष्ट  करने का काम जनता के सहयोग से शरू  किया जाए तो अच्छे मानसून का पूरा मजा लिया जा सकता हैं ।
खबर है कि अफ्रीकी देषों से एक किलोमीटर तक लंबाई के टिड्डी दल आगे बढ़ रहे हैं । सोमालिया जैसे देषो ंमें आंतरिक संघर्श और गरीबी के कारण सरकार इनसे बेखबर हैं । इसके बारे में भी एफएओ चेता चुका है कि मानसून के साथ इस दल का हमला गुजरात में भुज के आसपास होगा। यमन या अरब में कोई खेती होती नहीं हैं । जाहिर है कि इनसे निबटने के लिए भारत और पाकिस्तान को ही मिलजुल का सोचना पड़ेगा ।
पंकज चतुर्वेदी


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