My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

रविवार, 10 मई 2020

preserve biodiversity to prevent virus like corona



वायरस हमले से बचना हो तो जैव विविधता को सहेजना होगा 

पंकज चतुर्वेदी 



इंसान और प्रकृति एक ही तंत्र के सिक्के के दो पहलु हैं , एक दुसरे पर आश्रित , जहां प्रकृति इंसान की भोजन, जल, औषधि, स्वच्छ हवा सहित कई मूलभूत जरूरतों को मौन रह कर पूरा करती है तो वह भी अपेक्षा करती है कि इंसान उसके नैसर्गिक स्वरुप में कम ही दखल दे .पिछले एक दशक के दौरान देखा गया कि मानवीय जीवन पर संक्रामक रोगों की मार बहुत जल्दी- जल्दी पड रही है और ऐसी बीमारियों का 60% हिस्सा जन्तुजन्य है . यही नहीं इस तरह की बीमारियों का 72 फ़ीसदी जानवरों से सीधा इंसान में आ रहा है . हाल ही वर्षों में दुनिया में कोहराम मचा है कोविड-19 का मूल भी जंगली जानवरों से ही है. एच आई वी , सार्स, जीका ,हेन्द्रा, ईबोला, बर्ड फ्लू आदि सभी रोग भी जंतुओं से ही इंसानों को लगे हैं . दुखद है कि अपनी भौतिक सुखों की चाह में इंसान ने पर्यावरण के साथ जमकर छेड़छाड़ की और इसी का परिणाम है की जंगल, उसके जीव् और इंसानों के बीच दूरियां कम होती जा रही है . जंगलों की अंधाधुंध कतई और उसमें बसने वाले जानवरों के प्राकर्तिक पर्यावास के नष्ट होने से इंसानी दखल से दूर रहने वाले जानवर सीधे मानव के संपर्क में आ गए और इससे जानवरों के वायरसों के इंसान में संक्रमण और इंसान के शारीर के अनुरूप खुद को ढालने की क्षमता भी विकसित हुयी . खासकर खेती के कारण , भूमि के बदलते इस्तेमाल ने जन्तुजन्य रोगों की राह इंसान तक आसान कर दी है. जहां वन्यजीवों की विस्तृत जैव विविधता पर इंसान की घनी आबादी का साया पड़ा , वहां ऐसे रोग संक्रमण की अधिक संभावना होती है . तीन तरीकों से जैव विविधता के साथ छेड़छाड़ के दुष्परिणाम भयानक बीमारियों के रूप में सामने आते हैं . पहला, पारिस्थिकी तंत्र में छेड़छाड़ के कारण इंसान और उसके पालतू मवेशियों का वन्य जीवों से सीधा संपर्क होना , दूसरा , चमगादड़ जैसे जानवर जो कि इंसानी बस्तियों में रहने की आदि हैं का इंसान या उनके मवेशियों से ज्यादा संपर्क होना . तीसरा, सरलीकृत पारिस्थितिक तंत्र में इन जीवित वन्यजीव प्रजातियों द्वारा अधिक रोगजनकों का संक्रमण होता है। जनसंख्या और उनके मवेशियों की तेजी से बढती आबादी का सीधा अर्थ है कि वन्यजीवों की प्रजातियां और उनके द्वारा वाहक रोगजनकों से अधिक से अधिक संपर्क.
आज, 7.8 अरब इंसान धरती के प्रत्येक पारिस्थितिकी तंत्र का मनमाना दोहन करने पर उतारू हैं । उनका पशुधन भी इस कार्य में अपने मालिक इंसानों का साथ देता है . एक मोटा अनुमान है कि धरती पर कोई 4.7 अरब मवेशी, सुअर, भेड़ और बकरियां के साथ 23.7 अरब मुर्गियां हैं . इस तरह यह धरती किसी सूक्ष्म जीवाणु और रोगजनकों के लिए एक प्रजाति से दूसरे प्रजाति में जाने के नए अवसरों के साथ एक तेजी से संक्रमित हो रही है । जान लें जब वायरस अपना नया होस्ट अर्थान मेजबान तलाशता है तो यह बात खासतौर पर महत्व रखती हैं कि मेजबान शारीर की कोशिका अर्थात सेल के ऊपर बने अभिग्राहक अर्थात रिसेप्टर के साथ इस वायरस की सतह पर लगे प्रोटीन का सम्मिलन कितनी अच्छी तरह होता है . यह सम्मिलन क्षमता विकसित करने के लिए वायरस को मेजबान शारीर की संरचना को भांपने में समय लगता है , जाहिर है कि यदि किसी जंगल के जानवर का जितना अधिक सम्पर्क इंसानी परिवेश से होगा, जानवर का वायरस , इंसान के शरीर के अनुरुप खुद तो ढालने में सफल होगा . चूँकि कोरोना वायरस सिंगल स्ट्रैडेड वायरस है अतः इसके जीनोम में बदलाव अर्थात म्यूटेशन बहुत अधिक होता है . तभी हम सुन रहे हैं कि कोरोना बहुत तेजी से अपना स्वरूप बदल रहा है और वुहान वाला वायरस न इटली में मिला और न ही भारत में . हर जगह उसने अपना स्वरुप थोड़ा बदला .
खेती के बदलते तरीके ने कृषि जैव विविधता को बहुत सीमित कर दिया, जैसे हमारी थाली से मोटे अनाज का गायब होना , नए किस्म की फल-सब्जियों का दूर देशों से ला कर क्रितिरिम तरीके से उत्पादन . जान लें दुनिया के किसी भी ईलाके में पारम्परिक रूप से उगने वाली फसल वहां के मौसम, पारिस्थिकी , वहां के बाशिंदों की जरूरत के मुताबिक़ कई हज़ार साल में विकसित हुयी है लेकिन पिछले कुछ सालों में हमने इस पारंपरिक भोजन प्रणाली को छिन्न-भिन्न कर दिया . परिणाम सामने है कि कहीं भोजन में अतिरिक्त प्रोटीन है तो कहनी अपेक्षित चूने की मात्रा में कमी . इस तरह की फसल की पैदावार जमीन के पारिस्थितिकी तन्त्र के साथ भी खिलवाड़ होता है . हर खेत-मिटटी में अनगिनत अति सूक्ष्म जीवाणु होते हैं जो इंसान की प्रतिरोधक क्षमता के सयाय्क होते हैं, गैर पारम्परिक फसल उगाने के लिए डी जाने वाले कृत्रिम खाद-दवा- रसायन असल में ऐसे ही सूक्ष्म, ना दिखने वाले लेकिन इंसान और उसके परिवेश के मित्र जीवाणुओं का खात्मा कर देते हैं , किसी घने जंगल से बस्ती तक किसी खतरनाक जीवाणु के आने के रास्ते में ये न दिखने वाले सिपाही लगातार मुकाबला करते रहते हैं, जिनकी शक्ति को खेत में इस्तेमाल रसायन निष्क्रिय कर देते हैं.
संयुक्त राष्ट्र में जैव विविधता प्रकोष्ठ पहले ही चेतावनी दे चुका है कि यदि दुनिया को भविष्य में इस तरह के जन्तुजन्य वायरस हमलों से बचाना है तो हर तरह के जंगली जानवरों के खुले बाज़ार पर रोक लगाना होगा . संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता सम्मेलन की कार्यकारी सचिव एलिजाबेथ मारूमा मेम्रा ने इंसान के भोजन के लिए ज़िंदा या मृत जंगली जानवरों की तिजारत के गंभीर परिणाम की चेतावनी दी है . विदित हो कोरोना का जंक कहे जान वाले चीन ने गंध-बिलाव, भेदिये के बच्चे, पेंगोलिन जैसे जानवरों को छोटे पिंजड़ों में बंद कर भोजन के रूप में बेचने पर पाबंदी लगा दी है, चीन ने पाया कि इस तरह गंदे परिवेश में जानवरों को बंद क्र रखने से वे कई जटिल बीमारियों के शिकार हो जाते हैं और यहं से संक्रमण इंसान में जाता है . कई वैज्ञानिक तो समूचे चीन में इस तरह के जानवर मंदी पर स्थायी पाबंदी की मांग कर चुके हैं. पश्चिमी- मध्य अफ्रीका में ईबोला हो या पूर्वी अफ्रीका का निपाह का हमला, बानगी है कि प्रकृति के नुक्सान और इंसानों में नए तरीके के रोगों के संचरण के बीच गहरा नाता है . विश्व स्वास्थ्य संगठन भी जानवरों के कच्चे या कम पके मांस, कच्चे दूध और जानवरों के अंगों को कच्चा खाने से परहेज की चेतावनी जारी कर चुका है . यह कडवा सच है कि दुनिया के बड़े हिस्से में प्रतिकूल भूगोलिक परिस्थिति और गरीबी के कारण जंगली जानवरों का मांस खाना वहां के बाशिंदों की मज़बूरी है , यदि हमें भविष्य में कोरोना जैसे संक्रामक रोगों से दुनिया को बचाना है तो ऐसे लोगों के लिए वैकल्पिक भोजन की व्यवस्था भी करनी होगी .
यह बहुत दुविधा के हालात हैं कि इंसान और घने जंगलों के बीच दूरी बढ़ाना है, अर्थात जंगल की जमीन को खेत बनाने से रोकना भी है , जंगली जानवरों के शिकार पर पाबंदी भी लगाना है और भोजन के लायक जीवों व् अन्न का उत्पादन भी बढ़ाना है, जैव विविधता के संरक्षण के लिए कीटनाशकों के प्रयोग से भी बचना है और इंसान को भूख से भी बचाना है . अब दुनिया को विकास का चेहरा बदलना होगा , लम्बे लॉक डाउन ने इंसान को सीखा दिया है कि उसकी जरूरतें सीमित है लेकिन लोभ असीमित .


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