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शुक्रवार, 24 जुलाई 2020

End of ground water

पाताल को जाता भूजल

पंकज चतुर्वेदी

यह सर्वविविदत तथ्य कि भूजल किसी भी देश के पेय जल की दिक्कतों का निदान नहीं है, फिर भी भारत में हर घर पानी पहुंचाने की अधिकांश योजनाएं जमीन को गहराई तक खोद कर जल उलेछने पर ही आधारित हैं। गौरतलब है कि ग्रामीण भारत की 85 फीसदी आबादी अपनी पानी की जरूरतों के लिए भूजल पर निर्भर है।  जान लें कि पीने के पानी के लिए घर-आंगन के कुंएं या तालाब की परंपरा रही है, जबकि सिंचाई के लिए बड़े तालाब या जोहड़ की। इन सभी में जल स्तर बढ़िया रहे, इसके लिए इलाके की छोटी-बड़ी नदी को अविरल और भरा पूरा रखा जाता था। लेकिन अब त्वरित जल आपूर्ति के लिए भूजल के मनमाने दोहन की जो आदत पड़ी तो उसके दुपरिणाम सामने आने में चार दशक भी नहीं लगे। 
जमीन की गहराईयों में पानी का अकूत भंडार है । यह पानी का सर्वसुलभ और  स्वच्छ जरिया है, लेकिन यदि एक बार दूषित  हो जाए तो इसका परिष्करण  लगभग असंभव होता है । भारत में जनसंख्या बढ़ने के साथ घरेलू इस्तेमाल, खेती और औद्योगिक उपयोग के लिए भूगर्भ जल पर निर्भरता साल-दर-साल बढ़ती जा रही है  । पाताल से  पानी निचोड़ने की प्रक्रिया में सामाजिक व सरकारी कोताही के चलते भूजल खतरनाक स्तर तक जहरीला होता जा रहा है ।ं भारत में दुनिया की सर्वाधिक खेती होती है । यहां 50 मिलियन हेक्टर से अधिक जमीन पर जुताई होती है, इस पर 460 बी.सी.एम(बिलियन क्यूबिक मीटर). पानी खर्च होता है । खेतों की कुल जरूरत का 41 फीसदी पानी सतही स्त्रोतों से व 51 प्रतिशत भूगर्भ से मिलता है । गत् 50 सालों के दौरान भूजल के इस्तेमाल में 115 गुणा का इजाफा हुआ है । भूजल के बेतहाशा इस्तेमाल से एक तो जल स्तर बेहद नीचे पहंुच गया है, वहीं लापरवाहियों के चलते प्रकृति की इस अनूठी सौगात जहरीली भी होती जा रही है । 
यह संसद में बताया गया है कि करीब 6.6 करोड़ लोग अत्यधिक फ्लोराइड वाले पानी के घातक नतीजों से जूझ रहे हैं, इन्हें दांत खराब होने , हाथ पैरे टेड़े होने जैसे रोग झेलने पड़ रहे हैं।  जबकि करीब एक करोड़ लोग अत्यधिक आर्सेनिक वाले पानी के शिकार हैं। कई जगहों पर पानी में लोहे (आयरन) की ज्यादा मात्रा भी बड़ी परेशानी का सबब है।
देश के 360 जिलों को भूजल स्तर में गिरावट के लिए खतरनाक स्तर पर चिन्हित किया गया है । भारत में खेती, पेयजल व अन्य कार्यों के लिए अत्यधिक जल दोहन से धरती का भूजल भंडार अब दम तोड़ रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर 5723 ब्लॉकों में से 1820 ब्लॉक में जल स्तर खतरनाक हदें पार कर चुका है. जल संरक्षण न होने और लगातार दोहन के चलते 200 से अधिक ब्लॉक ऐसे भी हैं, जिनके बारे में केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने संबंधित राज्य सरकारों को तत्काल प्रभाव से जल दोहन पर पाबंदी लगाने के सख्त कदम उठाने का सुझाव दिया है । 
उत्तरी राज्यों में हरियाणा के 65 फीसदी और उत्तर प्रदेश के 30 फीसदी ब्लॉकों में भूजल का स्तर चिंताजनक स्तर पर पहुंच गया है । इन राज्यों को जल संसाधन मंत्रालय ने अंधाधुंध दोहन रोकने के उपाय भी सुझाए हैं. इनमें सामुदायिक भूजल प्रबन्धन पर ज्यादा जोर दिया गया है। राजस्थान जैसे राज्य में 94 प्रतिशत पेयजल योजनाएं भूजल पर निर्भर हैं। अब राज्य के तीस जिलों में जल स्तर का सब्र समाप्त हो गया है। भूजल विशेशज्ञों के मुताबिक आने वाले दो सालों में राज्य के 140 ब्लाकों में षायद ही जमीन से पानी उलेचा जा सके। 
भूजल के बेतहाशा दोहन की ही त्रासदी है कि उत्तर प्रदेश के कई जिले- कानपुर, लखनउ, आगरा आदि भूकंप संवेदनशील हो गए हैं व चेतावनी है कि यहां कभी भी बड़ा भूकंप  व्यापक जन हानि कर सकता है। पश्चिमी उप्र में तो भूजल में जहर इस कदर घुल गया है कि गांव के गांव कैंसर जैसी बीमारियों के गढ़ बन गए हैं। देश की राजधानी दिल्ली का भूजल खेतों में अंधाधुंध रासायनिक खादों के इस्तेमाल और कारखानों की गंदी निकासी के जमीन में रिसने से दूशित हुआ है । दिल्ली में नजफगढ् के आसपास के इलाके के भूजल को तो इंसानों के इस्तेमाल के लायक नहीं करार दिया गया है । समूची दिल्ली में भूजल अब रेड जोन अर्थात लगभग समाप्त होने की कगार पर चिन्हित है।
मध्यप्रदेश में तो पूरा जल-तंत्र ही भूजल पर निर्भर हो गया है, जबकि बुंदेलखंड जैसे इलाके, जहां ग्रेनाईट संरचना है, भूजल के लिए माकूल ही नहीं हैं। वहां बारिश के सीपेज वाटर पर हैंडपंप रोप कर झूठी वाह वाही लूटी जाती है और गर्मी आने पर उससे पानी निकलना बंद हो जता है। देश में भूजल के अंधाधुंध इस्तेमाल को रोकने के लिए कानून बनाए गए हैं, लेकिन ये कानून किताबों से बाहर नहीं आ पाए हैं । 

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