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शुक्रवार, 11 सितंबर 2020

Hindon River producing illness for Delhi

करोड़ों को बीमारी बांट रहा हिंडन का जहरीला जल



 दिल्ली के पड़ोसी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बहने वार्ली हिंडन और उसकी सहायक कृष्णा व काली नदियों के हालात अब इतने खराब हो गए हैं कि उनसे दिल्ली के लोगों की सेहत खराब हो रही है। सहारनपुर, बागपत, मेरठ, शामली, मुजफ्फरनगर और गाजियाबाद के ग्रामीण अंचलों में इन नदियों ने भूजल तक को जहरीला बना दिया है। अक्तूबर 2016 में ही एनजीटी ने हिंडन के किनारे के हजारों हैंडपंप को बंद करके गांवों में पानी की वैकल्पिक व्यवस्था का आदेश दिया था। कुछ हैंडपंप बंद भी हुए, लेकिन चार साल बाद भी जब साफ पानी का विकल्प नहीं मिला, तो बेबस ग्रामीणों ने फिर उसी पानी को पीना शुरू कर दिया। विडंबना यह कि कोरोना-काल में कारखाने बंद होने के बावजूद हिंडन के हालात ज्यादा नहीं सुधरे, क्योंकि असल में यह नदी अब नाबदान बन गई है।

अगस्त 2018 में एनजीटी के सामने बागपत के गांगनोली गांव पर किया गया एक अध्ययन प्रस्तुत किया गया, जिसमें बताया गया था कि इस गांव में 71 लोग कैंसर के कारण मर चुके हैं और 47 अन्य इसकी चपेट में हैं। गांव में हजार से अधिक लोग पेट के गंभीर रोगों से ग्रस्त हैं और इसका मुख्य कारण हिंडन व कृष्णा का जल है। इस पर एनजीटी ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया, जिसने फरवरी 2019 में अपनी रिपोर्ट पेश की। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि हिंडन और उसकी सहायक नदियों के प्रदूषण के लिए मुजफ्फरनगर, शामली, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर के अशोधित सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट जिम्मेदार हैं। एनजीटी ने तब आदेश दिया था कि हिंडन का जल कम से कम नहाने के काबिल हो, यह सुनिश्चित किया जाए। मार्च 2019 में कहा गया कि इसके लिए एक ठोस कार्ययोजना छह महीने के भीतर पेश की जाए। समय-सीमा निकल गई, लेकिन बात कागजी घोड़ों से आगे बढ़ी ही नहीं। 
लेकिन हिंडन का जहर अब दिल्ली के लिए भी काल बन रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश चूंकि गंगा और यमुना का दोआब क्षेत्र है, इसलिए इसकी भूमि काफी उपजाऊ है और यहां के किसान दिल्ली की आबादी के लिहाज से ही अपने खेतों में फल-सब्जी, अनाज उगाते हैं। चूंकि इन फसलों की सिंचाई ज्यादातर हिंडन के जहरीले पानी से हो रही है, ऐसे में खाद्य पदार्थों के जरिए दिल्ली वालों की सेहत भी अब इससे प्रभावित होने लगी है।
ऐसी अनेक रिपोर्टें सरकारी फाइलों में दबी हुई हैं, जिनमें कहा गया है कि हिंडन के पानी को जहरीले रसायन का मिश्रण कहना बेहतर होगा। इसके पानी में ऑक्सीजन शून्य है। हालत यह है कि यदि कोई पानी में अपना हाथ डुबो दे और उसे फिर स्वच्छ  पानी से साफ न करे, तो उसे चर्मरोग हो सकता है। हिंडन को सीवर से रिवर बनाने के लिए एनजीटी चाहे जितने भी आदेश दे, मगर जब तक नीति-निर्माता इसकी मूल समस्याओं को नहीं समझेंगे, इस नदी का कायाकल्प नहीं हो सकता। इस नदी की मूल समस्याएं हैं- इसके नैसर्गिक मार्ग को बदलना, इसमें शहरी व औद्योगिक नालों का बिना किसी उपचार के गिरना, और तीसरा, इसके जलग्रहण क्षेत्र का अतिक्रमण। इन तीनों समस्याओं पर एक साथ काम किए बगैर हिंडन को बचाना मुश्किल है। 
दिक्कत यह है कि कुछ उद्योगों का बचाव कर रही राज्य सरकार अभी भी यह मानने को तैयार नहीं कि हिंडन का पानी जहरीला हो चुका है, जबकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण समिति ने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण में कुछ ही वर्ष पहले बाकायदा यह स्वीकार किया था कि सहारनपुर से लेकर गौतमबुद्ध नगर तक हिंडन नदी का पानी काफी दूषित हो गया है।
हिंडन जहां भी शहरी क्षेत्रों से गुजर रही है, इसके जल-ग्रहण क्षेत्र में बहुमंजिली इमारतें खड़ी कर दी गई हैं और इन कॉलोनियों के अपशिष्ट सीधे इसी में जाने लगे हैं। गाजियाबाद जिले में हिंडन तट पर कूड़ा फेंकने या इसमें मलबा डालने को लेकर न तो किसी को कोई भय है, और न ही संकोच। जाहिर है, इसके जहर का दायरा अब विस्तारित होता जा रहा है और देर-सवेर इसकी जद में वे भी आएंगे, जो इसे जहरीला बनाने में लिप्त हैं। सरकार गाजियाबाद में हिंडन पर रिवर फ्रंट बनाने की योजना बना रही है, लेकिन जब तक नदी का पानी साफ नहीं होगा, तब तक ऐसी कोई भी योजना नदी तट की जमीन को कब्जाने की कवायद ही मानी जाएगी।

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