सकर माउथ फिश : पारिस्थितिकी के लिए बड़ा खतरा
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हाल ही में वाराणसी में रामनगर के रमना से होकर गुजरती गंगा में डाल्फिन के संरक्षण के लिए काम कर रहे समूह को एक ऐसी विचित्र मछली मिली, जिसका मूल निवास हजारों किलोमीटर दूर दक्षिणी अमेरिका में बहने वाली अमेजन नदी है।
चूंकि गंगा का जल तंत्र किसी भी तरह से अमेजान से संबद्ध है नहीं तो इस सुंदर सी मछली के मिलने पर आश्चर्य से ज्यादा चिंता हुई। हालांकि दो साल पहले भी इसी इलाके में ऐसी ही एक सुनहरी मछली भी मिली थी।
सकर माउथ कैटफिश नामक यह मछली पूरी तरह मांसाहारी है और जाहिर है कि यह इस जल-क्षेत्र के नैसर्गिक जल-जंतुओं का भक्षण करती है। इसका स्वाद होता नहीं , अत: ना तो इसे इंसान खाता है और ना ही बड़े जल-जीव। सो इसके तेजी से विस्तार की संभावना होती है। यह नदी के पूरे पर्यावरणीय तंत्र के लिए इस तरह हानिकारक है कि ‘नमामि गंगे परियोजना’ पर व्यय हजारों करोड़ इसे बेनतीजा हो सकते हैं। हालांकि गंगा नदी पर मछलियों की कई प्रजातियों के गायब होने का खतरा कई साल पुराना है। पहाड़ों से उतर कर गंगा जैसे ही मैदानी इलाकों में आती है तो उसकी जल-धारा के साथ आने वाली मछलियों की कई प्रजातियां ढूंढे नहीं मिल रही। छह साल पहले राट्रीय मत्स्य विकास बोर्ड द्वारा करवाए गए सव्रे में पता चला कि गंगा की पारंपरिक रीठा, बागड़, हील समेत छोटी मछलियों की 50 प्रजातियां लुप्त हो गई हैं। जान लें जैव विविधता के इस संकट का कारण हिमालय पर नदियों के बांध तो है। ही, मैदानी इलाकों में तेजी से घुसपैठ कर रही विदेशी मछलियों की प्रजातियां भी इनकी वृद्धि पर विराम लगा रही हैं। गंगा और इसकी सहायक नदियों में पिछले कई वर्षो के दौरान थाईलैंड, चीन व म्यांमार से लाए बीजों से मछली की पैदावार बढ़ाई जा रही है। ये मछलियां कम समय में बड़े आकार में आ जाती हैं और मछली-पालक अधिक मुनाफे के फेर में इन्हें पालता है। हकीकत में ये मछलियां स्थानीय मछलियों का चारा हड़प करने के साथ ही छोटी मछलियों को भी अपना शिकार बना लेती हैं।
इससे कतला, रोहू और नैन जैसी देसी प्रजाति की मछलियों के अस्तित्व पर खतरा हो गया है। किसी भी नदी से उसकी मूल निवासी जलचरों के समाप्त होने का असर उसके समूचे पारिस्थितिकी तंत्र पर इतना भयानक होता है कि जल की गुणवत्ता, प्रवाह आदि नट हो सकते हैं। मछली की विदेशी प्रजाति खासकर तिलैपिया और थाई मांगुर ने गंगा नदी में पाई जाने वाली प्रमुख देसी मछलियों की प्रजातियों कतला, रोहू और नैन के साथ ही पड़लिन, टेंगरा, सिंघी और मांगुर आदि का अस्तित्व खतरे में डाल दिया है। गंगा के लिए खतरा बन रही विदेशी मछलियों की आवक का बड़ा जरिया आस्था भी है। विदित हो हरिद्वार में मछलियां नदी में छोड़ने को पुण्य कमाने का जरिया माना जाता है। यहां कई लोग कम दाम व सुंदर दिखने के कारण विदेशी मछलियों को बेचते हैं। इस तरह पुण्य कमाने के लिए नदी में छोड़ी जाने वाली यह मछलियां स्थानीय मछलियों और उसके साथ गंगा के लिए खतरनाक हो जाती हैं। एक्सपर्ट के मुताबिक, गंगा में देसी मछलियों की संख्या करीब 20 से 25 प्रतिात तक हो गई है, जिसकी वजह ये विदेशी मछलियां हैं। गंगा नदी में 143 किस्म की मछलियां पाई जाती हैं। हालांकि अप्रैल 2007 से मार्च 2009 तक गंगा नदी में किए गए एक अध्ययन में 10 प्रजाति की विदेशी मछलियां मिली थीं। अंधाधुंध और अवैध मछली पकड़ने, प्रदूषण, जल अमूर्तता, गाद और विदेाशी प्रजातियों के आक्रमण भी गंगा में मछली की विविधता को खतरा पैदा कर रहे हैं और 29 से अधिक प्रजातियों को खतरे की श्रेणी में सूचीबद्ध किया गया है। वैसे गंगा में सकर माउथ कैट फिश के मिलने का मूल कारण घरों में सजावट के लिए पाली गई मछलियां हैं। चूंकि ये मछलियां दिखने मेंंसुदर होती हैं साम सजावटी मछली के व्यापारी इन्हें अवैध रूप से पालते हैं।
कई तालाब, खुली छोड़ दी गई खदानों व जोहड़ों में ऐसे मछलियों के दाने विकसित किए जाते हैं और फिर घरेलू एक्वेिरियम टैंक तक आते हैं। बाढ़, तेज बरसात की दशा में ये मछलियां नदी-जल धारा में मिल जाती हैं वहीं घरों में ये तेजी से बढ़ती हैं व कुछ ही दिनों में घरेलू एक्वेिरियम टैंक इन्हें छोटा पड़ने लगता हैं। ऐसे में इन्हें नदी-तालाब में छोड़ दिया जाता हैं। थोड़ी दिनों में वे धीरे-धीरे पारिस्थितिक तंत्र घुसपैठ कर स्थानीय जैव विविाता और अर्थव्यवस्था को खत्म करना शुरू कर देती हैं। चिंता की बात यह है कि अभी तक किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश में ऐसी आक्रामक सजावटी और व्यावसायिक रूप से महत्त्वपूर्ण मछली प्रजातियों के अवैध पालन, प्रजनन और व्यापार पर कोई मजबूत नीति या कानून नहीं है।
वाह... बहुत सुंदर लेख..👌👌
जवाब देंहटाएंवाह... बहुत सुंदर लेख..👌👌
जवाब देंहटाएंवाह... बहुत सुंदर लेख..👌👌
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