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शनिवार, 9 जनवरी 2021

Delhi can be topples due to earth quick

 कहीं दिल्ली की धरती डोल गई तो

पंकज चतुर्वेदी 


साल 2020 में दिल्ली व उसके आसपास के दायरे में कुल 51 बार घरती थर्राई। दिसंबर में तो दस दिन के भीतर दो बार  प्रकृति ने सबको झकझोर दिया। इस साल आए भूकंपो ंमें से तीन तो ‘पीली श्रेणी’ अर्थात रिक्टर पैमाने पर चार अंक से अधिक के थे। अभी 17 दिसंबर का भूकंप 4.2 का था और इसका केंद्र दिल्ली से बहुत करीब रेवाड़ी था। तीन जुलाई को आया 4.7 ताकत के भूकंप का केंद्र अलवर और 29 मई के 4.5 वाले जलजले का केंद्र रोहतक था। नेषनल सेंटर फार सिस्मोलोजी ने दिल्ली को खतरे के लिए तय जोन चार में आंका है। अर्थात यहां भूकंप आने की संभावनांए गंभीर स्तर पर हैं। यह सच है कि  धरती कब डोलेगी, इसका आकलन करना अभी बहुत मुष्किल है, लेकिन यह भी कड़वा सच है कि  भूकंप के संभावित नुकसान के कई  कारणों को ना केवल समाज ने खुद उपजाया है, बल्कि उसके प्रति अभी भी बेपरवाही है। 

भूकंप संपत्ति और जन हानि के नजरिए से सबसे भयानक प्राकृतिक आपादा है, एक तो इसका सटीक पूर्वानुमान संभव नहीं, दूसरा इससे बचने के कोई सषक्त तरीके हैं नहीं। महज जागरूकता और अपने आसपास को इस तरह से सज्ज्ति करना कि कभी भी धरती हिल सकती है, बस यही है इसका निदान। हमारी धरती जिन सात टेक्टोनिक प्लेटों पर टिकी है, यदि इनमें कोई हलचल होती है तो धरती कांपती है। .भारत आस्ट्रेलियन प्लेट पर टिका है और हमारे यहां अधिकतर भूकंप इस प्लेट के यूरेशियन प्लेट से टकराने के कारण उपजते हैं।  

कोई 1482 वर्ग किलोमीटर में फैली राजधानी दिल्ली की आबादी सवा दो करोड़ के करीब है और दिल्ली की किसी भी भूगर्भीय गतिविधि से गाजियाबाद, नोएडा, गुरूग्राम फरीदाबाद आदि को अलग किया नहीं जा सकता। यह सवा तीन करोड़ लोगों की बसावट का चालीस फीसदी इलाका अनाधिकृत है तो 20 फीसदी के आसपास बहुत पुराने निर्माण। बाकी रिहाईषों में से बामुष्किल पांच प्रतिषत का निर्माण या उसके बाद यह सत्यापित किया जा सका कि यह भूकंपरोधी है। बहुमंजिला मकान, छोटे से जमीन के टुकड़े पर एक के उपर एक डिब्बे जैसी संरचना, बगैर किसी इंजीनियर की सलाह के बने परिसर, छोटे से घर में ही संकरे स्थान पर रखे ढेर सारे उपकरण व फर्नीचर--- भूकंप के खतरे से बचने की चेतावनियों को नजरअंदाज करने की मजबूरी भी हैं और कोताही भी। सबसे बड़ी बात महानगर की हर दिन बढ़ती आबादी की इस भयानक खतरे की प्रति गैर जागरूकता ।

दिल्ली एनसीआर में  भूकंप के झटकों का कारण भूगर्भ से तनाव-उर्जा उत्सर्जन होता है। यह उर्जा अब भारतीय प्लेट के उत्तर दिशा में बढ़ने और फॉल्ट या कमजोर जोनों के जरिये यूरेशियन प्लेट के साथ इसके टकराने के चलते एकत्र हुई है। वाडिया इंस्टीट्यूट के मुताबिक दिल्ली एनसीआर में कई सारे कमजोर जोन और फॉल्ट हैंः दिल्ली-हरिद्वार रिज, महेंद्रगढ़-देहरादून उपसतही फॉल्ट, मुरादाबाद फॉल्ट, सोहना फॉल्ट, ग्रेट बाउंड्री फॉल्ट, दिल्ली-सरगोधा रिज, यमुना नदी लीनियामेंट आदि। जानना जरूरी है कि हिमालयी भूकंपीय क्षेत्र में भारतीय प्लेट का यूरेशियन प्लेट के साथ टकराव होता है और इसी से प्लेट बाउंड्री पर तनाव ऊर्जा संग्रहित हो जाती है जिससे क्रस्टल छोटा हो जाता है और चट्टानों का विरुपण होता है। ये ऊर्जा भूकंपों के रूप में कमजोर जोनों एवं फाल्टों के जरिए सामने आती है । 

सन 2016 में भारत सरकार के नेषनल सेंटर फार सिस्मोलोजी ने कोई 450 स्थानों पर गहन षोध कर भूकंप की संभावना के सूक्ष्म अध्ययन पर एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसमें इलाके की मिट्टी, भूजल, पत्थर की संरचना आदि के आधार पर दिल्ली पर मंडरा रहे भूकंप के खतरे को विस्तार से समझाया गया था। ‘ए रिपोर्ट आन सेस्मिक हजार्ड : माइक्रो जोनेषन आफ एनसीटी दिल्ली’’ षीर्शक की इस रिपोर्ट ने  स्पश्ट कर दिया था कि दिल्ली एक तरह दुनिया के सबसे युवा पहाड़, जहां लगातार भूगर्भीय हलचलें चलती हैं, हिमाचल के बहुत करीब है तो दूसरा यह अरावली पर्वतमाला के अंतिम सिरे पर है।  दिल्ली की सबसे बड़ी चिंता इसकी बसावट का आधे से ज्यादा हिस्सा यमुना के बाढ़ क्षेत्र में बसा होना है। खासकर गांधीनगर से ले कर ओखला तक बसी आबदी तो यमुना के दलदल पर ही बसी है और यह पूरा सघन आबादी वाला बहुमंजिल इमारतों का क्षेत्र है।  यह जानना जरूरी है कि भूकंप की संभावना और उसके नुकसान का सबसे बड़ा आकलन इलाके के मिट्टी की प्रकृति से होता है। ठीक यही हाल गाजियाबाद और नाएडा की नई गगनचुबी इमारत वाली बस्तियों का है जो कि हिंडन या यमुना नदी के  बाढ़ क्षेत्र में बसा दी गई हैं। जान लें कोई भी नदी अपना रास्ता दो सौ साल नहीं भूलती, आज नदी का रस्ता बदलने से खाली हुई जमीन पर यदि पक्का निर्माण कर लिया तो दो सदी में कभी भी नदी अपनी जमीन वापिस मांग सकती है। इसका मूल कारण है कि भले ही सीमेंट पोत कर धरती का उपरी कायाकल्प कर लें, उसकी भीतरी परत, उसके भीतर की भूगर्भीय संरचना बदलती नहीं। 

राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआइ) , हैदराबाद के एक शोध से स्पश्ट हुआ है कि भूकंप का एक बड़ा कारण धरती की कोख से जल का अंधाधुंध दोहन करना भी है। भू-विज्ञानी के अनुसार भूजल को धरती के भीतर लोड यानि की एक भार के तौर पर उपस्थित होता है। इसी लोड के चलते फाल्ट लाइनों में भी संतुलन बना रहता है। बाहरी दिल्ली में वे इलाके भूकंप की दृश्टि से अधिक संवेदनषील माने गए है जहां  भूजल पाताल में चला गया है। एनजीआरआइ के मुख्य विज्ञानी डॉ. विनीत के. गहलोत की मानें तो, “दिल्ली-एनसीआर में हाल ही में आए भूकंपों पर अध्ययन अभी भी चल रहा है. जिसमें प्राथमिक तौर पर गिरता भू-जल ही जिम्मेदार है। हालांकि इसके अन्य कारणों का भी अध्ययन किया जा रहा है।


 



सरकारी रिकार्ड के मुताबिक दिल्ली-एनसीआर के फॉल्ट में सन् 1700 से अब तक चार बार 6 या इससे अधिक तीव्रता के भूकंप आ चुके हैं। 27 अगस्त 1960 में 6 की तीव्रता का भूकंप आया था जिसका केंद्र फरीदाबाद था। वहीं, सन् 1803 में 6.8 तीव्रता का भूकंप आया था जिसका केंद्र मथुरा था। यदि अब राजधानी में 6.5 तीव्रता का भूकंप आता है तो तबाही की कल्पना भी नहीं की जा सकती। 

आज जरूरत है कि दिल्ली में  आबादी का घनत्व कम किया जाए, जमीन पर मिट्टी की ताकत मापे बगैर कई मंजिला भवन खड़े करने और बेसमेंट बनाने  पर रोक लगाई जाए। भूजल के दोहन पर सख्ती हो, इसके साथ ही राजधानी में 42 लाख से अधिक भवनों का भूकंप रोधी रेट्रोफिटिंग करवाई जाए। सन 2012 में डीडीए में इसकी योजना भी बनी थी, रेट्रोफिटिंग के लिए ही एक अलग डिविजन बनाने की बात थी, लेकिन इसके बाद यह काम फाइलों में दब गया।


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