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शनिवार, 15 मई 2021

Prepare community for Third wave of Covid in advance

 कोरोना की तीसरी लहर की तैयारी में बढ़ना होगा जन सहयोग

पंकज चतुर्वेदी 


कोरोना की दूसरी लहर ने भारत के सारे तंत्र, दावों, तैयारियों को तहस-नहस कर दिया। अभी लोग अंतिम संस्कार, आक्सीजन और अस्पताल में जगह के लिए दर-दर घूम रहे हैं और यह चेतावनी आ गई कि कोविड की तीसरी लहर अभी और बाकी है। कोरोना वायरस महामारी की दूसरी लहर से जूझ रहे देश में स्थिति बेहद गंभीर हैं। इसी बीच केंद्र सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के विजयराघवन ने इस महामारी को लेकर एक और गंभीर चेतावनी दी और कहा कि जिस तरह तेजी से वायरस का प्रसार हो रहा है कोरोना महामारी की तीसरी लहर आनी तय है, लेकिन यह साफ नहीं है कि यह तीसरी लहर कब और किस स्तर की होगी। उन्होंने कहा कि हमें बीमारी की नई लहरों के लिए तैयारी करनी चाहिए। इस बार कम से कम लोगों को लेबल -3 के अस्पताल की जरूरत हो, यह प्रयास अभी से करना होगा और उसके लिए जरूरी है कि दूसरी लहर में बरती गई कोताही या कमियों का आकलन हो।

बीते एक महीने से देश के बउ़े हिस्से पर जैसे मौत नाच रही है, हर घर-परिवार के पास अपनों को खोने और माकूल इलाज ना मिलने के एक से किस्से हैं। पोस्टरों पर दमकते दावों की हकीकत ष्मसान घाट के बाहर लगी अंतिम संस्कार की लंबी कतारों दिख रही है। सरकार जैसे नदारद है और यह कड़वा सच है कि यदि समाज इतना जीवंत ना होता तो सउ़कों पर लाशें लावारिस दिखतीं। यह कड़वा सच है कि हमारे डाक्टर्स व मेडिकल स्टाफ बीते 14 महीनों से अथक काम कर रहे है। और हमारी जनसंख्या और बीमारों की संख्या की तुलना में मेडिकलकर्मी बहुत कम हैं। 

ऐसे में विजयराघवन ने चेता दिया है कि कोरोना वायरस के विभिन्न वेरिएंट मूल स्ट्रेन की तरह की फैलते हैं। ये किसी अन्य तरीके से फैल नहीं सकते। वायरस के मूल स्ट्रेन की तरह यह मनुष्यों को इस तरह संक्रमित करता है कि यह शरीर में प्रवेश करते समय और अधिक संक्रामक हो जाता है और अपने और अधिक प्रतिरूप बनाता है। एक तरफ तो देश को आज के संकट को झेलना है और दूसरी तरफ आगामी चुनौती की तैयारी भी करना है। यह जान लें कि भारत सरकार ने देश के एनजीओ सेक्टर पर जिस तरह पाबंदियां लगाई थीं, उसका खामियाजा आंचलिक भारत इस विपदा काल में भोग रहा है। भविश्य की तैयारी का सबसे पहला कदम तो स्वयंसेवी संगठनों को प्रशिक्षण, अधिकार और ताकत दे कर मैदान में उतारना होगा।


यदि हम अपनी पिछली गलतियों से ही सीख लें तो अगली लहर के झंझावतांे से बेहतर तरीके से जूझा जा सकेगा। दिल्ली के छतरपुर में बीते साल दस हजार बिस्तरों को कोविड सेंटर षुरू किया गया था। हालांकि  उसमें कभी भी क्षमता की तुलना में तीस फीसदी मरीज भी नहीं रहे, लेकिन इस साल जब देश के कुछ हिस्सों से कोरोना के फिर सक्रिय होने की खबर आ रही थीं, उस अस्थाई ढांचे को तोड़ा जा रहा था। दिल्ली में द्वारका में 1650 बिस्तर के अस्पताल सहित कम से कम ऐसी दस इमारतें खाली हैं जिनका इस्तेमाल तत्काल अस्पताल केरूप में किया जा सकता था लेकिन अब फिर दिल्ली में रामलीला मैदान से ले कर बुराड़ी मैदान तक अस्थाई अस्पताल खड़े किए जा रहे है। अस्थाई निर्माण का व्यय हर समय बेकार जाता है और यदि यही पैसा स्थाई भवनों में लगाया जाए तो इनके दूरगामी परिणाम होते हैं। आज जरूरत है कि  मेडिकल सुविधा को सेना की तैयारी की तरह प्राथमिकता दी जाए।


सबसे बड़ी कोताही तो अस्पतालों से सामने आ रही है, ना उनके पास आक्सीजन प्लांट हैं और ना ही आग से लड़ने के उपकरण। गत एक महीने में देशभर के अस्पतालों में आग लगने से 90 लोग मारे जा चुके है। जबकि आक्सीजन की आपूर्ति बाधित होने से मरने वालों की संख्या हजार के पार है। यही नहीं एक साल पहले कोरोना उन्मूलन के नाम पर खरीदे गए वैंटिलेटर अधिकांश जगह खिलौना बने है।  बहुत से वैंटिलेटर घटिया आए तो कई जिला अस्पतालों में उन्हें खोला तक नहीं गया।  कानपुर के सबसे बड़े हैलेट अस्पताल में 120 में से 34 वैंटिलेटर कबाड़ हैं तो 24 अधमरे। एक साल में उनकी मरम्मत की कागजी औपचारिकता पूरी नहीं हुई। मप्र के छतरपुर जिल में पांचं विधानसभा सीट है। लेकिन वैटिलेटर केवल एक है। बहुत से जिलों में वैंटिलेटर को चलाने वाले तकनीकी कर्मचारी नहीं हैं। आज जरूरत है कि सेवानिवृत और समाज के अन्य जिम्मेदार लोगों का एक समूह केवल इस तरह के आडिट करे व इसकी समयबद्ध रिपोर्ट व उनको दुरूस्त करने का अभियान चलाया जाए। यह भी समय की मांग है कि हर गांव कस्बे में प्राथमिक स्वास्थ का प्रशिक्षण जैसे - कोविड मरीज की पहचान, उसके इलाज में सतर्कता, आवश्यकता पड़ने पर इंजेक्शन लगाना, मरीज को आक्सीजन देना, दवाई खिलाना जैसी मूलभूत बातों का प्रशिक्षण दिया जाए। इसके लिए उनसीसी, स्काउट, एनएसएस के बच्चों को हर समय तैयार रखा जाए। हां, उनकी कड़ी सुरक्षा ख्ुाद को बचा कर रखने की सतर्कता के लिए अनुभवी लोगों को उनके साथ रखा जाए।


इस बार कोरोना की लहर में क्वारंटीन सेंटर या एकांतवास लगभग गायब हो गए। छोटे घरों में , कम जागरूकता के साथ प्रारंभिक लक्षण वाले लोगों के प्रति तंत्र की बेपरवाही रही और इस कारण कई-कई घरों के सारे सदस्य गंभीर रूप से संक्रमित हुए। आज जरूरत है कि स्थानी जन प्रतिनिधि, जैसे पार्शद या सरपंच, अन्य गणमान्य लोग व स्वयंसेवी संस्था के साथ हर मुहल्ले में  पांच सौ आबादी पर कम से कम दस बिस्तरों के क्वारंटीन सेंटर, जहां प्राथमिक उपचार, मनोरंजन और स्वच्छ प्रसाधन सुविधा हो , की स्थापना की जाए। ऐसे हर सेंटर में  आक्सीजन का भी प्रावधान हो और कुछ मोबाईल डाक्टर यूनिट इनकी प्रभारी हो। दिल्ली, लखनऊ, इंदौर आदि बड़े षहरों में संक्रमण फैलने का सबसे बड़ा करण यह रहा कि लोग अपने मरीज को ले कर अस्पताल की तलाश में सारे षहर में घंटों घूमते रहे। यदि हर मरीज को उसके घर के दस किलोमीटर के दायरे में भर्ती करना तय किया जाए और हर कोविड मरीज के इलाज का पूरा व्यय सरकार उठाएं तो भविश्य की लहर के हालात में अफरातफरी व अस्पतालों की लूट से बचा जा सकता है। 

देश के हर व्यक्ति को वैक्सिन लगे, यह इस समय बहुत जरूरी है। जान लें कि वैक्सिन भले ही पूरी तरह निरापद नहीं है लेकिन यह बहुत बड़ी आबादी को गंभीर संक्रमण से बचाती है।  हर मुहल्ले को इकाई मान कर स्थानीय लोगों को आगे कर बगैर राजनीति के टीकाकरण अगली लहर में काफी कुछ  गंभीर नुकसान को बचा सकता है। एक बात और जब जक जिम्म्ेदारी तय कर कोताही करने वालों को दंडित नहीं किया जाता, जनता के पैसे पर चलने वाले तंत्र के वायरस का निराकरण होगा नहीं। 

चूँकि यह संघर्ष लम्बा है अतः  तदर्थ या एडोह्क से काम चलने वाला नहीं हैं - प्लानिंग अर्थात योजना , इम्प्लीमेंटेशन  अर्थात  क्रियान्वयन , मेनेजमेंट अर्थात प्रबंधन , लोजिस्टिक सपोर्ट अर्थात संसाधन की व्यवस्था , ग्राउंड वर्कर अर्थात जमीनी कार्यकर्ता - इनकी अलग अलग टीम , हर जिले स्तर पर तैयार करना होगा । कोई दल केवल भोजन और भूख से निबटे तो कोई केवल अस्पताल की उपलब्धता पर। कोई समूह दवाअें को व्यवस्था करे तो कोई एंबुलेंस या अंतिम संस्कार पर । केारोना की तीसरी लहर आने पर शासकीय तन्त्र का बेहतर इस्तेमाल  आम लोगों की भागीदारी के बगैर संभव नहीं होगा। 


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