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रविवार, 16 मई 2021

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फिर एक समुद्री तूफान, कोरोना महामारी के प्रकोप के बीच अब 'ताउते' का कहर




कोरोना महामारी के प्रकोप के बीच अब ताउते चक्रवाती तूफान ने कहर मचा रखा है। केरल के तटीय इलाके तिरुअनंतपुरम के कई गांवों में कई मकान नष्ट हो गए। कर्नाटक राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के मुताबिक, ‘ताउते’ चक्रवात के कारण पिछले 24 घंटों में राज्य के छह जिलों में भारी वर्षा हुई और कुछ लोगों की जान भी जा चुकी है। इस चक्रवात से राज्य के 73 गांव बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।



देश के मौसम विज्ञान विभाग ने कहा कि अगले 12 घंटों के दौरान इसके और तेज होने की आशंका है। चक्रवाती तूफान के उत्तर-उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ने और 17 मई की शाम को गुजरात तट पर पहुंचने और 18 मई की सुबह के आसपास पोरबंदर और महुवा (भावनगर जिला) के बीच गुजरात तट को पार करने की संभावना है। एनडीआरएफ ने राहत एवं बचाव कार्य के लिए अपनी टीमों की संख्या 53 से बढ़ाकर 100 कर दी है। इस चक्रवाती तूफान से केरल, कर्नाटक, गोवा, दमन एवं दीव, गुजरात और महाराष्ट्र के तटीय इलाकों के प्रभावित होने की आशंका है।



संबंधित राज्य सरकारों ने अलर्ट जारी किया है। प्रधानमंत्री ने भी तूफान के मद्देनजर उच्चस्तरीय बैठक की है। ‘ताउते’ बर्मी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है ‘गेको’ प्रजाति की दुर्लभ छिपकली। ध्यान रहे कि यह महज प्राकृतिक आपदा नहीं है, असल में दुनिया के बदलते प्राकृतिक मिजाज ने ऐसे तूफानों की संख्या में इजाफ किया है। इंसान ने प्रकृति के साथ छेड़छाड़ को नियंत्रित नहीं किया, तो चक्रवात के चलते भारत के सागर किनारे वाले शहरों में लोगों का जीना दूभर हो जाएगा। ऐसे बवंडर संपत्ति और इंसान को तात्कालिक नुकसान तो पहुंचाते ही हैं, इनका दीर्घकालिक प्रभाव पर्यावरण पर भी पड़ता है। ऐसे तूफान समूची प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ देते हैं। जिन वनों या पेड़ों को संपूर्ण स्वरूप पाने में दशकों लगे, वे पलक झपकते ही नेस्तनाबूद हो जाते हैं।


तेज हवा के कारण तटीय क्षेत्रों में मीठे पानी में खारे पानी और खेती वाली जमीन पर मिट्टी व दलदल बनने से हुई क्षति को पूरा करना मुश्किल होता है। जलवायु परिवर्तन पर 2019 में जारी इंटर गवर्मेंट समूह की विशेष रिपोर्ट ‘ओशन ऐंड क्रायोस्फीयर इन ए चेंजिंग क्लाइमेट’ के अनुसार, सारी दुनिया के महासागर 1970 से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन से उत्पन्न 90 फीसदी अतिरिक्त गर्मी को अवशोषित कर चुके हैं। इसके कारण महासागर गर्म हो रहे हैं और इसी से चक्रवात का खतरनाक चेहरा बार-बार सामने आ रहा है। जान लें कि समुद्र का 0.1 डिग्री तापमान बढ़ने का अर्थ है चक्रवात को अतिरिक्त ऊर्जा मिलना। धरती के अपने अक्ष पर घूमने से सीधा जुड़ा है चक्रवाती तूफानों का उठना। भूमध्य

रेखा के नजदीकी जिन समुद्रों में पानी का तापमान 26 डिग्री सेल्सियस या अधिक होता है, वहां ऐसे चक्रवातों की आशंका होती है।


भारतीय उपमहाद्वीप में बार-बार और हर बार पहले से घातक तूफान आने का असली कारण इंसान द्वारा किए जा रहे प्रकृति के अंधाधुंध शोषण से उपजी पर्यावरणीय त्रासदी ‘जलवायु परिवर्तन’ भी है। इस साल शुरू में ही अमेरिकी अंतरिक्ष शोध संस्था नासा ने चेता दिया था कि जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रकोप से चक्रवाती तूफान और भयानक होते जाएंगे। अमेरिका में नासा के ‘जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी’ के नेतृत्व में यह अध्ययन किया गया। इसमें औसत समुद्री सतह के तापमान और गंभीर तूफानों के बीच संबंधों को निर्धारित करने के लिए उष्णकटिबंधीय महासागरों के ऊपर वायुमंडलीय इन्फ्रारेड साउंडर उपकरणों द्वारा 15 वर्षों तक एकत्र आकंड़ों के आकलन से यह बात सामने आई।


‘जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स’ (फरवरी 2019) में प्रकाशित अध्ययन में बताया गया है कि समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि के कारण हर एक डिग्री सेल्सियस पर 21 प्रतिशत अधिक तूफान आते हैं। ‘जेपीएल’ के हार्टमुट औमन के मुताबिक, गर्म वातावरण में गंभीर तूफान बढ़ जाते हैं। भारी बारिश के साथ तूफान आमतौर पर साल के सबसे गर्म मौसम में ही आते हैं। लेकिन जिस तरह पिछले साल ठंड के दिनों में भारत में ऐसे तूफान के मामले बढ़े और कुल 124 चक्रवात में से अधिकांश ठंड में ही आए, यह हमारे लिए गंभीर चेतावनी है।


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