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गुरुवार, 20 मई 2021

Urban water bodies can be infected by corona virus

हैदराबाद: सिकुड़ती श् हरी झीलों पर वायरस के खतरे

पंकज चतुर्वेदी 

 


दुनियाभर में हुए कोरोना वायरस के श् हरी जलनिधियों पर असर से एक बेहद डरावना तथ्य सामने आया है कि हैदराबाद की झीलें ना केवल अपना आमाप खो रही हैं, बल्कि उनके जल में लगातार महानगरीय गंदगी जाने से कोरोना के लिए जिम्म्ेदार वायरस की जेनेटिक सामग्री भी मिली है। चूंकि ठीक वैसा ही अध्ययन ग्रामीण और अर्धशहरी इलाके के झीलों में भी किया गया और वाहं इस तरह का खतरा मिला नहीं, जाहिर है कि हैदराबाद श्हर की बगैर शोधित  की गई गंदगी के सीधे झीलों  में जाने का यह कुप्रभाव है। पानी में वायरस की मौजूदगी का पता लगाने के लिए किए जा रहे षोध में फिलहाल तो यही कहा गया है कि पानी में अभी तक जो जेनेटिक मैटेरियल मिला है, वो वास्तविक वायरस नहीं है। ऐसे में पानी के जरिए चेहरे या मुंह से इंफेक्शन फैलने की गुंजाइश कम है।

हैदराबाद वैसे तो हुसैन सागर झील के लिए मशहूर है लेकिन इस महानगर सीमा के भीतर 10 हैक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल की 169 झीलों के अलावा कई सौ तालाब यहां हुआ करते थे, जो देखते ही देखते कालोनी, सडक, या बाजार के रूप में गुम हो गए। सनद रहे इन 169 झीलों का कुल क्षेत्राफल ही 90.56 वर्ग किलोमीटर होता है। जाहिर है कि यदि इनमें साफ पानी होता तो हैदराबाद में कई तरह के रोग फैलने से बच जाते। 

काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी, सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलीक्यूलर बायोलॉजी और एकेडमी ऑफ साइंटिफिक एंड इनोवेटिव रिसर्च ने मिलकर यह अध्ययन किया जिसमें सात महीने के दौरान भारत में कोविड की पहली और दूसरी लहर को कवर किया गया है। इसके लिए हैदराबाद की हुसैन सागर और कुछ अन्य झीलों को चुना गया। हुसैन सागर के अलावा नाचारम की पेद्दा चेरुवु और निजाम तालाब में भी वायरस के मैटेरियल मिले हैं। स्टडी में पता चला कि पानी में ये जेनेटिक मैटेरियल इसी साल फरवरी में बढ़ना शुरू हुए, जब देश में महामारी की दूसरी लहर की शुरुआत हुई। ठीक इसी समय घाटकेसर के पास इदुलाबाद के अर्धशहरी इलाके व ग्रामीणअंचल की पोतुराजू झील में भी अध्ययन किया गया और इन दोनो स्थान पर कोई संक्रमण की संभावना नहीं मिली।

‘मेडरक्सिव’ विज्ञान शोध  पत्रिका में 12 मई को ‘‘ काम्प्रहेन्सिव एंड टेंपोरल सरलिेंस आफ सार्स एंड कोविड इन अरबन वाटर बोॅडीज: अर्ली सिग्नल ऑफ सेकंड वेव आनसेट’’ शीर्षक  से प्रकाशित रिपोर्ट में  मनुपति हेमलता, अथमकुरी तारक, उदय किरण आदि वैज्ञानिकों के दल ने लिखा है कि कोरोना वायरस के मुंह से फैलने की संभावना पर दुनियाभर में हो रहे शोध  के दौरान जब हैदराबाद के महानगर की झीलों का अध्ययन किया गया तो पता चला कि कोविडग्रस्त लोगों के घरां व अस्पतालों के संभावित मल-जल के बगैर शोधित ही झीलों में डालने से यह  संकट खड़े होने की संभावना है।

यह बात अब किसी से छिपी नहीं है कि लगभग 778 वर्ग किलोमीटर क्षेत्राफल में फैले हैदराबाद महानगर का अनियोजित विस्तार, पर्यावरणीय कानूनों की अनदेखी, और घरेलू व औघेगिक कचरे की मूसी नदी व तालाबों में सतत गिरने से यहां भीषण जल-संकट खड़ा होता है। अब यह नया संकट है कि जीवनदायी जल की निधियों में  खतरनाक वायरस की संभावना भी खड़ी हो गई है। गया है और इसके निदान का कोई तात्कालिक उपाय सरकार व समाज के पास है नहीं। 

हैदराबाद का महत्वपूर्ण हिस्सा वहाँ की झीलें हैं। बेतहाशा शहरीकरण  के कारण यहां के पारंपरिक जल निकाय पूरी तरह नष्ट हो गए हैं। कुछ जल निकायों का आकार सिमट गया है तो कुछ औद्योगिक रसायनों और घरेलू कचरे से प्रदूषित हो गए हैं। झीलों और नहरों के उथला होने के चलते ही अगस्त 2000 में यहां बाढ़ आई थी। मुख्यधारा विकास के मॉडल पर पर्यावरण संबंधी संकट अब व्यापक स्तर पर वाद-विवाद को जन्म दे रहा है। औद्योगिकरण, शहरी विस्तार, सिंचाई, बड़े बांध, हरित क्रांति आज विकास के क्षेत्र में बातचीत और आलोचना के विषय बन गए हैं। कहना गलत न होगा कि हैदराबाद की प्राकृतिक विरासत का ध्वंस पिछले 50 वर्षों के विकास के कारण हुआ है। पिछले कुछ दशकों से सरकार और निजी संस्थाओं ने बड़े पैमाने पर अतिक्रमण कर झीलों को पक्के इलाकों में रूपांतरित कर दिया। इस क्षति को हम पर्यावरण संबंध या व्यापक राजनीतिक आर्थिक संबंध या व्यापक राजनीतिक आर्थिक संबंध में समझ सकते हैं। हैदराबाद मेें कई तालाब कुतुबशाही (1534-1724 ईसवी) और बाद में आसफ जाही (1724-1948) ने बनवाए थे। उस समय के कुछ बड़े तालाबोंमें हुसैनसागर, मीरआलम, अफजल सागर, जलपल्ली, मा-सेहाबा तालाब, तालाब तालाब, ओसमानसागर और हिमायतसागर इत्यादि शामिल हैं। बड़े तालाब पूर्व शासकों या मंत्रियों द्वारा बनवाए गए थे जबकि छोटे तालाब जमींदारों द्वारा बनवाए गए थे। संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन(यूएनटीओ) ने इस दिल के आकार की झील को विश्व की सबसे बड़ी  मानव निर्मित झील घोषित किया है। हैदराबाद के विकास और संस्कृति की सहयात्राी ‘‘हुसैन सागर’’ यहां की बढ़ती आबादी व आधुनिकीकरण का बोझ व दवाब नहीं सह पाई। इसका पानी जहरीला हो गया और सदियों की कोताही के चलते झील गाद से पट गई। सन 1966 में इसकी गहराई 12.2 मीटर थी जो आज घट कर बामुश्किल पांच मीटर रह गई है। 

जान लें हैदराबाद की झीलें तो प्रयोग के तौर पर ली गई, यदि बंगलुरु , या लोकटक या भोपाल या दरभंगा या फिर उदयपुर की झीलों में ही यदि अध्ययन होगा तो परिणाम इससे भिन्न न होंगे । कोविड का मूल कारण  जैव विविधता से छेड़छाड़ है। ऐसे में  झीलों के संरक्षण की प्राथमिकता को नए सिरे से विचार करने का वक्त आ गया है। अब स्पश्ट दिख रहा है कि उत्तर-करोना विश्व अलग तरीे का होगा और उसमें अनियंत्रित औद्योगिक गतिविधियो या पर्यावरणीय कोताही के परिणाम मानव जाति के लिए आत्महंता सिद्ध होंगे। 


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