कहीं ‘छिपकली’ ना मचा दे तटीय क्षेत्रों में तबाही
पंकज चतुर्वेदी
सोमवार को मुंबई में 11 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से जो हवांए चलीं तो सारा शहर कांप गया, तिस पर भयंकर बरसात हुई। यह तबाही जब गुजरात की तरफ बढ़ी तो 14 लोगों के मारे जाने, कई के घायल होने, सड़कों पर जलभराव, भवनों के गिरने की अनगिनत शिकायतों ने पूरे महानगर को तहस-नहस कर दिया। इससे एक दिन पहले इस समुद्री तूफान ने गोवा में भी दो लोगों की जान ली थी। कर्नाटक में भी पांच लोग मोर गए। केरल में भी खूब नुकसान हुआ। इतना नुकसान करने वाले समुद्री तूफान का नाम हरे रंग की छिपकली पर है। भारत में यह इस साल का पहला समुद्री तूफान है - ‘ताऊकते’ । यह बर्मी भाशा का षब्द है जिसका अर्थ होता है ‘गेको’ प्रजाति की दुर्लभ छिपकली जो बहुत तीखी आवाज में बोलती है। ध्यान रहे समुद्री चक्रवात महज एक प्राकृतिक आपदा नहीं है , असल में तेजी से बदल रहे दुनिया के प्राकृतिक मिजाज ने इस तरह के तूफानों की संख्या में इजाफ किया है और इंसान ने प्रकृति के साथ छेड़छाड़ को नियंत्रित नहीं किया तो साईक्लोंन या बवंडर के चलते भारत के सागर किनारे वालें शहरों में आम लोगों का जीना दूभर हो जाएगा ।
इस तरह के बवंडर संपत्ति और इंसान को तात्कालिक नुकसान तो पहुंचाते ही हैं, इनका दीर्घकालीक प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता हेै। भीषण बरसात के कारण बन गए दलदली क्षेत्र, तेज आंधी से उजड़ गए प्राकृतिक वन और हरियाली, जानवरों का नैसर्गिक पर्यावास समूची प्रकृति के संतुलन को उजाड़ देता है। जिन वनों या पेड़ों को संपूर्ण स्वरूप पाने में दशकों लगे वे पलक झपकते नेस्तनाबूद हो जाते हैं। तेज हवा के कारण तटीय क्षेत्रों में मीठे पानी मे खारे पानी और खेती वाली जमीन पर मिट्टी व दलदल बनने से हुए क्षति को पूरा करना मुश्किल होता है।
दरअसल तूफानों के नाम एक समझौते के तहत रखे जाते हैं। इस पहल की शुरुआत अटलांटिक क्षेत्र में 1953 में एक संधि के माध्यम से हुई थी। अटलांटिक क्षेत्र में हेरिकेन और चक्रवात का नाम देने की परंपरा 1953 से ही जारी है जो मियामी स्थित नेशनल हरिकेन सेंटर की पहल पर शुरू हुई थी। 1953 से अमेरिका केवल महिलाओं के नाम पर तो ऑस्ट्रेलिया केवल भ्रष्ट नेताओं के नाम पर तूफानों का नाम रखते थे। लेकिन 1979 के बाद से एक नर व फिर एक नारी नाम रखा जाता है। अटलांटिक क्षेत्र में हेरिकेन और चक्रवात का नाम देने की परंपरा 1953 से ही जारी है जिसकी पहल मियामी स्थित नैशनल हरिकेन सेंटर ने की थी। 1953 से अमेरिका केवल महिलाओं के नाम पर तो ऑस्ट्रेलिया केवल भ्रष्ट नेताओं के नाम पर तूफानों का नाम रखते थे।
कोई सौ साल पहले समुद्री बवडंरों के नाम आमतौर पर रोमन कैथोलिक संतों के नाम पर होते थे। जैसे कि सन 1834 के पड्रे-रुइज़ तूफान का नाम डोमिनिकन गणराज्य में एक कैथोलिक संत के नाम पर रखा गया था, जबकि 1876 में सैन फेलिप तूफान का नाम कैथोलिक पादरी के नाम पर रखा गया था।
भारतीय मौसम विभाग के तहत गठित देशों का क्रम अंग्रेजी वर्णमाला के अनुसार सदस्य देशों के नाम के पहले अक्षर से तय होते हैं। भारतीय मौसम विभाग द्वारा पिछले साल जारी सूची में ‘ताऊकते’ नाम चौथे स्थान पर था। पिछले साल नवंबर में आए तूफान को ‘निवार’ नाम ईरान ने दिया हैं। ईरान में निवार नाम से दो ऐसे गांव हैं जिनकी आबादी 50 से भी कम है। उससे पहले आए तूफान का नाम था -फणी, यह सांप के फन का बांग्ला अनुवाद है। इस तूफान का यह नाम भी बांग्लादेश ने ही दिया था। जान लें कि प्राकृतिक आपदा केवल एक तबाही मात्र नहीं होती, उसमें भविष्य के कई राज छुपे होते हैं। तूफान की गति, चाल, बरसात की मात्रा जैसे कई आकलन मौसम वैज्ञानिकों के लिए एक पाठशाला होते हैं। तभी हर तूफान को नाम देने की प्िरक्रया प्रारंभ हुई। विकसित देशो में नाम रखने की प्रणाली 50 के दशक से विकसित है । दुनियाभर में छह क्षेत्रीय मौसम केंद्र है। जिन्हे आरएसएमसी कहा जाता है, इनमें से एक भारत है। जबकि पांच ट्रापीकल सायक्लोन वार्निंग सेंटर अर्थात टीसीडब्लूसी हैं।
भारतीय मौसम विभाग की जिम्मेदारी उत्तर भारतीय सागर, जिसमें बंगाल की खाड़ी व अरब सागर षामिल है, से उठने वाले तूफानों का पूर्वानुमान व सूचना देना है। भारतीय जिम्म्ेदारी में आए 13 देशों के संगठन को डब्लूएमओ/ईएससीए कहते हैं। सन 2004 में भारत की पहल पर आठ देशों द्वारा बनाए संगठन में अब 13 देश हो गए हैं जो चक्रवातों की सूचना एकदूसरे से साझा करते हैं। ये देश हैं - ं भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान, म्यांमार, मालदीव, श्रीलंका, ओमान और थाईलैंड ं,ईरान, कतर, सऊदी अरब, यूएई और यमन । ये देश अपनी तरफ से नाम सुझाते है। जिनकी एक सूची तैयार की जाती है। नाम रखते समय ध्यान रखा जाता है कि वह छोटा सा हो और प्रसारित करने में सहूलियत हो। इस सूची में अगले कुछ नाम है। - यास, गुलाब, षाहीन, जवाद आदि।
भारतीय मौसम विभाग के तहत गठित देशों का क्रम अंग्रेजी वर्णमाला के अनुसार सदस्य देशों के नाम के पहले अक्षर से तय होते हैं। जैसे ही चक्रवात इन 13 देशों के किसी हिस्से में पहुंचता है, सूची में मौजूद अलग सुलभ नाम इस चक्रवात का रख दिया जाता है। इससे तूफान की न केवल आसानी से पहचान हो जाती है बल्कि बचाव अभियानों में भी इससे मदद मिलती है। भारत सरकार इस शर्त पर लोगों की सलाह मांगती है कि नाम छोटे, समझ आने लायक, सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील और भड़काऊ न हों । किसी भी नाम को दोहराया नहीं जाता है। अब तक चक्रवात के करीब 163 नामों को सूचीबद्ध किया जा चुका है। कुछ समय पहले जब क्रम के अनुसार भारत की बारी थी तब ऐसे ही एक चक्रवात का नाम भारत की ओर से सुझाये गए नामों में से एक ‘लहर’ रखा गया था। .इस सूची में शामिल भारतीय नाम काफ़ी आम नाम हैं, जैसे मेघ, सागर, और वायु। चक्रवात विशेषज्ञों का पैनल हर साल मिलता है और ज़रूरत पड़ने पर सूची फिर से नए नामों से संपन्न करते हैं।
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