कोरोना वायरस का घर बन रहे हैं हमारे नदी-तालाब
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो.रमेश चंद्र दुबे अपने शोध से दावा कर चुके हैं कि कुंभ से गंगा में कोरोना वायरस की संभावना बढ़ गई है। उनका कहना है कि जल में कोरोना वायरस लंबे समय तक सक्रिय रहता है और जब मनुष्य उस जल में स्नान करता है तो वह उसके शरीर में प्रवेश कर सकता है। शोध कहता है कि कुंभ में कोरोना फैलाने का सबसे बड़ा कारण संक्रमित साधु-श्रद्धालु का गंगा में स्नान करना रहा। यह संक्रमण क्लेमसियाल निमोनी संक्रमण के साथ मिलकर और घातक साबित हुआ।
जब यह खबर सुर्खी बनी कि लखनऊ के सीवरेज में कोरोना वायरस मिला है, तो हंगामा हो गया। वैसे, शहरों में मल-जल का लापरवाह निस्तारण व बढ़ते मेडिकल कचरे से परिवेश में इस वायरस के होने की संभावना पर दुनियाभर में काम हो रहा है। हैदराबाद की हुसैन सागर व अन्य शहरी झीलों में भी वायरस की जेनेटिक सामग्री मिली है। वैसा ही अध्ययन हैदराबाद के ग्रामीण और अर्धशहरी इलाके की झीलों में भी हुआ लेकिन वहां यह नहीं मिला। जाहिर है शहर की गैर-शोधित गंदगी के सीधे झीलों में जाने का यह कुप्रभाव है। शोध में कहा गया है कि जो जेनेटिक मैटेरियल मिला है, वो वास्तविक वायरस नहीं। ऐसे में, पानी से चेहरे या मुंह से इंफेक्शन फैलने की गुंजाइश कम है।
काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ केमिकल टेक्नोलॉजी, सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलीक्यूलर बायोलॉजी और एकेडमी ऑफ साइंटिफिक एंड इनोवेटिव रिसर्च ने यह अध्ययन किया जिसमें सात महीने के दौरान भारत में कोविड की दोनों लहरों को कवर किया गया। इसके लिए हैदराबाद की हुसैन सागर और कुछ अन्य झीलों को चुना गया। हुसैन सागर के अलावा नाचारम की पेद्दा चेरुवु और निजाम तालाब में भी वायरस के मैटेरियल मिले। पता चला कि पानी में ये जेनेटिक मैटेरियल इसी साल फरवरी में बढ़ना शुरू हुए जब दूसरी लहर की शुरुआत हुई। ठीक इसी समय घाटकेसर के पास इदुलाबाद के अर्धशहरी इलाके व ग्रामीण अंचल की पोतुराजू झील में भी अध्ययन हुआ और वहां संक्रमण नहीं मिला।
‘मेडरक्सिव’ शोध पत्रिका में 12 मई को ‘‘ काम्प्रहेन्सिव एंड टेंपोरल सरलिेंस ऑफ सार्स एंड कोविड इन अरबन वाटर बॉडीज: अर्ली सिग्नल ऑफ सेकंड वेव ऑनसेट’’ शीर्षक रिपोर्ट में मनुपति हेमलता, अथमकुरी तारक, उदय किरण आदि वैज्ञानिकों के दल ने लिखा कि शोध के दौरान जब हैदराबाद की झीलों का अध्ययन किया गया तो पता चला कि कोविडग्रस्त लोगों के घरों व अस्पतालों के मल-जल के बगैर शोधित झीलों में जाने से यह संकट खड़ा हुआ।
गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रो.रमेश चंद्र दुबे अपने शोध से दावा कर चुके हैं कि कुंभ से गंगा में कोरोना वायरस की संभावना बढ़ गई है। उनका कहना है कि जल में कोरोना वायरस लंबे समय तक सक्रिय रहता है और जब मनुष्य उस जल में स्नान करता है तो वह उसके शरीर में प्रवेश कर सकता है। संक्रमित व्यक्ति यह संक्रमण तेजी अन्य लोगों में फैला सकता है। प्रो. दुबे का शोध कहता है कि कुंभ में कोरोना फैलाने का सबसे बड़ा कारण संक्रमित साधु-श्रद्धालु का गंगा में स्नान करना रहा। यह संक्रमण क्लेमसियाल निमोनी संक्रमण के साथ मिलकर और घातक साबित हुआ। दुबे के मुताबिक गंगाजल के इन तीन संक्रमणों को जीवाणु विमोजी यानी बैक्टीरिया फाज नष्ट करता है। परंतु कुंभ में कोरोना संक्रमण को नष्ट करने का काम गंगाजल में मौजूद फाज क्यों नहीं कर पाया, इस पर शोध चल रहा है।
इससे पहले अप्रैल महीने में ही रुड़की विश्वविद्यालय के वाटर रिसोर्स डिपार्टमेंट के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. संदीप शुक्ला और उनके विभागाध्यक्ष डॉ. संजय जैन ने 12 सदस्यों के साथ ठहरे एवं बहते पानी में कोरोना वायरस की सक्रियता अवधि पर शोध किया था। दल का निष्कर्श था कि वायरस सूखे धरातल और धातु की तुलना में नमी और पानी में अधिक सक्रिय रहता है।
संजय गांधी मेडिकल कालेज, लखनऊ का माइक्रोबायोलॉजी विभाग पानी में कोरोना वायरस का पता लगाने के लिए सीवेज सैंपल जुटा रहा है। लखनऊ के तीन जगहों से सैंपल लिए गए। लखनऊ में ऐसे तीन जगहें चुनी गईं जहां पूरे मोहल्ले का सीवेज एकसाथ गिरता है। पहला- खदरा का रूकपुर, दूसरा- घंटाघर और तीसरा- मछली मोहाल का है। लैब में जांच में रूकपुर खदरा के सीवेज के पानी में वायरस पाया गया। मुंबई में भी ऐसा वायरस मिला है।
फरवरी-2021 में प्रकाशित एक अंतरराष्ट्रीय शोध बताता है कि यह तो कोविड की पहली लहर में भी झलकने लगा था कि जल निधियां कोरोना वायरस के खतरे से अछूती नहीं हैं। सार्स-कोविड-2: कोरोना वायरस इन वाटर एंड वेस्टवाटर: ए क्रिटिकल रिव्यू अबाउट प्रेजेंस एंड कन्सर्न’ में बताया गया है कि चीन, जहां से यह शुरू हुआ वहां फौज के अस्पताल- 309 पीएलए और शायो देंग शान अस्पताल के सीवर में पिछले साल ही कोविड के जेनेटिक मटेरियल मिल चके थे और तब से सारी दुनिया में इसपर काम हो रहा था। चीन का दावा था कि 20 डिग्री तापमान पर यह सीवर में दो दिन और चार डिग्री पर 14 दिन सक्रिय रहता है। नीदरलैंड में भी एम्सट्रेडम, डेन हैग, यूत्रेयय सहित छह शहरों में ऐसा ही परीक्षण हुआ और वहां हवाईअड्डे के पास के सीवरेज में कोरोना के अंश मिले। इटली की लाम्ब्रो नदी में भी यह देखा गया। शोध कहता है कि दुनिया में सबसे पहले इक्वाडोर के क्योटो शहर की नदी में इसके अंष दिखे। यहां गंदा पानी सीधे नदी में डाला जाता है।
यह किसी से छिपा नहीं है कि खासकर महानगरों के अस्पतालों और घर पर ही एकांतवास कर रहे लोगों के नहाने, शौच आदि का पानी उसी नाली से बहा जहां से आम पानी जाता है। यह विषैला जल कैसे जल निधियों में मिल रहा है, उसके लिए दिल्ली के इस आंकड़े पर गौर करें। दिल्ली में औसतन हर दिन 3273 मिलियन लीटर (एममलडी) सीवर का निस्तार होता है, जबकि यहां कुल 2715 एममलडी क्षमता के परिशोधन सयंत्र हैं और इनकी काम करने की ताकत 2432 एममलडी है। जाहिर है, करीब 800 एममलडी अशोधित जल नदी-तालाबों में मिल रहा है और इनमें संक्रमितों का मल-मूत्र भी है। फिर कोविड के कारण अस्पतालों से निकलने वाले संक्रमित कूड़े की मात्रा बहुत बढ़ गई है। कई अस्पतालों में इनके निबटान की व्यवस्था नहीं है। कई जगह ऐसा कचरा आम घर के कचरे के साथ ढोया जाता है और यह कड़वा सच है कि अधिकांश महानगरों में कूड़े की खंतियां भर गई है व सफाई वाले चोरी-छुपे कूड़े जलातें है या वीरान जल निधियों में ढकेल देते हैं। शोध के दौरान संक्रमित वयस्कों व बगैर लक्षण के कोविडग्रस्त बच्चों के मल के नमूने जांचे गए तो पता चला कि कोरोना वायरस इंसान के गेस्ट्रोइंटाइटिस ट्रैक अर्थात जठरांत्र मार्ग में जगह बना चुका है।
यदि लखनऊ खतरनाक हालत में समाहित हो गया तो मानवता का अस्तित्व ही खतरे में आ जाएगा। इंसान को नुकसान पहुंचाने की ताकत रखने वाला कोरोना वायरस-229 ई 23 डिग्री तापमान पर सात दिन तक पानी में सक्रिय रहता है। जरूरी है कि कोविड अस्पतालों के जल-मल का परिशोधन अस्पताल में ही हो।
पंकज चतुर्वेदी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें