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शुक्रवार, 18 जून 2021

The effect of the rising temperature of the earth is the fall of celestial lightning

 

धरती के बढ़ते तापमान का कुप्रभाव है आकाशीय बिजली का गिरना

पंकज चतुर्वेदी



इसकी शुरुआत बादलों के एक तूफ़ान के रूप में एकत्र होने से होती है । इस तरह बढ़ते तूफान के केंद्र में, बर्फ के छोटे-छोटे टुकड़े और बहुत ठंडी पानी की बूंदें आपस में टकराते हैं और इनके बीच विपरीत ध्रुवों के विद्युत कणों का प्रवाह होता है । वैसे तो धन और ऋण एक-दूसरे को चुम्बक की तरह अपनी ओर आकर्षित करते हैं, किंतु वायु के एक अच्छा संवाहक न होने के कारण विद्युत आवेश में बाधाएँ आती हैं। अतः बादल की ऋणावेशित निचली सतह को छूने का प्रयास करती धनावेशित तरंगे भूमि पर गिर जाती हैं। चुनी धरती विद्युत की सुचालक है। यह बादलों की बीच की परत की तुलना में अपेक्षाकृत धनात्मक रूप से चार्ज होती है। तभी इस तरह पैदा हुई  बिजली का अनुमानित 20-25 प्रतिशत प्रवाह धरती की ओर हो जाता है।  भारत में हर साल कोई दो हज़ार लोग इस तरह बिजली गिरने से मारे जाते हैं, मवेशी और मकान आदि का भी नुक्सान होता है


 मानसून की आमद होते ही बीते एक सप्ताह में पश्चिम बंगाल में 27 लोगों की मौत बिजली गिरने से हो गयी , घायल कि संख्या भी 30 से पार है . राज्य के दक्षिणी हिस्से में हुगली में 11 और मुर्शिदाबाद में 09 लोग इस विपदा के शिकार हुए. मिदनापुर, बाँकुड़ा में भी मौत हुयीं, सटे हुए राज्य झारखण्ड में भी आकाशीय तड़ित की चपेट में आ कर दुमका और रामगढ़ में पांच  लोग मारे गये, बिहार के गया में  भी पांच की मौत आकाशीय बिजली से दर्ज की गयी, अभी दिनांक 09 अप्रैल 2021 को पूर्वांचल-उत्तर प्रदेश के दो जिलों- मिर्ज़ापुर व् भदोही  में बिजली गिरी और कोई तीन लोग मारे गये और कई घायल भी हुए . अचानक ही इतने बड़े स्तर पर बिजली गिरना और उसकी चपेट में इसानों का आना एक असामान्य घटना है .


जहाँ अमेरिका में हर साल बिजली गिरने से तीस, ब्रिटेन में औसतन तीन लोगों की मृत्यु होती है , भारत में यह आंकडा बहुत अधिक है- औसतन दो हज़ार . इसका मूल कारण है कि हमारे यहाँ आकाशीय बिजली के पूर्वानुमान और चेतावनी देने की व्यवस्था विकसित नहीं हो पाई है . आंकड़े गवाह हैं कि हमारे यहाँ बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड और छत्तीसगढ़ में बिजली गिरने की घटनाएँ ज्यादा होती हैं , सनद  रहे बिजली के शिकार आमतौर पर दिन में ही होते हैं , यदि तेज बरसात हो रही हो और बिजली  कडक रही हो तो ऐसे में पानी भरे खेत के बीच में, किसी पेड़ के नीचे , पहाड़ी स्थान पर जाने से बचना चाहिए . मोबाईल का इस्तेमाल भी खतरनाक होता है . पहले लोग अपनी इमारतों में ऊपर एक त्रिशूल जैसी आकृति लगाते थे- जिसे तड़ित-चालक कहा जाता था , उससे बिजली गिरने से काफी बचत होती थी , असल में उस त्रिशूल आकृति से एक धातु का मोटा तार या पट्टी जोड़ी जाती थी और उसे जमीन में गहरे गाडा जाता था ताकि आकाशीय बिजली उसके माध्यम से नीचे उतर जाए और इमारत को नुक्सान न हो .


यह समझना होगा कि इस तरह बहुत बड़े इलाके में एक साथ घातक बिजली गिरने का असल कारण धरती का लगातार बदल रहा तापमान है . यह बात सभी के सामने है कि आषाढ़ में पहले कभी बहुत भारी बरसात नहीं होती थी लेकिन अब ऐसा होने लगा है, बहुत थोड़े से समय में अचानक भारी बारिश हो जाना और फिर सावन-भादों सूखा जाना- यही जलवायु परिवर्तन की त्रासदी  है और इसी के मूल में बेरहम बिजली गिरने के कारक भी हैं । जैसे-जैसे जलवायु बदल रही है, बिजली गिरने की घटनाएँ ज्यादा हो रही हैं ।

एक बात और बिजली गिरना जलवायु परिवर्तन का दुष्परिणाम तो है लेकिन अधिक बिजली गिरने से जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया को भी गति मिलती है । सनद रहे बजली गिरने के दौरान नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन होता है और यह एक घातक ग्रीनहाउस गैस है।हालांकि अभी दुनिया में बिजली गिरने और उसके जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव के शोध बहुत सीमित हुए हैं लेकिन कई महत्वपूर्ण शोध इस बात को स्थापित करते हैं कि जलवायु परिवर्तन ने बजली गिरने के खतरे को बढ़ाया है इस दिशा  में और गहराई से कम करने के लिए ग्लोबल क्लाइमेट ऑब्जर्विंग सिस्टम (GCOS) - के वैज्ञानिकों ने  विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO)  के साथ मिल कर एक विशेष शोध दल (टीटीएलओसीए) का गठन  किया है ।

धरती के प्रतिदिन बदलते तापमान का सीधा असर वायुमंडल पर होता है और इसी से भयंकर तूफ़ान भी बनते हैं । बिजली गिरने का सीधा सम्बन्ध धरती के तापमान से है जाहिर है कि जैसे-जैसे धरती गर्म हो रही है , बिजली की लपक उस और ज्यादा हो रही है । यह भी जान लें कि बिजली गिरने का सीधा सम्बन्ध बादलों के उपरी ट्रोपोस्फेरिक या क्षोभ-मंडल जल वाष्प, और ट्रोपोस्फेरिक ओजोन परतों से हैं और दोनों ही खतरनाक ग्रीनहाउस गैस हैं। जलवायु परिवर्तन के अध्ययन से पता चलता है कि भविष्य में यदि जलवायु में अधिक गर्माहट हुई तो गरजदार तूफ़ान कम लेकिन तेज आंधियां ज्यादा आएँगी और हर एक डिग्री ग्लोबल वार्मिंग के चलते धरती तक बिजली की मार की मात्रा 10% तक बढ़ सकती है।

कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले के वैज्ञानिकों ने मई 2018 में वायुमंडल को प्रभावित करने वाले अवयव और बिजली गिरने के बीच सम्बन्ध पर एक शोध किया जिसका आकलन था कि आकाशीय बिजली के लिए दो प्रमुख अवयवों की आवश्यकता होती है: तीनो अवस्था (तरल, ठोस और गैस) में  पानी और बर्फ बनाने से रोकने वाले घने बादल । वैज्ञानिकों ने 11 अलग-अलग जलवायु मॉडल पर प्रयोग किये और पाया कि भविष्य में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में गिरावट आने से रही और इसका सीधा  परिणाम होगा कि आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएँ बढेंगी ।

एक बात गौर करने की है कि हाल ही में जिन इलाकों में बिजली गिरी उमे से बड़ा हिस्सा धान की खेती का है और जहां धान के लिए पानी को एकत्र किया जता है, वहां से ग्रीन हॉउस गैस जैस मीथेन का उत्सर्जन अधिक होता है । जितना मौसम अधिक गर्म होगा, जितनी ग्रीन हॉउस गैस उत्सर्जित होंगी, उतनी ही अधिक बिजली, अधिक ताकत से धरती पर गिरेगी ।

“जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स” नामक ऑनलाइन जर्नल के मई-2020  अंक में प्रकाशित एक अध्ययन में अल नीनो-ला नीना, हिंद महासागर डाय  और दक्षिणी एन्यूलर मोड के जलवायु परिवर्तन पर प्रभाव और उससे दक्षिणी गोलार्ध में बढ़ते तापमान के कुप्रभाव स्वरुप  अधिक आकाशीय विद्धुत-पात की संभावना पर प्रकाश डाला गया है ।

विदित हो मानसून में बिजली चमकना बहुत सामान्य बात है। बिजली तीन तरह की होती है- बादल के भीतर कड़कने वाली, बादल से बादल में कड़कने वाली और तीसरी बादल से जमीन पर गिरने वाली। यही सबसे ज्यादा नुकसान करती है। बिजली उत्पन्न करने वाले बादल आमतौर पर लगभग 10-12 किमी. की ऊँचाई पर होते हैं, जिनका आधार पृथ्वी की सतह से लगभग 1-2 किमी. ऊपर होता है। शीर्ष पर तापमान -35 डिग्री सेल्सियस से -45 डिग्री सेल्सियस तक होता है। स्पष्ट है कि जितना तापमान बढेगा , बिजली भी उतनी ही बनेगी व् गिरेगी

यह सारी दुनिया की चुनोती है कि कैसे ग्रीन हॉउस गैसों पर नियंत्रण हो और जलवायु में अनियंत्रित परिवर्तन पर काबू किया जा सके , वरना, समुद्री तूफ़ान, बिजली गिरना, बादल फटना जैसी भयावह त्रासदियाँ हर साल बढेंगी ।

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