स्क्रैप नीति : बेबस ही रहेंगी सांसें
पंकज चतुर्वेदी
यह एक कड़ी सच्चाई है कि विकासमान भारत के सामने जो सबसे बड़ी
चुनौतियों हैं, उसमें वायु प्रदूषण सर्वाधिक भीषण और चिंताजनक है। प्रसि़द्ध अतंरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल “लांसेट” की सन 2019 की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि प्रदूषण व जहरीली हवा के चलते हमारे देष में हर साल 16.7 लाख लोग दम तोड़ देते हें
व इससे देष को 36.8 अरब डालर का नुकसान होता है। यह भी सच है
कि वायु प्रदूषण का बड़ा कारक परिवहन तंत्र
में फूंका जा रहा जीवाष्म ईंधन ही है।
लेकिन यह इतना सच नहीं है कि
पुरांनी गाड़ियों को कबाड़ करने की नई नीति का असल उद्देष्य वायु प्रदूषण से मुक्ति है।
सन 2015 में एनजीटी के आदेश के
चलते दिल्ली एनसीआर में डीजल वाहन 10 साल और पेट्रोल वाहन की
उम्र 15 साल पहले से ही तय है। राजधानी में
कमर्षियल वाहन सीएनजी से चल रहे हैं, इसके बावजूद दिल्ली को
दुनिया के सर्वाधिक दमघोटू षहर में से एक गिना जाता है। दिल्ली, मुंबई से ले कर पटना या
भोपाल या फिर बंगलूरू के उदाहरण हमारे
सामने हैं कि महानगरों का अनियोजित विस्तार, गांव से शिक्षा , स्वास्थ्य के अलावा
रोजगार के लिए पलायन और कार्य स्थल से आवास की दूरी ने निजी वाहनों का प्रचलन
बढ़ाया और इसी से सड़कों पर क्षमता से अधिक
वाहन आते हैं। नतीजा जाम होता है और उसी से प्रदूषण कारी धुआं उपजता है। जेनरेटर, ट्रेक्टर, ट्यूबवेल के पंप आदि
भी अधिकांष डीजल पर ही है जो वातावरण को
जहरीला बनाने में योगदान देते हैं। वायु प्रदूषण के अन्य कारक निर्माण कार्य की धूल, कल-कारखाने आदि भी हैं।
नए कानून के मुताबिक कमर्शियल गाड़ी जहां 15 साल बाद कबाड़ घोषित हो
सकेगी, वहीं निजी गाड़ी के लिए यह समय 20 साल है। वाहन मालिकों को
तय समय बाद ऑटोमेटेड फिटनेस सेंटर ले जाना होगा। सरकार का दावा है कि स्क्रैपिंग
पॉलिसी से वाहन मालिकों का न केवल आर्थिक नुकसान कम होगा, बल्कि उनके जीवन की
सुरक्षा हो सकेगी। सड़क दुर्घटनाओं में भी कमी होगी।
सरकार के अपने तर्क हैं कि पुरानी गाड़ियां बंद होने से आटोमोबाईल उद्योग को जीवन मिलेगा, सरकार को भी सालाना करीब 40,000 करोड़ का जीएसटी की कमाई
होगी। यह भी कहा गया कि पुराने वाहनों में सीट बेल्ट और एयरबैग आदि नहीं होते।
जिससे ऐसे वाहनों में सफर जानलेवा होता है। नए वाहनों में कहीं ज्यादा सुरक्षा
मानकों का पालन होता है। नए वाहनों में दुर्घटना के समय सिर पर चोट लगने की कम
संभावना होती हैं। स्क्रैप पॉलिसी के दायरे में 20 साल से ज्यादा पुराने
लगभग 51 लाख हल्के मोटर वाहन (एलएमवी) और 15 साल से अधिक पुराने 34 लाख अन्य एलएमवी आएंगे।
इसके तहत 15 लाख मीडियम और हैवी मोटर वाहन भी आएंगे
जो 15 साल से ज्यादा पुराने हैं और इस समय इनके
पास फिटनेस सर्टिफिकेट नहीं है।
जहां तक प्रदूषण का सवाल
है तो यह माना जाता है कि नए भारत-6 गुणवत्ता वाले वाहन से
उत्सर्जन कम होता है जो कि पुराने वाले 25 वाहनों के उत्सर्जन के
बराबर है। हालांकि नए इंधन जिसमें दस
फीसदी एथेनाल मिलाया जा रहा है, से वाहनों का कार्बन
उत्सर्जन बढ़ रहा है और यही नहीं कैटेलिक कनवर्टर के इस्तेमाल से कार्बन की बड़ी
मात्रा समय से पहले इंजन पर असर डाल रही है।
वैसे भी मसला कैटेलिक कनवर्टर का हो या फिर सीएनजी का, यह स्पश्ट हो गया है कि
इनसे पीएम 2.5 से भी बारिक कण और नाईट्रोजन आक्साईड
गैसें अधिक उत्सर्जित हो रही हैं जो मानव जीवन और पर्यावरण के लिए बेहद नुकसानदायक
हैं। यदि नए वाहन कम इंधन पीते हैं या खरीदे गए हल्के वाहनों में बिजली या सीएनजी
के वाहन की संख्या अधिक हुइ तो कह सकते हैं
सन 2025 तक 22.97 मिललियन टन तेल की खपत
कम हो सकती है। हालांकि सभी नए वाहन
एयरकंडीशन वाले हैं और उनमें ना केवल इंधन अधिक फुंकता है, बल्कि एसी की गैस से ओजोन
परत को अधिक नुकसान पहुंचता है।
वैसे भी सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण दो स्ट्रोक इंजन वाले दोपहिया वाहनों सें होता
है और हमारे यहां उन पर नियंत्रण की कोई नीतिम नहीं हैं। यहां तक कि दिल्ली में जब
वाहनों के सम-विशम को लागू किया गया तब भी दोपहिलया वाहनों को उससे मुक्त रखा गया।
इस पर नियंत्रण कितना कठिन है इसकी बानगी दिल्ली में चल रहे ऐसे दस हजार से अधिक
पुराने स्क्ूटर हैं ज्न्हिं तीन पहियरा लगा कर भारवाहक का रूप दे दिया गया है। ये
वाहन 25 साल से अधिक पुराने हैं और ऐसे "जुगाड" वाले वाहन कई सौ कार के
बराबर हवा को कालीख से भर देते हैं। वैसे
भी हमारे यहां के जहाज के स्क्रैप संटर कई तरह के प्रदूषण के अड्डे बने हैं और उस पर कोई नियंत्रण नहीं
है। ऐसे में जब कई सौ जगह वाहनों को तोड़ने के अड्डे बनेंगे ततो प्रक्रिया व अवषेश
से अलग किस्म का प्रदूषण होना अवष्यसंभावी
है।
यदि वास्तव में सरकार वाहनों से होने वाले प्रदूषण के प्रति गंभीर है तो वाहनों को कबाड़ा बनाने की
नीति के बनिस्पत सड़क पर कम वाहन की नीति बनाए।
निजी इस्तेमाल के वाहनों पर कर्ज की नीति कड़ी हो, सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था
मजबूत और किफायती दाम की हो और सउ़कों पर जाम कम करने के उपाय
खोजे जाएं।
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