चैन्नई बड़ी चेतावनी है।
पंकज चतुर्वेदी
नव भारत टाइम्स |
चैन्नई व उसके आसपास के शहरी इलाकों
की रिहाईशी बस्तियों के जलमग्न होने का जो हाहाकर आज मचा है,
सन 2015 में भी इस शहर ने ऐसे ही हालात भोगे थे और लगता है कि उन कटु
अनुभवों से स्थानीय प्रशासन ने कुछ सीखा नहीं। यह सच है कि बमौसम ंझमाझम
बारिश अप्रत्याशित है लेकिन जलवायु
परिर्तन का कुप्रभाव सबसे पहले तटीय शहरों में पड़ने की चेतावनी तो नई नहीं हैं।
जान लें यह भी बड़ा सच है कि मद्रास शहर क पारंपरिक बुनावट और बसावट इस तरह की थी
कि 15 मिमी तक पानी बरसने पर भी शहर की जल निधियां में ही पानी
एकत्र होता और वे उफनते तो पानी समुद्र में चला जाता। वैसे गंभीरता से देखें तो
देश का वह शहर जो अपनी आधुनिकता, चमक-दमक और रफ्तार के लिए
जग-प्रसिद्ध हैं, थोड़ी सी बारिश में ही तरबतर हो जाता
हैं।
चैन्नई ं ,कभी समुद्र के किनारे का छोटा सा
गांव मद्रासपट्टनम आज भारत का बड़ा नगर है। अनियोजित विकास,
षरणार्थी
समस्या औ जल निधियों की उपेक्षा के चलते आज यह महानगर बड़े षहरी-झुग्गी में बदल गया
है। यहां की सड़कों की कुल लंबाई 2847 किलोमीटर है और इसका गंदा पानी ढोने
के लिए नालियों की लंबाई महज 855 किलोमीटर। लेकिन इस शहर में चाहे जितनी भी बारिश हो उसे सहेजने और सीमा से अधिक जल को समुद्र तक
छोड़कर आने के लिए यहां नदियों, झीलों, तालाबों और नहरों की सुगठित व्यवस्था
थी। नेषनल इंस्टीट्यूट आफ डिजास्टर मैनेजमेंट की रिपोर्ट में बताया गया है कि 650 से अधिक जल निधियों में कूड़ा भर कर
चौरस मैदान बना दिए गए । यही वे पारंपरिक स्थल थे जहां बारिश का पानी टिकता था और जब उनकी जगह समाज ने घेर ली
तो पानी समाज में घुस गया। उल्लेखनीय है कि नवंबर-15 की बारिश में सबसे ज्यादा दुर्गति दो पुरानी
बस्तियों-वेलाचेरी और तारामणि की हुई। वेलाचेरी यानि वेलाय- ऐरी। सनद रहे तमिल में
ऐरी का अर्थ है तालाब व मद्रास की ऐरी व्यवस्था सामुंदायिक जल प्रबंधन का अनूठा
उदाहरण हैं। आज वेलाय ऐरी के स्थान पर
गगनचुंबी इमारतें हैं। शहर का सबसे बड़ा
मॉल ‘‘ फोनिक्स” भी इसी की छाती पर खड़ा है। जाहिर है
कि ज्यादा बारिश होने पर पानी को तो अपने
लिए निर्धारित स्थल ‘ऐरी’ की ही ओर जाना था। शहर के
वर्षा जल व निकासी को सुनियोजित बनाने के
लिए अंग्रेजों ने 400 किलोमीटर लंबी बर्किंघम नहर बनवाई
थी, जो आज पूरी तरह प्लास्टिक, कूड़े से पटी है कीचड़ के कारण इसकी गहराई एक चौथाई रह गई है। जब
तेज बारिश हुई तो पलक झपकते ही इसका पानी
उछल कर इसके दोनो तरफ बसी बस्तियों में घुस गया।
चैन्नई शहर की खूबसूरती व जीवन रेखा
कहलाने वाल दो नदियों- अडयार और कूवम के साथ समाज ने जो बुरा सलूक किया,
प्रकृति ने इस बारिश
में इसी का मजा जनता को चखाया। अडयार नदी
कांचीपुरम जिले में स्थित विषाल तालाब चेंबरवक्कम के अतिरिक्त पानी के बहाव से
पैदा हुई। यह पष्चिम से पूर्व की दिषा में बहते हुए कोई 42 किलोमीटर का सफर तय कर चैन्नई में
सांथम व इलियट समुद्र तट के बीच बंगाल की खाड़ी में मिलती है। यह नदी शहर के दक्षिणी इलाके के बीचों बीच से गुजरती हैं और
जहां से गुजरती है वहां की बस्तियों का कूड़ा गंदगी अपने साथ ले कर एक बदबूदार नाले
में बदल जाती है। यही नहीं इस नदी के समुद्र के मिलन-स्थल बेहद संकरा हो गया है व
वहां रेत का पहाड़ हे। हालात यह हैं कि नदी का समुद्र से मिलन हो ही नहीं पाता है
और यह एक बंद नाला बन गया है। समुद्र में ज्वार की स्थिति में ऊंची लहरें जब आती
हैं तभी इसका मिलन अडयार से होता है। तेज बारिश में जब शहर का पानी अडयार में आया तो उसका दूसरा सिरा रेत
के ढेर से बंद था, इसी का परिणाम था कि पीछे ढकेले गए
पानी ने शहर में जम कर तबाही मचाई व दो
सप्ताह बीत जाने के बाद भी पानी को रास्ता नहीं मिल रहा है। अडयार मे ंशहर के 700 से ज्यादा नालों का पानी बगैर किसी
परिषोधन के तो मिलता ही है, पंपल औद्योगिक क्षेत्र का रासायनिक
अपषिश्ट भी इसको और जहरीला बनाता है।
कूवम षब्द ‘कूपम ’ से बना है- जिसका अर्थ होता हैं कुआँ। कूवम नदी 75 से ज्यादा तालाबों के अतिरिक्त
जल को अपने में सहजे कर तिरूवल्लूर जिले
में कूपम नामक स्थल से उदगमित होती है। दो सदी पहले तक इसका उद्गम धरमपुरा जिले था,
भौगोलिक बदलाव
के कारण इसका उदगम स्थल बदल गया। कूवम नदी
चैन्नई शहर में अरूणाबक्कम नाम स्थान से
प्रवेष करती है और फिर 18 किलोमीटर तक शहर के ठीक बीचों बीच से निकल कर बंगाल की खाड़ी में
मिलती है। इसके तट पर चूलायमेदू, चेरपेट, एग्मोर, चिंतारीपेट जैसी पुरानी बस्तियां हैं
और इसका पूरा तट मलिन व झोपड़-झुग्गी बस्तियों से पटा है। इस तरह कोई 30 लाख लोगों का जल-मल सीधे ही इसमें
मिलता है। कहने की जरूरत नहीं है कि यह कहीं से नदी नहीं दिखती। गंदगी,
अतिक्रमण ने
इसे लंबाई,चौड़ाई और गहराई में बेहद संकरा कर दिया है। अब तो थेाडी सी बारिश में ही यह उफन जाती है।
यह बारिश चैन्नई शहर के लिए जलवायु परिवर्तन की तगड़ी मार के आगमन की
बानगी है। यह संकट समय के साथ और क्रूर होगा और इससे बचने के लिए अनिवार्य है कि शहर
के पारंपरिक तालाबों व सरोवरों को
अतिक्रमण मुक्त कर उनके जल-आगम के प्राकृतिक मार्गों को मुक्त करवाया जाए। नदियों
व नहर के तटों से अवैध बस्तियों को विस्थापित कर महानगर की सीवर व्यवस्था का
आधुनिकीकरण करना होगा। चूंकि ये नदियां सीधे-सीधे 100 से ज्यादा तालाबों से जुड़ी हैं,
जाहिर है कि जब
इनकी सहन करने की सीमा समाप्त हो जाएंगी तो इससे जुड़े पावन सरोवर भी गंदगी व
प्रदूशण से नहीं बचेंगे। यह तो सभी जानते ही हैं कि चैन्नई सालभर भीशण जल संकट का
षिकार रहता है। आज मसला केवल चैन्नई के जल-संकट का नहीं,बल्कि देष के अधिकांष षहरों के
अस्तित्व का है । और यह तभी सुरक्षित रहेंगे जब वहां की जल निधियों को उनका पुराना
वैभाव व सम्मान वापिस मिलेगा। चैन्नई को मदद की दरकार तो है लेकिन यह गंभीर
चेतावनी आप सभी के लिए है कि अपने गांव-कस्बे के कुओं, बावडी, तालाब, झीलों से अवैध कब्जे हटा लें।
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