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बुधवार, 1 दिसंबर 2021

Electricity: Better to spend sparingly than indiscriminate production

 बिजली : अंधाधुंध उत्पादन से बेहतर होगा संयम से खर्च करना 

पंकज चतुर्वेदी 



अभी एक महीने पहले देश पर काले कोयले की कमी के चलते दमकती रोशनी और सतत विकास पर अंधियारा छाता दिख रहा था। भारत की अर्थ व्यवस्था में आए जबरदस्त उछाल ने उर्जा की खपत में तेजी से बढ़ौतरी की है और यही कारण है कि देश गंभीर उर्जा संकट के मुहाने पर खड़ा है।  किसी भी देश के विकास की दर सीधे तैार पर वहां उर्जा की आपूर्ति पर निर्भर करती है। आर्थिक विकास के लिए सहज और भरोसेमंद उर्जा की आपूर्ति अत्यावश्यक होती है,जबकि नई आपूर्ति का खर्च तो बेहद डांवाडोल है। दूसरी तरफ हमारे सामने सन 2070 तक षून्य कार्बन की चुनौती भी है।


भारत में यूं तो दुनिया में कोयले का चौथा सबसे बड़ा भंडार है, लेकिन ख़पत की वजह से भारत कोयला आयात करने में दुनिया में दूसरे नंबर पर है। हमारे कुल बिजली उत्पादन- 3,86888 मेगावाट में  थर्मल पावर संेटर की भागीदारी 60.9 फीसदी है। इसमें भी कोयला आधारित 52.6 फीसदी, लिग्नाईट, गैस व तेल पर आधारित बिजली घरों की क्षमता क्रमशः 1.7, 6.5 और 0.1 प्रशित है।  हम आज भी हाईड्रो अर्थत पानी पर आधारित  परियोजना से महज 12.1 प्रतिशत, परमाणु से 1.8 और  अक्षय उर्जा स्त्रोत से 25.2 प्रतिशत बिजली  प्राप्त कर रहे हैं। 


इस साल सितंबर 2021 तक, देश के कोयला आधारित बिजली उत्पादन में लगभग 24 प्रतिशत की बढौतरी हुई है। बिजली संयंत्रों में कोयले की दैनिक औसत आवश्यकता लगभग 18.5 लाख टन है जबकि हर दिन महज 17.5 लाख टन कोयला ही वहां पहुंचा । ज्यादा मॉनसून के कारण कोयले की आपूर्ति बाधित थी। बिजली संयंत्रों में उपलब्ध कोयला एक रोलिंग स्टॉक है जिसकी भरपाई कोयला कंपनियों से दैनिक आधार पर आपूर्ति द्वारा की जाती है। कोविड महामारी की दूसरी लहर के बाद भारत की अर्थव्यवस्था में तेज़ी आई है  और बीते दो महीनों में ही बिजली की ख़पत 2019 के मुकाबले में 17 प्रतिशत बढ़ गई है. इस बीच दुनियाभर में कोयले के दाम 40 फ़ीसदी तक बढ़े हैं जबकि भारत का कोयला आयात दो साल में सबसे निचले स्तर पर है।



यह किसी से छुपा नहीं है कि कोयले से बिजली पैदा करने का कार्य हम अनंत काल तक कर नहीं सकते क्योंकि प्रकृति की गोद में इसका भंडार सीमित है। वैसे भी दुनिया पर मंडरा रहे जलवयाु परिवर्तन के खतरे में भरत के सामने चुनौती है कि किस तरह  काबन उत्सर्जन कम किया जाए, जबकि कोयले के दहन से बिजली बनाने की प्रक्रिया में  बेशुमार  कार्बन निकलता है। कोयले से संचालित बिजलीघरों से स्थानीय स्तर पर वायु प्रदूषण की समस्या खड़ी हो रही है विशेषरूप से नाईट्रोजन आक्साईड और सल्फर आक्साईड के कारण।इसके कारण अम्ल बारिश जैसे शीघ्रगामी कुप्रभाव भी संभावित हैं। इन बिजलीघरों से उत्सर्जित कार्बन डाय आक्साईड जैसी गैसों से उपजा प्रदूषण ‘‘ ग्रीन हाउस गैसों’’ का दुश्मन है और धरती के गरम होने और मौसम में अप्रत्याशित बदलाव का कारक है। परमाणु बिजली घरों के कारण पर्यावरणीय संकट अलग तरह का है। एक तो इस पर कई अंतरराश्ट्रीय पाबंदिया हैं और फिर चेरेनाबेल और फुकुशिमा के बाद स्पश्ट हो गया है कि परमाुध विखंडन से बिजली बनाना किसी भी समयएटम बम के विस्फोट जैसे कुप्रभावों को न्योता है। आण्विक पदार्थो की देखभाल और रेडियो एक्टिव कचरे का निबटारा बेहद संवेदनशील और खतरनाक काम है। जैसे कि कुछ रेडियोएक्टिव पदार्थों विखंडन की प्रक्रिया कई-कई हजार साल तक चलती रहती है और उन्हें बेहद सुरक्षित स्थानों पर रखना होता है, जहां पर कोई बड़े प्राकृतिक बदलावों की संभावना ना हो।


हवा सर्वसुलभ और खतराहीन उर्जा स्त्रोत है । लेकिन इसे महंगा, अस्थिर और गैरभरोसेमंद माध्यम माना जाता रहा है । इन समय हमारे देश में महज  39.870 हजार मेगावाट बिजली हवा से बन रही है। हमारे देश में अभी तक लगे पवन उर्जा उपकरणों की असफलता का मुख्य कारण भारत के माहौल के मुताबिक उसकी संरचना का ना होना है । हमारे यहां बारिश, तापमान, आद्रता और खारापन , पश्चिमी देशों से भिन्न है । जबकि हमारे यहां लगाए गए सभी संयत्र विदेशी व विशेशकर ‘डच’ हैं । तभी एक तो मौसम के कारण संयत्र की पंखुडियों पर रासायनिक परत जमती जाती है और उसका वनज बढ़ जाता है । हमारे देश में जिन स्थानों पर बेहतर पवन बिजली की संभावना है, वहां तक संयत्र के भारी भरकम खंबों व टरबाईन को ले जाना भी बेहद खर्चीला है । इन्हीं कारणों से स्त्रोत मुफ्त होते हुए भी उससे मिलने वाली बिजली बेहद महंगी पड़ती है ।  पानी से बिजली बनाने में पर्वतीय राज्यों के झरनों पर टरबाईन लगाने के बाद भयंकर  आपदाएं बानगी हैं कि देश को अपनी गोद में पेाशित कर रहे पहाड़ों के पर्यावरण से अधिक छेड़छाड़ देश


को संकट में डाल सकती है। 


सूरज से बिजली पाना भारत के लिए बहुत सहज है। हमारे देश में  साल में आठ से दस महीने धूप रहती है और चार महीने तीखी धूप रहती है। वैसे भी जहां अमेरिका व ब्रिेटने में प्रति मेगावाट सौर उर्जा उत्पादन पर ार्चा क्रमशः 238 और 251 डालर है वहीं भारत में यह महज 66 डालर प्रति घंटा है, हां तक कि चीन में भी यह व्यय भारत से दो डालर अधिक है। हमारे देश में छत पर लगने वाले सोलर पैनल बहुत लोकप्रिय हो रहे हैं। कम लागत के कारण घरों और वाणिज्यिक एवं औद्योगिक भवनों में इस्तेमाल किए जाने वाले छत पर लगे सौर पैनल जैसी रूफटॉप सोलर फोटोवोल्टिक (आरटीएसपीवी) तकनीक, वर्तमान में सबसे तेजी से लगायी जाने वाली ऊर्जा उत्पादन तकनीक है।  अनुमान है कि आरटीएसपीवी से 2050 तक वैश्विक बिजली की मांग का 49 प्रतिशत तक पूरा होगा। 2006 और 2018 के बीच, आरटीएसपीवी की स्थापित क्षमता 2,500 मेगावाट से बढ़कर 2,13,000 मेगावाट पहुंच गयी है। यदि केवल  सभी ग्रूप हाउसिंग सोसायटी, सरकारी भवन,  पंचायत स्तर पर सार्वजनिक प्रकाश व्यवस्था को स्तरीय सोलर सिस्टम में बदल दिया जाए तो हम हर सालों हजारों मेगावाट बिजली का कोयला बचा सकते हैं।


सौर उर्जा एक अच्छा विकल्प है  लेकिन इसके लिए बहुत अधिक भूमि की जरूरत होती है।  एक बात हम नजरअंदाज कर रहे हैं कि सोलर प्लांट में इस्तेमाल प्लेट्स के खराब होने पर उसके निस्तारण का कोई तरीका अभी तक खोजा नहीं गया है और यदि उन्हें वैसे ही छोड़ दिया गया तो जमीन में गहराई तक उसके प्रदूशण का प्रभाव होगा।


यहां एक बात पर गौर करना होगा कि पिछले कुछ सालों में हमारे यहां  अक्षय उर्जा से प्राप्त बिजली संचय और  उपकरणों में बैटरी का प्रयोग बढ़ा हैं । जबकि यह गौर नहीं किया जा रहा है कि खराब बैटरी का सीसा और तेजाब पर्यावण की सेहत बिगाड़ देता है। 


बिजली के बगैर प्रगति की कल्पना नहीं की जा सकती, जबकि बिजली बनाने के हर सलीके में पर्यावरण के नुकसान की संभावना है। यदि उर्जा का किफायती इस्तेमाल सुनिश्चित किए बगैर उर्जा के उत्पादन की मात्रा बढाई जाती रही तो इस कार्य में खर्च किया जा रहा पैसा व्यर्थ जाने की संभावना है और इसका विषम प्रभाव अर्थ व्यवस्था के विकास पर पड़ेगा। विकास के समक्ष इस चुनौती से निबटने का एकमात्र राता है - उर्जा का अधिक किफायत से इस्तेमाल करना। ‘‘उर्जा का संरक्षण करना उसके उत्पादन के बराबर है’’ - पूरी दुनिया में लोगांे का ध्यान उर्जा की बचत की ओर आकर्षित करने के लिए इस नारे का इस्तेमाल का इस्तेमाल किया जा रहा है।  बिजली की बचत करना, नए बिजली घर लगाने के बनिस्पत बेहद सस्ता होता है।


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