उपेक्षित है दिल्ली का आज़ाद हिन्द ग्राम
हम अपने सैनानियों के सम्मान में सियासत और वोट तलाशते हैं और आज़ादी के संघर्ष के मूल्यों की अवहेलना करते हैं . अब दिल्ली में जहां अमर जवान ज्योति है उसकी जगह नेताजी सुभाषचंद बोस की प्रतिमा लगाईं जा रही है – अच्छी बात है – लेकिन नियत पर शक इस लिए होता है की इसी राजधानी में एक आजाद हिन्द ग्राम हैं – जो बेहद उपेक्षित, बिखरा हुआ और गंदा पडा है, अब उस परिसर को शादी विवाह के लिए दिया जाता है . हयाँ तक की मुख्दिमार्ग पर लगे बोर्ड में आजाद शब्द तक गलत लिखा हुआ है - अजाद.
दिल्ली में टिकरी बोर्डर , जो की किसान आन्दोलन के कारण चर्चा में रहा , वहां एक विशाल परिसर है या यों कहें कि अपने आप में ही एक पूरा शहर है, . यह विशाल परिसर बना है महान स्वतंत्रता सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज से प्रेरणा लेकर।
भले ही इसके कोई दस्तावेज ना मिलें लेकिन इस स्थल से जुड़े लोग बताते हैं कि उनके दादा-परदादाओं ने यहां स्वतंत्रता सेनानी सुभाष चंद्र बोस का भारत छोड़ने से पहले का आख़िरी भाषण सुना था. यहां एक धर्मशाला थी, जहां पर सुभाष चंद्र बोस ने विश्राम किया था और वहीं प्याऊ का पानी पिया था. बात 1940-41 की बताई जाती है. कहा जाता है कि नेताजी ने इसी भाषण के बाद धनबाद की यात्रा की थी और बाद में फिरंगियों को चकमा देकर ग़ायब हो गए थे.
नेताजी सुभाष ग्राम स्मारक आउटर दिल्ली के रोहतक रोड स्थित टिकरी कलां गांव में बनाया गया है। इसके निर्माण की परिकल्पना पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा ने वर्ष 1996 में की थी और बाद में शीला दीक्षित ने इस परिसर को पूर्ण करवाया और सन 2002 में इसका उदघाटन भी किया किया गया था। सरकार का पर्यटन विभाग इसका रखरखाव करता है।
दिल्ली पर्यटन ने नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की याद में टीकरी कलां स्थित आज़ाद हिंद ग्राम में टूरिस्ट कॉम्प्लैक्स को विकसित किया था .
स्मातरक को कोलकाता के कुछ कलाकारों के द्वारा डिजायन किया गया था जिसमें उन्होमने नेताजी के विभिन्नक मूड को अलग - अलग भित्ति चित्रों में दर्शाया है। संग्रहालय भी कैनवास पर चित्रित स्वमतंत्रता संग्राम को दर्शाने वाले कुछ मुख्या लैंडमार्क में से है। बड़े मोजेक गुंबद और संग्रहालय, इस पूरे परिसर के मुख्यं आकर्षण केंद्र हैं। संग्रहालय ( दिल्लीै चलो ) में स्वपतंत्रता संग्राम के दौरान के कई अखबारों की ढ़ेर सारी कटिंग और अन्य दृश्य संदर्भ वाली चीजें रखी हैं और यहां आज़ाद हिन्द फौज की गतिविधियों को भी अच्छीत तरह दर्शाया गया है।
इतनी शानदार जगह उपेक्षित है , वहां लोग पहुँचते नहीं हालांकि इस स्थान के करीब तक मेट्रो सेवा उपलब्ध है , दिल्ली सरकार और नगर निगम दोनों न तो इस स्थान का रखरखाव में रूचि लेता है और न ही इसके प्रचार-प्रसार में . जो नेताजी की याद में आंसू भाते हैं वे भी इस स्थान की बदहाली देखनी जाते नहीं – न ही किसी को वहां अजने के लिए प्रेरित करते हैं ---
नेताजी का शौर्य, देश प्रेम और त्याग किसी प्रतिमा का मोहताज नहीं हैं लेकिन जब उनकी स्मृति में एक स्थान है तो उससे बेरुखी रखने के पीछे क्या सियासत है ?
मैं यहाँ कोई दो साल पहले गया था, यहाँ के हालत पर दिल्ली के पर्यटन विभाग से ले कर प्रधानमन्त्री कार्यालय तक मेल भी किये थे लेकिन जानता था कोई जवाब नहीं देगा क्योंकि दूरस्थ ग्रामीण अंचल में छः एकड़ में फैले परिसर पर लगी तख्ती से शायद वोट न मिलें और अब नेताजी को जान्ने वाली पीढ़ी भी खत्म हो गई और उस इलाके में – गोली मारो सालों को—छाप नेता जीतने लगे हैं
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