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शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022

China's nefarious intentions in Northeast India

 पूर्वोत्तर भारत में चीन के नापाक  इरादे

 

पंकज चतुर्वेदी

भारत के आठ पूर्वोत्त


र राज्यों की नब्बे प्रतिशत सीमा तिब्बत, म्यांमार, भूटान और बांग्लादेश को छूती हैं इस तरह यह बेहद संवेदनशील इलाका है , हालाँकि सन 2014 की तुलना में यहाँ आज आतंकी घटनाओं में अस्सी फीसदी की कमी आई है , नागरिकों की हत्या की घटनाएँ 99 प्रतिशत कम हुईं , साथ ही सुरक्षा बालों की शहादत में भी 75 प्रतिशत की कमी आई है . इसके बावजूद यह बात  चिंतनीय है कि अस्थिर म्यांमार के रास्ते चीन अलगाववादियों को फिर से हवा-पानी दे रहा है , बांग्लादेश के रास्ते  पाकिस्तान तो इधर पहले से ही गड़बड़ियां करता रहा है . अरुणाचल प्रदेश को ले कर चीन समय समय पर घुसपैठ और बयानबाजी करता रहा है  और अब वह इस इलालाके में अस्थिरता के लिए छोटे आतंकी गुटों को शह दे रहा है |

 

 

बीते कुछ सालों में पृथकतावादी संगठनों पर बढे दवाब और उनके साथ हुए समझोतों ने माहौल को शांत बनाया है .23 फरवरी 2021 को  किया गया कार्बी आंगलान  समझोता, 10-8-19 का एन एल ऍफ़ टी त्रिपुरा समझौता  , 27-1-2020 के बोडो समझोते से माहोल बदला है, बीते दो सालों में 3922 आतंकियों ने आत्म समर्पण किया. हालाँकि हमारी सेना ने म्यांमार में घुस कर आतंकियों के अड्डे नष्ट किये लेकिन बीते दो सालों में उग्रवादियों ने भी सेना पर कुछ बड़े हमले किये हैं   लेकिन यह भी सच है कि  म्यांमार में  सैनिक शासन के बाद चीन व म्यांमार सीमा क्षेत्रों में विद्रोही फिर संगठित हो रहे हैं . म्यांमार को यह नागवार गुजरा है कि उसके देश के कोई बीस हज़ार राजनितिक कार्यकर्ता और सेना विरोधी कर्मचारियों को भारत ने एक साल से सुरक्षित पनाह दे रखी है . देश के पूर्वोत्तर में आतंकी हमले बढ़ा रहे हैं।



असम राइफल्स के पूर्व आईजी मेजर जनरल भबानी एस दास के अनुसार कई पूर्वोत्तर के कई अलगाववादी नेता अपना ठिकाना चीन में बनाये हैं, जिनमें  यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (आई), पीपल्स लिबरेशन आर्मी ऑफ मणिपुर और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (के) से टूटे धड़े के विद्रोही शामिल हैं। बीएसएफ के रिटायर्ड एडीजी संजीव कृष्ण सूद के अनुसार बेशक चीन की भूमिका को अनदेखा नहीं कर सकते, लेकिन शांति वार्ता में अनसुलझे मुद्दों की भी वजह से भी नगा समूह भड़के हुए हैं। मॉरीशस के पूर्व एनएसए रहे आईपीएस शांतनु मुखर्जी के अनुसार उल्फा (आई) नेता परेश बरुआ, चीन में अवैध हथियारों की मंडी के रूप में कुख्यात कुन्मिंग राज्य में छिपा है । पहले वह म्यांमार सीमा के निकट चीनी शहर रुइल में छिपा था। कुन्मिंग है।


यह किसी से छुपा नहीं है कि नगा विद्रोह के बाद अलगाववादियों को 70 के दशक में  चीन में ही प्रशिक्षण और हथियार मिलते थे। कई जनजातीय विद्रोही उत्तरी म्यांमार के क्षेत्रों को माओ के मॉडल पर ग्रेटर नागालिम में शामिल करने के लिए हथियार उठाए हुए हैं। घने जंगलों की वजह से भारत और म्यांमार में आना-जाना मुश्किल नहीं है।

याद करना होगा कि सन  1975 में भारत सरकार और नगा नेशनल काउंसिल के बीच शिलॉन्ग समझौते का एसएस खापलांग और थिंगालेंग शिवा जैसे नेताओं ने विरोध किया था, जो तब चाइना रिटर्न गैंगकहलाते थे। 1980 में खापलांग और मुइवा ने मिलकर नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालिम (एनएससीएन) का गठन किया था। आठ साल बाद 1988 में इसाक मुइवा ने चिशी स्वू के साथ एनएससीएन (आई-एम) गुट का गठन किया, जबकि खापलांग ने अपने गुट को एनएससीएन (के) नाम दिया। ये सभी गिरोह अपने परिवार के साथ चीन में आलिशान जिंदगी जी रहे हैं और युवाओं को अलग राज्य का झांसा दे कर म्यांमार में उनकी ट्रेनिंग  करवाते रहते हैं |


चीन मदद के लिए म्यांमार के यूनाइटेड वा स्टेट आर्मी और अराकान आर्मी जैसे सशस्त्र समूहों का सहारा लेता है वैसे ये संगठन बीते साल आतंकवादी संगठन घोषित किये गये हैं । सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के सबसे वांछित विद्रोही नेताओं में से कम से कम चार ट्रेनिंग और हथियारों के लिए पिछले साल मध्य अक्तूबर में चीनी शहर कुनमिंग में गए थे। ये भी सूचना है कि भारत-म्यांमार सीमा से सटे क्षेत्र में अलग मातृभूमि के लिए लड़ने वाले तीन जातीय नगा विद्रोहियों ने सेवानिवृत्त व वर्तमान चीनी सैन्य अधिकारियों के साथ-साथ कुछ अन्य बिचौलियों से मुलाकात की थी।



असम में उल्फा, एनडीबीएफ, केएलएनएलएफ और यूपीएसडी के लड़ाकों का बोलबाला है। नगालैंड में पिछले एक दशक  के दौरान अलग देश  की मांग के नाम पर डेढ हजार लोग मारे जा चुके हैं। वहां एनएससीएन के दो घटक - आईएम और खपलांग बाकायदा सरकार के साथ युद्ध विराम की घोषणा  कर जनता से चौथ वसूलते हैं। इनके आका विदेश में रह कर भारत सरकार के आला नेताओं से संपर्क में रहते हैं और इनके गुर्गों को अत्याधुनिक प्रतिबंधित हथियार ले कर सरेआम घूमने की छूट होती है। बांग्लादेश  की सीमा से सटे त्रिपुरा में एनएलएफटी और एटीटीएफ नामक दो संगठनों की तूती बोलती है। इन दोनों संगठनों के मुख्यालय, ट्रैनिंग कैंप और छिपने के ठिकाने बांग्लादेश  में हैं। इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि इन संगठनों को उकसाने व मदद करने का काम हुजी व हरकत उल अंसार जैसे संगठन करते हैं।

छोटे राज्य मणिपुर में स्थानीय प्रशासन बहुत कुछ  पीएलए, यूएनएलएफ और पीआरईपीएके जैसे संगठनों का गुलाम हैं। यहां सरकारी कर्मचारियों को अपने वेतन का एक हिस्सा आतंकवादियों को देना ही होता है। बाहरी लोगों की यहां खैर नहीं है।  केवाईकेएल यानि कांग्लेई यावोल कन्न ललुप संगठन भी राज्य के पहाड़ी इलाकों में सक्रिय है। बीते दस सालों के दौरान यहां पांच हजार से ज्यादा लोग अलगाववाद के शिकार हो चुके हैं। यहां सबसे ज्यादा ताकतवर संगठन यूनाईटेड नेशनलिस्ट लिबरेशन फ्रंट है जिसके पास 1500 लोग हैं। दूसरे सबसे खतरनाक संगठन पीपुल लिबरेशन आर्मी में 400 करीबन लड़के हैं | मेघालय में एएनयूसी और एचएनएलएल नामक संगठन अलगाववाद के झंडाबरदार हैं, वहीं मिजोरम में एनपीसी और बीएनएलएफ राष्ट्र  की मुख्य धारा  से अलग हैं। असम में छोटे-बड़े 36 आतंकवादी संगठनों का अस्तित्व सरकारी रिकार्ड स्वीकार करता है। मणिपुर में 39, मेघालय में पांच, मिजोरम में दो, नगालैंड में तीन, त्रिपुरा में 30 और अरूणाचल प्रदेश  में महज एक अलगवावादी संगठन है। इनमें से अधिकांश को पाकिस्तान से बांग्लादेश  में बने बेस कैंप से खाद-पानी मिलता है, और उसका भार उठाता है चीन |

जिस तरह से उत्तर-पूर्वी राज्यों के उग्रवादी अत्याधुनिक हथियारों तथा उसके लिए जरूरी गोला-बारूद  से लैस रहते हैं इससे यह तो साफ है कि कोई तो है जो दक्षिण-पूर्व एशिया में अवैध संवेदनशील हथियारों की खपत बनाए रखे हुए है। बंदूक के बल पर लोकतंत्र को गुलाम बनाने वालों को हथियार की सप्लाई म्यांमार, थाईलैंड, भूटान, बांग्लादेश से हो रही है। मणिपुर, जहां सबसे ज्यादा उग्रवाद है, नशे  की लत से बेहाल और उससे उपजे एड्स के लिए देश का सबसे खतरनाक राज्य कहा जाता है। कहना गलत ना होगा कि यहां नारकोटिक्स व्यापर के बदले हथियार की खेप पर कड़ी नजर रखना जरूरी है।

 

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