पॉलीथीन कचरे से
नाबदान बनी नांबुल नदी
पंकज चतुर्वेदी
एक जुलाई 2022 से पूरे देष में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर पाबंदी के नए आदेष से इंफाल की एक नदी की जान में जान आई है। पिछला लोकसभा चुनाव हो या वर्तमान में विधान सभा चुनाव, हर बार हर राजनीतिक दल बेशुमार कचरे के कारण मौत के कगार पर खड़ी एक नदी के संरक्षण का मसला जरूर उठाता है लेकिन जमीन पर कभी कुछ होता दिखा नहीं। मणिपुर की राजधानी इंफाल के ख्वाईरंबंद इलाके का ईमा कैथेल अर्थात ‘माँ का बाजार’ दुनिया में अनूठा व्यावसायिक स्थल है जहां केवल महिलाएं ही दुकानें चलाती हैं। सन 1533 में बने इस बाजार में लगभग पांच हजार महिलाओं का व्यवसाय है। बीते दो दषक के दौरान जिस वस्तु ने खरीद-फरोख्त करने वालों को सामान ले जाने के लिए सबसे सहूलियत दी, वही आज इस बाजार और इससे सटी नांबुल नदी के अस्तित्व पर संकट का कारण बन रही है। इस बाजार में आने वाली फल-सब्जी का उत्पादन इस नदी के जल से होता है। नदी के जल की सहज धारा कभी यहां के परिवेश मुग्ध करती थी। आज ईमा कैथल के करीब से गुजरती नदी में जल के स्थान पर केवल पॉलीथीन, पानी की बोतलें व अन्य प्लास्टिक पैकिंग सामग्री का अंबार दिखता है। जान लें कि यह नदी आगे चल कर विष्व के एक मात्र तैरते नेशनल पार्क व गांवों के लिए प्रसिद्ध लोकटक झील में मिलती है और जाहिर है कि नदी के जहर का कुप्रभाव लोकटक पर भी पड़ रहा है। गनीमत है कि स्थानीय लोग प्रत्येक उम्मीदवार से नदी को प्रदुषण मुक्त करने व कचरे के निबटारे के बारे में सवाल कर रहे हैं। खासतौर पर बाजार संचालित करने वाली महिलओं ने इसे अपने अस्तित्व का सवाल मान लिया है।
समुद्र तट से
कोई 1830 मीटर ऊंचाई पर
स्थित कांगचुप पर्वतमाला से उद्गमित नांबुल नदी इंफाल -पष्चिम, सेनापति और
तेमलांग जिलों से होती हुई लोकटक में विसर्जित होती है। इसमें अलग-अलग तीस सरिताएं
मिलती हैं जो इस नदी को मणिपुर की जीवनरेखा और सदानीरा बनाए रखती हैं। उल्लेखनीय
है कि मणिपुर में 15 बड़ी नदियां हैं जिनका जल-क्षेत्रफल 166.77 वर्गकिलोमीटर
है। इसके बावजूद पिछले कुछ सालों में मणिपुर में जल संकट गहराता जा रहा है। गर्मी
आने से पहले ही नदियां सूख जाती हैं। इसमें कोई षक नहीं कि नदियों की संघनता वाले
प्रदेष में पानी के टोटे का मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन का विस्तार पाता भयावह असर
है, लेकिन यह भी तय
है कि मानवोचित पर्यावरणीय छेड़छाड़ ने इस संकट को और अधिक असहनीय बना दिया है।
वर्ष 2019 में नांबुल नदी
के कायाकल्प और संरक्षण के शुभारंभ ने नदी के प्रदूषण स्तर को कुछ हद तक कम करने
में मदद की है लेकिन आज भी इसका नाम देश की सबसे दूषित नदियों में दर्ज है। विदित हो सीपीसीबी ने पांच अलग-अलग प्राथमिकता
के आधार पर भारत की 351 नदियों को अत्यधिक प्रदूषित के रूप में पहचाना
था, जिसमें मणिपुर
की नौ नदियों को सूचीबद्ध किया गया था, उनमें नांबुल एक है। दुर्भाग्य है कि अभी इसमें 72 नालों को मिलने
तथा शहर के बीच उड़ने वाली पोलीथीन से
मुक्त नहीं किया जा सका है।
अकेले इंफाल शहर
के 27 वार्डों से हर दिन 120 से 130 टन कूड़ा निकलता
है और इसके निबटारे की कोई माकूल व्यवस्था है नहीं। या तो इस कूड़े को शहर के बाहरी पहाड़ी स्थलों में फैंक दिया जाता है या
फिर शहर के बीच से गुजरती नांबुल नदी में
इसे डाल दिया जाता है। लगातार कूड़ा फैकने
से जब शहर में नदी ढंक गई तो स्थानीय प्रशासन
ने सन 2018 में
पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत शहर में 50 माईक्रॉन से कम मोटाई की पॉलीथीन पर पांबदी लगा
दी। इस कानून को तोड़ने पर एक लाख रूपए जुर्माना या पांच साल की सजा या देनो सजा का
प्रावधान है। पाबंदी का असर ईमा कैथल पर भी पड़ा। कई दुकानदार पहले इसे स्वीकारने
को तैयार नहीं थे, जबकि कई को षिकायत थी कि वे इस नियम को मान कर
पॉलीथीन का प्रयोग बंद भी कर दें लेकिन बाहर के लोग मानते नहीं। इस बार कें चुनाव
में पॉलीथीन पर सख्ती से पाबंदी, नदी की सफाई और शहर से निकलने वाले कूड़े के वैज्ञानिक तरीके से
निस्तारण जैसे मसले सबसे आगे हैं। बाजार चलाने वाली महिलाएं इस पर सबसे ज्यादा
मुखर हैं और हर राजनीतिक दल इसके निराकरण के वायदे अपने घोषण पत्र में कर रहा है।
एक स्थानीय सर्वेक्षण से पता चला है कि इंफाल शहर में साल दर साल सांस के रेगियों की संख्या बढ़
रही है और इसके मूल में भी प्लास्टिक कचरा ही है। कचरे के निबटान की प्रणाली के
अभाव में लोग इस कूड़े को खुले में जला रहे है। और इससे छोटी उम्र में ही बच्चों को
सांस की बीमारियां हो रही हैं।
यह बात अभी सभी
को खटक रही है कि इंफाल शहर में पेयजल के
मुख्य स्त्रोत नांबुल नदी 10 किलोमीटर के अपने रास्ते में नदी के रूप में
दिखना ही बंद हो गई है। ख्वारेमबंड बाजार के हंप पुलिया से कैथमथोय ब्रिज के पूरे
हिस्से में नदी महज कूड़ा ढोने का मार्ग मात्र है। जैसे ही यह पानी लोकटक में मिलता
है तो उसे भी दूशित कर देता है। मणिपुर की राजधानी इंफाल से 20 किलोमीटर दूर
दक्षिण-पष्चिम दिषा में विश्णुपुर जिले में स्थित देष की सबसे विषाल मीठे पानी की
झाल अभी कुछ साल पहले तक 223,000 हैक्टर में विस्तारित थी जो सिकुड़ कर 26 हजार हैक्टर पर
पहुंच गई है। आज भी इसकी अधिकतम लंबाई 26 किलोमीटर , चौड़ाई 13 किलोमीटर व
गहराई 4.58 मीटर तक है।
इसका जल ग्रहण क्षेत्रा 98 हजार हैक्टर और पानी का कुल आयतन 5980.36 लाख घनमीटर है।
इस झील में 12 द्वीप है, जिनमें से चार पर आबादी है। इसके दक्षिण में दुनिया का एकमात्र ‘‘तैरता हुआ
संरक्षित वन’’-केईबुल लामजाओ नेषनल पार्क’’ भी है।
यहां देषज, दुर्लभ और संकटापन्न ‘संगई’ हिरणों का डेरा
है। जैवविविधता की दृश्टि से इतने संवेदनषील व अनूठे लोकटक के पर्यावरणीय तंत्र के
लिए नांबुल अब खतरा बन गई है।
नांबुल के प्रदुषण
से इसके पानी के कारण खेती करने वाले और
मछली का काम करने वाले कई सौ लोगों के जीवकोपार्जन पर भी खतरा उत्पन्न हो गया है।
मछलियों की कई प्रजातियां जैसे - नगनक, नगसेप, नगमु-संगुम, नगटोन, खबक, पेंगवा, थराक, नगारा, नगतिन, आदि विलुप्त हो
गई है। ये मछलियां पूर्व में म्यांमार के
चिंडविन-इरावदी नदी तंत्र’ से पलायन कर मणिपुर घाटी की सरिताओं में प्रजनन
किया करती थीं। नदी में प्लास्टिक प्रदुषण का जाल बिछ जाने के कारण उन मछलियों के आवागमन का प्राकृतिक रास्ता ही बंद हो गया। यही
नहीं इसके चलते नदी किनारे में पैदा होने वाली कई साग-सब्जियों - हैकाक,थांगजींग, थारो, थांबल, लोकेई, पुलई आदि का उगना रूक गया। खेतों में फूलगोभी व
बंद गोभी की फसल भी प्रभावित हुई है।
आज मणिपुर की
नदियां अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही हैं और जागरूक लोग इसे मतदान के दवाब ने
बचाने का प्रयास कर देष के सामने सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें