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मंगलवार, 29 मार्च 2022

Missing musk deer

  

गायब होता कस्तूरी मृग

पंकज चतुर्वेदी

 

 वह एक मूक प्राणी है, अपनी सुरक्षा के लिए उसके पास सींग तक नहीं - ऊपर से प्रकृति ने उसकी नाभि में खुशबु का ऐसा खजाना दे दिया जो कई किलोमीटर दूर से उसकी उपस्थिति  का एहसास करवा देता है और यही खुशबु उसकी बैरन बन गई है।  कस्तूरी मृग हिमालयी क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश की चम्बा घाटी से लेकर सिक्किम तक पाये जाते हैं । कस्तूरी केवल नर मृग में ही पाया जाता है । कस्तूरी के औषधीय व प्रसाधन महत्व के कारण बड़े पैमाने पर इन मृगों का अवैध शिकार हुआ है ,जिसके परिणामस्वरूप यह विलुप्त होने के कगार पर पहुँच गए हैं । आईयूसीएन यानी इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर द्वारा जारी लाल सूची या  रेड लिस्ट में दर्ज इसको दुर्लभ प्राणी माना गया है।

 


कस्तूरी मृग उत्तराखंड राज्य का पशु है । कस्तूरी मृग के प्राकृतिक संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय  संघ के सहयोग से वर्ष 1970 के दशक में उत्तराखण्ड के केदारनाथ अभयारण्य में कस्तूरी मृग परियोजना की शुरूआत की गयी । कस्तूरी मृग के लिए हिमाचल प्रदेश का शिकारी देवी अभयारण्य तथा उत्तराखण्ड का बद्रीनाथ अभयारण्य प्रसिद्ध है । धरती पर कस्तूरी मृग की 4 प्रजातियां पाई जाती हैं यह चारों प्रजातियां रूस, चीन, नेपाल सीमा और भारत के दक्षिण हिमालय में पाई जाती हैं ।  भारत में गढ़वाल व कुमाऊं क्षेत्र में यह बड़ी संख्या में मिलता है। इसकी संभावना है कि आने वाले पांच सालों में  बगैर सींग वाला  एक छोटा सा हिरण भारत में शायद एक भी ना बचे। फिलहाल पाकिस्तान और अफ्गानिस्तान में यह पूरी तरह समाप्त हो चुका  है।

यह भले ही एक सामान्य हिरन या मृग जैसा दिखता हो लेकिन यह कई मायनों में अन्य  हिरणों से बहुत अलग है। इसका जीवन चक्र, खानपान व शारीरिक विशेषताएं सामान्य हिरन से बहुत अलग हैं। जैसे सभी हिरन जहां झुण्ड में रहते हैं वहीं कस्तूरी मृग एकान्तप्रिय है । यह  कुछ खास किस्म की जड़ी बूटियां, पत्ते व घास ही खाता है । ऊंचे बर्फीले पहाड़ों पर पाए जाने वाले इस मृग की केवल नर प्रजाति की नाभि के निकट एक नींबू के आकार की गांठ होती है जिसमें खुशबूदार  कस्तूरी विकसित होती है।  कुदरत ने जानवर को जनन प्रक्रिया को सामान्य बनाए रखने के लिए खुशबू का उपहार दिया ,लेकिन यही खुशबू इसके लिए मौत का पैगाम लेकर आती है। उल्लेखनीय है कि केवल प्रजनन प्रक्रिया के लिए मादा मृग इसकी सुगंध से आकृष्ट होती है और वह कुछ ही समय नर के साथ रहती है, फिर ये दोनों अलग हो कर स्वतंत्र रहते हैं। मादा कस्तूरी के गर्भधारण अवधि छ माह की होती है। अकेले रहने, दौड़ने में बहुत चपल ना होने के कारण जंगल में भी इनका शिकार अन्य जंगली जानवर या अवैध शिकारी सहजता से कर लेते हैं।

इस विलक्ष्ण जानवर की जान की दुश्मन बन गयी खुशबु का इस्तेमाल कुछ दवाएं और परफ्यूम बनाने में होता है । यह मृग  भारत में हिमालय के अलावा कश्मीर और सिक्किम में भी है मिलता है । कस्तूरी का औषधि उद्योग में  प्रयोग दमाए मिर्गीए हृदय संबंधी रोग और दवाई बनाने में प्रयोग किया जाता है।

आज एक  किलो कस्तूरी की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में लगभग 45000  अमेरिकी डॉलर है। कस्तूरी विश्व का बेशकीमती उत्पाद है। इत्र का परंपरागत व्यवसाय करने वाला यूरोपीय देश फ़्रांस इसका प्रमुख खरीदार हैं । एक  किलो कस्तूरी के लिए 80 हिरणों को मारा जाता है। कस्तूरी मृग से कस्तूरी 3 से 4 वर्ष के अंतराल 30 से 45 ग्राम तक प्राप्त किया जा सकता है । चीन अंतरराष्ट्रीय बाजार में कस्तूरी की पूर्ति करने वाला मुख्य देश है। चीन की रूस से लगने वाली सीमा पर यह बहुतायत पाया जाता था लेकिन बेरहमी से हुए शिकार ने वहां भी इसे दुर्लभ बना दिया ।  अकेले जापान को हर साल 250 किलोग्राम कस्तूरी की जरूरत होती है और इसके लिए 20000 से अधिक मृगों को मारना होता है।  यह भी कटु सत्य है कि कस्तूरी किसी ग्राहक को मूल शुध्ध अवस्था में मिलता नहीं है, इसमें कुछ ना कुछ मिलावट होती ही है।

उत्तराखंड राज्य के इनकी थोड़ी सी आबादी जंगलों में  केदारनाथ, फूलों की घाटी, पिथौरागढ़, उत्तरकाशी में 3600 से 4400 मीटर की ऊंचाई पर बची है। यह भूरे रंग का होता है और  काले पीले रंग के धब्बे पाए जाते हैं । इसके पैरों में चार खुर , बाहर निकले दांत और यह लगभग 20 इंच या लंबा होता है। कस्तूरी मृग की औसतन आयु लगभग 20 वर्ष की होती हैं उत्तराखंड में कस्तूरी मृग की चार  प्रजातियां पाई जाती हैं ।

 कस्तूरी मृग संरक्षण के लिए 1972 में केदारनाथ वन्य जीव विहार के अंतर्गत कस्तूरी विहार की स्थापना की गई ।महरूडी कस्तूरी मृग अनुसंधान की स्थापना 1977 में की गई थी। सर्वाधिक मात्रा में कस्तूरी मृग अस्कोट वन्य जीव अभ्यारण में पाए जाते हैं ।चमोली  जिले के कंचुला खर्क में 1982 को कस्तूरी में प्रजनन व संरक्षण केंद्र की स्थापना की गई थी ।राज्य में 2005 तक 279 कस्तूरी में पाए गए थे। सन 2008 में यह  लगभग 376  रह गयी वह भी  इसके लिए संरक्षित पार्क में ही ।

बेरोकटोक शिकार के कारण इस भोले.भाले जीव की संख्या तेजी से घट रही है इंडियन वाइल्डलाइफ बोर्ड ने 1952 में ही देश के उन 12 वन्य प्राणियों में कस्तूरी मृग को प्रमुख रूप से शामिल किया था जिसकी नस्ल  धीरे.धीरे समाप्त हो रही है।  इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय तथा देश के जागरूक पर्यावरण ने इस संकट की ओर ध्यान खींचा तब कस्तूरी मृग की बात उच्च स्तर पर उठने लगी। 1972 में वाइल्ड लाइफ प्रोजेक्ट के पास होते ही इस जीव को शुरू हुई इस कानून के तहत कस्तूरी मारना अपने पास रखना खरीदना या बेचना दंडनीय अपराध माना गया मादा कस्तूरी के गर्भधारण अवधि छ माह की होती है। कस्तूरी संरक्ष्ण के मकसद से उत्तर प्रदेश सरकार ने गढ़वाल हिमालय में 9672 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में इस वर्ग के संरक्षण का राष्ट्रीय पार्क 1972 शुरू किया यह दोनों क्षेत्र चमोली जनपद में विश्व विख्यात बद्रीनाथ और केदारनाथ धाम के ठीक बीच में है। गोपेश्वर से 32 किलोमीटर दूर स्थित काछोला खर्क कस्तूरी मृग के प्रजनन का स्थल बनाया गया। इतना होते हुए भी लापरवाही, पशु डॉक्टर के ना होने व अन्य कारणों से अभी तक इन केंद्रों में कस्तूरी मृग की संख्या बढ़ नहीं पा रही है ।

 

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