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मंगलवार, 29 मार्च 2022

revival of sahibi River will change ecology of Delhi NRC

 साहबी नदी को जिंदा करना  ही होगा

पंकज चतुर्वेदी

दिल्ली से सटा गुरूग्राम अभी चार दशक पहले तक गुड़गांव के नाम से एक छोटा सा कस्बा ही था। 90 के दशक में दिल्ली


में व्यापारिक गतिविधियां  तेज हुई, दिल्ली में जमीन की कीमतें बढ़ीं और दिल्ली से जयपुर के लिए चौड़ा हाईवे बना  तो गुरूग्राम एक आदर्श शहर  के रूप में उभरा। गगनचुंबी इमारतें, दुनिया की सभी साईबर कंपनियों के दफ्तर और दूर राजस्थान की सीमा तक फैला औद्योगिक क्षेत्र। दुनिया में इसे ‘‘साईबर सिटीकहा जाने लगा और रियल एस्टेट के लिए हॉट स्पॉट।  लेकिन यहाँ बरसात होने पर  16  लेन  चौड़ी सड़कों पर कई कई किलोमीटर लम्बा जाम  हमारे विकास के छद्म दावे की पोल खोलता है .यहाँ आठ घंटे तक बीस किलोमीटर के जाम हर साल की त्रासदी हैं . जब लोग सड़कों पर जमा पानी में ही फंसते हैं तो कोई पुरानी सरकार पर ठीकरा फोड़ता है तो कोई दिल्ली पर तो कोई मौजूदा सरकार को। असल में इस जाम का कारण गुड़गांव की बेशकीमती जमीन और उसको हड़पने के लोभ में हडप़ी गई वह नदी  हैं जो असल में अधिकतम बरसात में भी पानी को अपने में समा कर नजफगढ़  झील तक ले जाने का प्राकृतिक रास्ता हुआ करती थीं।

दिल्ली सरकार के नए बजट में एक संकल्प है कि साहबी नदी को पुनर्जीवित किया जाएगा .अभी डेढ दशक पहले तक एक नदी हुआ करती थी- साहबी या साबी नदी । जयपुर जिले के सेवर की पहाड़ियों  से निकल कर कोटकासिमत के रास्ते धारूहेड़ा के रास्ते। बहरोड़, तिजारा , पटौदी, झझ्झर के रास्ते नजफगढ़ झील तक आती थी यह नदी। इस नदी का प्रवाह नए गुरूग्राम में घाटा, ग्वालपहाड़ी, बहरामपुर, मेरावास, नंगली होते हुए बादशाहपुर तक था। कई जगह नदी का पाट एक एकड़ तक था। जान कर आश्चर्य होगा कि इस नदी का गुरूग्राम की सीमा में कोई राजस्व रिकार्ड ही नहीं रहा।  अभी सन 2010 में  हरियाणा विकास प्राधिकरण यानि हुडा ने नदी के जल ग्रहण क्षेत्र को आर जोन में घोषित  कर दिया। इससे पहले यहां नदी के रीवरबेडकी जमीन कुछ किसानों के नाम लिखी थी। आर जोन में आते ही पचास लाख प्रति एकड़ की जमीन बिल्डरों की निगाह में आई औ इसके दाम पंद्रह करोड़ एकड हो गई।  जहां नदी थी, वहां सेक्टर 58 से ले कर सेक्टर 65 की कई कालेनियां व बहुमंजिला आवास तन गए। अब बरसात तो पहले भी होती थी और उसका पानी इस नदी के प्रवाह के साथ नजफगढ़ के विशाल जल-क्षेत्र में समा जाता था।, जब नदी के रास्ते में भवन बन गए तो पानी भवनों के करीब ही जमा होना लाजिमी है। थोडी सी बरसात में ही गुरूग्राम के पानी-पानी होने और और फिर सालभर बेपानी रहने का असल कारण केवल साबी नदी का लुप्त होना मात्र है.

 

आज दिल्ली के भूजल के प्रदूषण का सबसे बड़ा कारक बना नजफगढ़ नाला कभी जयपुर के जीतगढ़ से निकल कर अलवर, कोटपुतली, रेवाड़ी व रोहतक होते हुए नजफगढ़ झील व वहां से दिल्ली में यमुना से मिलने वाली साबी, साहिबी या रोहिणी नदी हुआ करती थी । इस नदी के जरिये नजफगढ़ झील का अतिरिक्त पानी यमुना में मिल जाया करता था। सन 1912 के आसपास दिल्ली  के ग्रामीण इलाकों में बाढ़ आई व अंग्रेजी हुकुमत ने नजफगढ़ नाले को गहरा कर उससे पानी निकासी की जुगाड़ की। उस दौर में इसे नाला नहीं बल्कि ‘‘नजफगढ लेक एस्केपकहा करते थे। इसके साथ ही नजफगढ झील के नाबदान और प्राकृतिक नहर के नाले में बदलने की दुखद कथा शुरू हो गई। सन 2005 में ही केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोउर् ने नजफगढ नाले को देश के सबसे जयादा दूषित 12 वेट लैंड में से एक निरूपित किया था। आज लोग कहते हैं कि पानी उनके घर-सडक में घुस गया जबकि मौन नदी कहती है कि वह तो जब संपन्न  हुई तो अपने घर लौटी है .

आज भी समान्य बारिश की हालत में नजफगढ़ झील में 52 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में पानी भरता है।  कभी इस झील के रखरखाव के लिए सरकार द्वारा प्राधिकृत इंडियन नेशनल ट्रस्ट फार आर्ट, कल्चर  एंड  हेरीटेज(इनटेक) इस झील पर आवासीय प्रोजेक्ट  स्वीकृत करने के खिलाफ एनजीटी गया था तो हरियाणा सरकार ने अपने हलफनामें में कहा कि नजफगढ झील नहीं है बल्कि बारिश के अतिरित जल के जमा होने का निचला हिस्सा मात्र है। इस पर न्यायाधीश ने सरकार से ही पूछ लिया कि यदि यह झील नहीं है तो आखिर झील किसे कहेंगे।

कभी नजफगढ़ झील से अरावली की सरिताओं से आए पानी का संकलन और यमुना में जल स्तर बढ़ने-घटने पर पानी का आदान-प्रदान होता था। जब दिल्ली में यमुना ज्यादा भरी तो नजफगढ़ में उसका पानी जमा हो जाता था। जब यमुना में पानी कम हुआ तो इस वेट लैंड का पानी उसे तर रखता था। एनजीटी ने फिर दिल्ली व हरियाणा सरकार को नजफगढ़ के पर्यावरणीय संरक्षण की योजना पेश  करने की याद दिलाई। दिल्ली ने योजना तो बनाई लेकिन अमल नहीं किया, वहीं हरियाणा  ने योजना तक नहीं बनाई।

साहबी नदी कि जिलाने की अनिवार्यता पर विचार करते समय एक वैश्विक  त्रासदी को ध्यान में रखना जरूरी है - जलवायु परिवर्तन। साहबी केवल जल का जरिया नहीं है , यह उस अरावली की हरियाली और नमी को सहेजने के लिए भी जरुरी है जो पाकिस्तान की तरफ से आने वाले रेतीली गर्म हवाओं को रोकता है और मौसमी संतुलन बनाए रखता है . साहबी से यदि नजफगढ़ जील के जरिये यमुना में साफ़ पानी का वागमन शुरू हो गया तो जान लें दिल्ली की पानी के लिए दीगर राज्यों पर निर्भरता कम होगी , गुरुग्राम में  बरसात में जल जमाव से मुक्ति मिलेगी और वहां का भू जल स्तर भी सुधरेगा . बस संकट यही है कि  साहबी को पुराना स्वरुप देने के लिए तीन राज्यों – राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली में सामंजस्य कैसे हो ? खासकर नदी के नैसर्गिक रास्तों में बन गये बेजा निर्माण को हटाने और अरावली से यमुना तक अविरल धारा  में आये कथित “विकास” से कैसे निजात मिलेगी .

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