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बुधवार, 18 मई 2022

fire is a good friend but a very bad master

 आग से बेपरवाह क्यों हैं

पंकज चतुर्वेदी




दिल्ली  के मुंडका में एक व्यावसायिक  परिसर में एक इलेक्ट्रानिक कंपनी के कर्मचारियों के लिए मोटिवेषन लेक्चर चल रहा था । अचानक  लाईट गई, जनरेटर चलते ही पूरी इमारत आग का गोला बन गई। जब तक सरकार चेतती कि  भवन भी अवैध था और उसमें आग से बचाव के उपाय थे ही नहीं, तीस लोग मारे जा चुके थे। उनके शरीर इतने बुरे जले हैं कि मृतकों की पहचान नहीं हो पा रही।  इतना हल्ला हुआ लेकिन ना तो दिल्ली में आग रूकी और ना ही लापरवाही। उसके बाद भी हर दिन किसी कारखाने में आग लगती रही और वही गलतियों दोहराती दिखीं। है। यह समझना जरूरी है कि आग एक अच्छी दोस्त है लेकिन बहुत बुरी मालिक, यानि यदि आग आप पर बलवती हो गई तो उसे दूरगामी दुष्प्रभावों से जूझना बहुत कठिन होता है।

आग के प्रति कोताही का जब यह हाल दिल्ली का है तो समझ सकते हैं कि सुदूर अंचलों में लोग किस तरह आग से खेलते होंगे। देश के कई अन्य अग्निकांडों को भी देखें तो पाएंगे कि इन हादसों को असल में इंसान ने खुद ही बुलाया था - लापरवाही में, ज्यादा पैसे कमाने के लालच में और सतर्कता के अभाव के माध्यम से। जान लें कि आग लगने से जान-माल का नुकसान तो होता ही है, जो लोग इस हादसे में घायल हो जाते हैं उनका इलाज भी बेहद महंगा होता



हाल की घटनांओं को फौरी तार पर देखें तो हर एक अग्निकांड का कारण मानवजन्य लापरवाही ही हैं अतिक्रमण, अवांछित निर्माण और सुरक्षा के उपायों को पूरी तरह नजरअंदाज करना । ऐसी लापरवाही जिससे बगैर किसी खास प्रयुक्ति के भी बचा जा सकता है। अपने दैनिक जीवन में हम यदि कुछ मामूली सावघानियां बरतें तो ऐसी घटनाओं को होने से रोका जा सकता है । इससे कई लोगों का जीवन बचाया जा सकता है । दिल्ली या अन्य नगरों की बात करें या खलिहान में रखी सूखी फसल में आग लगने की, अधिकांश मामलों में बिजली के उपकरणों क्रे प्रति थोड़ी सी लापरवाही ही बड़े अग्निकांड में बदलती दिखती हैं। उसके बाद तबाही के अलावा कुछ नहीं बचता।

विश्व में जलने के मामलों में सबसे अधिक संख्या संभवतया भारत की है । यह चिंता का विषय है कि दुनिया के कुल जलने के मामलों में भारत का हिस्सा एक तिहाई है । जहां विकसित देशों में जलने के मामले लगातार कम होते जा रहे हैं, वहीं भारत जैसे विकासशील देशों में इनकी संख्या लगातार बढ़ रही है । यह गहरी चिंता का विषय है । एक अनुमान है भारत में हर साल लगभग 30 लाख लोग जलने की घटनाओं के शिकार होते हैं । । इनमें से कोई पांचवा हिस्सा ही अस्पताल तक पहुंचता है और विडंबना है कि इनके एक तिहाई मौत की चपेट में आ जाते हैं । जबकि इतने ही लोग विकलांग हो जाते हैं । ऐसी घटनाओं के शिकार 80 प्रतिशत लोग अपने जीवन के सबसे सक्रिय काल यानि 15 से 35 साल आयु के होते हैं। इनमें बच्चे या महिलाओं की बड़ी संख्या होती है । जलने की आठ फीसदी दुर्घटनाएं घर पर ही घटित होती हैं ।



जले हुए लोगों का इलाज बेहद खर्चीला और लंबे समय तक चलता है । यही नहीं देश में सभी जगह इसके उचित इलाज की व्यवस्था भी नहीं हैं । अपने दैनिक जीवन में हम यदि कुछ मामूली सावघानियां बरतें तो ऐसी घटनाओं को होने से रोका जा सकता है । इससे कई लेगों का जीवन बचाया जा सकता है ।

चिकित्सा विज्ञान में अधिकांश बीमारियों के इलाज के लिए दवाईयां या शल्य का प्रावधान है । आग से हुई चोटों का भी इलाज होता है, लेकिन दुर्भाग्य है कि कोई भी इलाज शरीर को असली आकार या रंग लौटाने में सक्षम नहीं है ।  कई बार जब शरीर का बड़ा हिस्सा जल जाता है तो रेगी की मृत्यु हो जाती है । जले हुए रोगियों की बड़ी संख्या चेहरे या शरीर के अन्य हिस्सों में विकृति का शिकार बन जाती है ।  कई बार शरीर का कोई हिस्सा बकाया जीवन के लिए बेकार हो जाता है ।

जलने के कारण  पीड़ित मरीज पर कई मनोवैज्ञानिक व सामाजिक प्रभाव भी होते हैं । करीबी रिश्तेदार कई बार अलग तरीके से प्रतिक्रिया व्यक्त करते हैं और मरीज को बोझ मानते हैं। कई बार माता-पिता भारी आर्थिक बोझ के तले दब जाते हैं । कुछ लोग खुलेआम विकलांग बच्चों को  अस्वीकार कर देते हैं । कई बार जले हुए पीड़ित को विकृति और कुरूपता के कारण अपने भाई-बहन और हमउम्र दोस्तों से उपेक्षा झेलनी पड़ती है । जाहिर है कि जिस बात से आसानी से बचाव किया जा सकता है, कई बार उसकी भारी कीमत चुकानी पड़ती है ।



आग से बचने का सबसे सटीक उपाय है सतर्कता और जागरूकता। कुछ बातें सभी को गांठ बांध कर रखना चाहिए, जैसे कि आग तेजी से फैलती है । एक छोटी सी चिंगारी महज 30 सेकंड में काबू से बाहर हो जाती है तथा विकराल आग का रूप ले सकती है । कुछ मिनटों में ही घर में गहरा काला धुंआ भर सकता है । आग की लपटें थोड़ी ही देर में किसी घर को निगल लेती है । दूसरा. आग गरम होती है और गरमी अकेले ही जानलेवा होती है । आग लगने की दशा में कमरे का तापमान पैरों के पास 100 डिगरी और आंखों तक आते-आते 600 डिगरी हो जाता है । इतनी गरम हवा में सांस लेने से फैंफड़े झुलस सकते हैं । मुंडका में कुछ इसी तरह लोगों की मौत हुई थी। कुछ ही मिनटों में कमरा गरम भट्टी बन जाता है।, जिसमें प्रत्येक वस्तु सुलग उठती है । आग की शुरूआत तो रोशनी से होती है, लेकिन जल्दी ही इससे निकलने वाले काले घने धुएं के कारण अंधेरा छा जाता है। आग की लपटों से कहीं अधिक उसके धुएं और जहरीली गैसों से जान-माल का नुकसान होता है । प्राणदायक आक्सीजन गैस के कारण आग का फैलाव होता है और इससे धुआं व घातक गैसे निकलती हैं । धुंए या जहरीली गैस की यदि थोड़ी सी मात्रा भी सांस के साथ भीतर चली जाए तो आप निढ़ाल, बैचेन हो सकते हैं च सांस लेने में परेशानी हो सकती है । कई बार तो आग की लपटें आप तक पहुंचे उससे पहले ही रंगहीन, गंधहीन धुआं आपको गहरी नींद में ढकेल सकता है।



ऐसे हादसे आमतौर पर भीड़ भरे संकरे स्थानों पर घटित होते हैं , जैसे कि स्कूल, कालेज, बाजार, सिनेमा हॉल , शादी के मंडप, अस्पताल, होटल, रेलवे स्टेशन, कारखाने, सामुदायिक भवन, धार्मिक समागम आदि ।

आग लगने की 60 प्रतिशत घटनाओं के मूल में बिजली के साथ बरती जाने वाली लापरवाही होती हैं , इनमें शार्ट र्सिर्कट, ओवर हीटिंग, ओवर लोडिंग, घटिया उपकरणों का इस्तेमाल, बिजली की चोरी, गलत तरीके से की गई वायरिंग, लापरवाही, आदि आम हैं। यदि दिशा-निर्देशों का सही तरीके से पालन ना किया जाए तो भयानक आग व बड़ी दुर्घटना घटित हो सकती है । थोड़ी सी सावधानी बरतने पर ऐसी घटनाओं से बचा जा सकता है । बिजली से लगने वाली आग ,विशेषरूप से बड़े भवनों में बहुत तेजी से फैलती है , जिसके कारण जान-माल की बड़ी हानि हो सकती है। अतः यह जरूरी है कि आग लगने पर त्वरित कार्यवाही की जाए ।



अग्निशमन विशेषज्ञ यह बात स्वीकारते हैं कि हमारे देश में होने वाली असामयिक मृत्यु के कारणों में आग सबसे बड़ा कारक है । जले हुए लोगों का उपचार करना बेहद खर्चीला व बहुत समय खपाने वाला कार्य है । आग से बचाव के उपायों का क्रियान्वयन, जले हुए लोगों के इलाज के लिए अस्पताल बनाने से कम खर्चीला व सरल होता है । थोड़ी सी सावधानी, लोगों की जागरूकता और सामान्य सा प्रशिक्षण हमारे देश को आग की घटनाओं से मुक्त देश बना सकता है । यही नहीं अग्निशमन जैसे विभाग आग लगने पर जिस तत्परता से काम करते हैं और कई बार आग से जूझने में अपने साथियों को भी गंवा देते हैं, उससे बेहतर हो कि कोई हादसा होने से पूर्व ही सार्वजनिक स्थानों पर आग की संभावनओं को शून्य करने पर अधिक ध्यान दें। एक बात और हमारी सड़कें व सार्वजनिक स्थल फायरब्रिगेड की गाडियों के आवागमन और उनके उपकरणों के ठीक तरह इस्तेमाल के अनुकूल नहीं हैं। हम लोग देरी के लिए अग्निशमन को कोसते हैं, असल में उस देरी के पीछे भी वही कारण होते हैं जो आग लगने के - अतिक्रमण , अवैध निर्माण और कोताही। आज अनिवार्य है कि आग के कारणो के प्रति  लापरवाहियां को ले कर समाज में भी नियमित विमर्श और सतर्कता हो।

 

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