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गुरुवार, 21 जुलाई 2022

Flood comes due to damming of rivers

 नदियों को बाँधने  से आती है बाढ़

पंकज चतुर्वेदी

 


 अभी तो सावन की पहली फुहार ने ही धरती को सुवासीत किया था कि गुजरात और महाराष्ट्र  पानी पानी हो गया . इसमें कोई शक नहीं कि गुजरात के शहरों में विकास और नगरीकरण स्तरीय है लेकिन अहमदाबाद से ले आकर नवसारी तक सब कुछ  एक बरसात की झड़ी में ही पानी में धुल  गया . महाराष्ट्र के वे हिस्से जो अभी एक हफ्ता पहले एक एक बूँद तो तरस  रहे थे, अब जलमग्न हैं . इन दोनों प्रदेशों की जल कुंडली बांचे तो लगता है कि प्रकृति चाहे जितनी वर्षा कर दे, यहां की जल -निधियां इन्हें सहेजने में सक्षम हैं। लेकिन अंधाधुध रेत-उत्खनन, नदी क्षेत्र में अतिक्रमण, तालाबों  के गुम होने के चलते ऐसा हो नहीं पा रहा है और राज्य के चालीस फीसदी हिस्से में शहर में नदियां घुस गई हैं। इससे बदतर हालात तो तेलंगाना और आन्ध्र प्रदेश के हैं .गोदावरी नदी अब  गाँव-नगरों में बह रही है.जहां आधा देश अभी बारिश की बात जोह रहा है ,  कुछ राज्यों, खासकर गुजरात में कुदरत की नियामत कहलाने वाला पानी अब कहर बना हुआ है। जब बाँध के दरवाजों से  अकूत जल निधि छोड़ी तो गाँव दुबे और खासकर गुजरात में तो जब बाँध भर गए तो उस पानी की पिछली  मार (बेक वाटर )  से भी जम कर बर्बादी हुई .



जरा बारिकी से देखें तो इस बाढ़ का असल कारण वे बांध हैं  जिन्हें भविश्य के लिए जल-संरक्षण या बिजली उत्पापन के लिए अरबों रूपए खर्च कर बनाया गया था। किन्हीं बांधों की उम्र पूरी हो गई है तो कही सिल्टेज है और कई जगह जलवायु परिवर्तन जैसे खतरे के चलते अचानक तेज बरसात के अंदाज के मुताबिक उसकी संरचना ही नहीं रखी गई।  जहां-जहां बांध के दरवाजे खोले जा रहे हैं या फिर ज्यादा पानी जमा करने के लालच में खोले नहीं जा रहे, पानी बस्तियों में घुस रहा है। संपत्ति का नुकसान और लोगों की मौत का आकलन करें तो पाएंगे कि बांध महंगा सौदा रहे हैं।

बाढ़ स्थिति की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक यदि असम  और पूर्वोत्तर राज्यों को छोड़ दें तो करीब एक करोड़ लोग बाढ़ से प्रभावित हो चुके हैं। अकेले गुजरात और महाराष्ट्र में जल भराव से मरने वालों की संख्या ढेढ़ सौ पार कर चुकी है .ये मौतें असल में पानी के बस्ती में घुसने या तेज धार में फंसने के कारण हुई हैं। अभी तक  बाढ़ के कारण संपत्ति के नुकसान का सटीक आंकड़ा नहीं आया है लेकिन सार्वजनिक संपत्ति जैसे सड़क आदि,खेतों में खड़ी फसल, मवेशी, मकान आदि की तबाही करोड़ो में ही है। दादर नगर हवेली की राजधानी सिलवासा में मधुबन डेम में अचानक जलस्तर बढऩे से सभी दरवाजे 4 मीटर की ऊंचाई तक खोल दिए और  डेढ़ लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया। बाद में इसे बढ़ाकर दो लाख क्यूसेक कर दिया गया। 


दमण गंगा नदी में डिस्चार्ज बढऩे से कराड़, रखोली, कुड़ाचा, सामरवरणी, मसाट, आमली, अथाल, पिपरिया, पाटी, चिचपाड़ा, वासोणा, दपाड़ा, तीघरा, वागधरा, लवाछा में नदी खतरे के निशान पर बह रही है। भुरकुड फलिया, इन्दिरा नगर, बाविसा फलिया में जलभराव से लोगों को शामत आ गई है। महाराष्ट्र के सीमावर्ती दुधनी, कौंचा, सिंदोनी, मांदोनी, खेरड़ी में भारी बारिश से साकरतोड़ नदी भी उफान पर रही है। विस्तार के मैदानी खेत तालाब बन गए हैं। घरों की छत से पानी टपक रहा हैं। खानवेल से मांदोनी, सिंदोनी तथा दुधनी, कौंचा तक गांवों में लोग कच्चे घरों में निवास करते हैं। नदी की तराई वाली बस्तियों में जलभराव से लोगों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। अथाल में दमण गंगा का जलस्तर वार्निंग लेवल से ऊपर (30 मीटर ऊँचाई) पहुंच गया है। नदी किनारे स्वामीनारायण मंदिर की ओर बने श्मशान घाट में पानी घुस गया है। रिवर फ्रंट पानी में डूबने से वहां लोगों के जाने पर रोक लगा दी है।



महाराष्ट्र के भंडारा में एक तरफ भारी बरसात है तो दूसरी तरफ लबालब भर गये बाँध . यहाँ गोसीखुर्द बांध के 27, मेडीगड्डा बांध के 65, इरई और बेंबला बांध के दो-दो दरवाजें खोल दिए गए हैं, जिससे अनेक नदी-नालों में बाढ़ आ गई है। बाढ़ के कारण  सैकड़ों गांव संपर्क क्षेत्र से बाहर हैं। हजारों हेक्टेयर क्षेत्र की फसलें बर्बाद हो गईं।  सर्वाधिक बाढ़ प्रभावित गड़चिरोली का साली संकट भी नदियों को बाँधना ही है .उधर सिरोंचा तहसील से सटे तेलंगाना राज्य के मेडीगड्डा बांध के 85 में से एकसाथ 65 गेट खोलने के कारण गोदावरी नदी का जलस्तर बढ़ने लगा है। इस नदी तट पर बसे सिरोंचा तहसील के दर्जनों गांवों के नागरिकों को सतर्कता बरतने की अपील स्थानीय प्रशासन ने की है। साथ ही सैकड़ों गांवों की बिजली आपूर्ति ठप पड़ी हुई है।  पिछले तीन दिनों से गड़चिरोली जिले में बाढ़ का प्रकोप जारी है। नालों में बाढ़ की स्थिति निर्माण होने से जिले के बाढ़ग्रस्त 11 गांवों के 129 परिवारों के 353 लोगों को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाया गया है।  जिले के विभिन्न स्थानों पर कुल 35 मकान धराशायी होने की जानकारी मिली है।  

चंद्रपुर जिले में निरंतर बारिश के कारण निचले इलाकों में पानी भर गया है। नदी, नाले उफान पर होने से धानोरा-गडचांदुर, शेगांव-वरोरा जैसे कई मार्ग बंद हो गए हैं। इरई डैम के दो दरवाजे खोले गए हैं। वर्धा नदी भी लबालब होकर बह रही है। नासिक शहर के जलमग्न होने का कारण शहर को पेय जल आपूर्ति करने वाले गंगा सागर बाँध के  दरवाजे खोलना ही रहा हैं .यह है तो गोदावरी जल तन्त्र का ही हिस्सा और गोदावरी उधर दक्षिणी राज्यों में रौद्र रूप में है ,

 

गुजरात में पंचमहाल जिले के हालोल क्षेत्र में देव नदी डैम के 6 दरवाजे आंशिक तौर पर खोलने के बाद वडोदरा की वाघोडिया तहसील के 19 व डभोई तहसील के 7 गांव के लोगों को घर बार छोड़ कर भागना पड़ा है । बांधों में जलस्तर बढ़ रहा है। नर्मदा बांध का जलस्तर क्षमता के मुकाबले अब 47.71 फीसदी हो गया है। राज्य के इस सबसे बड़े बांध में सात दिनों में सात फीसदी जलसंग्रह बढ़ा है। अन्य प्रमुख 206 बांधों में क्षमता का 33.61 फीसदी जल संग्रह हो गया है। हाल में 18 बांधों में 90 फीसदी से अधिक संग्रह होने पर हाइअलर्ट हैं। जबकि आठ में 80 फीसदी से अधिक और 90 फीसदी से कम संग्रह होने पर अलर्ट और 11 बांधों में 70 फीसदी से अधिक और 80 फीसदी से कम संग्रह है, इन बांधों को सामान्य चेतावनी पर रखा है।  इन्हीं बांधों से धीरे धीर पानी भी छोड़ा जा रहा है ताकि भारी बरसात को सहेजा जा सके और यही जल क़यामत बन कर शहरों में घुस रहा है . नर्मदा बांध का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है। उपरवास में बारिश के कारण 42240 क्यूसेक पानी आ रहा है। नर्मदा बांध का जलस्तर 115.58 मीटर है। पूरे गुजरात में बारिश के कारण नहर में पानी छोड़ना बंद कर दी गई है। गरुड़ेश्वर में 35 मीटर ऊंचा वियर बांध बारिश के कारण ओवरफ्लो हो गया है। बांध के ओवरफ्लो होने से नर्मदा नदी में बाढ़ जैसे हालात पैदा हो गए हैं। नर्मदा नदी का जलस्तर बढ़ने से तटीय क्षेत्र के लोगों को अलर्ट कर दिया गया है। इस नदी का प्रवाह सीधे चणोद करनाड़ी से होकर भरूच तक जाती है।

जिस सरदार सरोवर को देश के विकास का प्रतिमान कहा जा रही है, उसे अपनी पूरी क्षमता से भरने की जिद में उसके दरवाजे खोले नहीं गए और सरदार सरोवर बांध स्थल से मध्य प्रदेश के धार जिले के चिखल्दा तक नर्मदा नदी की दिशा विपरीत हो गई है। नदी पूर्व से पश्चिम की तरफ बहती है, लेकिन अब पश्चिम से पूर्व की तरफ बह रही है। इसके पीछे का कारण सरदार सरोवर बांध के गुजरात के जल संग्रहण इलाके में भारी वर्षा बताई जा रही है, जबकि मध्य प्रदेश में वर्षा कम हुई है। धार जिले के नर्मदा किनारे बसे तीर्थस्थल कोटेश्वर व डूब क्षेत्र के गांव चिखल्दा में नर्मदा उलटी दिशा में बहती नजर आई। गुजरात में भारी वर्षा होने से मध्य प्रदेश के तीन जिलों आलीराजपुर, धार व बड़वानी में सरदार सरोवर बांध के 140 किमी की परिधि में यह दृश्य नजर आया . जाहिर है की आने वाले दिनों में जब मध्य प्रदेश के इन इलाकों में भी बरसात होगी तो भारी तबाही देखने को मिलेगी . मप्र के रायसेन का बारना डैम ओवर फ्लो करने लगा है जिसके बाद सोमवार को डैम के 6 गेट खोल दिए गए जिससे आसपास के इलाके पानी में डूब गए. सड़कों पर पानी भर गया. लोगों के सामान भी पानी में डूब गए. डैम से पानी छोड़े जाने की वजह से नेशनल हाइवे 145 पर बना पुल पानी में डूब गया है...बारना नदी पर बने पुल के ऊपर से पानी बहने लगा है जिससे यातायात भी प्रभावित हुआ.

बिहार में तो हर साल 11 जिलों में बाढ़ का कारण केवल और केवल तो बांधों का टूटना या फिर क्षमता से ऊपर बहने वाले बांधों के दरवाजे खोलना होता है । महाराश्ट्र के गडचिरोली में जब बादल जम कर बरस रहे थे, तभी सीमा पर तेलंगाना सरकार के मेंड्डीकट्टा बांध के सारे 65 दरवाजे खोल दिए गए। जब तीन लाख 81 हजार 600 क्यूसिक पानी सिरोंचा तहाल के गांवों तक भरा तो वहां तबाही ही थी। इधर मध्यप्रदेष में गांधी सागर व बाध सागर डेम के दरवाजे खोलने से नर्मदा व सोन के जल स्तर में भारी वृद्धि से तट पर बसे सैंकड़ों गांव खतरे में है. उ.प्र में गंगा व यमुना को जहां भी बांधने के प्रयास हुए, वहां इस बार जल-तबाही हे। दिल्ली में इस बार पानी बरसा नहीं लेकिन हथिनि कुड बेराज में पानी की आवक बढ़ते ही दरवाजे खाले जाते हैं व दिल्ली में हजारों लोगों को विस्थापित करना पड़ता है।

द एशियन डेवलपमेंट बैंक के अनुसार भारत में प्राकृतिक आपदाओं में बाढ़ सबसे ज्यादा कहर बरपाती है। देश में प्राकृतिक आपदाओं के कुल नुकसान का 50 प्रतिशत केवल बाढ़ से होता है। बाढ़ से 65 साल में लोगों की मौत 1,09,414 हुई और 25.8 करोड़ हेक्टेयर फसलों को नुकसान हुआ।  अनुमान है कि कुल आर्थिक नुकसान 4.69 लाख करोड़ का होगा। कभी इसका अलग से अध्ययन हुआ नहीं लेकिन बारिकी से देखें तो सबसे ज्यादा नुकसान बांध टूटने या दरवाजे खालने से आई विपदा से हुआ है। मौजूदा हालात में बाढ़ महज एक प्राकृतिक प्रकोप नहीं, बल्कि मानवजन्य साधनों का त्रासदी है । बड़े बांध जितना लाभ नहीं देते, उससे ज्यादा विस्थापन, दलदली जमीन और हर बरसात में उससे होने वाली तबाही के खामियाजे हैं। यह दुर्भाग्य है कि हमारे यहां बांधों का रखरखाव हर समय भ्रश्टाचार की भेट चढता है। ना उनकी गाद ठिकाने से साफ होती है और ना ही सालाना मरम्मत। उनसे निकलने वाली नहरें भी अपनी क्षमता से जल -प्रवाह नहीं करतीं क्योंकि उनमें भरी गाद की सफाई केवल कागजों पर होती है। कुछ लोग नदियों को जोड़ने में इसका निराकरण खोज रहे हैं। हकीकत में नदियों के प्राकृतिक बहाव, तरीकों, विभिन्न नदियों के उंचाई-स्तर में अंतर जैसे विशयों का हमारे यहां कभी निष्पक्ष अध्ययन ही नहीं किया गया और इसी का फायदा उठा कर कतिपय ठेकेदार, सीमेंट के कारोबारी और जमीन-लोलुप लोग इस तरह की सलाह देते हैं। पानी को स्थानीय स्तर पर रोकना, नदियों को उथला होने से बचाना, बड़े बांध पर पाबंदी , नदियों के करीबी पहाड़ों पर खुदाई पर रोक और नदियों के प्राकृतिक मार्ग से छेड़छाड़ को रोकना कुछ ऐसे सामान्य प्रयोग हैं, जोकि बाढ़ सरीखी भीशण विभीशिका का मुंह-तोड़ जवाब हो सकते हैं।

पानी इस समय विश्व  के संभावित संकटों में शीर्ष पर है । पीने के लिए पानी, उद्योग , खेती के लिए पानी, बिजली पैदा करने को पानी । पानी की मांग के सभी मोर्चों पर आशंकाओं और अनिश्चितताओं के बादल मंडरा रहे हैं । बरसात के पानी की हर एक बूंद को एकत्र करना व उसे समुद्र में मिलने से रोकना ही इसका एकमात्र निदान है। इसके लिए बनाए गए बड़े भारी भरकम बांध कभी विकास के मंदिर कहलाते थे । आज यह स्पश्ट हो गया है कि लागत उत्पादन, संसाधन सभी मामलों में ऐसे बांध घाटे का सौदा सिद्ध हो रहे हैं । विश्व  बांध आयोग  के एक अध्ययन के मुताबिक समता, टिकाऊपन, कार्यक्षमता, भागीदारीपूर्ण निर्णय प्रक्रिया और जवाबदेही जैसे पांच मूल्यों पर आधारित है और इसमें स्पश्ट कर दिया गया है कि ऐसे निर्माण उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे हैं ।  यदि पानी भी बचाना है और तबाही से भी बचना है तो नदियां को अविरल बहने दें और उसे बीते दो सौ  साल के मार्ग पर कोई निर्माण न करें।

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