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शुक्रवार, 26 अगस्त 2022

The Digvijay : In era of Ghulaam

 “गुलाम” के दौर में दिग्विजय



उन दिनों अर्जुन सिंह पंजाब के गवर्नर पद से फिर सक्रीय राजनीती में आये थे दूर संचार मंत्री थे . उससे पहले जब भी साहब अर्थात अर्जुन सिंह खजुराहो एयर  पोर्ट आते. हम मुन्ना राजा के साथ हवाई जहाज तक जाते , साथ आते, बातें करते, भोजन आदि और वे सतना के रास्ते निकल जाते . इस बार जब साहब खजुराहो आये तो बड़ा झाम था – सुन रहे थे कि उनके साथ ब्लैक कैट कमांडो आयेंगे – छतरपुर जैसे जगह पर हम रहने वालों के लिए यह जिज्ञासा थी कि ये कमांडो कैसे होते हैं . उससे पहले नेताओं को या तो शून्य या मामूली स्थानीय पुलिस की सुरक्षा में देखा था .  उस समय हवाई अड्डे तक जाने की कहानी फिर कभी ---

अर्जुन सिंह जी को छतरपुर जिले में कुछ सी डॉट  टेलीफोन एक्सचेंज का लोकार्पण करना था- हाथ में मोबाइल ले कर पैदा होने वाली पीढ़ी को अब पता नहीं कि टेलीफोन एक्स्चेंज में फोन खटखटा कर नम्बर लगा कर बात करना क्या होता था और वह उन दिनों का चमत्कार था कि अब सीधे नम्बर डायल कर फोन कर सकेंगे और वह भी बसारी , कदारी जैसे गाँव के लोग – अर्जुन सिंह को महाराजा छत्रसाल के स्मारक का भी लोकार्पण करना था और इसके लिए डाक खाने से चौक बाज़ार, जहां छत्रसाल स्मारक बना, एक जुलुस निकलना था . दिग्विजय सिंह  से पहला सामना तभी हुआ था , वे उन दिनों प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे . बड़े नेता अर्जुन सिंह को चेहरा दिखाने को आगे पीछे – गाड़ियों में लटके, नारे लगा रहे थे और दिग्विजय सिंह हम , कुछ पत्रकारों के साथ पैदल चल रहे थे, जुलुस के आगे  और वे सारे रास्ते पैदल ही चले . हर बात का जवाब देते – पार्टी के भविष्य की योजना और साहब के बारे में बात करते ---


उसके बाद दिल्ली आना हुआ नौकरी की तलाश में , मुन्ना राजा ने एक पत्र दिया था उनके नाम, ले कर उनके घर  लोधी रोड गया था – हर कमरे में प्रदेश –देश से आये लोग थे – हरे क से बात करना- उनको चाय आदि की पूछना – मुझसे पूछा – क्या किसी को सिफारिश कहना है – मैने मना किया , फिर बोले अभी आइतियो की तरफ जाऊंगा छोड़ दूंगा – उन दिनों उनके पास मारुती की वें हुआ करती थी , खुद चलाते थे ---


बाद में वे प्रदेश के मुख्यमंत्री बने – सार्वजनिक और बहुत से लोगों को फायदा पहुँचाने वाली  जन कल्याण योजनाओं को उन्होंने  लागु किया --- जब सामने वालों को लगा कि यह तो अजेय हो रहा है तो ठीक आज जिस तरह राहुल गांधी के पीछे लगे हैं – उनके पीछे  “गिरोह” लग गया. मिस्त्र बंटाधार, सडक बिजली के हालात – तब भी बात बनती नहीं दिख पाई तो  भगवा का सहारा लिया. उमा भारती को आगे किया – चुनाव हार गई कांग्रेस, इस बीच प्रदेश कांग्रेस में ठाकुर- ब्राहमण के खेल चलते रहे—हमारे भाई सत्य्वृत चतुर्वेदी भी दिग्गी राजा से नाराज़ हो कर विधायकी छोड़ चुके थे और उनका दिल्ली आने का रास्ता बन रहा था, इतनी कडवाहट के बावजूद दिग्विजय सिंह ने कभी दिल्ली में सत्यव्रत जी की राह में कांटे नहीं बिछाए – सत्यावृत जी अपने स्वाभाव, परिवार के प्रति मोह और आत्ममुग्धता में घर बैठ गये लेकिन दिग्विजय सिंह अभी जिला पंचायत चुनाव में भोपाल में सडक पर जूझते दिखे – पांच मंत्री खड़े , सारा प्रशासनिक अमला और पुलिस और इस उम्र में भी दिग्गी राजा भीड़ गए थे -- - फोटो वायरल किये गये कि दिग्गी राजा ने एक दरोगा का कोलर पकड लिया लेकिन 75 साल की उम्र में अपनी पार्टी के लिए, पंचायत चुनाव स्टार पर , दो बार के मुख्यमंत्री द्वारा सड़क पर आ कर जूझना ही दिग्गी राजा की काबिलियत हैं . गत दस सैलून में दर्जनों प्रदर्शन में वे सडक पर दिखे , पानी की बौछारों के बीच , लाठी भी पड़ गई लेकिन आम कार्यकर्ता की तरह सड़क पर भीडते हुए –

कपिल सिब्बल, फिर भी अदालती लड़ाईयों  में सहयोग करते रहे लेकिन क्या किसी ने गुलाम नबी आज़ाद को एक आन्दोलन में सडक पर नारे लगाते देखा है ? बीते तीस सालों ने एक भी बार ?? जहां आज़ाद साहब का अधिकाँ श राजनितिक जीवन पीछे के दरवाजे से सत्ता सुख भोगने का रहा , वहीं दिग्विजय सिंह सन 70 के आसपास राघोगढ़ के नगरपालिका अध्यक्ष बने , उनके पिताजी जनसंघ से जुड़े थे लेकिन 1971 में वे कांग्रेस से जुड़े तो कभी अलग नहीं हुए. सन 1977 में (जनता पार्टी की आंधी के बीच ) मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव में वे खड़े हुए. इस चुनाव में उनकी जीत हुई, और वे गुना जिले में राघोगढ़ से विधायक चुन लिए गये. इस कार्यकाल के बाद सन 1980 में मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों में उसी क्षेत्र के विधायक के रूप में उन्हें फिर से निर्वाचित किया गया था. इस दौरान उन्होंने कैबिनेट मंत्री के रूप में कृषि, पशुपालन एवं मत्स्य पालन, सिंचाई और कमांड क्षेत्र के विकास के लिए कार्य किया.

सन 1984 में लोक सभा चुनाव आयोजित हुए, जिसमें ये राजगढ़ निर्वाचन क्षेत्र के एक सांसद के रूप में चुने गये. राजगढ़ एवं गुना जैसे क्षेत्रों में सांसद बनने के बाद उन्हें पूरे मध्यप्रदेश की कांग्रेस कमिटी का अध्यक्ष बनने का मौका मिला और सन 1985 से 1988 तक उन्होंने इस पद को संभाला. सन 1989 में होने वाले चुनाव में दुर्भाग्यवश उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र को खो दिया, किन्तु सन 1991 में उन्हें फिर से सत्ता के लिए चुन लिया गया था.

सन 1993 में वे फिर से विधानसभा चुनाव के लिए निर्वाचित हुए और उन्हें इस बार जीत हासिल कर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में पदभार सँभालने का मौका मिला. मुख्यमंत्री के पद पर आने के बाद उन्होंने संसद के निचले सदन से एक सांसद के रूप में त्यागपत्र दे दिया. उन्होंने मुख्यमंत्री के रूप में अपनी भूमिका निभाई, फिर उन्हें उपचुनाव में चछोडा निर्वाचन क्षेत्र से एक विधायक चुना गया. उनके त्यागपत्र देने के बाद उनके भाई लक्ष्मण सिंह जी उसी राघोगढ़ विधानसभा क्षेत्र से चुने गये, जहाँ पहले दिग्विजय स्वयं थे. दिग्विजय सिंह जी ने अपने कार्यकाल में काफी अच्छा काम किया था, इसलिए उन्हें सन 1998 में हुए विधानसभा चुनाव में निर्वाचित होने का दोबारा मौका मिला और वे फिर से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बन गये. इस पद पर उन्होंने सन 2003 तक कार्य किया, किन्तु अगले चुनाव में हार के बाद वे 10 वर्षों तक किसी भी चुनाव में नहीं खड़े हुए.

लेकिन दिग्गी राजा चुप नहीं बैठे . दिग्विजय सिंह जी ने अपनी पत्नी के साथ एवं हिन्दू रीतिरिवाज के अनुसार आध्यात्मिक गुरु शंकराचार्य जी एवं स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी का आशीर्वाद लेने के बाद नरसिंहपुर जिले के बरमन घाट से नर्मदा नदी की परिक्रमा शुरू की थी. दरअसल मध्यप्रदेश में नर्मदा नदी की परिक्रमा करना बहुत ही शुभ माना जाता है. यह परिक्रमा 6 महीने (लगभग 192 दिन) तक चली और फिर 9 अप्रैल, 2018 को 3,300 किमी की यात्रा पूरी करने के बाद उन्होंने नरसिंहपुर जिले के बरमन घाट में जाकर यह यात्रा समाप्त की. इसी घाट में उन्होंने अपनी पत्नी के साथ धार्मिक एवं अध्यात्मिकरिवाजों को पूरा करने के साथ जुड़े विभिन्न अनुष्ठान किये. इस यात्रा में बहुत से राजनेताओं ने हिस्सा लिया था.    

दिग्विजय सिंह हर समय आरएसएस के खिलाफ मुखर रहे है और अपने कार्यकाल में उन्होंने मालवा में आरएसएस के बम- बन्दुक प्रशिक्षण पर नकेल भी डाली थी – जान लें इसी जगह से प्रशिक्षित आतंकियों ने अजमेर और मालेगांव में धमाके किये थे – दिग्विजय सिंह की आज भी आलोचना उनके संघ विरोधी बयानों और जुबान फिसलने से निकले “जी” जैसे शब्दों को ले कर की जाती है ---

भारत यात्रा की पूरी जिम्मेदारी आज भी दिग्गी राजा के पास है , वे हर जगह कार्यकर्ता, भोजम ठहरने की व्यवस्था, समाज के विभिन्न वर्ग केलोगों  को यात्रा से जोड़ने के नेटवर्क पर ही काम कर रहे हैं – और जान लें वे इस यात्रा में हज़ार किलोमीटर पैदल चलेंगे भी – दो बार मुख्यमंत्री रहे, पांच बार के सांसद – कितने हैं जो आज भी सडक पर कार्यकर्ता के साथ खड़े होकर लड़ते दीखते हैं ?

जो भी  असंतुष्ट हैं , जो जी-23 किस्म के हैं – उन्हें  राहुल या कांग्रेस में घुटन तब ही क्यों होती है जब उनका सांसदी का कायर्काल समाप्त हो जाता है ? वे दिग्विजय  सिंह की तरह आन्दोलन, कार्यकर्ता तैयार करने , पारी विस्तार की योजना पर काम क्यों नहीं करते ? जिन्हें आज़ाद साहब सिक्युरिटी गार्ड कह रहे हैं वे दिग्गी राजा जैसे ही लोग हैं , जो आज भी जमीन पर हैं – दिग्गी राजा के भाई लक्ष्मण सिंह दो बार उस पाले में भी गए – ऐसा नहीं हैं कि उनके पास भी ऐसे ऑफर नहीं आये – लेकिन आज़ादी के कुछ दिन पहले 28 फरवरी 1947 को जन्मे दिग्गी राजा लोकतंत्र और असहमति के मायने जानते हैं , वे नगर पालिका चुनाव के समय मप्र में ऐसे दर्जनों कार्यकर्त्ता- नेता के घर गए जिन्हें असंतुष्ट कहा जा रहा था – जिस  दिन आजाद साहव या जी 23 संघर्ष का यह माद्दा ले आये --- पार्टी पर अपने हक के दावे करना .

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11 टिप्‍पणियां:

  1. आपका संस्मरण काफी रोचक है, कांग्रेस के असंतुष्टों से तीखे सवाल उसके नियत पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं।
    बहुत अच्छा 💐

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  2. राजा दिग्विजय सिंह जी जैसा कांग्रेसमें अन्य नेतागण भी अपने एसी कमरों को छोड़कर एसी से बाहर निकल कर जिस दिन सड़क पर आकर आम जनों की लड़ाई लड़ने लग जाएंगे उस दिन कांग्रेश खड़ी हो जाएगी और भाजपा को कोई पूछने वाला नहीं रहेगा राजा जैसा कोई हो नहीं सकता राजा ने कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ताओं को मान सम्मान हौसला दिया है और मेरा तो यह मानना है अगर गांधी परिवार से कोई व्यक्ति राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने को तैयार नहीं हो तो दिग्विजय सिंह जी से उपयुक्त कोई राष्ट्रीय अध्यक्ष कोई नहीं सकता है

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  3. आसान नहीं है दिग्विजय सिंह बनना

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  4. सर्वत्र दिग्विजय, सर्वदा दिग्विजय

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  5. राजा साहब जिन्दा बाद

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  6. दिग्गी राजा ने लोगो के दिलो पर राज किया है
    निरपेक्ष भाव से मदद की है
    विपक्ष के लोगो की भी मदद की
    आज भी उनके जैसा जमीनी नेता नही , जिसके अनुयायी प्रदेश के कोने कोने के साथ पूरे देश मे है
    संबंध निभाना कोई राजा साहब से सीखे
    हजारो कार्यकताओ को नाम से बुलाने का माद्दा सिर्फ राजा साहब मे है

    राजा साहब जिन्दाबाद

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    1. इस बात मे कोई संदेह नहीं कि हमारे दिग्गी राजा जैसे महान व्यक्तित्व का हमारा नेता होना ही हमारे लिए गर्व की बात है आज नहीं तो कल निश्चित ही हमारे राजा साब कांग्रेस को नई ऊंचाई तक ले जाने में सफल होंगे ईमानदारी को सफलता निश्चित मिलती हैं बस गिरिराज जी से कामना है कि राजा साब स्वस्थ रहे और हम उनके बताए गए मार्ग पर चलते हुए उनके हाथ मजबूत करे

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  7. रामबाबू गुर्जर भैसाना राजगढ़29 अगस्त 2022 को 7:43 pm बजे

    दिग्विजय सिंह जैसा नेता पूरी कांग्रेस मैं नहीं है राजा साहब दिग्विजय सिंह को कांग्रेसका राष्ट्रीय अध्यक्ष बना देना चाहिए अगर राहुल गांधी जी नहीं माने तो कांग्रेस पार्टी को अगर कोई शिखर तक पहुंच जाता है तो वह है दिग्विजय सिंह मध्यप्रदेश और राजस्थान से सचिन पायलट

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After all, why should there not be talks with Naxalites?

  आखिर क्यों ना हो नक्सलियों से बातचीत ? पंकज चतुर्वेदी गर्मी और चुनाव की तपन शुरू हुई   और   नक्सलियों ने धुंआधार हमले शुरू कर दिए , हा...