सरकारी परियोजनाओं में लापरवाही पर जिम्मेदारी तय हो
पंकज चतुर्वेदी
धार जिले की धरमपुरी तहसील के ग्राम
कोठीदा भारुडपुरा में करीब 304 करोड़ रुपये की लागत से बन रहे निर्माणाधीन बांध में
पहली ही बारिश में रक्षाबंधन के दिन रिसाव शुरू हो गया
है। कारम मध्यम सिंचाई परियोजना के बांध के दाएं हिस्से में 500-530 के मध्य
डाउन स्ट्रीम की मिट्टी फिसलने से बांध को खतरा पैदा हुआ था। इस बांध की लंबाई 590
मीटर और ऊंचाई 52 मीटर है। जब देश आज़ादी का 75
वां साल मना रहा था, तब धार जिले के 12 और
खरगोन जिले के छः गाँव के लोग आशंका - भय के साए में रात खुले में काट रहे
थे . प्रशासन ने तो गाँव खाली करवाने की घोषण कर दी , लोग जैसे ही घर छोड़ कर गए,
उनके मवेशी चोरी हो गए, घरों के ताले टूट गए . फौज बुलाई , दो मंत्री और अफसरों का
अमला वहां तीन दिन बना रहा – जैसे तैसे पोक्लैंड मशीनों से मिटटी काट कर पानी
निकलने का मार्ग बनाया – बाँध फूटने से आने वाली बड़ी तबाही नहीं आई लेकिन पानी की निकासी ने हजारों हेक्टेयर खेत चौपट कर
दिए, बाँध में लगे तीन सौ चार करोड़ तो मिटटी में मिल ही गए .
शायद भूल गए, बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का उदघाटन हुआ और अगले ही
दिन पहली बरसात में सडक कई कई जगह बुरी
तरह टूट गई . कई लोग घायल हुए , मामला सियासती आरोप प्रत्यारोप में फंस गया ,
महज ध्वस्त हिस्से पर मरम्मत का काम हुआ
और बात आई गई हो गई . जान लें इस 296 किलोमीटर की सड़क का खर्च आया था 14,800
करोड़ अर्थात हर किलोमीटर का 50 करोड़ . यदि
एक गाँव में एक किलोमीटर का खर्चा लगा दें तो वह किसी यूरोप के शहर सा लक-दक हो
जाए .
मप्र में कलियासोत नदी पर एक साल पहले ही बना करीब 529 करोड़ की लागत का पुल गिर गया है, पुल भोपाल से मंडीदीप मार्ग पर 11 मिल के समीप स्थित है, बिहार में तो गत पांच साल में कम से कम दस पूल बनते ही बिखर गए . सरकारी भवन खासकर स्कूल और अस्पताल भवनों की गुणवत्ता पर तो सारे देश से सवाल उठाते ही रहते है – जब देश में विकास का पैमाना ही सडक, पक्के निर्माण , ब्रिज आदि हो गए हैं और इन पर बेशुमार धन व्यय भी हो रहा है , तो फिर इनके निर्माण गुणवता पर लापरवाही क्यों हो रही है ?
मप्र के धार में जो बाँध पूरा होने से पहले ही फूट गया , उसका निर्माण एक ऐसे कम्पनी कर रही थी जिसे राज्य शासन ने पांच साल पहले प्रतिबंधित या ब्लेक लिस्ट किया था . होता यह है कि ठेका तो किसी अन्य फर्म के नाम होता है . इस तरह की कम्पनिया ठेकेदार से “पेटी- ठेका” ले लेती हैं और काम अक्रती हैं . यह भी संभव है कि ठेका जिस कम्पनी को मिला है, वह प्रतिबंधित कम्पनी की ही शेल कम्पनी हो. परन्तु सारा जिम्मा ठेकेदार पर तो डाला नहीं जा सकता , हर छोटी- बड़ी परियोजना का अवलोकन, निरीक्षण , गुणवत्ता और मानक को सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी तो सरकारी इंजिनीयर की ही होती है . उसी के सत्यापन से सरकारी खाते से बजट आवंटित होता है .
यह सच है कि कोविड के चलते कई निर्माण परियोजनाएं अपने निर्धारित लक्ष्य से बहुत पीछे है और एक तो उनकी पूंजी फंसी है , दूसरा समय बढ़ने ने लागत बढ़ गई है , तीसरा हर परियोजना पर जल्द पूरा करने का सरकारी दवाब है .कई जगह तो काम की स्थिति देखे बगैर आला नेताओं से लोकार्पण की तारीख तय कर दी गई और फिर आनन् फानन में आधे अधूरे काम का लोकार्पण करवा लिया गया . यह मेरठ एक्सप्रेसवे में भी हुआ और अखिलेश यादव के समय आगरा- लखनऊ एक्सप्रेसवे पर भी और उस समय भी सडक ढह गई थी . दिल्ली में प्रगति मैदान परियोजना अभी भी आधी अधूरी है – मथुरा रोड पर बाकायदा उतनी ही ट्रेफिक सिग्नल हैं . एक बात और एक ही कम्पनी को कई कई काम मिलने से भी इस तरह की परेशानियां खड़ी हो रही है .
निर्माण कार्य खासकर सडक पर प्रायः आने वाले दस साल का ख्याल ही नहीं रखा जा रहा है और तभी कोई फ्लाई ओवर बनने के कुछ दिनों बाद ही वह जाम का सबब बन जाता है , दिल्ली का पहले एलिवेटेड रोड बारापुला इसका उदहारण हैं – इस पर जैसे ही सीजीओ कोम्प्लेक्स का ट्रेफिक जोड़ा, वहां जाम स्थाई हो गया है, जब यह पूल मयूर विहार से भी जुड़ जाएगा तो यहाँ का यातायात रेंगेगे . प्रगति मैदान की सुरंग सडकों पर अभी ही जाम रहता है , यदि कोई बस इसमें आ जाए तो बीस की गति से भी वहां चलते नहीं , असली दिक्कत तो इंडिया गेट से रिंग रोड आने और रिंग रोड से इंडिया गेट पर निकलने वाले संकरे मार्ग पर है . सोचा जा सकता है कि आने वाले दो साल में ही यह परियोजना फ्लॉप होगी . खासकर इंटरनेशनल ट्रेड फेयर या बुक फेयर जैसे भीड़ वाले मेलों के समय तो सुरंग दमघोटू जाम का मार्ग बनेगी – आखिर यह लापरवाही है या तकनीकी अज्ञानता ?
असल सवाल यही है कि जनता के कर से वसूले गए
पैसे से जब शहरी मूलभूत सुविधा जोड़ने की ऐसी परियोजना बन रही हैं जिसके दस फीसदी
से गाँव, को स्कूल, डोक्टर, सडक , बिजली सभी से जोड़ा जा सकता हो, और उसमें भे न गुणवत्ता
है और न ही निकट भविष्य का आकलन तो ऐसे कार्यों पर कड़ी
कार्यवाही होती क्यों नहीं दिखती ? मेरठ
एक्सप्रेस वे पर जल भराव के बाद किसी भी अफसर पर जांच नहीं बैठी , बारापुला
या प्रगति मैंदान सुरंग रोड की
त्रुटिपूर्ण डिजाईन के लिए कोई अफसर को चार्ज शीट नहीं किया गया , धार के बाँध से पानी भा देने पाले पौक
लैंड मशीन के चालकों को तो पांच पांच लाख
का इनाम मिला लेकिन ऐसे हालात के लिए जिम्मेदार किसी भी इंजिनियर के निलंबन की खबर
नहीं आई .
आज़ादी के 100 साल के सफर के शेष 25 साल इसी
लिए चुनौतीपूर्ण हैं क्योंकि अब विकास में बड़ी पूंजी का निवेश हो रहा है और ऐसी
परियोजना के असफल होने का अर्थ होगा निर्धारित लक्ष की तरफ दौड़ते देश के पैरों में
बेड़ी. यह समय परियोजना में कोताही के प्रति ‘जीरो टोलरेंस” का होना चाहए . आज बरती
गई लापरवाही भारत के मूलभूत ढांचे के लिए
हन्ता हैं और इसके लिए कड़ाई से अफसरों को जिम्मेदार बनाना ही होगा .
<script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-6555891936718602"
crossorigin="anonymous"></script>
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें