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रविवार, 29 जनवरी 2023

The chaupals of Gandhi's echo till the villages

 गांवों तक गांधी की गूंज के चौपाल

पंकज चतुर्वेदी



न को मंच , न अतिथी , न माला  या स्वागत – गाँव के किसी मंदिर में ,कसबे के किसी चबूतरे पर  या किसी के घर के आँगन  में या फिर खुले मैदान में – कभी बीस तो कभी 200 कभी  उससे भी ज्यादा लोग एकत्र होते हैं . रघुपति राघव  राजाराम – के गान से  सभा शुरू होती है  और फिर विमर्श खेती के संकट, गरीबी, महंगाई , गुस्से  की पटरी पर उतर आता है .  इन बैठकों को नाम दिया गया  है – गांधी चौपाल . इसमें शामिल लोग खाड़ी की सफ़ेद टोपी अवश्य लगाते हैं .गांधी का स्वावलम्बन का सिद्धांत  क्या था और आज भी वह क्यों प्रासंगिक है ? सवा रोजगार या कुटीर उद्योग कैसे शुरू करें ? शिक्षा क्यों जरुरी है, कुछ व्यक्तियों के हाथों में देश की अधिकाँश सम्पदा आ जाने के क्या नुक्सान है ? ऐसे ही सवाल और जवाब चलते हैं और केंद्र होता है कि महत्मा गांधी  आज की विषम परिस्थिति में गाँव – स्वराज के साथ कैसे अनिवार्य हैं ? 


पिछली दो अक्तूबर  से मध्य प्रदेश के गाँवों में गांधी  विमर्श का यहा स्वरुप लोगों को बहुत भा रहा है . यह सच है कि इसकी परिकल्पना करने वाले लेखक और सामाजिक कार्यकर्त्ता भूपेन्द्र गुप अगम , कांग्रेस से जुड़े हैं और गांधी चौपाल को पूर्व मुख्यमंत्री  कमल नाथ इस तरह चौपाल आयोजन में  नीति बनाने से ले कर  क्रियान्वयन तक सीधे शामिल हैं , लेकिन यह अनुशाशन स्थापित रखना कोई कम नहीं है कि इस तरह की आयोजनों में किसी नेता या राजनितिक दल के समर्थन या विरोध की तकरीर, नारे , प्रशस्ति आदि होती नहीं – केवल और केवल गांधी  की बातें है. इसमें भजन, सांस्कृतिक कार्यक्रम,नुक्कड़ नाटक, देशभक्ति व स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित लघु फिल्मों का प्रदर्शन, कांग्रेस के नेतृत्व में हुए स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास पर चर्चा, वर्तमान राजनीतिक स्थिति, कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सामाजिक कुरीतियों को समाप्त करने सहित अन्य मुद्दों पर चर्चा होती है । महंगाई और बेरोजगारी पर आमजन से बात की जाती है  कई बार मंदिर का प्रसाद बाँट जाता है तो कभी कोई गाँव वाल चाय पिला देता है . कुछ जगह पूरे  गाँव के हर जाती-धर्म के लोगों ने एक साथ भोज भी किये—कहनी गकरियाँ तो कहीं पूड़ी >



दो अक्तूबर 22  को भोपाल  के करीब मुगलिया छाप के बम्होरी से जब यह गांधी चौपाल शुरू की गई तो – पता चला कि इस गाँव में तो बिजली ही नहीं हैं , विधायक पी सी शर्मा के फंड से खम्भे लगे और वहां बिजली जगमगा गई . पहली बार गाँव वालों को भी लगा कि  गांधी बाबा के जरिये अपनी मांग भी पूरी हो सकती है . आमतौर  पर गाँवों में चौपाल के बाद सामाजिक कार्यकर्त्ता बस्ती का चक्कर लगाते हैं, जी लोग सभी में नहीं आए , उनसे मिलते हैं, गाँव-मोहल्ले की  समस्याओं का आकलन करते हैं और उसके निराकरण के लिए लिखा पढी भी .इसका असर भी दिख रहा – सिंगरोली  में चौपाल से जानकारी मिली कि वहां छः महीने से राशन नहीं बनता और एक साथ दस्तखत करवा कर महज एक महीने का राशन  दिया . कुछ जगहों से पता चला कि वहां अब गेंहूँ  नहीं दिया जा रहा, केवल चावल दे रहे हैं – वह भी  घटिया .


मध्य प्रदेश में अभी तक  17  हज़ार गांधी चौपाल लग चुकी है और इससे कई लाख लोग जुड़ चुके हैं . कुछ लोग तो इतने  दीवाने हैं कि उनके कार में गाँधी बाबा की एक तस्वीर, एक दरी और ढोलक र्कही ही रहती हैं , रस्ते में जहाँ दो-पांच लगो दिखे, , वे रघुपति राघव  का गायन शुरू कर देते हैं . लोगों के करीब आने पर  उन्हें गांधी के किस्से, कहानी, गांधी की आज  जरूरत आदि पर बात  करते हैं .  कमल नाथ अपने क्षेत्र में कई चौपाल में खुद गये हैं . प्रदेश के सबसे कम उम्र में विधायक नीरज दीक्षित ने तो इन बैठकों के जरिये  आम लोगों की दिक्कतों को सीधे सुनने  और अपने वेतन का धन  लगा कर उनका निराकरण का संकल्प ले लीया है . ऐसी सभाओं में एकत्र लोगों के मोबाइल का रिकार्ड रखा जाता है और अब इन्हें नियमित रूप से गांधी  से जुडा  साहित्य, सन्देश , भाषण आदि व्हात्सेप पर भेजा जा रहा है . इससे एक नया विश्वास भी जागृत हुआ है . कुछ जगहों पर आपसी  झगड़ों का नीराकर्ण बगिर पुलिस- कचहरी  के  गांधी के चित्र के सामने हो गया . गांधी  चौपाल को जन आन्दोलन बनाने वाले भूपेन्द्र गुप्त के पिता   सेवादल से जुड़े थे और आज़ादी की लड़ी में कई बार जेल गए, उनके घर खादी और गांधी को पूजा जाता है . उनका कहना है कि  गांधी बाबा आज भी नफरत को मिटाने की एकमात्र जड़ी है.


गांधी जी ने गांवों की तीन बीमारियों को इस तरह बताया, पहला सार्वजनिक स्वक्षता की कमी। दूसरा पर्याप्त और पोषक आहार की कमी। तीसरा ग्राम वासियों की जड़ता। यही नही गांवों को इन बीमारियों से निजात दिलाने के लिए वो शहरवासियों का सहयोग भी जरूरी समझते थे। गांधी जी गांवों को अपनी आवश्यकाताओं के लिए स्वावलंबी भी बनते देखना चाहते थे।गांधीजी स्वतंत्र भारत को आत्मनिर्भर गांवों का महासंघ बनाना चाहते थे। गांधीजी ग्राम-सभ्यता को कभी-भी नष्ट नहीं होने देना चाहते थे। उनका कहना था कि, हम ऊंची ग्राम सभ्यता के उत्तराधिकारी हैं। हमारे देश की विशालता, आबादी की विशालता और हमारी भूमि की स्थिति तथा आबोहवा ने मेरी राय में मानों यह तय कर दिया है कि उसकी सभ्यता ग्राम सभ्यता होगी, और दूसरी कोई नहीं। इन ग्राम सभाओं में गाँव का अस्तित्व क्यों जरुरी है ? खेती के साथ कुटी उद्योग किस  तरह  कम कर सकते हैं ? इनके लिए किस तरह की सरकारी योजनायें हैं ?  ऐसे मुद्दों पर भी  विमर्श होता है .



पहले यह अभियान 30 जनवरी 23  तक चलाया जाना था  लेकिन अब इसके प्रति लोगों की जिज्ञासा को देखा कर  इसे  अगले 2 अक्तूबर तक विस्तार  दिया जा रहा है . अगले चरण  में ई – चौपाल  पर अधिक जोर दिया जाएगा ताकि शहरी, युवा  और तकनिकी प्रेमी लोगों को घर बैठे गांधी विमर्श से जोड़ा जा सके , सोशल मिडिया और अन्य  डिजिटल मीटिंग प्लेटफोर्म अपर देश के जाने माने गान्धिवादियोंको आमंत्रित कियाजायेगा, एक छोटा सा विमर्श और फिर लोगों की जिज्ञासा, प्रश्नों के उत्तर . इस दौर में कई डिजिटल समूह भी बनाए जा रहे हैं जो वर्मान समस्या और उस अपर महात्मा गांधी के विचारों को संयोजित कर लोगों के मोबाइल तक भेजेंगे .

गाँव में गांधी की आत्मा को जीवंत रखने के इस प्रयोग पर  राजनीती के भी आक्षेप हैं , कहाँ जा रहा है कि कांग्रेस के लोग इस बहाने दूरस्थ अंचल तक अपनी टीम बना रहे हैं . हालाँकि गांधी को वोट की राजनीती स एपरे रखना चाहिए, फिर भी यदि कोई गांधी की निति का प्रसार कर सियासत कर रहा है तो यह देह के लोकतंत्र के लिए एक सकारात्मक कदम होगा – कम से कम नफरत के नाम पर तो कोई राजनीती नहीं कर रहा !

 

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