यमुना को वादों की नहीं इरादों की दरकार है
पंकज चतुर्वेदी
कोई तीन दशक तक अदालती निगरानी के बावजूद
दिल्ली में यमुना के हालात नहीं बदले . सन 2010 में राष्ट्रमंडल खेलों की
मेजबानी से पहले राजधानी में यमुना नदी को टेम्स की तरह चमका देने के वायदे के बाद आम आदमी पार्टी के
चुनावी घोषणा पात्र की बात हो या केंद्र
सरकार के दावे के , महज 42 किलोमीटर के दिल्ली प्रवास में यह पावन
धारा हांफ जाती है , कई करोड़ रूपये इसकी बदतर हालत को सुधार नहीं पाए
क्योंकि नदी धन से नहीं मन और आस्था से पवित्र बनती है . केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की वर्ष 2022 की नई रिपोर्ट ‘पाल्यूटिड रिवर स्ट्रेच्स फार रेस्टोरेशन आफ वाटर क्वालिटी’ की रिपोर्ट
कहती है कि जब 2018-19 में राजधानी में यमुना की अलग- अलग लोकेशनों से पानी के
नमूने लिए तब बायोलाजिकल आक्सीजन डिमांड (बीओडी) की सबसे ज्यादा मात्रा 83.0 मिलीग्राम प्रति लीटर थी और 2021- 22 में लिए गए नमूने में भी इसकी मात्रा 83.0 मिलीग्राम प्रति लीटर ही मिली. मतलब साफ है कि चार साल पहले यमुना में
प्रदूषण की स्थिति जैसी थी, वैसी ही आज भी है.
एक बात स्पष्ट है कि जब तक दिल्ली अपने हिस्से की यमुना को अविरल, स्वच्छ और प्रवाहमय नहीं रखती , यहाँ का
जल संकट दूर होने वाला नहीं हैं . यदि दिल्ली में बरसात की हर बूंद को यमुना में
रखने की व्यवस्था हो जाए तो यह राज्य अतिरिक्त जल निधि वाला बन सकता है लेकिन
दिल्ली को यमुना से पानी तो चाहिए , उसका अस्तित्व नहीं . यमुना के संघर्ष
भरे सफर को सर्वाधीक दर्द दिल्ली में ही मिलता है . अपने कूल प्रवाह का महज दो
फीसदी अर्थात 48 किलोमीटर यमुना
दिल्ली में बहती है, जबकि इसे प्रदूषित करने वाले कुल गंदे पानी का 71 प्रतिशत और बायोकेमिकल ऑक्सीजन
डिमांड यानी बीओडी का 55 प्रतिशत यहीं से
इसमें घुलता है। अनुमान है कि दिल्ली में हर रोज 3297 एमएलडी गंदा पानी और 132 टन बीओडी यमुना
में घुलता है। दिल्ली में यमुना का प्रवेश पल्ला गाँव में होता है जहाँ नदी का
प्रदूषण का स्तर 'ए” होता है, लेकिन यही उच्च गुणवत्ता का पानी जब दूसरे छोर जैतपुर पहुँचता है तो 'ई’ श्रेणी
का जहर बन जाता है. इस स्तर का पानी मवेशियों के लिए भी अनुपयुक्त है. हिमालय के
यमनोत्री ग्लेशियर से निर्मल जल के साथ आने वाली यमुना जैसे ही वजीराबाद बाँध को
पार करती है , नजफगढ़ नाला इस ‘रिवर’ को ‘सीवर’ बना देता है . यह 38 शहरी व चार देहाती नालों की
गंदगी अपने में समेटे वजीराबाद पुल के पास यमुना में मिलता है. फिर महानगर की कोई दो करोड़ आबादी का मल-मूत्र व अन्य गंदगी में सने
मैगजीन रोड, स्वीयर कॉलोनी, खैबर पास, मेंटकाफ हाउस, कुदेसिया बाग, यमुनापार नगर निगम नाला, मोरीगेट, सिविल मिल, पावर हाउस, जैसे नाले यमुना में मिलते हैं. ऐसे 38 बड़े नालों पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाया जाना था।
लेकिन, दिल्ली सरकार ऐसा नहीं कर पाई। इस कारण सभी नालों का प्रदूषित पानी नदी में
गिरकर उसे जहरीला बना रहा है।
सन 1993
से अभी तक दिल्ली में यमुना के
हालात सुधारने के नाम पर दिल्ली सरकार ने
5400 करोड़ का खर्चा हुआ , इसमें से 700 करोड़ की राशी सन 2015 के बाद खर्च की गई . किसी
को याद भी नहीं होगा कि फरवरी-2014 के अंतिम हफ्ते में ही शरद यादव की अगुवाई वाली
संसदीय समिति ने भी कहा था कि यमुना सफाई के नाम पर व्यय 6500
करोड़ रूपए बेकार ही गए हैं, क्योंकि नदी पहले से भी ज्यादा गंदी हो चुकी है। समिति
ने यह भी कहा कि दिल्ली के तीन नालों पर इंटरसेप्टर सीवर लगाने का काम अधूरा है।
गंदा पानी नदी में सीधे गिर कर उसे जहर बना रहा है।
विडंबना तो यह है कि इस तरह की
संसदीय और अदालती चेतावनियां, रपटें
ना तो सरकार के और ना ही समाज को जागरूक कर पा रही हैं। यमुना की पावन धारा दिल्ली
में आ कर एक नाला बन जाती है। आंकडों और कागजों पर तो इस नदी की हालत सुधारने को
इतना पैसा खर्च हो चुका है कि यदि उसका ईमानदारी से इस्तेमाल किया जाता तो उससे एक
समानांतर धारा की खुदाई हो सकती थी। ओखला में तो यमुना नदी में बीओडी स्तर सुप्रीम
कोर्ट द्वारा तय स्तर से 40-48 गुना ज्यादा है। पेस्टीसाइडस् और लोहा, जिंक
आदि धातुएं भी नदी में पाई गई हैं। एम्स के फारेन्सिक विभाग के अनुसार, 2004
में 0.08 मिग्रा. आर्सेनिक की मात्रा पाई गई जो वास्तव में 0.01
मिग्रा होनी चाहिए।
यमुना जब देहरादून की घाटी में
पहुंचती है तो वहां कालसी-हरीपुर के पास उसमें टौस (तमसा) आ मिलती है। षिवालिक
पहाड़ों में तेजी से घूमते-घामते यमुना फैजाबाद में मैदानों पर आ जाती है। फिर इससे कई नहरें निकलती है। पहले-पहल जिन
नदियों पर नहरें बनीं, उनमें यमुना एक है। यमुना के इस संघर्ष भरे सफर का सबसे दर्दनाक पहलू इसकी दिल्ली-यात्रा
है। यमुना नदी दिल्ली में 48 किलोमीटर बहती है। यह नदी की कुल लंबाई का महज दो
फीसदी है। जबकि इसे प्रदूषित करने वाले
कुल गंदे पानी का 71 प्रतिशत और बायोकेमिकल आक्सीजन डिमांड यानी बीओडी
का 55
प्रतिषत यहीं से इसमें घुलता है। अनुमान है कि दिल्ली में हर रोज 3297
एमएलडी गंदा पानी और 132 टन बीओडी यमुना में घुलता है। दिल्ली की ऐतिहासिंक
और सांस्कृतिक धरोहर कही जाने वाली यमुना का राजधानी में प्रवेष उत्तर में बसे
पल्ला गांव से होता है। पल्ला में नदी का प्रदूशण का स्तर ‘ए’ होता है। लेकिन यही
उच्च गुणवत्ता का पानी जब दूसरे छोर जैतपुर पहुचता है तो ‘ई’ श्रेणी का हो जाता
है। सनद रहे कि इस स्तर का पानी मवेषियों के लिए भी अनुपयुक्त कहलाता है।
दिल्ली मे यमुना को साफ-सुथरा
बनाने की कागजी कवायद कोई 40 सालों से चल रह है। सन अस्सी में एक योजना नौ सौ
करोड़ की बनाई गई थी। दिसंबर-1990 में भारत सरकार ने यमुना को बचाने के लिए जापान
सरकार के सामने हाथ फैलाए थे। जापानी संस्था ओवरसीज इकोनोमिक कारपोरेषन फंड आफ
जापान का एक सर्वें दल जनवरी- 1992 में भारत आया था। जापान ने 403
करेड़ की मदद दे कर 1997 तक कार्य पूरा करने का लक्ष्य रखा था। लेकिन यमुना
का मर्ज बढ़ता गया और कागजी लहरें उफनती रहीं। 12 साल पहले एक बार फिर यमुना को अपने जीवन के लिए
सरकार से उम्मीद बंधी थी जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के निर्देश पर
यमुना नदी विकास प्राधिकरण(वाईआरडीए) का गठन किया गया था। दिल्ली के उपराज्यपाल की
अध्यक्षता में दिल्ली जल बोर्ड, प्रदूशण बोर्ड सहित कई सरकारी व गैर सरकारी संगठनों
को साथ ले कर एक तकनीकी सलाहकार समूह का गठन हुआ था। उस समय सरकार की मंशा थी कि
एक कानून बना कर यमुना में प्रदुषण को
अपराध घोशित कर राज्यों व स्थानीय निकायों को इसका जिम्मेदार बना दिया जाए। लेकिन
वह सबकुछ कागजों से आगे बढ़ा ही नहीं । आज यह प्राधिकरण यमुना किनारे की जमीन पर
व्यावसायिक गतिविधियों के लिए सौदर्यीकरण व रिवर फ्रंट बनाने की बात कर रहा है, जबकि
इससे महज नदी की धारा सिकुडेगी, उसका नैसर्गिक मार्ग बदलेगा।
हरियाणा सरकार इजराइल के साथ मिल कर
यमुना के कायाकल्प की योजना बना रही है और इस दिशा में हरियाणा सिंचाई विभाग ने अपने सर्वे में पाया है कि यमुना में गंदगी के चलते
दिल्ली में सात माह पानी की किल्लत रहती है। दिल्ली में यमुना, गंगा
और भूजल से 1900 क्यूसेक पानी प्रतिदिन प्रयोग में लाया जाता है। इसका 60 फीसद यानी करीब 1100 क्यूसेक सीवरेज का पानी एकत्र होता है। यदि यह पानी
शोधित कर यमुना में डाला जाए तो यमुना निर्मल रहेगी और दिल्ली में पेयजल की किल्लत
भी दूर होगी।
एक बार फिर एन जी टी ने दिल्ली
के उपराज्यपाल की अध्यक्षता में एक समिति बना कर यमुना को बचाने की कवायद शुरू की
है . हमारी मान्यताओं के मुताबिक यमुना नदी महज एक पानी का जरिया मात्र नहीं है।
बच्चे के जन्म के बाद मुंडन से ले कर अंतिम संस्कार के बाद अस्थि विसर्जन तक यमुना
की पावनता इंसान के जीवन का महत्वपूर्ण अंग है। यदि यमुना को एक मरे हुए नाला बनने
से बचाना है तो इसके उद्धार के लिए मिले सरकारी पैसों का इस्तेमाल ईमानदारी से करना
जरूरी है। वरना यह याद रखना जरूरी है कि मानव-सभ्यता का अस्तित्व नदियों का
सहयात्री है और इसी पर निर्भर है।
पंकज चतुर्वेदी
संपर्क- 9891928376
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