My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2023

Mizoram in trouble due to refugees

 

शरणार्थियों  के कारण  मुसीबत में मिज़ोरम

पंकज चतुर्वेदी



बीते 10-11 जनवरी की रात  भारत और  म्यांमार की सीमा तय करने वाली तियु नदी के किनारे बसे मिजोरम के चम्फाई जिले के फर्क्वान गाँव में  आसमान से एक बम गिरा और उससे एक ट्रक को नुक्सान हुआ . कहा यह गया कि म्यांमार सेना ने अपने देश के चीन राज्य में स्थित विद्रोही संगठन ‘ चीन नेशनल आर्मी ‘ के मुख्यालय केम्प विक्टोरिया पर बम गिराए थे . इस हमले में कुकी-चीन आदिवासियों के दो महिलाओं सहित पांच लोग मारे गए और उसके बाद शरणार्थियों का नया दस्ता भारत की सीमा  में आ गया जिसमें  56 परिवारों के 226 लोग हैं . म्यांमार में अशांति का असर अब मिज़ोरम में  गहराने लगा है .  एक तो शरणार्थियों का आर्थिक और सामाजिक भार, दूसरा  इस इलाके में उभरती सामरिक और  आपराधिक दिक्कतें . विदित हो भारत और म्यांमार के बीच कोई 1,643 किलोमीटर की सीमा हैं जिनमें मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड का बड़ा हिस्सा है . मिज़ोरम के छः जिलों की कोई 510 किलोमीटर सीमा म्यांमार से लगती है और अधिकाँश खुली हुई है .

महज  12.7 लाख के आबादी वाले  छोटे से राज्य मिजोरम में इस समय म्यांमार और बांग्लादेश से आये चालीस हज़ार से अधिक  शरणार्थी आसरा पाए हुए  हैं .  कोविड और केंद्र सरकार से मिलने वाले केन्द्रीय कर का हिस्सा ना मिलने के कारण राज्य सरकार पर पहले से ही वित्तीय संकट मंडरा रहा है . हजारों शरणार्थियों के  आवास, भोजन और अन्य व्यय पर राज्य सरकार को तीन करोड़ रूपये हर महीने खर्च करने पड़ रहे हैं और  इसके चलते बहुत से सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन का सही समय पर भुगतान नहीं हो पा रहा है .  पिछले साल अगस्त-सितमबर में भी जब म्यांमार में  सुरक्षा बलों और  भूमिगत  संगठन अरकान आर्मी के बीच खुनी संघर्ष हुआ था सैंकड़ों शरणार्थी भारत की सीमा में लावंग्तालाई जिले में वारांग और उसके आसपास के गाँवों आ गए थे .  लावंग्तालाई  जिले में ही कोई 5909 शरणार्थी हैं . चम्फाई और सियाहा जिलों में इनकी बड़ी संख्या है. सात सितम्बर-22  को ही राज्य के गृह मंत्री लाल्चामालियान्न ने विधान सभा में स्वीकार किया था कि राज्य में इस समय 30,401 म्यांमार के शरणार्थी हैं और इनमें से 30,177 लोगों को कार्ड भी जारी कर दिए गये हैं . आज यह संख्या पचास हजार हो चुकी है .

पड़ोसी देश म्यांमार में उपजे राजनैतिक संकट के चलते हमारे देश में हज़ारो लोग अभी आम लोगों के रहम पर अस्थाई शिविरों में रह रहे हैं .  यह तो सभी  जानते हैं की राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के पास किसी भी विदेशी को "शरणार्थी" का दर्जा देने की कोई शक्ति नहीं है. यही नहीं भारत ने 1951 के संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी सम्मेलन और इसके 1967 के प्रोटोकॉल पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं .

हमारे यहाँ शरणार्थी बन कर रह रहे इन लोगों में कई तो वहाँ की पुलिस और अन्य सरकारी सेवाओं के लोग हैं जिन्होंने सैनिक तख्ता पलट का सरेआम विरोध किया था और अब जब म्यांमार की सेना हर विरोधी को गोली मारने पर उतारू है सो उन्हें अपनी जान बचने को सबसे मुफीद जगह भारत ही दिखाई दी. लेकिन यह कड़वा सच है कि पूर्वोत्तर भारत में म्यामार से शरणार्थियों का संकट बढ़ रहा है.  उधर असम  में म्यांमार की अवैध सुपारी की तस्करी बढ़ गई है और इलाके में  सक्रीय अलगाववादी समूह म्यांमार के रास्ते चीन से इमदाद पाने में इन  शरणार्थियों की आड़ ले रहे हैं .यह बात भी उजागर है कि पूर्वोत्तर राज्यों में सक्रीय कई अलगाववादी संगठनों के शिविर और ठिकाने म्यांमार मने ही हैं और चीन के रास्ते उन्हें इमदाद मिलती है .  ऐसे में असली शरणार्थी और  संदिग्ध में विभेद का कोई तंत्र विकसित हो नहीं पाया है  और यह अब देश की सुरक्षा का मुद्दा भी है . गौर करना होगा कि पिछले कुछ महीनों में राज्य पुलिस ने 22.93 किलोग्राम हेरोइन और 101.26 किलोग्राम मेथामफेटामाइन की गोलियों सहित विभिन्न ड्रग्स बरामद किए हैं, जिनकी कुल कीमत 39 करोड़ है.

 

भारत के लिए यह विकट  दुविधा की स्थिति है कि उसी म्यांमार से आये रोहंगीया  के खिलाफ देश भर में अभियान और माहौल बनाया जा रहा है लेकिन अब जो शरणार्थी आ रहे हैं वे गैर मुस्लिम ही हैं -- यही नहीं रोहंगियाँ के खिलाफ हिंसक अभियान चलाने वाले बोद्ध संगठन अब म्यांमार फौज के समर्थक बन गए हैं . म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय को रोहिंग्या के ख़िलाफ नफरत का ज़हर भरने वाला अशीन विराथु अब उस सेना का समर्थन कर रहा है जो निर्वाचित आंग सांग सूकी को गिरफ्तार कर लोकतंत्र को समाप्त कर चुकी है . 

म्यांमार से आ रहे शरणार्थियों का यह जत्था केन्द्र सरकार के लिए दुविधा बना हुआ है . असल में केन्द्र नहीं चाहती कि म्यांमार से कोई भी शरणार्थी यहाँ आ कर बसे क्योंकि रोहंगीया  के मामले में केन्द्र का स्पष्ट नज़रिया हैं लेकिन यदि इन नए आगंतुकों का स्वागत किया जाता है तो धार्मिक आधार पर  शरणार्थियों से दुभात करने की आरोप से  दुनिया में भारत की किरकिरी हो सकती हैं . उधर मिजोरम के सबसे बड़े नागरिक समाज संगठन यंग मिजो एसोसिएशन (वाईएमए) के बैनर तले सैकड़ों लोगों ने पड़ोसी बांग्लादेश से जातीय कुकी-चिन (मिजो) शरणार्थियों को प्रवेश से कथित इनकार के विरोध में प्रदर्शन किया।. यहाँ इस बात को ले कर भारी विरोध था कि मिजोरम सीमा के पास एक जंगल में लगभग 81 वर्ष की आयु के एक वरिष्ठ नागरिक की भूख से मौत हो गई थी क्योंकि उसे उसे भारत-बांग्लादेश सीमा पर तैनात बीएसएफ ने भारत में प्रवेश देने से इनकार कर दिया था .सनद रहे   मिजोरम की कई जनजातियों और सीमाई इलाके के बड़े चिन समुदाय में रोटी-बेटी के ताल्लुकात हैं .

मिजोरम के मुख्यमंत्री जोर्नाथान्ग्मा इस बारे में एक ख़त लिख कर बता चुके हैं कि -- यह महज म्यांमार का अंदरूनी मामला नहीं रह गया है . यह लगभग पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लादेश के रूप में उदय की तरह शरणार्थी समस्या बन चुका  है . मिज़ोरम सरकार केन्द्रीय गृह  मंत्रालय को स्पष्ट बता चुकी है कि वह  म्यांमार में शांति स्थापित होने तक किसी भी शरणार्थी को जबरदस्ती  सीमा पर नहीं धकेलेगी .

 

 

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Still, coal mining through rat-hole mining has not stopped.

  फिर भी नहीं बंद   हुआ चूहा- बिल खदानों से कोयला खनन पंकज चतुर्वेदी मेघालय के पूर्वी   जयंतिया   जिले में   कोयला उत्खनन की   26 हजार स...